भक्ति आंदोलन: भक्ति संत व सूफी संत
प्रश्न: भक्ति संतों की ही भांति, जो हिन्दू धर्म में अंतर्निहित बाधाओं को दूर करने में लगे थे, सूफी संतों ने भी इस्लाम के भीतर एक नए उदार दृष्टिकोण का समावेश किया। टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- भक्ति आंदोलन का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- हिन्दू धर्म में अंतर्निहित बाधाओं के निराकरण में भक्ति संतों की भूमिका और इसकी सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
- इस्लाम के भीतर एक उदार दृष्टिकोण का समावेश करने में सूफी संतों के महत्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर
भक्ति आन्दोलन का उदय सातवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य तमिलनाडु में हुआ। यह नयनार (शिव भक्त) तथा अलवार (विष्णु भक्त) संतों के भावपूर्ण गीतों में परिलक्षित हुआ। इन्होंने रूढ़िवादी अनुष्ठानों की अपेक्षा ईश्वर के प्रति वैयक्तिक भक्ति पर बल दिया। उनका यह विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति और लिंग का हो, मोक्ष प्राप्त कर सकता है। कालांतर में इसे गुरु नानक और कबीर जैसे प्रमुख भक्ति संतों के द्वारा उत्तर भारत में प्रसारित किया गया।
भक्ति कवि-संतों ने भक्ति को जाति और लैंगिक भेदभाव के बिना सभी लोगों हेतु सुलभ बनाते हुए रूढ़िवादी ब्राह्मणों के प्राधिकार का विरोध किया तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन का भी प्रयास किया। उन्होंने सदैव जनसामान्य की पीड़ा के साथ स्वयं को संबद्ध करने का प्रयत्न किया तथा सामंती उत्पीड़न के विरुद्ध जनसामान्य की भावनाओं का प्रतिनिधित्व किया। नानक और कबीर जैसे एकेश्वरवादियों ने हिन्दू धर्म में निहित अंधविश्वासों और रूढ़िवादी तत्वों की आलोचना की।
लगभग उसी समय उत्तर भारत में सूफी आंदोलन का उदय हुआ, जिसने भारतीय समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
हिन्दु धर्म में अंतर्निहित बाधाओं के निराकरण में संलग्न भक्ति संतों की भांति सूफी संतों ने भी इस्लाम के भीतर एक नव उदार दृष्टिकोण का समावेश किया। उदाहरणार्थ:
- सूफी संत वहदत-उल-वजूद (ईश्वर के एकत्व) की अवधारणा में विश्वास करते थे, जिसका तात्पर्य है कि सभी मनुष्य मूलरूप से एक हैं तथा विभिन्न धर्म एकसमान हैं।
- सूफी संतों ने सदैव सांप्रदायिक सौहार्द, सभी के लिए आध्यात्मिक संतुष्टि तथा संपूर्ण मानवता एवं अखंडता के साथ धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया।
- सूफी संतों और भारतीय योगियों के मध्य विचारों का अत्यधिक आदान-प्रदान भी हुआ।
- समाज के निर्धन और निचले वर्गों की सेवा करने में सूफी संतों का उल्लेखनीय योगदान था। जब सुल्तान और उलेमा वर्ग प्राय: लोगों की दैनिक समस्याओं से दूर होते गए तब सूफी संतों ने जनसामान्य के साथ निकट संपर्क बनाए रखा। सूफी संतों के अनुसार मनुष्य की सेवा करना ईश्वर की भक्ति का उच्चतम रूप था।
- सूफी आंदोलन ने समानता और बंधुत्व को प्रोत्साहित किया। वस्तुतः इस्लाम के अंतर्गत समानता के मूल्य को उलेमाओं क तुलना में सूफी संतों द्वारा अधिक महत्व प्रदान किया गया।
भारत में भक्ति और सूफी दोनों विचारधाराओं के संतों का एक-दूसरे पर व्यापक प्रभाव पड़ा तथा दोनों ने एक उदार दार्शनिक दृष्टिकोण को परस्पर साझा किया। भक्ति और सूफी संतों ने धार्मिक अनुष्ठानों पर कुछ लोगों के प्रभुत्व का विरोध किया, रूढ़िवादी प्रथाओं को अस्वीकार किया, जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण का समर्थन किया।
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