स्थिरीकरण की अवधारणा : RBI द्वारा प्रयुक्त स्थिरीकरण की क्रियाविधि
प्रश्न: स्थिरीकरण (स्टरलाइजेशन) क्या है? समझाइए कि बाह्य आघातों के विरुद्ध मुद्रा की आपूर्ति स्थिर रखने में RBI द्वारा कैसे इसका उपयोग किया जाता है।
दृष्टिकोण:
- स्थिरीकरण की अवधारणा की व्याख्या करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- बाह्य आघातों के विरुद्ध मुद्रा आपूर्ति को स्थिर रखने में RBI द्वारा प्रयुक्त स्थिरीकरण की क्रियाविधि को संक्षेप में समझाइए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष दीजिए।
उत्तरः
स्थिरीकरण मौद्रिक कार्रवाई का वह रूप है जिसमें केंद्रीय बैंक वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद या बिक्री के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति पर पूंजी अंतर्वाह और बहिर्वाह के प्रभाव को सीमित करने का प्रयास करता है। यह वृहत् निवल पूंजी आवागमन अर्थात् अंतर्वाह (सकारात्मक आघात) या बहिर्वाह (नकारात्मक आघात) के रूप में परिचालित होने वाले बाह्य आघातों के प्रति अनुक्रिया करने के लिए RBI द्वारा प्रयुक्त किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण साधन है। भारत के विदेशी निवेश का आकर्षक गंतव्य स्थान होने के कारण, RBI द्वारा मुख्यत: पूंजी अंतर्वाह की स्थिति में स्थिरीकरण का प्रयोग किया जाता है।
पूंजी अंतर्वाह की स्थिति में RBI द्वारा स्थिरीकरण :
विदेशी निवेशकों द्वारा विदेशी मुद्रा के माध्यम से भारतीय बंधपत्रों (बॉन्ड) की खरीद की जाती है, जिससे विदेशी मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे घरेलू मुद्रा में मूल्यवृद्धि होती है, जिससे भारतीय निर्यात प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है। इसलिए RBI द्वारा विदेशी मुद्रा में नामित परिसंपत्तियों को खरीदने हेतु घरेलू मुद्रा का विक्रय किया जाता है। परन्तु घरेलू मुद्रा का इस प्रकार का विक्रय देश में मुद्रास्फीति का कारण बनता है। मांग में आनुपातिक वृद्धि के बिना मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि से ब्याज दरों में भी गिरावट आती है।
इन स्थितियों में, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा अंतर्वाह की राशि के समतुल्य राशि की सरकारी प्रतिभूतियों का खुले बाजार में विक्रय किया जाता है। इसके द्वारा बाज़ार से अतिरिक्त नकदी को सोख (कमी) लिया जाता है, जो अन्यथा घरेलू अर्थव्यवस्था में संचलित हो सकती थी। RBI द्वारा अन्य कम उपयोग की जाने वाली स्थिरीकरण विधियों में वाणिज्यिक बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में वृद्धि करना या कुल ऋण पर उच्चतम सीमा आरोपित करना सम्मिलित हैं। यह उच्च शक्तिशाली मुद्रा के भंडार और कुल मुद्रा आपूर्ति को अपरिवर्तित बनाए रखता है। इस प्रकार, यह प्रतिकूल बाह्य आघातों के विरुद्ध अर्थव्यवस्था का स्थिरीकरण करता है। इससे निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- यह मौद्रिक आधार को अपरिवर्तित बनाए रखकर पूंजी अंतर्वाह से होने वाले अवांछनीय विस्तारवादी प्रभावों को समाप्त करता है।
- स्थिरीकरण के साथ-साथ विदेशी मुद्रा बाजार हस्तक्षेप RBI को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार (FOREX) का निर्माण करने की अनुमति प्रदान करता है, जो भविष्य के आघातों का सामना करने में सहायता करता है।
- यह बाजार प्रतिभागियों में विश्वास उत्पन्न करता है।
पूंजी बहिर्वाह की स्थिति में (जैसा कि वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में परिलक्षित हुआ था), देश से पूंजी का बहिर्वाह होता है और घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास होता है। इसके मूल्य को संतुलित करने हेतु, RBI द्वारा घरेलू मुद्रा का क्रय करने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार के कुछ भाग का उपयोग अपनी मुद्रा की कृत्रिम मांग का सृजन करने हेतु किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप मुद्रा की आपूर्ति में कमी हो जाती है, जिससे अपस्फीतिकारी प्रभाव उत्पन्न होने की संभावना होती है। मुद्रा आपूर्ति पर प्रभाव को प्रति-संतुलित करने के लिए RBI द्वारा प्रणाली (अर्थव्यवस्था) में तरलता की आपूर्ति करने वाले खुले बाज़ार परिचालन (OMO) के माध्यम से अपने विदेशी मुद्रा संबंधी हस्तक्षेप का स्थिरीकरण किया जाता है।
हालांकि, ब्याज दरों को उच्च किए बिना दीर्घकालिक स्थिरीकरण संभव नहीं हो सकता है। इससे आगे विदेशी मुद्रा अंतर्वाह में और वृद्धि हो सकती है, जिससे स्थिरीकरण का प्रभाव निष्प्रभावी हो सकता है। स्थिरीकरण आरंभ करने की वित्तीय लागत भी होती है, जिसे RBI को वहन करना पड़ता है। इस प्रकार, RBI द्वारा स्थिरीकरण परिचालनों को आरंभ करने का निर्णय इसकी लागत और लाभों का आकलन करने के पश्चात् ही लिया जाना चाहिए।