भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) के बारे में संक्षिप्त परिचय
प्रश्न: विश्लेषण कीजिए कि एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय के रूप में कार्य करते हुए CAG, विधायिका के प्रति कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही को किस प्रकार सुनिश्चित करता है?
दृष्टिकोण:
- भारत के संविधान के तहत भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार यह केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन विभिन्न प्राधिकरणों को भिन्न-भिन्न लेखा परीक्षाओं के माध्यम से उत्तरदायी ठहराते हुए विधायिका के प्रति कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
- इस संबंध में CAG की शक्ति पर प्रकाश डालते हुए, उल्लेख कीजिए कि संविधान में शामिल विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से इसकी स्वतंत्रता कैसे बनी हुई है।
- पद के महत्व को रेखांकित करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तरः
भारतीय संविधान अनुच्छेद 148-151 के तहत भारत के नियंत्रक एवं लेखापरीक्षक (CAG) के स्वतंत्र पद का प्रावधान करता है। CAG लोक निधि का संरक्षक है तथा केंद्रीय एवं राज्य स्तरों पर देश की वित्तीय व्यवस्था को नियंत्रित करता है।
CAG द्वारा विधायिका के प्रति कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही को सुनिश्चित किया जाता है। इसके लिए यह केंद्र या राज्य सरकार के व्यय करने वाले, राजस्व एकत्र करने वाले अथवा अनुदान प्राप्त करने वाले प्रत्येक निकाय का अंकेक्षण करता है। CAG के अंकेक्षण के दायरे के अंतर्गत सभी संघ एवं राज्य विभाग, सार्वजनिक वाणिज्यिक उद्यम, गैर-वाणिज्यिक स्वायत्त निकाय और साथ-साथ केंद्र या राज्य राजस्व से पर्याप्त रूप से वित्तपोषित सभी निकाय एवं प्राधिकरण शामिल हैं।
CAG द्वारा भारत की संचित निधि से होने वाले व्यय से संबंधित खातों, प्रत्येक राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश (जहाँ विधानमंडल विद्यमान है) की संचित निधि, भारत एवं राज्यों की आकस्मिकता निधि तथा साथ ही साथ भारत के लोक लेखा व राज्यों के लोक लेखा का भी अंकेक्षण किया जाता है।
अंकेक्षण के माध्यम से CAG द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि राजस्व का मूल्यांकन, एकत्रण तथा उपयुक्त आबंटन संविधान में उल्लिखित नियमों तथा प्रक्रियाओं के अनुसार किया गया हो। CAG द्वारा औचित्य लेखा परीक्षा (प्रोप्राइटरी ऑडिट) अर्थात् सरकारी व्यय की ‘तर्कसंगतता, निष्ठा और मितव्ययिता’ की भी जाँच की जा सकती है तथा वह इस प्रकार के खर्च के दौरान किए अपव्यय पर टिप्पणी भी कर सकता है।
CAG द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष विनियोग खातों, वित्त खातों तथा सार्वजनिक उपक्रमों पर अंकेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है। विनियोग खातों तथा अंकेक्षण रिपोर्ट की लोक लेखा समिति द्वारा जांच की जाती है तथा सार्वजनिक उपक्रमों संबंधी रिपोर्ट की संसद की सार्वजनिक उपक्रमों की समिति द्वारा जांच की जाती है। इससे विधायिका के प्रति कार्यपालिका की वित्तीय जवाबदेही में वृद्धि होती है।
उपर्युक्त सभी शक्तियों के अनुपालन में, CAG अपने अंकेक्षण के अधीन किसी भी कार्यालय या संगठन का निरीक्षण कर सकता है, सभी प्रकार के लेन-देनों की जांच कर सकता है तथा कार्यपालिका से प्रश्न पूछ सकता है। साथ ही वह ऑडिट की गयी किसी भी इकाई से किसी भी रिकॉर्ड, लिखत या दस्तावेज की मांग कर सकता है। इस परिदृश्य में, CAG की स्वतंत्रता अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है तथा संविधान के अंतर्गत विभिन्न माध्यमों द्वारा इसे संरक्षित किया जाता है, जैसे:
- कार्यकाल की सुरक्षा एवं निलंबन हेतु विशेष प्रक्रिया (उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की भांति)- वह अपना पद राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत धारण नहीं करता है, हालांकि उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- इसके वेतन एवं भत्तों को भारत की संचित निधि पर भारित किया जाता है- अतः ये संसद में मतदान के अधीन नहीं हैं।
- कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात् वह किसी भी अन्य सरकारी पद को ग्रहण नहीं कर सकता है- अतः, यह किसी लाभ के बदले कोई कार्य किए जाने (क्विड प्रो क्वो) की संभावना को कम करता है।
- संसद द्वारा वेतन एवं सेवा शर्तों को निर्धारित किया जाता है- इसके अतिरिक्त उसके वेतन, पेंशन, सेवानिवृत्ति की आयु इत्यादि में नियुक्ति के पश्चात् कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- किसी भी मंत्री द्वारा संसद के सदनों में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं किया जा सकता अथवा उसके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिए कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली जा सकती।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर द्वारा CAG को भारतीय संविधान के अंतर्गत सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकारी कहा गया है तथा यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रमुख स्तंभों में से एक है।