भारतीय संविधान : केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी शक्तियों का वितरण

प्रश्न: केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी विषयों के वितरण पर टिप्पणी कीजिए। किन परिस्थितियों में संसद राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर विधि बना सकती है?

दृष्टिकोण:

  • केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी विषयों के वितरण से संबंधित संविधान के भाग और सम्बंधित अनुच्छेदों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी शक्तियों का वितरण किस प्रकार किया गया है।
  • उन परिस्थितियों को रेखांकित कीजिए जिनमें संसद राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर विधि बना सकती है।

उत्तरः

संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 245 से 255 में केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है। विधायी शक्तियों का विभाजन राज्य क्षेत्रों और वैधानिक विषयों, दोनों के संबंध में किया जाता है और भारतीय संविधान ने सातवीं अनुसूची में विधायी विषयों के सम्बन्ध में त्रिस्तरीय व्यवस्था की है- अर्थात् संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।

  • संघ सूची में शामिल किसी भी विषय के संबंध में संसद को विधि निर्माण संबंधी विशिष्ट शक्तियां प्राप्त हैं। इन विषयों में सामान्यतः राष्ट्रीय महत्व के विषय और वे विषय शामिल हैं जिनमें राष्ट्रव्यापी कानून की एकरूपता की आवश्यकता होती  है।
  • राज्य विधानमंडल को सामान्य परिस्थितियों में राज्य सूची में शामिल किसी भी विषय के संबंध में विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त है। पुलिस, लोक व्यवस्था, जन- स्वास्थ्य आदि से सम्बंधित विषय इनके कुछ उदाहरण हैं।
  • समवर्ती सूची में शामिल विषयों के सम्बन्ध में संसद और राज्य विधानमंडल, दोनों कानून बना सकते हैं। इनमें वे विषय आते हैं जिन पर कानून की एकरूपता आवश्यक है, किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वे समवर्ती सूची में शामिल हों।
  • अवशिष्ट सूची से संबद्ध विषयों (अर्थात् ऐसे विषय जो तीनों सूचियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं) के संबंध में विधि निर्माण की शक्ति संसद में निहित है।

संविधान में संघ सूची को राज्य सूची और समवर्ती सूची से अधिक महत्व दिया गया है और समवर्ती सूची को राज्य सूची पर प्रमुखता दी गई है। यदि समवर्ती सूची में शामिल किसी विषय पर केंद्रीय कानून और राज्य कानून के मध्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो राज्य कानून पर केंद्रीय कानून अभिभावी होगा। हालाँकि, यदि राज्य द्वारा निर्मित कानून को राष्ट्रपति के विचाराधीन रखा गया है और उसे राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हो जाती है, तो उस राज्य में राज्य द्वारा निर्मित कानून अभिभावी होता है।

वर्तमान व्यवस्था में विधायी शक्तियों का यह अद्वितीय वितरण यह सुनिश्चित करता है कि भारत की विविधता को ध्यान में रखा जाए और जहाँ भी आवश्यकता हो, अखंडता और एकरूपता बनाए रखी जाए।

निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद राज्य सूची में उल्लिखित विषयों पर क़ानून बना सकती है:

  • अनुच्छेद 249: यदि राज्यसभा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित एक संकल्प द्वारा घोषित करती है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक या समीचीन है, तो संसद राज्य सूची में उल्लिखित ऐसे विषय पर विधि निर्माण कर सकती है।
  • अनुच्छेद 250: यदि राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो संसद को राज्य सूची में उल्लिखित किसी भी विषय के संबंध में विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त होगी।
  • अनुच्छेद 252: यदि दो या दो से अधिक राज्यों का विधानमंडल संसद से राज्य सूची में उल्लिखित किसी भी विषय पर विधि निर्माण का अनुरोध करे तो संसद उस मामले को विनियमित करने हेतु विधि बना सकती है। यह कानून केवल उन्हीं राज्यों में प्रभावी होगा, जिन्होंने इसे बनाने के सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किया था।
  • अनुच्छेद 253: अंतर्राष्ट्रीय संधियों, समझौतों या सम्मेलनों को लागू करने के लिए संसद राज्य सूची में उल्लिखित किसी भी विषय के संबंध में विधि निर्माण कर सकती है।
  • राष्ट्रपति शासन: जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो तब संसद को उस राज्य के संबंध में राज्य सूची में उल्लिखित किसी भी विषय पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।

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