धूल भरी आँधियों की अवधारणा और निर्माण की क्रियाविधि
प्रश्न: धूल भरी आँधियों के प्रभाव का विवरण प्रस्तुत करते हुए, पिछले कुछ वर्षों में अवलोकित धूल भरी आंधियों की वर्धित आवृत्ति के कारणों का उल्लेख कीजिए।
दृष्टिकोण
- धूल भरी आँधियों की अवधारणा और निर्माण की क्रियाविधि को संक्षेप में समझाइए।
- हाल के वर्षों में धूल भरी आँधियों की वर्धित आवृत्ति के कारणों का उल्लेख कीजिए। धूल भरी आँधियों के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर
धूल भरी आंधी एक मौसमी परिघटना है। इसके अंतर्गत प्रबल, अशांत पवन का निर्माण होता है जिसके द्वारा मुख्यत: शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर महीन धूल, मृदा और रेत से निर्मित बादलों को भूमि से 500 मीटर की ऊँचाई तक प्रसारित कर दिया जाता है।
इसकी आवृत्ति में वृद्धि के कारण निम्नलिखित हैं:
- अत्यधिक ऊष्मन: भारत के उत्तरी क्षेत्र में सतह के उच्च तापमान से निम्न दाब की स्थिति उत्पन्न होती है, जो उच्च गति वाली पवनों को आकर्षित करती है।
- निम्न मृदा आर्द्रता: ऊष्मा की अत्यधिक मात्रा से कुल वर्षण में कमी आती है। इससे शुष्क मृदा की सुभेद्यता में वृद्धि हो जाती है और उच्च गति वाली पवनों के कारण वायु में धूल के कणों की मात्रा बढ़ जाती है।
- अंतर-क्षेत्रीय स्थानांतरण: मध्य-पूर्व की विशाल धूल और रेत भरी आंधी, भारत में धूल भरी आंधियों के लिए स्रोत के रूप में कार्य करती है। यह पश्चिमी विक्षोभ की शीतल वायु के साथ मिलकर वायुमंडल को अस्थिर बना देती है और अंततः उत्तरी मैदानों में धूल भरे चक्रवातीय परिसंचरण को सक्रिय बना देती है।
- शुष्क भूमि क्षेत्रों का कुप्रबंधन: वाणिज्यिक कृषि जैसे प्रचलनों के माध्यम से मृदा के गठन को क्षति पहुँचती है तथा अपरदन वृहद स्तर पर धूल भरी आंधियों के निर्माण में सहायक हो जाता है।
- जलवायु परिवर्तन: सूखे, जल के कुप्रबंधन और कृषि भूमि को परती छोड़ने जैसे अन्य कारणों के साथ मिलकर इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है।
धूल भरी आंधियों के प्रभाव:
- ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन की उत्पादकता में कमी, खड़ी फसलों, मिट्टी के घरों को नुकसान पहुँचता है जिसके परिणामस्वरूप किसानों के संकट में वृद्धि होती है।
- इससे विभिन्न क्षेत्रों में लवणता प्रतिरूपों में परिवर्तन आता है। इस प्रकार, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए ईरान, पाकिस्तान और भारत के धूल के कणों का अरब सागर के लवणता प्रतिरूप पर प्रभाव पड़ता है।
- वायुजनित संक्रमण में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए धरातल पर विद्यमान वायरस स्पोर वायु के साथ दूर तक प्रवाहित हो जाते हैं और अम्ल वर्षा अथवा शहरी धूम-कोहरे (urban smog) के माध्यम से प्रसारित हो जाते हैं।
- मानव जनसंख्या के समक्ष केराटो कंजक्टीवाइटिस सिसा या शुष्काक्षिपाक (dry eyes) का खतरा बढ़ जाता है, जिसे अनुपचारित छोड़ने पर यह दृष्टि दोष या अंधेपन का कारण बन सकता है।
- आवश्यक सेवाएं बाधित हो जाती हैं जैसे विद्युत की कटौती, रेल सेवाएँ बाधित होना, यातायात बाधित होना आदि।
- यह वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। श्वसन के माध्यम से धूल के शरीर में प्रवेश कर जाने से श्वसन प्रणाली प्रभावित हो जाती है। चरम स्थिति में, लंबे समय तक धूल के प्रभाव में रहने से सिलिकोसिस नामक रोग उत्पन्न हो सकता है और इससे फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
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