भारत-ASEAN सम्बन्ध : भारत-ASEAN संबंधों में व्याप्त मुद्दे और बाधायें
प्रश्न: उत्कृष्ट प्रगति के बावजूद, भारत-ASEAN सम्बन्ध अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं। दिल्ली घोषणापत्र के माध्यम से दोनों पक्षों द्वारा हाल ही में मनाये गए संबंधों के स्मरणोत्सव के संदर्भ में आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत-ASEAN द्विपक्षीय संलग्नता एवं पिछले 25 वर्षों में भारत-ASEAN संबंधों में हुई प्रगति की चर्चा कीजिए।
- भारत-ASEAN संबंधों में व्याप्त मुद्दों और बाधाओं पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
- दिल्ली घोषणापत्र के संदर्भ में भारत-ASEAN संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए उठाए गए कदमों का संक्षिप्त वर्णन करते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।
उत्तर
भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर सम्पूर्ण आसियान नेतृत्व की उपस्थिति भारत की एक्ट ईस्ट नीति के स्वाभाविक विस्तार की अभिव्यक्ति है। इसका उद्देश्य 25 वर्ष की वार्ता साझेदारी,15 वर्ष की शिखर सम्मेलन स्तर पर वार्ता और 5 वर्ष की सामरिक साझेदारी को रेखांकित करना था।
वस्तुओं (2009) और सेवाओं एवं निवेश (2015) में FTA पर हस्ताक्षर करने, RCEP, IMT, त्रिपक्षीय राजमार्ग, कलादान मल्टीमोडल परियोजना और QUAD इंडो-पैसिफ़िक रीजन जैसी अन्य भारतीय रणनीतिक पहलों के साथ भारत-ASEAN संबंधों का क्रमिक विकास हुआ है।
भारत-ASEAN संबंधों से सम्बंधित मुद्देः
- निम्नस्तरीय आर्थिक कनेक्टिविटी- वर्तमान में भारत-ASEAN व्यापार 71 अरब अमेरिकी डॉलर है और 2011-12 में 80 अरब अमेरिकी डॉलर के शीर्ष पर पहुंचने के बाद से इसमें गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके विपरीत ASEAN-चीन व्यापार 450 अरब अमेरिकी डॉलर है।
- निम्नस्तरीय संस्थागत कनेक्टिविटी अर्थात गैर-प्रशुल्क बाधाओं और प्रतिबंधात्मक संस्थागत व्यवस्था की उपस्थिति वस्तुओं और सेवाओं के आवागमन को बाधित करती है। उदाहरण के लिए, पर्याप्त भौतिक और संस्थागत अवसंरचना के अभाव के कारण ऊर्जा व्यापार क्षमता से कम स्तर पर बना हुआ है।
- भौतिक कनेक्टिविटी का अभाव: इसके अंतर्गत सड़कों की खराब गुणवत्ता, रेलवे कनेक्टिविटी का अभाव, समुद्री एवं बंदरगाह सुविधाओं की अपर्याप्तता तथा सीमा-शुल्क सहयोग में कमी शामिल हैं। सिंगापुर जैसे कुछ शहरों के अतिरिक्त, भारत की ASEAN क्षेत्र के साथ वायुमार्ग और जलमार्ग कनेक्टिविटी काफी कम है। भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग तथा म्यांमार के रखाइन प्रांत से गुजरने वाली कलादान मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर जैसी परियोजनाओं में अत्यधिक विलम्ब हुआ है।
- लोगों के पारस्परिक जड़ाव से सम्बंधित महे- भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के मध्य पेशेवरों और श्रमिकों के आवागमन पर कुछ प्रतिबंध विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटन क्षेत्र का भी इसकी क्षमताओं के अनुसार विकास नहीं हुआ है।
- सुरक्षा संबंध- ASEAN देशों ने दक्षिणी चीन सागर में चीन के विरुद्ध एक प्रतिरोध के रूप में भारत की बढ़ती उपस्थिति का स्वागत किया है। भारत की बढ़ती हुई उपस्थिति से यह अपेक्षा की जाती है कि यह इस क्षेत्र में अमेरिका की प्रतिबद्धता में आई कमी से उत्पन्न संभावनाओं, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा TPP से स्वयं को बाहर करने के निर्णय के परिणामस्वरूप उत्पन्न चिंताओं का निवारण करेगा। हालांकि, भारत इस सन्दर्भ में ASEAN देशों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP): चीनी बाजार तक समान पहुँच प्राप्त किये बिना चीनी उत्पादों को अपने बाजार तक और अधिक पहुँच प्रदान करने के संबंध में भारत की चिंताएं हैं चूंकि प्रशुल्कों को पूर्णतया समाप्त करने से चीन को लाभ प्राप्त होने की उम्मीद है।
हाल ही का दिल्ली घोषणापत्र सही दिशा में एक कदम है क्योंकि यह आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय अपराध, साइबर सुरक्षा, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग, आर्थिक संबंधों, भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी, MSMEs, समुद्री सहयोग तथा बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण अन्वेषण पर विभिन्न समझौतों को शामिल करके भारत-ASEAN संबंधों से सम्बंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है।
इस क्षेत्र के साथ अपने व्यापार और वाणिज्यिक एकीकरण को बढ़ावा देना भारत, ASEAN राष्ट्रों और उन सभी पक्षों के लिए लाभदायक है जिनके हित एक ऐसे शांतिपूर्ण हिन्द-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हैं जिसमें स्थिर व न्यायसंगत समुद्री नियमावली और खुले सागरीय क्षेत्र (ओपेन सी) के अंतर्गत समावेशी व्यापार नेटवर्कों का विकास हो सके।
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