बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर: MIDH)

प्रश्न: बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर: MIDH) के अंतर्गत प्रमुख तत्वों की पहचान करते हुए, संक्षेप में व्याख्या कीजिए कि यह भारत की बागवानी क्षेत्रक के समग्र विकास को किस प्रकार बढ़ावा दे सकता है। साथ ही, भारत में फल एवं सब्जी क्षेत्रक हेतु प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला में बाधक के रूप में कार्य करने वाले कारकों का सविस्तार वर्णन कीजिए।

दृष्टिकोण

  • उत्तर के प्रारंभ में, MIDH का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • वर्णन कीजिए कि मिशन किस प्रकार बागवानी क्षेत्रक के समग्र विकास को बढ़ावा देता है।
  • भारत में फल एवं सब्जी क्षेत्रक हेतु प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ़ हॉर्टिकल्चर (MIDH) बागवानी क्षेत्र की समग्र वृद्धि हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है। इसमें फलों, सब्जियों, जड़ व कन्द फसलों, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको और बांस इत्यादि उत्पादों को कवर किया गया है।

MIDH के घटक:

  • प्रत्येक क्षेत्र की जलवायु-विविधता के अनुरूप विभेदीकृत रणनीतियों के माध्यम से बागवानी क्षेत्र की समग्र वृद्धि के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन।
  • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य बागवानी मिशन सभी पूर्वोत्तर राज्यों एवं तीन हिमालयी राज्यों में बैकवर्ड एंड फॉरवर्ड लिंकेज के माध्यम से उत्पादन से खपत तक बागवानी के सभी चरणों की समस्याओं का समाधान करता है।
  • क्षेत्र की जलवायु-विविधता के अनुरूप विभेदीकृत रणनीति के रूप में बांस क्षेत्रक के एरियल कवरेज और विकास को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन।
  • राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, बागवानी उद्योग के एकीकृत विकास में सुधार करने तथा फलों और सब्जियों के उत्पादन एवं प्रसंस्करण में समन्वय व सतत संचालन को बनाए रखने हेतु प्रयासरत है।
  • नारियल विकास बोर्ड, उत्पादकता में वृद्धि और उत्पाद विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए देश में नारियल की खेती और उद्योग के एकीकृत विकास हेतु प्रयास करता है।

MIDH बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास को निम्नलिखित के माध्यम से बढ़ावा देता है

  • प्रत्येक क्षेत्र में और विपणन में कृषि, फसल की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए क्षेत्र की जलवायु-विविधता के अनुरूप विभेदीकृत रणनीतियां।
  • नए शोध के माध्यम से तकनीकी विस्तार एवं प्रगति।
  • किसानों के लिए अपव्यय को रोकने और बेहतर पारिश्रमिक प्रदान करने के लिए फसल कटाई प्रबंधन संबंधी रणनीतियां, प्रसंस्करण और विपणन रणनीतियां।
  • इकोनॉमी ऑफ़ स्केल एंड स्कोप सुनिश्चित करने हेतु किसानों के समूहों में एकत्रीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • पोषण सुरक्षा को सुदृढ़ करना और गुणवत्तापूर्ण जर्मप्लाज्म, रोपण सामग्री एवं सूक्ष्म सिंचाई द्वारा जल उपयोग दक्षता के माध्यम से उत्पादकता में सुधार।
  • कौशल विकास का समर्थन, जो बागवानी में ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार सृजन के अवसर उत्पन्न करता है।

फल एवं सब्जी क्षेत्रक में प्रभावी आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करने वाले कारक 

  • कोल्ड चेन सुविधाओं और नेटवर्क की कमी एवं उनकी अपर्याप्त क्षमता।
  • किसानों के लाभों को हड़पने वाले मध्यस्थों के कारण उत्पन्न मुद्दे।
  • सम्मिलित भागीदारों (उदाहरण के लिए- सरकार, किसान, बाजार, प्रसंस्करण इकाइयों, उपभोक्ताओं) के मध्य बैकवर्डफॉरवर्ड एकीकरण का अभाव।
  • भंडारण/गोदामों की कमी, खराब लोडिंग/अनलोडिंग सुविधाएं, निम्न स्तरीय सड़क कनेक्टिविटी, अपर्याप्त बाजार आधारभूत संरचना।
  • पैकेजिंग सामग्री की अनुपलब्धता और उच्च लागत।
  • अक्षम प्रौद्योगिकी, अप्रचलित तकनीकें और पुरानी मशीनरी।
  • फसल-कटाई के पश्चात प्रबंधन और प्रौद्योगिकियों के संबंध में किसानों में जागरूकता का अभाव।

उचित आपूर्ति श्रृंखला मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है जो शेल्फ आयु (सामग्री के भंडार और उपयोग होने तक की अवधि) में वृद्धि और हानि एवं अपव्यय में कमी, किसानों की आय में वृद्धि करने के साथ-साथ रोजगार सृजन तथा किसानों की आजीविका में सुधार करे। इसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था का समग्र विकास हो सकेगा।

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