भारत में औद्योगिक संवृद्धि : 1991 की औद्योगिक नीति (NIP) के पश्चात् एक नई औद्योगिक नीति की ‘जरूरत’ या आवश्यकता

प्रश्न: औद्योगिक संवृद्धि को बाधित करने वाली प्रमुख चुनौतियों के संदर्भ में, उद्योग को संवृद्धि के वाहक के रूप में अपनी भूमिका के निर्वहन एवं अधिक मूल्यवर्धन और रोजगार में वृद्धि का उत्तरदायित्व संभालने में सक्षम बनाने हेतु एक नई औद्योगिक नीति की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में औद्योगिक संवृद्धि में गतिरोध उत्पन्न करने वाली चुनौतियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • भारत में आर्थिक विकास, मूल्य संवर्धन और रोजगार के अवसरों के सृजन के सापेक्ष 1991 की औद्योगिक नीति (NIP) के पश्चात् एक नई औद्योगिक नीति की ‘जरूरत’ या आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

सामान्यत: यह स्वीकार किया जाता है कि कृषि से निर्मुक्त अतिरिक्त श्रम को उद्योग में लाभप्रद रूप से नियोजित किया जा सकता है। ऐसे में जब औद्योगिक संवृद्धि वांछित दरों को प्राप्त नहीं कर रही है तथा एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में तीव्र गति से संक्रमण हो रहा है तब जनांकिकीय लाभांश का वांछनीय प्रयोग करने के संबंध में चिंता उत्पन्न हो गई है। साथ ही जिस प्रकार व्यापार कच्चे माल पर लाभ से अधिक मूल्य संवर्धन को लाभ पहुंचाता है, उससे यह अनिवार्य हो जाता है कि भारते अपने उद्योगों के माध्यम से कच्चे माल एवं मध्यवर्ती उत्पादों की अपेक्षा उद्योग निर्मित एवं उच्च मूल्य वस्तुओं के व्यापार पर ध्यान केन्द्रित करे। भारत की औद्योगिक संवृद्धि, कुछ ऐसे देशों द्वारा प्राप्त स्तरों के अनुरूप नहीं रही है जो किसी समय भारत के संवृद्धि चक्र के समान चरण में थे।

औद्योगिक क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ हैं:

  • अपर्याप्त अवसंरचना: इसके परिणामस्वरूप लॉजिस्टिक्स लागत में वृद्धि होती है तथा विदेशों में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाती है।
  • जटिल श्रम कानून: इससे असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व स्थापित हो जाता है तथा श्रम गहन उद्योग हतोत्साहित होते हैं।
  • जटिले व्यावसायिक वातावरण: लाल-फीताशाही तथा प्रतिगामी कर संरचना औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, व्यवसाय करने में सुगमता और लाभार्जन को कम करती है। व्यापार हेतु चुनौतियाँ जैसे कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में चक्रीय मंदी, संकुचित वैश्विक मांग और उभरती संरक्षणवादी प्रवृतियां।
  • प्रौद्योगिकी का मंद अभिग्रहण निम्न उत्पादकता का कारण बनता है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D), नवाचार तथा कौशल विकास पर अपर्याप्त व्यय।

उपर्युक्त चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग ने औद्योगिक नीति, 2017 का प्रारूप तैयार किया है। इस नीति का लक्ष्य आगामी दो दशकों हेतु रोजगारों के अवसरों का सृजन, विदेशी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देना और प्रतिवर्ष 100 बिलियन USD प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करना है। इसका लक्ष्य निम्नलिखित को प्राप्त करना हैं:

  • भारतीय और वैश्विक SMEs के मध्य संपर्कों के सुदृढ़ीकरण तथा FDI की मात्रा में वृद्धि के द्वारा भारत के वैश्विक ब्रांड्स का सृजन करना।
  • औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना: अवसंरचना लागत में कमी करके जैसे कि विद्युत्, लॉजिस्टिक्स, विनियामक/अनुपालन के बोझ को कम करना, पूँजी लागत को कम करना तथा श्रम उत्पादकता में सुधार करना।
  • प्रौद्योगिकी में उन्नति: उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करना; उन्नति में तीव्रता लाने हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाना।
  • डिजिटल अवसंरचना: अगली पीढ़ी की डिजिटल प्रौद्योगिकियों को समर्थन प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण अवसंरचना को सुरक्षित करने के साथ साइबर सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना।
  • जनांकिकीय लाभांश की प्राप्ति हेतु श्रम गहन क्षेत्रकों जैसे कि वस्त्र, चमड़ा एवं फुटवियर उद्योग) इत्यादि पर ध्यान केन्द्रित करना।
  • सनराइज सेक्टर: भारत या अनेक देशों में, चयनित सनराइज सेक्टरों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य प्रसंस्करण, इलेक्ट्रानिक्स इत्यादि में सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखलाओं की स्थापना करना।
  • सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMES) हेतु पूँजी तक पहुँच: बैंकों को वैकल्पिक वित्त उपलब्ध कराना जैसे कि क्राउड फंडिंग, P2P, मुद्रा (MUDRA) इत्यादि।
  • कराधान: GST को सरल बनाना। इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या का समाधान करना। सतत और उत्तरदायी औद्योगिकीकरण: हरित विनिर्माण, स्मार्ट प्रौद्योगिकियों और औद्योगिक अपशिष्ट के न्यूनीकरण की ओर संक्रमण के द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों के कार्बन उत्सर्जन एवं संसाधन फुटप्रिंट को कम करना।
  • नवाचार तथा अनुसंधान एवं विकास (R&D): प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के उचित मॉडल, शैक्षणिक-अनुसंधान संस्थानों की आवश्यकता- औद्योगिक लिंकेज, पारदर्शी IPR व्यवस्था और स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को प्रोत्साहित करना।

एक व्यापक, क्रियाशील तथा परिणाम उन्मुख औद्योगिक नीति, उद्योग को अर्थव्यवस्था में एक वृहद भूमिका का निष्पादन करने हेतु सक्षम बनाएगी तथा संवृद्धि के वाहक के रूप में इसकी भूमिका को परिपूर्ण करेगी। साथ ही यह अधिक मूल्यवर्धन और रोजगार सृजन के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी करेंगी।

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