भारत में निवेश : निरंतर विकास हेतु निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदम
प्रश्न: भारत में निवेश दर, 21वीं सदी के प्रथम दशक के मध्य में एक ऐतिहासिक उछाल के उपरांत निरंतर घटती रही है। इस प्रवृत्ति के पीछे निहित कारणों का परीक्षण कीजिए। निरंतर वृद्धि हेतु निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में निवेश में गिरावट के संबंध में संक्षेप में लिखिए।
- भारत में निवेश दर में क्रमिक गिरावट हेतु उत्तरदायी कारणों पर चर्चा कीजिए।
- निरंतर विकास हेतु निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक कदमों का विवरण दीजिए।
उत्तर
निवेश, सकल पूंजी निर्माण को दर्शाता है तथा यह अर्थव्यवस्था के प्रमुख विकास इंजनों में से एक है। भारत में पिछले एक दशक में निवेश दर क्रमिक रूप से घटकर 38% से 27% हो गई है। घटकवार देखें तो सकल निवेश में अधिकांश गिरावट के लिए निजी कॉर्पोरेट निवेश उत्तरदायी है। 2007-08 से 2015-16 के मध्य, लगभग 7 प्रतिशत की कुल गिरावट में निजी निवेश का योगदान 5pp (परसेंटेज पॉइंट्स) रहा है। निम्नलिखित कारणों के आलोक में इस गिरावट का परीक्षण किया जा सकता है:
- 2008 में वित्तीय संकट के आरम्भ ने निवेश निर्णयों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया था। विश्व की कई अर्थव्यवस्थाएं आज भी इसके प्रभाव का सामना कर रही हैं।
- भारतीय अर्थव्यवस्था 2012 से ट्विन बैलेंस शीट सिंड्रोम से जूझ रही है जहाँ पहले से चल रही परियोजनाएँ बाधित हुई हैं और साथ ही बैंकों की बैलेंस शीट भी दबावग्रस्त है। इसके फलस्वरूप NPA वृद्धि को प्रोत्साहन मिल रहा है और क्रेडिट ऑफ-टेक में गिरावट आई है।
- 2010-13 की अवधि के दौरान उच्च मुद्रास्फीति के कारण ब्याज की उच्च दरों से भी निवेश निर्णयों में विलम्ब हुआ है। हालांकि मुद्रास्फीति कम हो गई है, किन्तु निवेशक अभी भी चिंतित हैं।
- PPP परियोजनाओं में मुकदमेबाजी ने भी निवेश को हतोत्साहित किया है।
जोखिम और अपेक्षित रिटर्न के सम्बन्ध में प्रतिकूल धारणा, यथा- भूतलक्षी कराधान कानून, अनिश्चितता का वातावरण निर्मित करते हैं।
- तकनीकी प्रगति और लॉजिस्टिक्स के प्रति संसाधनों के अपर्याप्त आवंटन ने नए निवेशों को अवरुद्ध किया है।
- भूमि और श्रम सुधारों का मंद क्रियान्वयन।
- घरेलू बचत और निवेश दर में गिरावट।
इन बाधाओं की प्रकृति उत्क्रमणीय रही है तथा निरंतर विकास हेतु निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए इन्हें संबोधित किया जाना आवश्यक है। इस संबंध में निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
- ट्विन बैलेंस शीट की समस्या को संबोधित करने के लिए गैर-निष्पादित संपत्तियों (NPA) की त्वरित पहचान और समाधान। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की साख सृजन की क्षमताओं की पुन: प्राप्ति के लिए उनका पुनपूँजीकरण।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता की परिकल्पना एवं अधिदेश के अनुरूप दिवालियापन से सम्बंधित मामलों का समयबद्ध समाधान करना।
- GST कार्यक्रम में आगे के परिवर्तनों के कार्यान्वयन के लिए निश्चित समय-सीमा तय किया जाना तथा क्षमता निर्माण।
- त्वरित श्रम और भूमि सुधार के माध्यम से ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार करना। इसके साथ ही एक अनुमानित और स्थिर कराधान व्यवस्था का निर्माण करना, जो निवेशकों को निर्णय लेने के लिए एक स्पष्ट दृष्टि प्रदान कर सके।
- रोजगार के अवसरों का सृजन करते हुए अवसंरचनात्मक क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना। इसके फलस्वरूप धन की आपूर्ति में वृद्धि होगी तथा साथ ही यह निजी निवेश को भी आकर्षित करेगा।
- निवेशकों के लिए निवेश को आकर्षक बनाने हेतु निवेश मॉडल में उचित परिवर्तन करना, जैसे HAM मॉडल।
- मौजूदा स्थिति के अनुसार PPP परियोजनाओं पर पुनः वार्ता करना, जिससे निवेशकों के मध्य विश्वास उत्पन्न हो सके।
मेक इन इंडिया जैसे कदम, त्वरित अनुमोदन और मंजूरी के लिए पहल, FDI सुधार व दीर्घकालिक वित्तपोषण के लिए बॉन्ड मार्केट को मजबूत करने से भारत में निवेश दर में और अधिक सुधार होगा। एक लंबे समय में निवेश को पुनर्जीवित और प्रोत्साहित करने के लिए एक स्पष्ट, पारदर्शी तथा स्थिर कर एवं नियामकीय वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है।
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