समाज में जाति और सांप्रदायिक आधारित हिंसा और भेदभाव के बारे में संक्षिप्त चर्चा
प्रश्न: गहरे पूर्वाग्रहों और भेदभावपूर्ण अभिवृत्तियों के दूर नहीं होने की स्थिति में टकराव को हिंसात्मक होने में लंबा समय नहीं लगता है। भारत के सांप्रदायिक और जाति आधारित हिंसा के संदर्भ में चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में राज्य को क्या भूमिका निभानी चाहिए?
दृष्टिकोण
- समाज में जाति और सांप्रदायिक आधारित हिंसा और भेदभाव के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए और पूर्वाग्रह के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
- इसके विकास तथा हिंसा और भेदभाव में इसकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
- पूर्वाग्रह को कम करने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय समाज की विविधिता में निहित शक्ति कभी-कभी समाज को विभाजित करने का मुख्य कारक बन जाती है तथा अंततः भेदभाव और यहाँ तक कि हिंसा को प्रोत्साहित करती है। यद्यपि यह अपेक्षा की गई थी कि शहरीकरण ओर बढ़ते तकनीकी एवं आर्थिक विकास के साथ सांप्रदायिक और जातिगत पहचान कम हो जाएगी, परंतु ऐसा प्रतीत नहीं होता है। वास्तव में इस प्रकार की समूह आधारित पहचान के घटने और बढ़ने, दोनों ही से सम्बंधित साक्ष्य प्रदान किए जा सकते हैं।
जाति और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ सामान्यतः गहरे पूर्वाग्रह, तर्कहीन मान्यताओं और दूसरे समूह के प्रति पूर्वकल्पित धारणा पर आधारित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, एक समुदाय के सदस्यों को अन्य समुदाय के सदस्यों से धमकी, उत्पीड़न, भय और खतरे का अनुभव होता है। परिणामत: खतरे की प्रतिक्रिया अधिकांशतः अन्य की उपेक्षा और कभी-कभी घृणा के कारण हिंसा के रूप में होती है।
भारत में निम्नलिखित कारकों के कारण इन पूर्वाग्रहों को दृढ़ता प्राप्त होती है:
- इतिहास, लोक-साहित्य और धारणा के माध्यम से भेदभाव को वैधता प्रदान करना। उदाहरण के लिए, विभाजन की घटना अभी भी कई लोगों के बीच गहरी भावनाओं को जागृत करती है। इसी प्रकार ऐतिहासिक साहित्यों में निम्न जातियों के लोगों से भेदभाव के कई उद्धरण मिलते हैं और जिसके कारण इन्हें स्वीकृति प्राप्त होती है।
- पृथक बसावट के कारण पारस्परिक अंतर-समूह संपर्क और संचार का अभाव होता है। इससे समूह के मध्य (in-group) और समूह से इतर (out-group) का वर्गीकरण सुदृढ़ हो जाता है।
- अन्य समूह के लक्ष्यों के बारे में गलत सूचना प्रदान कर अपने निहित हितों की प्राप्ति हेतु असुरक्षा और भय उत्पन्न करना।
- चूंकि विभिन्न समूह परस्पर समान संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, इसलिए सामाजिक-आर्थिक रूप से शक्तिशाली समूह वैधता और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए अन्य समूह को अक्षम मानता है।
- अन्य समूहों के प्रभुत्व को रोकने हेतु, अवसरवादियों द्वारा लोगों में नकारात्मक भावनाओं को उत्तेजित करने का प्रयास किया जाता हैं ताकि सांप्रदायिक घटनाओं को भड़का कर अपने संकीर्ण उद्देश्यों को पूरा किया जा सके और इस प्रकार, अंततः पूर्वाग्रहों को गहरा किया जा सके।
यद्यपि भारत का संविधान स्पष्टतया राज्य द्वारा मूलवंश, धर्म, जाति, जन्म स्थान और लिंग जैसे आधार पर भेदभावों को रोकता है, साथ ही अस्पृश्यता को प्रतिबंधित करता है; तथापि व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर भेदभाव की प्रथा प्रचलित है। इस प्रकार राज्य को सांस्कृतिक विभाजन को कम करके सांस्कृतिक अलगाव के कारण उत्पन्न होने वाले संघर्षों में कमी लाने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। इसमें सम्मिलित हैं:
- निवारक स्तर पर, राज्य को एक मुक्त परिवेश में विभिन्न वर्गों के सदस्यों की बैठक के आयोजन को बढ़ावा देकर लंबे समय से चले आ रहे पूर्वाग्रहों को कम करना चाहिए। उदाहरण के लिए, विभिन्न त्योहारों के अवसरों पर सांस्कृतिक सम्मेलन और सामुदायिक रात्रिभोज। यह एक समूह के भीतर व्याप्त, अन्य समूह के प्रति गलत सूचनाओं को समाप्त करने में सहायता करता है।
- भेदभाव या हिंसा के मामलों में राज्य को केवल न्याय ही नहीं करना चाहिए बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय किया गया है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 के प्रभावी प्रवर्तन और आदर्श आचार संहिता को सुदृढ़ करके जाति और सांप्रदायिक आधारित राजनीति पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।
- लोगों को निर्धनता, निरक्षरता, बेरोजगारी और प्रदूषण जैसी समूहिक समस्याओं से लड़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। शिक्षा प्रणाली को बच्चों के मध्य संवैधानिक और मानव मूल्यों को अंतर्निविष्ट करने वाली होनी चाहिए।
- पुलिस बलों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों की समीक्षा करना और ऐसे प्रशिक्षण को बढ़ावा देना जो उनमें धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भावना की अभिवृति को अंतर्निविष्ट करें।
तथापि, देश अकेले सामाजिक सद्भाव सुनिश्चित नहीं कर सकता है; इसका उत्तरदायित्व लोगों और उनके व्यक्तिगत अंतःकरण पर निर्भर करता है। यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अन्य वर्गों के प्रति सौहार्द की भावना को बढ़ावा दे तथा संकीर्ण हितों और अल्पकालिक लक्ष्यों से ऊपर उठकर एक सशक्त और संयुक्त देश का निर्माण करें।
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