हिमालयी मंदिर स्थापत्य की मुख्य विशेषताएँ
प्रश्न: हिमालयी मंदिर स्थापत्य की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? इस स्थापत्य शैली को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्वों के आलोक में यथोचित उदाहरणों के साथ व्याख्या कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- हिमालयी मंदिर स्थापत्य की मुख्य विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
- इस स्थापत्य पर विभिन्न शैलियों के प्रभावों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हिमालय की पहाड़ियों जैसे कुमाऊं, गढ़वाल, हिमाचल और कश्मीर में मंदिर स्थापत्य की एक विशिष्ट शैली का विकास हुआ। इस स्थापत्य शैली के कुछ प्रसिद्ध मंदिरों में कश्मीर में पंद्रेथान, कुमाऊं में चंपावत और जागेश्वर, गढ़वाल में केदारनाथ और चम्बा के मंदिरों की मूर्तिकला सम्मिलित है।
हिमालयी मंदिरों की प्रमुख विशेषताएँ:
- ये मंदिर, विशेषकर कश्मीर में, काष्ठ निर्मित हैं।
- इनके निर्माण में ढलवाँ छतों का प्रयोग किया गया है।
- हिमपात से बचाव हेतु छतें शिखरनुमा एवं बाहर की ओर झुकी हुई होती हैं।
- प्रायः इनका आकार ‘पैगोडा’ के समान होता है।
- धातु से बनी मूर्तियाँ पीले रंग की हैं, जो तांबे एवं जिंक की मिश्र धातु से निर्मित हैं।
- ये मंदिर बौद्ध एवं हिंदू दोनों धर्मों को समर्पित हैं।
- इन पर सामान्य नक्काशी की गयी है।
” हिमालयी मंदिर स्थापत्य शैली कई शैलियों का मिश्रण है, जैसे:
- तक्षशिला और पेशावर जैसे प्रमुख गोधार कला के क्षेत्रों से निकटता के कारण कश्मीर पर गांधार कला का अत्यधिक प्रभाव है।
- हिंदू एवं बौद्ध भिक्षुकों द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों तथा शेष भारत की यात्रा करने के कारण, इस शैली का गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल की सारनाथ, मथुरा, गुजरात और बंगाल शैलियों के साथ मिश्रण हुआ।
- अनेक मंदिरों में गर्भगृह और शिखर को रेखा-प्रसाद शैली में निर्मित किया गया है।
- पंद्रेथान मंदिर का निर्माण एक जलाशय के मध्य में किया गया है, जैसा की गुजरात शैली में प्रचलित है।
- चंबा में मूर्तियाँ में गुप्तोत्तर काल की परंपराओं के साथ स्थानीय परम्पराओं का मिश्रित रूप दिखता है।
- कुमाऊं के अनेक मंदिर नागर स्थापत्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
इस प्रकार, हिमालयी मंदिर स्थापत्य कला पर विभिन्न शैलियों का प्रभाव परिलक्षित होता है, फिर भी इस शैली में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं जो इसे विशिष्ट बनाती हैं।
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