मौद्रिक नीति की अवधारणा और इसके उद्देश्य
प्रश्न: भारत में मौद्रिक नीति संचरण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिए जो इसकी प्रभाविता को बाधित करते हैं। साथ ही, इसमें सुधार के लिए RBI द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
दृष्टिकोण
- मौद्रिक नीति की अवधारणा और इसके उद्देश्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- मौद्रिक नीति संचरण के अर्थ को संक्षेप में स्पष्ट करते हुए, प्रभावी मौद्रिक नीति संचरण के महत्व पर चर्चा कीजिए।
- भारत में मौद्रिक नीति संचरण से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालिए।
- मौद्रिक नीति संचरण में सुधार हेतु RBI द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
मौद्रिक नीति केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति और ब्याज दर के प्रबंधन के संबंध को निर्धारित करने वाली एक समष्टिगत आर्थिक नीति है। यह मुख्यतः मांग पक्ष की आर्थिक नीति का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका उपयोग किसी देश की सरकार द्वारा खुले बाजार की क्रियाओं, बैंक दर संबंधी नीतियों, रिजर्व प्रणाली (CRR, SLR, CRAR), साख नियंत्रण नीति, आदि के माध्यम से मुद्रास्फीति, उपभोग, वृद्धि और तरलता जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु किया जाता है। मौद्रिक नीति संचरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा एक केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति के साधनों (जैसे- रेपो दर) को अर्थव्यवस्था की वित्तीय व्यवस्था में संचरित किया जाता है। उदाहरण के लिए:
रेपो दर ! → ब्याज दर ! → उपभोग, निवेश 1 → आउटपुट: → संवृद्धि।
प्रभावी मौद्रिक नीति संचरण का महत्व:
- प्रभावी संचरण निजी निवेश संबंधी गतिविधि को बढ़ाने में सहायक होगा, जो बदले में अर्थव्यवस्था में अवसंरचना और अन्य पूंजीगत संरचनाओं में निवेश के माध्यम से विकास को प्रोत्साहित करेगा।
- यह अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष (unseen) वित्तीय अवरोधों से निपटने हेतु पर्याप्त तरलता सुनिश्चित करेगा।
- यह भारत के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर तीव्र गति से बदलते आर्थिक परिदृश्यों के प्रति अनुक्रिया करने हेतु अर्थव्यवस्था को और अधिक गतिशील और तीव्र बनाएगा।
- यह त्वरित गति से मुद्रास्फीति के प्रभावों में कमी करने में सहायक सिद्ध होगा तथा समय के साथ राजकोषीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अन्य उद्देश्यों को भी प्राप्त करेगा।
यद्यपि, उपलब्ध साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि भारत में मौद्रिक नीति सम्बन्धी कार्रवाई का प्रभाव उत्पादन के संबंध में 2-3 तिमाहियों के बाद और मुद्रास्फीति के संबंध में 3-4 तिमाहियों के बाद अनुभव किया जाता है।
मौद्रिक नीति संचरण से सम्बंधित मुद्दे
- जमा संबंधी देयता : संचरण कठिन होता है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक RBI से ऋण नहीं लेते हैं किन्तु अपने व्यवसाय हेतु ये मुख्य रूप से सार्वजनिक जमाओं पर निर्भर होते हैं।
- निश्चित ब्याज दरें : भारत में, लगभग 50% बैंक देयताएं सावधि जमाओं के रूप में होती हैं। ये मुख्यतः 1-3 वर्षों के लिए निश्चित ब्याज दरों पर के अंतर्गत होती हैं, जिससे बैंकों द्वारा दरों में परिवर्तन करने में कठोरता अपनायी जाती है।
- दीर्घ परिपक्वन अवधि: इसके अतिरिक्त, बैंकों की 36% से अधिक सावधि जमाओं की परिपक्वता अवधि तीन वर्ष या उससे अधिक है जो यह दर्शाता है कि उन पर लागू दरों में लगातार परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- परिसंपत्ति की गुणवत्ता में गिरावट : वृहद दबावग्रस्त आस्तियों से होने वाली क्षति के कारण बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय स्थिति में गिरावट बैंकों को लाभप्रदता को यथावत रखने (भले ही अल्पावधि के लिए) हेतु अपने शुद्ध ब्याज मार्जिन को बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है।
- विस्तार के माध्यम से स्व-आरोपित (Self-imposed) कठोरता: भारत में ऋणों का एक बड़ा भाग अस्थिर दरों के अधीन है। ये एक निश्चित बेंचमार्क दर से जुड़े होते हैं। बैंक मुद्रास्फीति और क्रेडिट जोखिम को कम करने हेतु बहुधा बेंचमार्क दरों से भी अधिक ब्याज दर वसूलते हैं। बेंचमार्क दरों में बदलाव के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के लिए ब्याज दरों में यह वृद्धि की जाती है।जिसके परिणामस्वरूप ब्याज दरों में समग्र रूप से आने वाली गिरावट प्रभावित होती है।
पिछले कुछ वर्षों में, RBI द्वारा मौद्रिक नीति संचरण की गति और सीमा को बेहतर बनाने हेतु निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं:
- बैंकों द्वारा ऋण के लिए ब्याज दरों को निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिष्कृत करके: निधि आधारित उधार दर प्रणाली की सीमांत लागत (MCLR) के रूप में विद्यमान वर्तमान बेंचमार्किंग प्रणाली विभिन्न दरों जैसे कि प्राथमिक ऋण दर, बेंचमार्क ऋण दर और बेस रेट सिस्टम से होते हुए अस्तित्व में आई है।
- बैंकिंग क्षेत्रक को परिमार्जित (cleaning up) करके: RBI द्वारा चूक (defaults) से निपटने हेतु नियमों में संशोधन किया गया है, जबकि पूर्व में उपाय के रूप में एक दिन के डिफ़ॉल्ट नियम को अपनाया जाता था। साथ ही RBI का त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) फ्रेमवर्क इसके वित्तीय स्थिरता ढांचे का एक अनिवार्य घटक है जो बैंकों के लिए नियामकों द्वारा संरचित आरंभिक हस्तक्षेप और संकल्प के लिए विभिन्न अनिवार्य और विवेकाधीन कार्रवाईयां करता है। वित्तीय समावेशन: जमाकर्ताओं के आधार को व्यापक बनाने हेतु जन धन योजना, बैंकिंग करस्पॉण्डेन्ट योजना आदि जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ाया गया है।
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR): वर्तमान में CRR 4 प्रतिशत से कम (अभी तक सबसे कम) है, जिसे तरलता में वृद्धि करने के लिए तर्कसंगत बनाया गया है।
सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी किसी प्रकार की आदर्श प्रणाली नहीं पायी जाती है किन्तु अंततः जैसे-जैसे बाजार विकसित होते जाएंगे और बढ़ते जाएंगे, बेंचमार्क दरों में अधिक पारदर्शिता आएगी जिसका उपयोग संचरण के लिए किया जा सकता है। भारत को प्रयोगों और कार्यों में निरंतरता बनाए रखने की आवश्यकता है किन्तु इस प्रक्रिया के लिए अधिक समय की आवश्यकता है।
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