समकालीन भारत में बंधुआ मजदूरी की विद्यमानता : अंतर्निहित कारण और निवारण हेतु उठाए जाने वाले कदम
प्रश्न: समकालीन भारत में बंधुआ मजदूरी की विद्यमानता के अंतर्निहित कारणों की जांच कीजिए। साथ ही, इसके निवारण हेतु उठाए जाने वाले कदमों की विवेचना कीजिए।
दृष्टिकोण
- उत्तर के प्रारंभ में बंधुआ मजदूरी या बलात श्रम को परिभाषित कीजिए।
- भारत में बंधुआ मजदूरी के प्रचलन हेतु उत्तरदायी विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और अन्य कारणों की चर्चा कीजिए।
- बंधुआ मजदूरी के निवारण हेतु आवश्यक कदमों, जैसे- रोकथाम, पुनर्वास, संस्थागत उपायों आदि का वर्णन कीजिए।
उत्तर
बंधुआ मजदूरी, जिसे ऋणबद्धता के रूप में भी जाना जाता है, बलात श्रम का एक विशिष्ट रूप है। इसके तहत ऋण संबंधी कारक गुलामी अथवा बलात मजदूरी हेतु उत्तरदायी होता है। यह एक ऐसा ऋणी-ऋणदाता संबंध भी है जहाँ किसी मजदूर के ऋण का बोझ प्रायः उसके परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित हो जाता है। बंधुआ मजदूरी की अवधि सामान्यतः अनिश्चित होती है और इसमें अवैध संविदात्मक अनुबंध शामिल होते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय कानून और अधिकांश घरेलू न्यायालयों में प्रतिबंधित होने के बावजूद आधुनिक दासता के सबसे प्रचलित रूपों में से एक है।
भारत में बंधुआ मजदूरी ग्रामीण और शहरी, दोनों ही क्षेत्रों में प्रचलित है। समकालीन भारत में बंधुआ मजदूरी के प्रचलन हेतु प्रमुख उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:
- आर्थिक कारण: तात्कालिक आवश्यकताएं, जैसे- स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति, धार्मिक समारोह, विवाह इत्यादि गरीबों, भूमिहीनों आदि को स्थानीय साहूकारों, ठेकेदारों या नियोक्ताओं से प्रायः प्रतिकूल शर्तों पर ऋण या अग्रिम लेने के लिए प्रेरित करते हैं। ऋण चुकाने में असमर्थता, देनदार या प्रायः परिवार के अन्य सदस्यों को भी ऋण चुकाने तक कम या बिना मजदूरी पर नियोक्ता या ठेकेदार के लिए श्रम करने के लिए बाध्य कर सकती है। अनिवार्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए अतिरिक्त ऋण लिया जा सकता है और ऋण में वृद्धि, ऋणग्रस्तता एवं शोषण के एक अटूट चक्र का निर्माण कर सकती है।
- सामाजिक कारण: इन परिस्थितियों की उत्पत्ति और निरंतरता के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारण हैं- जाति संरचना (बंधुआ मजदूर प्रमुख रूप से अनुसूचित जातियों से होते हैं), नृजातीयता, अशिक्षा, अन्यायपूर्ण सामाजिक संबंध आदि। ये सभी एक ऋणदाता और एक उधारकर्ता के मध्य आर्थिक लेन-देन को सामाजिक नियंत्रण और अधीनता के तंत्र में परिवर्तित करने की भूमिका का निर्वहन करते हैं।
- राजनीतिक कारण: बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 जैसे कानून पारित करने के बावजूद, बंधुआ मजदूरी अभी तक पूर्णतः समाप्त नहीं हुई है। बंधुआ मजदूरी की व्यापकता की पहचान करने के लिए 1978 से कोई देशव्यापी सरकारी सर्वेक्षण नहीं कराया गया है, यद्यपि ऐसे सर्वेक्षणों हेतु प्रत्येक जिले को वित्त प्रदान किया जाता है।
उपर्युक्त ज्ञात कारणों के अतिरिक्त, पीड़ितों के बचाव और पुनर्वास के लिए व्यावहारिक चुनौतियां विद्यमान हैं, जैसे कि पर्याप्त पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने में विफलता, मानव और वित्तीय संसाधनों का अभाव, सीमित संगठनात्मक जवाबदेही और गैरसरकारी संगठनों, सरकार और अन्य हितधारकों के मध्य निम्नस्तरीय संरचनात्मक भागीदारी।
इसके निवारण के लिए आवश्यक उपाय निम्नलिखित हैं:
- ILO डोमेस्टिक वर्कर्स कन्वेंशन, 2011 को लागू करने और मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, राष्ट्रीय घरेलू कामगार कार्य विनियमन और सामाजिक सुरक्षा विधेयक, 2016 जैसे कानूनों को पारित करने के माध्यम से विधायी ढांचे को सुदृढ़ बनाना।
- केंद्रीय क्षेत्र की ‘बंधुआ मजदूर पुनर्वास योजना’ (2016 में संशोधित) जैसी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। यह मुक्त हुए बंधुआ मजदूरों को तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर एक बंधुआ मजदूर पुनर्वास कोष के निर्माण का प्रावधान करती है। इस योजना में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास, उनसे संबंधित सर्वेक्षण कराने आदि के सम्बन्ध में अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान भी शामिल हैं।
- सूक्ष्म वित्त (माइक्रोक्रेडिट) तक पहुंच सुनिश्चित करने, भूमि सुधारों का कार्यान्वयन करने, PDS (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) को मजबूत करने, शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सहायता प्रदान करने आदि के माध्यम से ऋणबद्धता की उपस्थिति/पुनरावृत्ति को रोकना।
- संवेदनशीलता और कार्य-उन्मुख: सभी स्तरों पर पदाधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए उन्हें कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाने और उनके प्रशिक्षण हेतु एक विस्तृत कार्यक्रम की योजना बनाना।
- आधुनिक दासता से पीड़ित सभी व्यक्तियों के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना लागू करना जो विभिन्न संदर्भो में दासता के सीमापारीय और स्थानीय रूपों को चिन्हित करती हो।
उपर्युक्त सभी कदम बंधुआ मजदूरी की इस प्रतिगामी प्रणाली को समाप्त करने की दिशा में सहायक सिद्ध होंगे।
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