उत्तर प्रदेश की महिलाओं ने 1857 के विद्रोह को एक गौरवगाथा बना दिया। चर्चा कीजिए
उत्तर की संरचनाः
भूमिका:
- 1857 के विद्रोह में उत्तर प्रदेश की महिलाओं की भूमिका की संक्षिप्त चर्चा करें।
मुख्य भाग
- 1857 के विद्रोह में स्त्री सहभागिता के संदर्भ में उत्तर प्रदेश में महिलाओं की भागीदारी को बताएँ।
- उत्तर प्रदेश की महिलाओं की विद्रोहात्मक तीव्रता, उनका देशप्रेम तथा बलिदान के प्रति सपर्मण को संक्षेप में बताएँ।
उत्तर
निष्कर्ष
- बताएँ कि महिलाओं का त्याग और बलिदान बाद में लोगों के लिए देशभक्ति की मिशाल एवं प्रेरणास्रोत यानी गौरवगाथा बना।
भूमिकाः
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास में विशेषकर स्वतंत्रता संघर्ष में एक अमरगाथा है। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में पुरूषों के साथ महिलाओं के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता है। उत्तर प्रदेश से रानी लक्ष्मीबई, बेगम हजरत महल, वीरांगना झलकारी बाई जैसे अन्य कई नाम हैं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह को गौरवगाथा बना दिया है।
मुख्य भागः
विद्रोह में उत्तर प्रदेश की महिलाओं की भागीदारी
- 1857 के विद्रोह में उत्तर प्रदेश की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बेगम हजरत महल और लक्ष्मीबाई के अलावा भी झलकारी बाई, ऊदा देवी और अज़ीजन बाई तथा अन्य कई तवायफों की अंग्रेजी विरोधी गतिविधियें में जिक्र मिलता है। दरअसल कई तवायफों के कोठे विद्रोहियों के लिए मिलने की जगह बन गए थे।
- उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर क्षेत्र स्त्रियों के सक्रिय भागीदारी का प्रमाण बना। कुछ स्त्रियाँ जैसे- आशा देवी, बख्तावरी देवी, भगवती देवी त्यागी, इन्द्रकौर, जमीला खान आदि ने लड़ते हुए अपने प्राणों की कुर्बानी दी। दस्तावेजों के मुताबिक इसमें अधिकतम स्त्रियां अपने उम्र के तीसरे दशक में थीं। इन्हें फांसी पर चढ़ा दिय गया। दु:ख की बात है कि इन स्त्री स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में ज्यादा नहीं लिखा गया। ऐसी एक सामग्री ‘शम्सुल इस्लाम’ का लेख- “हिंदू-मुस्लिम यूनिटी : पार्टिसिपेसन ऑफ कॉमन पीपुल एंड वुमन इन इंडियाज फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेडेन्स” है। इसमें कई स्त्रियों का जिक्र है जिनके नाम 1857 के विद्रोह के दस्तावेजों में दफन होकर रह गए।
उनकी विद्रोहात्मक तीव्रता एवं देशभक्त:
- बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई, ऊदा देवी की देशभक्ति तथा विद्रोह की तीव्रता को देखकर अंग्रेज भी आश्चर्यचकित थे। इन महिला वीरांगनाओं ने अंग्रेजों को कई बार पराजित भी किया। कछ घटनाओं का उल्लेख सनाम करना जरूरी भी है, जैसे
- बेगम हजरत महल: अवध में गद्दी से बेदखल किये गये नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों से सबसे लम्बे समय तक मुकाबला किया। बेगम ने ‘चिनहट की लड़ाई’ में अंग्रेजों को पराजित करू. पुत्र बिरजिस कादिर को मुगल सिंहासन के अधीन अवध का ताज पहनाया। विलियम होवर्ड रसेल ने अपने संस्मरण- “माय इंडियन म्यूटिनी डायरी” में लिखा है, “ये बेगम जबरदस्त ऊर्जा और क्षमता का प्रदर्शन करत है। उसने पूरे अवध को अपने बेटे के हक में तैयार कर लिया है तथा उसने हमारे खिलाफ आखिरी दम तक युद्ध लड़ने की घोषणा कर दी है। अंग्रेजों ने समझौते के कई प्रस्ताव बेगम को भेजे लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की सबसे लम्बी और प्रचंड लड़ायी लखनऊ में लड़ी गयी। हजरत महल ने राजप्रतिनिधि के तौर पर 10 महीने तक शासन किया। अन्त में उन्होंने नेपाल में शरण ली जहाँ 1879 में उनकी मृत्यु हो गयी।
- लक्ष्मीबाई -लक्ष्मीबाई: का साहस बुन्लदेखड को कई लोक कहानियों और लोक गीतों का मुख्य विषय है। लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के एक पुरोहित के घर में हुआ था। 1842 में झांसी के महाराज गंगाधर राव के साथ उनका विवाह हुआ। 1853 में उनके पति की मृत्यु के बाद डलहौजी ने हड़पनीति का प्रयोग करके झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया। झांसी की रानी को पेंशनयाफ्ता बना कर किले से बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया किन्तु वे झांसी न देने के पक्ष में अड़ी रहीं। 1857 में रानी ने एक सेना बनाई। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से पूरे दमखम के साथ लोहा लिया। 17 जून 1858 को ग्वालियर से पांच मील दूर कोटा सराय में हुयी लड़ायी में रानी लड़ते हुए युद्ध मैदान में शहीद हो गयीं।
- झलकारी बाई और झांसी का दुर्गा दलः झलकारी बाई के पति झांसी की सेना में सैनिक थे। अंग्रेजों को धोखा देने के लिए व एक बार रानी लक्ष्मीबाई का वेश बनाकर सेना नेतृत्व भी की थीं। यद्यपि पकड़ी गयी थी लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया। झलकारी बाई के 1890 तक जीवित रहने का पता चलता है।
- ऊदा देवी: ये एक निशानेबाज महिला थीं। लखनऊ में हुयी सबसे भीषण लड़ाईयों में से एक, नवंबर 1857 में सिकंदरबाग में हुयी थी। इस लड़ाई में ऊदा देवी एक पेड़ पर चढ़कर अंग्रेजों पर गोलियां बरसा रही थीं। वे पकड़ ली गयी। ऊदा देवी का संबंध पासी समुदाय से था। ‘फोर्ब्स मिशेल’ ने ‘रेमिनिसेंसेज ऑफ द ग्रेट म्यूनिटी’ में ऊदा देवी के बारे में लिखा है, “वह पुराने पैटर्न की दो भारी कैवलरी पिस्तौल से लैस थे, इनमें से एक अन्त तक उनके बेल्ट में ही थी। उन्होंने पेड़ पर सावधानी से बनाये गये मचान से आधा दर्जन से ज्यादा विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया।” ऊदा देवी को फांसी दे दी गयी।
- अजीजन बाईः ये कानपुर की एक तवायफ थीं। ये नाना साहेब और तात्या टोपे की सेना के साथ मिलकर लड़ती थीं। शहीद हुयीं। उपनिवेशी और भारतीय इतिहासकारों ने अजीजन की कानपुर की लड़ाई में भूमिका का उल्लेख किया है।
निष्कर्षः
निष्कर्षतः उत्तर प्रदेश की महिलाओं ने 1857 के विद्रोह में शामिल होकर न केवल अपनी सहभागिता दर्शायी बल्कि उनकी लड़ाई और बलिदान में देशप्रेम और आत्मा का जुड़ाव प्रदर्शित होता है। जिस प्रकार से बिना जान की परवाह किए उन्होंने अपना योगदान दिया है, वह इतिहास की गौवरगाथा है, केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं।