उद्देशिका के महत्त्व का संक्षिप्त में वर्णन
प्रश्न: उद्देशिका संविधान के अनेक प्रावधानों में निहित सामान्य उद्देश्यों को अभिव्यक्त करती है और संविधान निर्माताओं की सोच को समझने की एक कुंजी है। व्याख्या कीजिए। साथ ही, उद्देशिका की संशोधनीयता पर भी टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण:
- उद्देशिका के महत्त्व का संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
- व्याख्या कीजिए कि उद्देशिका संविधान के अनेक प्रावधानों में निहित सामान्य उद्देश्यों को किस प्रकार अभिव्यक्त करती है।
- उद्देशिका की संशोधनीयता पर भी टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
उद्देशिका, संविधान का एक प्रारम्भिक दस्तावेज़ है, जो प्राधिकार के स्रोत, भारतीय राज्य की प्रकृति, संविधान के उद्देश्यों और संविधान के अंगीकरण की तिथि को अभिव्यक्त करती है। इसमें मूलभूत दर्शन और मौलिक मूल्यों को अभिव्यक्त किया गया है तथा इसमें संविधान सभा के महानतम और आदर्शवादी दृष्टिकोण निहित हैं।
उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने हेतु एक महत्वपूर्ण स्रोत है और यह दर्शाती है कि इसके निर्माताओं का मुख्य उद्देश्य प्रभुत्वसंपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करना था। इसका उद्देश्य न्याय, समानता और स्वतंत्रता के आधार पर एक न्यायपूर्ण सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के लक्ष्य को साकार करना था। उद्देशिका संविधान के अनेक प्रावधानों में निहित सामान्य उद्देश्यों को अभिव्यक्त करती है जैसे कि:
- न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक) – मूल अधिकारों और नीति के निदेशक सिद्धांतों के अंतर्गत विभिन्न प्रावधान शामिल हैं, जिनका उद्देश्य असमानताओं का उन्मूलन, भेदभाव की समाप्ति और सभी के लिए समान अधिकारों को सुरक्षित करना है।
- स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की) – अनुच्छेद 19 के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है और अनुच्छेद 25-28 अल्पसंख्यकों सहित सभी को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है।
- समता (प्रतिष्ठा और अवसर की) – यह निम्नलिखित अनुच्छेदों में परिलक्षित नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक समता को बढ़ावा देता है:
- अनुच्छेद 14-18 में समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशिष्ट विशेषाधिकार का अभाव तथा बिना किसी भेदभाव के सभी को पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 39 जीविका के पर्याप्त साधन तथा समान कार्य के लिए समान वेतन के अधिकार सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 325 और 326 सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार साथ ही बिना किसी भेदभाव के चुनाव में भाग लेने का अधिकार प्रदान करते हैं।
- बंधुता (सभी व्यक्तियों की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता)
- एकल नागरिकता के एक तंत्र के माध्यम से बंधुता की भावना को प्रोत्साहित करती है।
- भारत के सभी लोगों में सौहार्द और भ्रातृत्व भावना को विकसित करना प्रत्येक नागरिक का एक मूल कर्तव्य है।
चूंकि उद्देशिका हमारे संविधान की कुंजी है, इसलिए इसमें संशोधन करने के संबंध में भी प्रश्न उठाए गए हैं। इस प्रश्न का समाधान केशवानंद भारती वाद (1973) में किया गया था जिसमें उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि उद्देशिका संविधान का एक भाग है और इसे आधारभूत ढांचे के सिद्धांत के अधीन अनुच्छेद 368 के तहत ही संशोधित किया जा सकता है।
इसके पूर्व बेरुबारी संघ वाद 1960 में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि उद्देशिका संविधान का भाग नहीं है और इसलिए, अनुच्छेद 368 के तहत आधारभूत ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता है। अब तक उद्देशिका को केवल एक बार 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1976 के तहत संशोधित किया गया है, इसके माध्यम से उद्देशिका में तीन नए शब्दों- समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया है।