स्वामी विवेकानंद के जीवन का संक्षिप्त परिचय : वर्तमान भारत में उनके विचारों की प्रासंगिकता

प्रश्न: राष्ट्रवाद पर स्वामी विवेकानंद के विचारों का विशदीकरण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • स्वामी विवेकानंद के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • उनका राष्ट्रवाद जिन विभिन्न विचारों पर आधारित है, उन्हें स्पष्ट कीजिए।
  • वर्तमान भारत में उनके विचारों की प्रासंगिकता के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

स्वामी विवेकानंद औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा के निर्माण में एक प्रमुख प्रेरकबल थे। आधुनिक भारत के देशभक्त संत के रूप में सम्मानित, विवेकानंद ने भारत की सोई हुई राष्ट्रीय चेतना को प्रेरित किया। यद्यपि राष्ट्रवाद के उदय का श्रेय पश्चिमी प्रभाव को दिया जाता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद की राष्ट्रवाद की जड़ें गहराई से भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में निहित हैं। उन्होंने औपनिवेशिक भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा में अत्यधिक योगदान दिया और भारत को 20वीं शताब्दी में ले जाने में विशेष भूमिका निभाई। राष्ट्रवाद पर उनके विचारों के मूल सिद्धांतों में सम्मिलित हैं: 

  • अध्यात्मवाद: विवेकानंद का राष्ट्रवाद अध्यात्मवाद से जुड़ा है। भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएं, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, राष्ट्रवाद पर उनके विचारों में प्रमुख स्थान रखते हैं। उन्होंने भारतीयों से भारत का आध्यात्मिक लक्ष्य, अन्य देशों के बीच इसका स्थान और प्रजातियों के सामंजस्य में योगदान देने में इसकी भूमिका को समझने का आह्वान किया।
  • धार्मिक आधार: उनका राष्ट्रवाद धर्म पर आधारित है जिसे वह भारतीय लोगों का जीवन रक्त मानते थे। उन्होंने सभी धर्मों की अनिवार्य एकता का पाठ पढ़ाया और धार्मिक मामलों में किसी भी संकीर्णता की निंदा की। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का तर्क, विवेक और विज्ञान के आधार पर मूल्यांकन करने का आग्रह करते हुए, जाति व्यवस्था और अनुष्ठानों में अंध विश्वास और अन्य प्रकार के अंधविश्वासों की निंदा की। इससे भारतीयों को आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रीय दृष्टिकोण प्राप्त करने में सहायता मिली। उन्होंने देशवासियों के हृदय और मन में एकमात्र आराध्य देवी के रूप में स्थापना की।
  • भारतीय दर्शन में जड़ें: विवेकानंद ने अनुभव किया कि भारत की प्राचीन ऐतिहासिक विरासत के स्थिर आधार पर भारतीय राष्ट्रवाद का निर्माण किया जाना चाहिए। उन्होंने पूर्ण तर्कसंगत प्रणाली के रूप में भारतीय दार्शनिक परंपरा, विशेष रूप से वेदांत को पुनर्जीवित और उसका समर्थन किया। इसलिए विवेकानंद ने जनता को जागृत करने, उनकी शारीरिक और नैतिक शक्ति का विकास करने और उनमें प्राचीन भारत के गौरव और महानता में गर्वानुभूति की चेतना पैदा करने के लिए कार्य किया। इससे भारतीयों में अधिक से अधिक आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास और गौरव बढ़ाने में सहायता मिली।
  • मानवतावाद: स्वामी विवेकानंद के अनुसार, मानवीय नैतिकता को मानव प्रगति के पक्ष में होना चाहिए। उन्होंने न केवल व्यक्तिगत मोक्ष बल्कि साथ ही सामाजिक सेवा पर भी बल दिया। इसे उन्होंने राष्ट्रीय जागरण की पूर्व-शर्त बताया। उन्होंने भारत में निर्धनता के परिमाण की ओर ध्यान आकर्षित किया और गरीबी उन्मूलन पर बल दिया।
  • राष्ट्रवाद बनाम अंतरराष्ट्रीयवाद: उन्होंने लोगों को अन्य व्यक्तियों और देशों के जीवन के साथ घुलने-मिलने के लिए प्रोत्साहित किया। मानव जाति के प्रति उनका प्रेम भौगोलिक सीमाओं को पार कर गया। उनकी रूचि केवल भारत तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विस्तारित थी। उन्होंने अन्य देशों के साथ सद्भाव और अच्छे संबंधों का आह्वान किया।
  • सांस्कृतिक अलगाव की समाप्ति: 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में संबोधन ने अन्य सभी राष्ट्रों से भारत का सांस्कृतिक अलगाव समाप्त करने की प्रक्रिया आरंभ की, जो भारत को पतन की ओर ले जा रहा था। उन्होंने पश्चिम के अंधानुकरण का विरोध किया और आधुनिक संस्कृति के सकारात्मक तत्वों का स्वागत किया और साथ ही वह संस्कृति और विचारों के उपनिवेशीकरण के विरूद्ध थे।

21वीं सदी के आगमन से ही, विश्व में उथल-पुथल मची हुई है और विश्व एक प्रकार के संक्रमण काल से गुजर रहा है। मानव इतिहास के इस मोड़ पर सार्वभौमिक भातृत्व और सद्भावना के आधार पर राष्ट्र और विश्व का आध्यात्मिक एकीकरण प्रोत्साहित करने वाला स्वामी विवेकानंद का संदेश सर्वाधिक प्रासंगिक हो जाता है।

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