स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वयं को दूसरों की सेवा में खो दें – महात्मा गांधी
प्रश्न: स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वयं को दूसरों की सेवा में खो दें – महात्मा गांधी
दृष्टिकोण
- दिये गए कथन का संदर्भ बताते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
- संक्षेप में यह बताइये कि प्रदत्त उद्धरण को वर्तमान सन्दर्भ में आप किस प्रकार देखते हैं।
- उपयुक्त उदाहरणों से अपने तर्क की पुष्टि कीजिए।
- उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
यह उद्धरण अपना जीवन दूसरों के उत्थान और कल्याण के लिए समर्पित कर देने वाले महात्मा गांधी के जीवन के सार का वर्णन करता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि व्यक्ति की वास्तविक प्रवृत्ति मूलत: स्वार्थी नहीं है, अपितु नि:स्वार्थ है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति मात्र स्वयं पर ध्यान केंद्रित करके वास्तविक स्वाभाविक प्रकृति नहीं पा सकता है, बल्कि वह इसे अपने आस-पास के अन्य लोगों की सेवा में स्वयं को समर्पित करके ही पा सकता है।
यह उद्धरण इस पूर्व कथन पर आधारित है कि जब तक हम आत्म-केंद्रित होते हैं और व्यक्तिगत लाभ के संबंध में सोचते रहते हैं, तब तक व्यक्ति की सही आंतरिक पहचान उभरकर सामने नहीं आती है। हम केवल तभी अपने छिपे हुए ‘चरित्र’ – समानुभूति, करुणा, समझौता या सुलह, दान-पुण्य, आंतरिक शक्ति आदि परोपकारी गुणों की अनुभूति कर सकते हैं, जब हम नि:स्वार्थ भाव से कार्य करें और अपने आप को वृहत्तर सामाजिक हेतुक के लिए समर्पित कर दें। इस संबंध में, सेवा एक परिपूर्ण करने वाली या संतोषप्रद गतिविधि है जो यह देखने में सहायता कर सकती है कि “हम” किसी पहचान से नहीं, बल्कि क्षमता, सहानुभूति, संबंध और एकजुटता से परिभाषित होते हैं। इसलिए, दूसरों की सेवा में स्वयं को खो देने का तात्पर्य कुछ और नहीं बल्कि जाति, पंथ और धर्म के आधार पर अहंकार, आत्म-केंद्रितता, घृणा और भेदभाव का त्याग करना है।
इसके अतिरिक्त, दूसरों की सेवा करने से हमें न केवल अपने संबंध में अधिक ज्ञान होता है बल्कि इस प्रक्रिया में हम दूसरों की भी सहायता करते हैं। यह आत्म-सेवा और मानव-जाति की सेवा का दोहरा उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता करता है। जब हम दूसरों की सहायता करने की प्रक्रिया में पूरी तरह से तल्लीन हो जाते हैं, तो हमें स्वयं की क्षुद्र समस्याएं दिखनी बंद हो जाती हैं, वे चीजें जिनके बारे में हम सोचते हैं, वे हमें परिभाषित करती हैं और परिणामस्वरूप हमारी वास्तविक आत्मा स्वयं को प्रकट कर देती है। कैलाश सत्यार्थी जैसे लोगों ने केवल दूसरों की सेवा में स्वयं को खोकर ही अपने भीतर की महानता पाई है।
वास्तविक तृप्ति की अनुभूति तभी होती है जब हम दूसरों की सहायता करने के लिए तत्पर होते हैं। आत्म-सशक्तीकरण तब होता है जब हम अपने साथी प्राणियों को सशक्त बनाते हैं। जिस क्षण हम अपने आप को दूसरों की सेवा में समर्पित करते हैं, यह वह समय होता है जब हम अपनी सच्ची आत्मा की खोज करते हैं। ये टिप्पणियां सूचना और प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में भी सत्य बनी हुई है। इसे बिल गेट्स और वारेन बफेट के जीवन का उदाहरण देकर समझाया जा सकता है, जिन्होंने सभी भौतिकवादी लाभ प्राप्त करने के बाद, दूसरों की सेवा के लिए अपनी धन-संपत्ति का त्याग करने का निर्णय लिया है, इस प्रकार यह दर्शाता है कि मनुष्य का सर्वाधिक आवश्यक उद्देश्य पुण्यात्मा बनना है।
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