SCO की एक क्षेत्रीय समूह के रूप में संक्षिप्त पृष्ठभूमि : चुनौतियां को दूर करने हेतु रणनीतियां

प्रश्न: SCO को एक सफल क्षेत्रीय समूह बनने हेतु, अपने सदस्यों के मध्य के द्विपक्षीय मतभेदों और उनके संबंधित भूराजनीतिक अपेक्षाओं से उबरना होगा। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, यूरेशियाई क्षेत्र में भारत के हितों को बढ़ाने में SCO द्वारा निभाई जा सकने वाली भूमिका की भी विवेचना कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आरंभ में, SCO की एक क्षेत्रीय समूह के रूप में संक्षिप्त पृष्ठभूमि बताइए।
  • पहले भाग में, प्रमुख सदस्य देशों जैसे- भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान, भारत-रूस, चीन-रूस आदि के बीच विभिन्न द्विपक्षीय मतभेदों पर चर्चा कीजिए।
  • दूसरे भाग में, उपर्युक्त चुनौतियों को दूर करने हेतु रणनीतियों का उल्लेख कीजिए।
  • तदनुसार निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना वर्ष 2001 में की गई थी और यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक व सैन्य संगठन है। इसके अंतर्गत भारत और पाकिस्तान (जिन्हें वर्ष 2017 में समूह में सम्मिलित किया गया था) के अतिरिक्त रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान सम्मिलित हैं। SCO के मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं: विभिन्न क्षेत्रों में सदस्य राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना तथा क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता का संरक्षण करना।

हालाँकि, SCO का जनादेश सदस्य देशों और उनके संबंधित हितों के बीच द्विपक्षीय मतभेदों तक ही सीमित रहा है:

  • भारत-चीन द्विपक्षीय मुद्दे: SCO में चीन के साथ भारत का सीमा-विवाद, बेल्ट एंड रोड पहल के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर विवाद और आतंकवाद के संबंध में पाकिस्तान के सापेक्ष अलग-अलग रवैया रखना इत्यादि मुद्दों पर विचार किया जाएगा।
  • भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय मुद्दे : पाकिस्तान के साथ समझौता वार्ता को आगे बढ़ाने में सीमा-पार आतंकवाद सबसे बड़ी बाधा रहा है।
  • भारत-रूस द्विपक्षीय संबंध: भारत तथा रूस के आपसी संबंध अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और S-400 एंटी मिसाइल सिस्टम सहित रूस के साथ किए गए रक्षा सौदों पर अंकुश लगाने की मांग के कारण प्रभावित हुए हैं। रूस के साथ भारत का व्यापार केवल 10 बिलियन डॉलर का है जबकि रूस के साथ चीन का व्यापार 2018 में 100 बिलियन डॉलर को पार कर गया है।
  • रूस-चीन संबंध: रूस मध्य एशिया में चीन द्वारा ज़रूरत से ज्यादा प्रभाव फैलाने को लेकर चिंतित है। फिर भी, रूस और चीन की बढ़ती निकटता भारत की सुरक्षा को जोखिम में डाल सकती है क्योंकि रूस भारत का प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता है। एक उदीयमान चीन-पाकिस्तान-रूस धुरी भी देखने को मिली है।
  • मध्य एशियाई देशों के बीच अंतर: मध्य एशिया के देशों के बीच पानी के बंटवारे का अभी तक सौहार्दपूर्ण ढंग से समाधान नहीं निकाला जा सका है जो अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • रणनीतिक दृष्टिकोण: इसके अतिरिक्त, SCO को अक्सर एक ‘पूर्वी गठबंधन’ का और अमेरिका के समक्ष एक महाद्वीपीय विपक्ष का उपनाम दिया जाता है। फलस्वरूप, इसे भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती के रूप में देखा जाता है, जो हालिया वर्षों में अमेरिका के निरंतर नजदीक बढ़ रहा है। साथ ही, अन्य क्षेत्रीय उपक्रमों जैसे यूरेशियाई आर्थिक संघ (EAEU), BRI, ग्रेटर यूरेशियाई पार्टनरशिप, CSTO, CICA का प्रसार SCO के लिए चुनौती बन गया है। इन सब कारणों से संगठन कुछ ही ठोस और सामूहिक उपाय कर पाता है।

यूरेशियाई क्षेत्र में भारत के हितों को बढ़ाने में SCO की भूमिका:

  • भारत के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य अर्थात आतंकवाद-विरोध और संयोजकता, SCO के उद्देश्यों के ही अनुरूप हैं। SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS), अन्य विवादों के साथ-साथ आतंकवाद, उग्रवाद, मादक पदार्थों की तस्करी और संगठित अपराध के विरुद्ध भारत के संघर्ष को मजबूती प्रदान करेगी। भारत SCO के आतंकवाद-रोधी निकाय से खुफिया जानकारी प्राप्त कर सकता है। मध्य एशियाई देशों ने भी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन के प्रति भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
  • यह भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी को आगे बढ़ाने के लिए एक संभावित प्लेटफार्म प्रदान करता है। हाल ही में, भारत और किर्गिस्तान के बीच संबंध रणनीतिक साझेदारी तक बढ़े और भारत ने यह घोषणा की कि यह साझेदारी 200 मिलियन डॉलर ऋण-सीमा तक जाएगी।

इसके अतिरिक्त, सदस्य देशों के साथ ऊर्जा सहयोग भी भारत की ऊर्जा संबंधी मांगों को सुरक्षित रखेगा।

  • सार्क सम्मेलन की अनुपस्थिति में, SCO शिखर सम्मेलन भारत और पाकिस्तान को अनौपचारिक रूप से अलग से मिलने का अवसर देता है ताकि वे पारस्परिक हित और महत्व के मुद्दों पर सहयोग कर सकें। 2018 में, पहली बार भारत और पाकिस्तान ने SCO सैन्य अभ्यास के तहत एक प्रशिक्षण में भाग लिया।
  • यह अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के प्रयासों में भारत की भागीदारी को सक्षम बनाता है।
  • भारत SCO के माध्यम से क्षेत्रीय बाजारों तक अपनी पहुंच को बेहतर बना सकता है। चाबहार बंदरगाह, अश्गाबात समझौते व अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) का उपयोग भारत यूरेशिया में अपनी एक मजबूत उपस्थिति बनाने के लिए कर सकता है।भारत को SCO मुक्त व्यापार समझौते और SCO विकास बैंक की व्यवहार्यता पर ध्यान देना होगा।
  •  भारत को और अधिक प्रतिनिधिक तथा प्रभावी बनाने हेतु UNSC के सुधारों का समर्थन जुटाने में SCO भारत के लिए प्रासंगिक है।
  • SCO सदस्यता दक्षिण-एशियाई प्रतिमान के बाहर, एक प्रमुख पैन-एशियाई कर्ता के रूप में भारत के दर्जे को भी बढ़ाती है। यह भारत को अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और ‘बहु-संरेखण’ (multi-alignments) को आगे बढ़ाने की अपनी घोषित नीति को संतुलित करने के संदर्भ में सभी विकल्पों को खुला रखने में सहायता करती है।

SCO में अधिक सार्थक सहयोग प्राप्त करने के मार्ग में सदस्य राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय मतभेदों को अवरोध उत्पन्न नहीं करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए इन मतभेदों को दूर करने की आवश्यकता है।

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