मध्यप्रदेश में पंचायती राज
- वैदिक काल से लेकर वर्तमान वजूद कायम रखने में का साल से लेकर वर्तमान युग तक के लम्बे सफर में पंचायतें अपना परखने में कामयाब रही है चाहे विभिन्न काल खण्डों में उनका स्वरूप कैसा भी रहा हो।
- भारत में पंचायतों की व्यवस्था गांवो के प्रबंध व उनकी समस्याओं के निराकरण के लिये महत्वपूर्ण थी चाहे वो सामजिक समस्या हो या फिर आर्थिक।
- 1830 में सर चार्ल्स मैटकॉफ ने भारत के आत्मनिर्भर गाँवों को “लघु गणराज्य” नाम दिया था।
- पंचायती राज के अंतर्गत ग्रामीण जनता का सामाजिक आर्थिक सुधार, सांस्कृतिक विकास उनके द्वारा स्वयं किया जाता है ।
- भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र की वास्तविक सफलता तब शासन के सभी स्तरों पर जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो।
- भारत की भांति मध्यप्रदेश में भी पंचायती राज व्यवस्था का एक विकास क्रम रहा है।
- लोकतंत्र की संकल्पना को अधिक यथार्थ में अस्तित्व प्रदान करने की दिशा में पंचायती राज एक ठोस कदम है।
- पंचायती राज वह माध्यम है, जो शासन को सामान्यजन के दरवाजे पर लाती है।
- पंचायती राज ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासन कार्यों में समाज के सभी वर्गों की भूमिका होती है।
- इसके माध्यम से स्थानीय समस्याओं का हल स्थानीय स्तर पर ही निकाला जाता है।
- म.प्र. में स्वतंत्रता पूर्व व पश्चात पंचायतीराज व्यवस्था लागूथी, परंतु 73वें संविधान संशोधन के बाद यह नये रूप में लागू हुई।
- म.प्र. के पुनर्गठन के पूर्व से ही प्रदेश में पंचायत राज व्यवस्था थी, किन्तु यह व्यवस्था अलग-अलग क्षेत्रों एवं रियासतों में अलग-अलग थी एवं यह उन क्षेत्रों के विधान के अनुसार वहाँ पर लागू थी।
- पुनर्गठन से पूर्व विभिन्न क्षेत्रों महाकौशल, विंध्यप्रदेश, मध्यभारत एवं भोपाल में भिन्न-भिन्न प्रकार की पंचायत राज व्यवस्था कार्यरत थी।
म.प्र. की स्थापना के बाद पंचायतीराज का विकास
- राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के बाद 1 नवंबर, 1956 में नवीन मध्यप्रदेश राज्य की स्थापना हुई।
- चूंकि नये राज्य की स्थापना से पर्व विभिन्न प्रांतों में अपने-अपने पंचायती ज एक्ट के तहत पंचायतों का कार्य संचालन होता था, जिन्हें एकीकृत एकरुपता व समानता प्रदान किया जाना आवश्यक था ।
- इसी उद्दश्य से म.प्र. सरकार द्वारा श्री काशीप्रसाद पाण्डे (सिहोरा विधायक) की अध्यक्षता में 29 जुलाई, 1957 में एक 15 सदस्यीय अध्यक्ष सहित सधार समिति का गठन किया गया ।
- पाण्डे समिति ने सितंबर 1958 को अपना प्रतिवेदन सिफारिशों के साथ सरकार को सौंप दिया।
- इस समिति ने बलवंतराय मेहता मॉडल का अनुसरण करते हुए त्रिस्तरीय पंचायत राज के साथ न्याय पंचायत को पूरे राज्य में लागू किये जाने की सिफारिश की थी।
- पाण्डे समिति की अनुशंसाओं को प्रभावशील बनाने के लिये राज्य शासन द्वारा पंचायत विधेयक 1960 तैयार किया गया ।
- इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया कि वर्तमान पंचायतों की कार्य अवधि समाप्त होने पर नवीन पंचायतों का गठन विभिन्न घटकों में प्रचलित कानूनों के अनुसार कराया जाना तब तक के लिये स्थगित रखा जाये जब तक कि उपयुक्त अधिनियम तैयार न हो जावे ।
- इसी के चलते राज्य शासन द्वारा वर्ष 1961 में उस समय कार्यरत् पंचायतों का कार्यकाल एकीकृत पंचायत अधिनियम बन जाने तक के लिये बढ़ा दिया गया।
म.प्र.पंचायती राज अधिनियम-1962
- म.प्र. राज्य के पुनर्गठन के बाद संपूर्ण प्रदेश में पंचायत राज की स्थापना के लिए म.प्र.पंचायती राज अधिनियम-1962 पारित किया गया।
- 1962 के अधिनियम में यह उपबंध था कि साधारणतः 1500-2500 की जनसंख्या वाले ग्राम अथवा ग्राम समूह के लिए एक ग्राम सभा गठित की जायेगी।
- चुनाव वयस्क मताधिकार प्रणाली पर आधारित थे।
- अधिनियम में यह भी प्रावधान था कि निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त सहकारी समिति का अध्यक्ष, दो महिला सदस्य एवं एक-एक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य निर्वाचित न होने की दशा में मनोनीत किए जायेंगे।
- प्रत्येक ग्राम पंचायत एक निधि स्थापित करेगी और उसे बनाए रखेगी जो पंचायत निधि कहलायेगी।
- राज्य शासन अधिसूचना द्वारा किसी जिले को खण्डों में विभाजित कर प्रत्येकखण्ड के लिए एक जनपद पंचायत स्थापित कर सकेगी।
- हालांकि 1965 में ग्राम पंचायतों के चुनाव ही हो पाए ।
- 1971 में जनपदों का निर्वाचन संपन्न हुआ ।
- 1962 के अधिनियम में जिला पंचायतों के गठन का प्रावधान होने के बावजूद इनका निर्वाचन नहीं किया जा सका।
- 1962 के म.प्र. पंचायत राज अधिनियम में अनेक संशोधन हुए, लेकिन यह पूर्ण रूप नहीं ले सका इसलिए सन् 1981 में म.प्र. पंचायत राज अधिनियम 1981 पारित किया गया।
- इसमें भी त्रिस्तरीय ढाँचा अपनाया गया, लेकिन सरकार ने इससे पहले। ही अध्यादेश द्वारा लागू किया।
- 1981 के अधिनियम में 1962 के अधिनियम की कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया और त्रि-स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को हीअपनाया गया।
- सन् 1988 में 1981 के अधिनियम की त्रुटियों को दूर करने के लिए म.प्र.पंचायत राज संशोधन अधिनियम,1988 लाया गया।
- 1988 के संशोधन में यह प्रावधान किया गया कि पंचायतों के चुनाव के एक वर्ष तक पंचों एवं सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।
- सरपंच का प्रत्यक्ष जनता द्वारा निर्वाचन किया जायेगा।
- सन् 1990 में एक नवीन पंचायत अधिनियम बनाया गया, लेकिन इसे , लागूनहीं किया जा सका।
- अंततः 73 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के अनुपालन में म.प्र. सरकार ने भी म.प्र. पंचायती राज अधिनियम 1993 पारित कर प्रदेश में विधिवत् पंचायतीराज की स्थापना की।
म.प्र. पंचायती राज एक्ट 1993
- 73वें संविधान संशोधन 1992 को 22 दिसंबर, 1992 को लोकसभा तथा 23 दिसंबर, 1992 को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया ।
- 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति की अनुमति के बाद 24 अप्रैल, 1993 को लागू किया ।
- 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है ।
- इसमें भाग-9, 11वीं अनुसूची (29 विषय) तथा 16 अनुच्छेद 243 से 243 (0) तक जोड़े गए।
- म.प्र. इसका अनुपालन करने वाला पहला राज्य है।
- 29 दिसंबर, 1993 को राज्य विधानसभा में म.प्र. पंचायती राज अधि. विधेयक प्रस्तुत किया जिसे 30 दिसंबर, 1993 को पारित किया गया । 24 जनवरी, 1994 को राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा 25 जनवरी, 1994 को प्रथम बार प्रकाशित और प्रवृत्त हुआ। ‘
म.प्र. में पंचायतीराज संस्थाओं का संगठन एवं कार्य निम्न प्रकार हैं-
ग्राम सभा
- राज्यपाल किसी ग्राम अथवा ग्रामों के समूह को एक ग्राम के रूप में स्पष्ट करते हैं।
- इस ग्राम या ग्राम समूह के निवासी व वयस्क मतदाताओं के समूह को ग्राम सभा के रूप में मान्यता दी जाती है।
- ग्राम सभा में तीन महीने में एक मीटिंग अनिवार्य है। ग्राम पंचायतों के सभी कार्यों की जाँच करती है।
- ग्राम सभा अपने समस्त कार्य को समितियों के माध्मम से संचालित करती है।
- इस प्रकार ग्राम सभा विधायिका व ग्राम पंचायत कार्यपालिका के रूप में कार्य करती है।
आरक्षण
- म.प्र. पंचायती व्यवस्था के तीनों स्तरों के लिए यह प्रावधान है कि अनुसूचित जाति/जनजाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में पद आरिक्षत है
- यदि अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण 50% से कम है, तो 25% स्थान पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण है
- तीनो स्तर में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत स्थान आरक्षण रखे गये है
- पंचायतों का गठन – म.प्र. में त्रि-स्तरीय पंचायती स्वीकार की गई है।
- ग्राम के लिए ग्राम पंचायत, विकासखण्ड स्तर पर जनपदा जिले के लिए पंचायत का गठन किया गया है।
ग्राम पंचायत
- संगठन-ग्राम पंचायत में वार्डों की संख्या न्यनता अधिकतम 20 होती है।
- 1000 तक की आबादी वाली पंचायतों में कमसे-कर होते हैं।
- सभी वार्डों में जनसंख्या समान होती है।
- ग्राम पंचायत का प्रमुख सरपंच होता है और उसका निर्वाचन होता है।
- प्रत्येक वार्ड का निर्वाचक प्रतिनिधिपंचकहलाता है।
- सरपंच के सहायक रूप में उप सरपंच होता है, जो पंचों द्वारा रूप से चुना जाता है।
- पंच बनने के लिए ग्राम में कम-से-कम 6 माह निवास करना जरूरी है।
- वह 21 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो तथा पागल दिवालिया या अपराधी नहीं होना चाहिए।
- वह 26 जनवरी, 2001 के बाद दो से अधिक बच्चे न हों।
- ग्रामपंचायत की वर्ष में 4 बैठकें होना चाहिए।
- शासकीय या ग्राम पंचायत द्वारा संवैधानिक कर्मचारी की नियुक्ति की जाती है, जो पंचायत सचिव कहलाता है।
- वह कार्यों का लेखा-जोखा रखता है तथा पंचायत के निर्णयों को कार्यान्वित करता है।
कार्य
पंचायत क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक विकास हेतु ग्राम पंचायतों के कार्य का उल्लेख अधिनियम के की धारा 49 में किया गया है इसके निम्न कार्य हैं-
- पंचायत क्षेत्र के आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए वार्षिक योजना तैयार करना और जनपद पंचायत की योजना में सम्मिलित करने के लिए प्रस्तुत करना।
- ग्राम सभा के अनुमोदन से विभिन्न कार्यक्रमों के लि हितग्राहियों को चुनना।
- गाँव की सफाई, स्वास्थ्य व शिक्षासेवाओं को संचालित करना।
- सार्वजनिक कुँओं, तालाबों, पुलियों का निर्माण करना। ,
- जन्म, मृत्यु का पंजीयन,बाजार एवं मेलों का प्रबध, वृक्षा तथा वनों का संरक्षण, कृषि एवं बागवानी, विकास एव ग्रा पंचायत के भीतर सभी विकास कार्यक्रमों को कार्यान्वित कर एवं उनका पर्यवेक्षण करना।
- जनसाधारण में सामान्य चेतना की अभिवृद्धि करना।
- विभिन्न प्रकार के कर लगाना और बसूल करना।
जनपद पंचायत
- जनपद पंचायतों मेंवार्डों की संख्या कम-से-कम 10 एवं अधिक से-अधिक 25 होती है।
- 5 हजारकी आबादी पर एकवार्ड होता है।
- सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रीति से एवं अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
- सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत के कार्यान्वित करता है तथा कार्यों का लेखा-जोखा रखता है। यह
- अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है।
कार्य
पंचायत अधिनियम के की धारा 50 में जनपद पंचायत निम्न कार्यों के लिए उत्तरदायी है
- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम व अन्य ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों का संचालन करना।
- कषि,सामाजिकवानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन।
- बाढ, सूखा, महामारी, टिड्डी दल का प्रकोप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता कार्यक्रम संचालित करना।
- महिलाओं, बच्चों, निराश्रितों, पिछड़े वर्गों आदि का कल्याण।
- शिक्षा,शालाओं का प्रबंधव निरीक्षण।
- केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा सौंपे गये कार्य को संपादित करना। जनपद पंचायत ऐसे कार्य को करने के लिए बाध्य होती है।
जिला पंचायत
संगठन
- जिले के समस्त जनपद पंचायतों को मिलाकर जिला पंचायत बनती है।
- इसमें न्यूनतम 10 वार्ड और अधिकतम 35 वार्ड होते हैं।
- प्रत्येक वार्ड में 50 हजार की जनसंख्या होती है।
- जिला पंचायत के सदस्यों द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
- जिला पंचायत कार्यकारी शक्तियाँ सरकार द्वारा नियुक्त जिला पंचायत सचिव में निहित होती है।
- यह अधिकारीभारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है।
- यह जिला पंचायत के निर्णयों को कार्यान्वित कर लेखा-जोखा रखता है।
कार्य
जिला पंचायत के निम्न कार्य हैं –
- जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा संचालित किये जा रहे कार्यक्रमों का नियंत्रण एवं निर्देशन करना।
- जिले के आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय के लिए वार्षिक योजनायें बनाना व उनका क्रियांवयन करना।
- केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा प्रत्यायोजित किए गये कार्यों का संपादन करना।
- परियोजनाओं के संबंधों में केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई निधियों को जनपद व ग्राम पंचायतों को आवंटित करना।
विभिन्न वर्गों के लिए पंचायतों महापंचायतों एवं सम्मेलनों के आयोजन
पंचायतें, महापंचायतें एवं सम्मेलन आयोजन तिथि
महिला पंचायत 30 जुलाई, 2006
किसान पंचायत 30 अगस्त, 2006
आदिवासी पंचायत 6 जनवरी, 2007
वन पंचायत 6 फरवरी, 2007
अनुसूचित जाति पंचायत 6 अप्रैल, 2007
कोटबार पंचायत 22 जून, 2007
लघु उद्यमी पंचायत 29 जून, 2007
खेल पंचायत 29 अगस्त, 2007
शिल्पी एवं कारीगर पंचायत 17 सितम्बर, 2007
खेतिहर श्रमिक सम्मेलन एवं मुख्यमंत्री मजदूर सुरक्षा योजना का शुभारंभ 20 फरवरी, 2008
किसान महापंचायत (जंबूरी मैदान) 20 फरवरी, 2008
निःशक्तजन पंचायत 29 अप्रैल, 2008
लोकतंत्र के प्रहरियों (मीसाबंदी) का सम्मेलन एवं सम्मान 25 जून, 2008
सामान्य निर्धन वर्ग सम्मेलन 27 जून, 2008
निर्माण श्रमिकों का राज्य स्तरीय सम्मेलन (जम्बूरी मैदान) 19 अगस्त, 2008
मछुआ पंचायत (जबलपुर) 22 अगस्त, 2008
स्व-सहायता समूहों का सम्मेलन (जम्बूरी मैदान) 9 सितम्बर, 2008
मण्डी हम्माल-तुलावटी पंचायत 23 सितम्बर, 2008
रिक्शा हाथठेला चालक पंचायत 31 जनवरी, 2009
शहरी घरेलू कामकाजी महिलाओं की पंचायत 13 अक्टूबर, 2009
विद्यार्थी पंचायत 12 जनवरी, 2012
वृद्धजन पंचायत 11 अप्रैल, 2012
अटल किसान पंचायत 15 जुलाई, 2012
वकील पंचायत 12 अगस्त, 2012
युवा पंचायत 16 जनवरी, 2013
केश शिल्पी पंचायत 29 जनवरी, 2013
किसान महापंचायत 3 फरवरी, 2013
पंचायतों की महापंचायत 21 फरवरी, 2013
चर्म शिल्पी पंचायत 24 अप्रैल, 2013
मजदूर महापंचायत 28 अप्रैल, 2013
कारीगर पंचायत 13 जून, 2013
बाँस शिल्पी पंचायत 24 जून, 2013
विमुक्त, घुमक्कड़ और अर्द्ध घुमक्कड़ जाति पंचायत 4 जुलाई, 2013
चालक-परिचालक पंचायत 17 फरवरी, 2014
द्वितीय महिला पंचायत 19 मई, 2015