हड़प्पा सभ्यता – Part III

इसे पढ़ने के बाद आप –

  • यह व्याख्या कर सकेंगे कि हड़प्पा निवासियों ने दूरस्थ देशों से सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश क्यों की थी,
  • हड़प्पाकालीन नगरों तथा आस-पास के क्षेत्रों के बीच सम्पर्क के स्वरूप को समझ सकेंगे,
  • हड़प्पा निवासियों के समकालीन पश्चिमी एशिया की संस्कृति के साथ व्यापार और विनिमय क्रियाकलापों के बारे में जान सकेंगे,
  • इस सम्पर्क के स्वरूप और विनिमय तंत्र के बारे में जिन स्रोतों से पता चलता है उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

हड़प्पाकालीन संस्कृति की विशेषता वहाँ असंख्य छोटे बड़े नगरों की उपस्थिति थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे शहरों के अलावा अल्लाहदीनों (कराची के पास) जैसी बहुत सी छोटी बस्तियों से भी ऐसे प्रमाण मिले हैं जो शहरी अर्थव्यवस्था के सूचक हैं। शहरी अर्थव्यवस्था की विशेषता यह है कि इनमें अंतर्सम्बन्धों का तंत्र किसी क्षेत्रीय सीमा में बंधा नहीं होता। इस इकाई में आप पढ़ेंगे कि हड़प्पा से सैकड़ों मील दूर स्थित दूसरे शहरों और नगरों के लोगों से हड़प्पावासी किस प्रकार सक्रिय आदान-प्रदान में लगे रहते थे।

इस इकाई में इस बात की व्याख्या की गई है कि शहरों में व्यापारतन्त्र क्यों स्थापित किया गया। साथ ही अंतर्धेत्रीय व्यापार के तरीकों का भी जिक्र इसमें किया गया है। इसमें कच्चे माल के स्रोतों और समकालीन पश्चिमी एशिया के साथ सम्पर्क का भी उल्लेख है। विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से हड़प्पा सभ्यता के विषय में पता चलता है और इस इकाई में इनके बारे में बताया गया है।

व्यापारतंत्र की स्थापना

यह माना जाता है कि पूर्व शहरी समाज में विभिन्न क्षेत्रों के बीच सक्रिय लेन-देन नहीं था। अब सवाल यह है कि नगरवासियों ने दूरस्थ देशों से सम्पर्क क्यों स्थापित किया और हमें इस विषय में कैसे पता चलता है। शहरी केन्द्रों में जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खाद्यान्न उत्पादन में न लगाकर दूसरे अन्य प्रकार के कार्यकलापों में लगा होता है। ये लोग प्रशासनिक, व्यापार और विनिर्माणी कार्य करते हैं। साथ ही यदि वे स्वयं खाद्यान्न उत्पादन नहीं करते हैं तो वह काम दूसरे को उनके लिए करना पड़ता है। यही कारण है कि नगर, खाद्यान्न आपूर्ति के लिए आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र पर निर्भर हैं।

यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि शहर और गांव के बीच सम्बन्ध असमान हैं। शहरों को प्रशासनिक या धार्मिक केन्द्रों के रूप में विकास होने पर पूरे देश में संसाधन वहां एकत्र हो जाते हैं। यह सम्पत्ति करों, उपहारों, भेटों या खरीदे हुये सामान के रूप में भीतरी प्रदेश से शहर में आती है। हड़प्पा समाज में इस सम्पत्ति का नियंत्रण शहरी समाज के सबसे अधिक प्रभावशाली लोगों के हाथ में था। साथ ही शहर के धनी और प्रभावशाली लोग आरामदायक जीवन बिताते थे। उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा उनके द्वारा बनाए गए भवनों और उनके द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली भोग विलास की वस्तुओं के अभिग्रहण में प्रतिबिम्बित होती है जो स्थानीय रूप से अनुपलब्ध थीं।

यह इस बात की ओर संकेत करता है कि शहरों का दूरस्थ देशों से सम्पर्क स्थापित करने का मुख्य कारण इन अमीर और प्रभावशाली लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करना था। हड़प्पावासियों के दूरस्थ देशों से सम्पर्क स्थापित करने के कारणों में से एक कारण यह भी हो सकता है।

हड़प्पा बहावलपुर और मोहनजोदड़ो वाला भू-भाग हड़प्पा सभ्यता का मूल क्षेत्र है। लगभग दस लाख अस्सी हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में पाई गई बस्तियों में हड़प्पा सभ्यता के प्रभाव के प्रमाण पाए गए हैं।

यहां पर एक प्रासंगिक प्रश्न उठाया जा सकता है कि अफगानिस्तान के शार्तुघई और  गुजरात के भगतराव जैसे दूर तक फैले हुए क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने बस्तियों क्यों बसाईं? इसका यक्तिसंगत उत्तर विभिन्न क्षेत्रों की आपसी आर्थिक अंतर्निर्भरता और व्यापारतंत्र है। मूल संसाधनों का अलग-अलग स्थानों पर उपलब्ध होना सिन्धु घाटी के  विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने का महत्वपूर्ण कारण था। इन संसाधनों में कृषि संबन्धी संसाधन, खनिज संसाधन, लकड़ी आदि शामिल थे और ये व्यापार मार्गों की स्थापना करके ही प्राप्त किए जा सकते थे। उपजाऊ सिन्ध-हाकड़ा मैदान के धनी लोग अधिक से अधिक विलास की वस्तुएं प्राप्त करना चाहते थे। इस खोज में उन्होंने अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ पहले से विद्यमान सम्बन्धों को और मज़बूत बनाया। उन्होंने गुजरात और गंगा की घाटी जैसी जगहों में भी बस्तियां बसाई।

अंतर्धेत्रीय सम्पर्क

अब हम हड़प्पा नगरों के आपसी और उस समय के दूसरे शहरों और समाजों के साथ सम्पर्क के स्वरूप का मूल्यांकन करने की चेष्टा करेंगे। हमारे पास इस सम्पर्क के प्रमाण हड़प्पाकालीन नगरों की खुदाई द्वारा पाई गई वस्तुओं पर आधारित हैं। इनमें से कछ प्रमाणों की पुष्टि समकालीन मेसोपोटामिया की सभ्यता के लिखित स्रोतों में पाए गए प्रसंगों द्वारा की गई है।

शहर

अब हम हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाए गए अन्नभंडारों से संबंधित प्रमाणों की चर्चा करेंगे। ये बड़ी इमारतें अनाज रखने के लिए बनाई गई थीं। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है, शहरी केन्द्र खाद्यान्न आपूर्ति के लिए गांवों पर ही निर्भर है। अन्नभंडारों की उपस्थिति इस बात की ओर संकेत करती है कि शासक खाद्यान्न के एक सुनिश्चित भाग को अपने पास रखना चाहते थे। यह अनुमान है कि आस-पास के गांवों से अनाज लाकर यहां रखा जाता था। फिर यह शहरी निवासियों को पुनर्वितरित किया जाता था।  अनाज ऐसा संसाधन है जिसकी रोज बड़ी मात्रा में खपत होती है। काफी मात्रा में अनाज एकत्रित करके बैलगाड़ियों और नावों द्वारा भेजा जाता था। दूरस्थ स्थानों के लिए अधिक मात्रा में खाद्य सामग्री ढोना मुश्किल काम है। यही कारण है कि नगर सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में ही पाए गए हैं और सम्भवतया वहाँ अनाज आस-पास के गांवों से लाया जाता था।

उदाहरणस्वरूप, मोहनजोदड़ो जो कि सिन्ध के लरकाना जिले में स्थित था आज भी सिन्ध का सबसे उपजाऊ क्षेत्र है। परन्तु महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों या औद्योगिक क्षेत्रों में भी कुछ अन्य बस्तियां स्थापित हुई। बस्तियों की अवस्थिति किसी क्षेत्र की कृषि से संबंधित उपजाऊ क्षमता पर उतना निर्भर नहीं करती जितना कि व्यापार और विनिमय की सम्भावनाओं पर निर्भर करती है।

यही कारण है कि बड़े शहरों की अवस्थिति के कारणों का विश्लेषण करते समय विद्वान इन बातों को ध्यान में रखते हैं।

  • खाद्य उत्पादन के लिए उस स्थान की समर्थता और
  • उसकी व्यापार मार्गों और खनिज स्रोतों से निकटता।

यदि हम उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखें तो हम पाएँगे कि हड़प्पा की अवस्थिति बहुत ही उत्तम है। इसके उत्तर पश्चिम के समूचे भौगोलिक क्षेत्र में किसी दूसरी हड़प्पाकालीन बस्ती के प्रमाण नहीं मिले हैं। यहां तक कि 19वीं शताब्दी में भी इस क्षेत्र में मुख्यतया खानाबदोश चरवाहे ही रहते थे। कुछ विद्वानों का मत है कि हड़प्पा ऐसी जगह पर स्थित था जो दक्षिण की ओर स्थित कृषि बस्तियों और उत्तर पश्चिम की ओर स्थित खानाबदोश चरवाही बस्तियों को एक दसरे से विभाजित करती थी। इस प्रकार हड़प्पा के लोग दोनों समुदायों के संसाधनों का उपयोग कर सकते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि यद्यपि खादय उत्पादन के सम्बन्ध में हड़प्पा का कोई भी महत्वपूर्ण योगदान नहीं था, यह एक बड़े शहर के रूप में इसलिए विकसित हो सका क्योंकि एक व्यापारिक बस्ती के रूप में इसकी अवस्थिति बड़ी महत्वपूर्ण थी। यदि हम हड़प्पा को बीच में रखकर लगभग 300 किलो मीटर के क्षेत्र में उसके चारों ओर एक वृत बनाएं तो हम पाएंगे कि हड़प्पा की अवस्थिति बहुत ही उत्तम है।

  • हड़प्पा निवासियों की हिन्दुकुश और पश्चिमोत्तर सीमांत तक पहुँच थी। इसका अर्थ यह है कि लगभग दस दिन की यात्रा करके हड़प्पा निवासी उस क्षेत्र में पहुँच सकते थे जहाँ फीरोज़ा तथा वैदूर्यमणि जैसे बहुमूल्य पत्थर पाए जाते थे। ये बहुमूल्य पत्थर हिन्दुकुश तथा पश्चिमोत्तर सीमांत के मार्गों से लाए जाते थे।
  • वे नमक क्षेत्र से खनिज नमक भी प्राप्त कर सकते थे।
  • उन्हें राजस्थान से टिन और तांबा सुलभ रूप से प्राप्त था।
  • सम्भवतया वे कश्मीर में सोने और एमिथिस्ट के स्रोतों का भी उपयोग करते थे।
  • इस 300 किलोमीटर की परिधि में उस स्थान तक भी उनकी पहुँच थी जहां पंजाब की पांचों नदियां एक धारा में मिल जाती थीं। इसका अर्थ यह हुआ कि हड़प्पा निवासियों का पंजाब की पांचों नदियों के नदी परिवहन पर भी नियंत्रण था। उस समय जब पक्की सड़कें नहीं थीं। नदियों द्वारा परिवहन कहीं अधिक सलभ था।
  • उनकी अवस्थिति उनको कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों से लकड़ी प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती थी। हड़प्पा ऐसी जगह पर स्थित है जहां आधुनिक समय में भी पश्चिम और पूर्व के अनेक व्यापार मार्ग आपस में मिलते हैं।

अवस्थिति के संदर्भ में मोहनजोदड़ो और लोथल की बस्तियों का भी अपना महत्व.था। कुछ विद्वानों का मानना है कि मोहनजोदड़ो में बड़ी इमारतों का धार्मिक स्वरूप इस ओर संकेत करता है कि यह एक धार्मिक केन्द्र था। यह धार्मिक केन्द्र हो या न हो, यहां के । अमीर लोग सोना, चांदी और दूसरी बहमल्य वस्तुओं का प्रयोग करते थे जो स्थानीय रूप से प्राप्य नहीं थीं। हड़प्पा की तुलना में मोहनजोदड़ो समुद्र के अधिक निकट था। इसके कारण मोहनजोदड़ो वासियों के लिए फारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया पहुंचना आसान था। फारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया वे क्षेत्र थे जो सम्भवतया चांदी के मुख्य आपूर्तिकर्ता (Suppliers) थे। इसी प्रकार लोथल निवासी दक्षिणी राजस्थान और दक्कन से संसाधन प्राप्त करते थे।

सम्भवतः वे हड़प्पावासियों को कर्नाटक से सोना प्राप्त करने में मदद करते थे। कर्नाटक में सोने की खानों के पास समकालीन नवपाषाण युगीन बस्तियाँ पाई गई हैं।

गांव

गांव आवश्यक अनाज और कच्चा माल नगरों को भेजते थे पर हड़प्पा सभ्यता के नगर बदले में उन्हें क्या देते थे? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें कुछ इने-गिने सराग मिले हैं। एक तो यह कि नगरों के शासक अनाज को कर के रूप में वसूल करने के लिए बल प्रयोग करते थे। यह कर प्रशासनिक सेवाओं के बदले लोगों द्वारा दिया जाता था। इस ग्रामीण-शहरी सम्बन्ध का एक महत्वपूर्ण अवयव उन समस्त वस्तुओं को प्राप्त करना था जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं थीं और उन्हें ग्रामीण भीतरी प्रदेश (Interland) में उपलब्ध कराना था।

हड़प्पा काल की दिलचस्प वस्तुएँ पत्थर के औज़ार थे। हड़प्पा सभ्यता के लगभग सभी नगरों और गांवों के लोग समानान्तर आकार के पत्थर के ब्लेड का प्रयोग करते थे। ये पत्थर के ब्लेड बहुत ही उच्च स्तर के पत्थर से बनाए जाते थे जो हर स्थान पर नहीं पाए जाते थे। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार का पत्थर सिंध में सक्कर (Sukkur) नामक स्थान से लाया जाता था। यह परिकल्पना इस तथ्य से सिद्ध होती है कि हड़प्पा-सभ्यता की शहरी अवस्था के दौरान गजरात में स्थित रंगपुर के लोग दूर प्रदेशों से लाए गए पत्थर के औज़ारों का प्रयोग करते थे। जब हड़प्पा सभ्यता हास की ओर अग्रसर हई तब इन क्षेत्रों के लोगों ने स्थानीय पत्थर से बने औज़ारों का प्रयोग करना शुरू कर दिया।

हड़प्पा के लोग ताबें और कांसे जैसी धातुओं का भी प्रयोग करते थे। तांबा कुछ ही स्थानों पर उपलब्ध था। हड़प्पा-सभ्यता की लगभग सभी बस्तियों में तांबे और कांसे के औज़ार पाए गए हैं। हड़प्पा-सभ्यता की लगभग सभी बस्तियों में पाए गए इन औज़ारों की बनावट और प्रयोग में एकरूपता थी। इससे यह पता चलता है कि वहाँ उत्पादन और वितरण अवश्य ही केन्द्रीकृत संस्थाओं द्वारा किया जाता होगा। इन संस्थाओं में नगरों में रहने वाले प्रशासक या व्यापारी शामिल थे।

जिन वस्तुओं का ऊपर उल्लेख किया गया है वे आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण थीं। इनके अलावा हड़प्पा-सभ्यता की छोटी अथवा बड़ी बस्तियों से सोने, चांदी और अनेक कीमती और अर्ध कीमती पत्थरों से बनी वस्तुएं भी पाई गई हैं। ये धातु और पत्थर व्यापारियों या शहर के शासकों द्वारा लाए जाते थे। शहरीकरण की शुरुआत के साथ हड़प्पा-सभ्यता में व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। मोहनजोदड़ो से मनकों के प्रमाण मिले हैं। ये वस्तुएँ छोटे गांवों और नगरों के अमीर और प्रभावशाली लोगों द्वारा उपयोग में लाई जाती थीं।

ऊपर की गई चर्चा से यह बात उभर कर सामने आती है कि :

  • गांवों की अवस्थिति मुख्यतया भूमि की उपजाऊ क्षमता और सिंचाई की सुविधा की सुलभता पर निर्भर करती थी।
  • नगरों की अवस्थिति ऊपर दिए गए घटक के अन्य अतिरिक्त घटकों जैसे खानों या व्यापार मार्गों से इन नगरों की निकटता पर निर्भर करती थी।

कभी-कभी नगरों की अवस्थिति व्यापार के घटक पर अन्य घटकों से अधिक निर्भर करती थी तथा कई नगर उन अनुपयोगी (Inhospitable) जगहों पर बसाए गए जहां कृषि उत्पादन बहुत कम था। उदाहरणस्वरूप मकरान समुद्र तट सत्काजिन-दोर एक ऐसी ही बस्ती थी। वह कृषि उत्पादन की दृष्टि से अनुपयोगी (Inhospitable) क्षेत्र में स्थित है और इसकी मुख्य भूमिका हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच व्यापार चौकी के रूप में थी।

अब हम हड़प्पा-सभ्यता के अन्य शहरों में घटित होने वाली गतिविधियों की चर्चा करेंगे।

  • बलूचिस्तान, समुद्रतट के पास स्थित बालाकोट और सिंध में चहुंदड़ो सीपीशिल्प और चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध थे,
  • लोथल और चहुंदड़ो में लाल (Carnelian) पत्थर और गोमेद के मनके बनाए जाते थे।
  • चन्हुंदड़ों में वैदूर्यमणि के कुछ अधबने मनके इस बात की ओर संकेत करते हैं कि हड़प्पा निवासी दूर दराज़ स्थानों से बहूमूल्य पत्थर आयात करते थे और उन पर काम करके उन्हें बेचते थे।
  • मोहनजोदड़ो में पत्थर की चिनाई करने वाले कुम्हार, तांबे और कांसे के शिल्पकार, ईंटें बनाने वाले, सील काटने वाले, मनके बनाने वाले आदि हस्त कौशल में निपुण लोगों की उपस्थिति के प्रमाण पाए गए हैं।

कच्चे माल के स्रोत

हड़प्पा-सभ्यता की विभिन्न बस्तियों की खुदाई द्वारा बहुत संख्या में चूड़ियां, मनके, मिट्टी के बर्तन और विभिन्न प्रकार की तांबे, कांसे और पत्थर की वस्तुयें पाई गई हैं। हड़प्पासभ्यता की बस्तियों में पाई अनेक प्रकार की वस्तुएँ इस बात की ओर संकेत करती हैं कि वे अनेक प्रकार की धातुओं और बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग करते थे जो प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से उपलब्ध नहीं थे। रोचक बात यह है कि हड़प्पा-सभ्यता की छोटी-छोटी बस्तियों में भी बहुमूल्य पत्थरों और धातुओं के औज़ार पाए गए हैं। ये अमीर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक विस्तृत विनिमय तंत्र की ओर संकेत करते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले खनिज पदार्थ और धातुओं के क्या स्रोत थे?

  • वे राजस्थान की खेतड़ी खानों से तांबा प्राप्त करते थे।
  • मध्यवर्ती राजस्थान में जोधपरा, बागोर और गणेश्वर बस्तियां जो हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों के समकालीन मानी जाती हैं सम्भवतया हड़प्पा सभ्यता के लिए कच्चे तांबे का स्रोत रही होंगी।
  • गणेश्वर में 400 से अधिक तांबे के तीर शीर्ष, 50 मछली पकड़ने के कांटे और 58 तांबे की कुल्हाड़ियां पाई गई हैं।

इन बस्तियों में लोग खानाबदोशी चरवाहों तथा शिकार संग्रहकर्ताओं दोनों ही की तरह से जीवन-यापन करते थे। इन पर हड़प्पा सभ्यता का प्रभाव शायद नहीं पड़ा था। इससे  व्यापार सम्बन्धों, की समस्या की जटिलता और भी बढ़ जाती है। पुरातत्ववेत्ताओं का विश्वास है कि हड़प्पावासी उस क्षेत्र से तांबे के औज़ारों का आयात करते थे जहां के लोग चरवाहे और शिकारी के रूप में जीवन यापन करते थे। तथापि हम यह नहीं कह सकते हैं कि ये दोनों समदाय एक जो विकसित शहरी सभ्यता और दूसरा जो चरवाह समदाय का प्रतिनिधित्व करता है, आपस में किस प्रकार आदान-प्रदान करते थे। सम्भवतया ये सम्बन्ध अप्रत्यक्ष थे।

शायद हड़प्पा-सभ्यता के लोग तांबा बलूचिस्तान और उत्तरी पश्चिमी सीमांत से प्राप्त .. करते थे। सोना सम्भवतया कर्नाटक के कोलार क्षेत्र और कश्मीर से प्राप्त किया जाता था। हड़प्पावासियों की समकालीन कुछ नवपाषाण युगीन बस्तियां भी इस क्षेत्र में पाई गई. हैं। राजस्थान के जयपुर और सिरोही, पंजाब के हाज़रा कांगड़ा और झंग और काबुलं और सिन्धु नदियों के किनारे सोने के मुलम्मों के प्रमाण मिले हैं।

हड़प्पा-सभ्यता की बहुत सी बस्तियों से चांदी के बर्तन पाए गए हैं। यद्यपि इस क्षेत्र में चांदी के कोई विदित स्रोत नहीं हैं। चांदी शायद अफगानिस्तान और ईरान से आयात किया जाता होगा। सम्भवतया सिंध के व्यापारियों के मेसोपोटामिया से व्यापार संबंध थे तथा वे अपने माल के बदले में मेसोपोटामिया से चांदी प्राप्त करते थे। सीसा शायद कश्मीर या राजस्थान से प्राप्त किया जाता होगा। पंजाब और बलूचिस्तान में भी थोड़े बहुत सीसे के स्रोत थे।

वैदूर्यमणि जो कि एक कीमती पत्थर था उत्तरी पूर्वी अफगानिस्तान में बदक्शां (Badakshan) में पाया जाता था। इस क्षेत्र में शोर्तुघई और अलतिन देपे (Altyn Depe) जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियों का पाया जाना उस बात की पुष्टि करता है कि हड़प्पावासियों ने इस स्रोत का लाभ उठाया होगा। फ़िरोजा और जेड मध्य एशिया से प्राप्त किए जाते थे। गोभेद, श्वेतवर्ण स्फटिक और लाज पत्थर सौराष्ट्र या पश्चिमी भारत से प्राप्त किये जाते थे। समुद्री सीपियां जो हड़प्पावासियों में बहुत लोकप्रिय थीं गुजरात के समुद्र तट और पश्चिमी भारत से प्राप्त की जाती थीं। जम्मू में मांदा (Manda) उस स्थान पर स्थित है जहां पर चेनाब नदी में नौपरिवहन संभव है।

सम्भवतया अच्छी किस्म की लकड़ी अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों से प्राप्त होती थी और मध्य सिंधु घाटी में नदियों द्वारा पहुँचाई जाती थी। शर्तुघई (Shortughai) में हड़प्पाकालीन अवशेषों में काफी मात्रा में वैदूर्यमणि पाए गए हैं। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि हड़प्पा-सभ्यता के लोगों ने दूरस्थ क्षेत्रों में पाए जाने वाले खनिज पदार्थों का उपयोग करने के लिए उपनिवेशीकरण की नीति अपनाई थी। इससे यह पता चलता है कि व्यापार और बाहर से नई प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त करने में हड़प्पा-सभ्यता के लोगों की दिलचस्पी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि व्यापार विनिमय व्यापारियों का आपसी मामला न होकर एक प्रशासनिक कार्यकलाप था क्योंकि लगभग 500 किलोमीटर के क्षेत्र में उपनिवेश स्थापित करना किसी व्यापारी के लिए सम्भव नहीं था। हड़प्पा काल के प्रशासक दूरस्थ प्रदेशों के संसाधनों को नियंत्रित करना चाहते थे।

विनिमय व्यवस्था

हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने भारतीय उपमहाद्वीप के भीतर और बाहर अंतर्खेत्रीय व्यापार का एक बहद तंत्र स्थापित किया था। लेकिन हमें यह मालूम नहीं है कि हड़प्पा-सभ्यता और अन्य क्षेत्रों के बीच किस प्रकार की विनिमय व्यवस्था प्रचलित थी। इतने बड़े क्षेत्र के बीच आदान-प्रदान की प्रक्रिया में विभिन्न समुदायों का शामिल होना अवश्यम्भावी है। उस समय देश के एक बड़े भू-भाग में शिकारी संग्रहकर्ता रहते थे। कुछ क्षेत्रों में खानाबदोश चरवाहे थे। कुछ समुदायों ने कृषि उत्पादन शुरू कर दिया था। इनकी तुलना में हड़प्पासभ्यता अधिक विकसित थी। हड़प्पा-सभ्यता के लोग शिकारी संग्रहकर्ताओं या किसी और समुदाय के क्षेत्रों से खनिज पदार्थ प्राप्त करने के लिए क्या तरीके अपनाते थे? हड़प्पासभ्यता के लोगों ने ऐसे कुछ क्षेत्रों में अपनी बस्तियां बसाई थीं।

सम्भवतया हड़प्पा सभ्यता के लोगों से भिन्न समुदाय हड़प्पा सभ्यता के लोगों से कीमती वस्तुएँ प्राप्त करते थे परन्तु विनिमय एक नियमित कार्यकलाप नहीं था। बल्कि यह इन समुदायों के मौसमी प्रवास या किसी एक जगह पर एकत्रित होने पर निर्भर था। हड़प्पा-सभ्यता के व्यापारी उन स्थानों पर जाते थे जहां ये समुदाय मौसमी डेरे डालते थे। मौसमी प्रवास की प्रक्रिया के दौरान खानाबदोश चरवाहे भी दूर-दराज के क्षेत्रों से सामान प्राप्त करते थे। हड़प्पा-सभ्यता के लोगों की विनिमय प्रणाली के बारे में हमें बहुत कम जानकारी है।

हड़प्पा कालीन नगरों के बीच विनिमय पद्धति

हड़प्पा-सभ्यता के लोगों ने आपसी व्यापार और विनिमय को नियंत्रित करने के प्रयास किए। दूर फैली हुई हड़प्पा कालीन बस्तियों में भी नाप और तौल की व्यवस्थाओं में समरूपता थी। तौल निम्न मूल्यांकों में द्विचर प्रणाली के अनुसार है : 1, 2, 4, 8 से 64 तक फिर 150 तक और फिर 16 से गुणा होने वाले दशमलव 320, 640, 1600 और 3200 आदि तक। ये चकमकी पत्थर, चूना पत्थर, सेलखड़ी आदि से बनते हैं और साधारणतया घनाकार होते हैं। लम्बाई 37.6 सेंटीमीटर की एक फुट की इकाई पर आधारित थी और एक हाथ की इकाई लगभग 51.8 से 53.6 सेंटीमीटर तक होती थी। नाप और तौल की समरूप व्यवस्था केन्द्रीय प्रशासन द्वारा हड़प्पा-सभ्यता के लोगों में आपसी तथा अन्य लोगों के साथ विनिमय को व्यवस्थित करने के प्रयास की ओर इशारा करती है।

हड़प्पा सभ्यता की बस्तियों में काफी संख्या में मुहरें और मुद्रांकण पाए गए हैं। ये मुहरें और मुद्रांकण दूरस्थ स्थानों को भेजे जाने वाले उत्पादों के उच्च स्तर और स्वामित्व की ओर संकेत करते हैं। इनका प्रयोग व्यापारिक गतिविधियों में होता था। इस बात की पष्टि इस तथ्य से होती है कि बहत से मद्रांकणों में पीछे की ओर रस्सी और चटाई के निशान हैं। इनमें पाए जाने वाले चिन्हों से यह पता चलता है कि ये मुद्रांकण तिजारती माल में ठप्पे की तरह प्रयोग में लाए जाते होंगे। लोथल में गोदामों में वायुसंचालन के रास्तों में राख में अनेक मुद्रांकण पाए गए हैं। ये सम्भवतया आयातित माल के गट्ठरों को खोलने के बाद फैंक दिए जाते होंगे। इन मुहरों पर विभिन्न जानवरों की आकृतियाँ भी चित्रित हैं और इन पर जो लिपि उत्कीर्ण है वह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। ऐसा लगता है दूरस्थ स्थानों के साथ व्यापार विनिमय में इनका प्रयोग होता था।

फारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया के साथ व्यापार

अब तक हमने हड़प्पा-सभ्यता के लोगों के अंतक्षेत्रीय विनिमय कार्यकलापों की चर्चा की है। इन कार्यकलापों में हड़प्पा-सभ्यता के लोग प्रमुख भागीदार थे। अब हम हड़प्पा-सभ्यता के लोगों की समकालीन पश्चिम एशिया की सभ्यताओं के साथ व्यापार और विनिमय के कार्यकलापों की चर्चा करेंगे। मेसोपोटामिया हड़प्पा-सभ्यता के मुख्य क्षेत्र से हज़ारों मील दूर स्थित था फिर भी इन दोनों सभ्यताओं के बीच व्यापार सम्बन्ध थे।

सम्पर्कों के पुरातात्विक प्रमाण

विनिमय के विषय में हमारी जानकारी का आधार मेसोपोटामिया में पाई गई विशिष्ट हड़प्पाकालीन मुहरें हैं। मेसोपोटामिया के सूसा (Susa) उर (Ur) आदि शहरों में हड़प्पा सभ्यता की, या हड़प्पाकालीन मुहरें से मिलती-जुलती लगभग दो दर्जन मुहरें पाई गई हैं। हाल ही में फारस की खाड़ी में फैलका (Failka) और बेहरैन (Behrain) जैसे प्राचीन स्थानों में भी हड़प्पाकालीन मुहरें पाई गई हैं। मेसोपोटामिया के निप्पुर (Nippur) शहर में एक मुहर पाई गई है जिस पर हड़प्पाकालीन लिपि उत्कीर्ण है और एक सींग वाला पश बना हुआ है। दो चौकोर सिंध महरें जिन पर एक सींग वाला पशु और सिन्ध लिपि उत्कीर्ण है, मेसोपोटामिया के किश (Kish) शहर में पाई गई हैं। एक अन्य शहर उम्मा (Umma) में भी सिंधु सभ्यता की एक मुहर पाई गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि सिंधु घाटी और इन क्षेत्रों के बीच व्यापार विनिमय संबंध थे।

तेल असमार (Tel Asmar) में हड़प्पाकालीन मृतिका शिल्प नक्काशी किये हुए लाल पत्थर के मनके और गर्दे के आकार के हड्डी के जड़ाऊ काम पाए गए हैं। इनसे मेसोपोटामिया और हड़प्पा-सभ्यता के लोगों के बीच व्यापार सम्बन्ध के बारे में पता चलता है। पक्की मिट्टी की छोटी मूर्तियां, जो साधारणतया सिंधु घाटी में पाई गई हैं, मेसोपोटामिया में निप्पुर (Nippur) में भी पाई गई हैं। इन छोटी मूर्तियों में प्रमुख हैं-एक मोटे पेट वाला नग्न पुरुष, जानवरों जैसे चेहरे, गोलमटोल पूंछे और हिलने डुलने वाले हाथों का जोड़ने के लिए कंधों में खाली जगह।

निप्पुर (Nippur) में इसी प्रकार की तीन छोटी मूर्तियां पाई गई हैं जिनसे निप्पुर पर हड़प्पा-सभ्यता के प्रभाव का पता चलता है। सिंधु के चौसर के नमूने (1/2, 3/6, 4/5) मेसोपोटामिया के ऊर (Ur), निप्पुर (Nippur) और तेल असमार शहरों में पाए गए हैं। इनके अलावा मेसोपोटामिया में विशिष्ट आकार के मनके पाए गए हैं और लगता है कि ये सिंधु घाटी से ही लाए गए थे। चहुंदड़ों में पाए गए इकहरे, दोहरे, तिहरे वृत्ताकार मनके, मेसोपोटामिया के किश (Kish) में पाए गए मनकों से बहुत मिलते जुलते हैं। फारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया में हड़प्पाकालीन तौल (बाट) भी पाए गए हैं।

हड़प्पा सभ्यता की बस्तियों में मेसोपोटामिया की बहुत ही कम वस्तुएँ पाई गई हैं। मोहनजोदड़ो में मेसोपोटामिया की सभ्यता के बेलनाकार मुहरों के नमूने पाए गए हैं। कुछ धात की वस्तुएँ शायद मेसोपोटामिया से लाई गई थीं। लोथल में एक बेलनाकार छोटी मुहर पाई गई है। बेहरैन (Behrain) के बंदरगाह की खुदाई द्वारा इस प्रकार की अनेक मुहरें पाई गई हैं। लगता है कि ये मुहरें फारस की खाड़ी के बंदरगाहों से लाई गई थीं। लोथल में बन (bun) के आकार के तांबे के ढले हुए धातु पिंड भी पाए गए हैं। ये फारस

की खाड़ी के द्वीपों और सूसा (Susa) में पाई गई मुहरों से मिलते-जुलते हैं। जिन वस्तुओं को हड़प्पा-सभ्यता और मेसोपोटामिया में पाया जाना हड़प्पा और मेसोपोटामिया वासियों के बीच प्रत्यक्ष व्यापार-विनिमय की ओर संकेत करता है, इनके कम मात्रा में पाए जाने के कारण विद्वानों को इन दो सभ्यताओं के बीच प्रत्यक्ष व्यापार की धारणा पर संदेह है। यह माना जाता है कि हड़प्पा-सभ्यता के लोग अपने माल को व्यापार के लिए फारस की खाड़ी की बस्तियों में ले जाते होंगे। कछ सामान बेहरैन जैसे फारस की खाड़ी के बंदरगाहों के व्यापारियों द्वारा मेसोपोटामिया के नगरों में भेजा जाता होगा।

विनिमय के लिखित प्रमाण

मेसोपोटामिया में कुछ प्राचीन लेख पाए गए हैं जिनसे उसके हड़प्पाकालीन सभ्यता के साथ व्यापार सम्बन्धों का पता चलता है। मेसोपोटामिया में स्थित अक्काड़ (Akkad) के प्रसिद्ध सम्राट सारगॉन (Sargon) (2350 ई. पू.) का यह दावा था कि दिलमन, मगान (Dilmun, Magan और मेलुहा Meluha) के जहाज़ उसकी राजधानी में लंगर डालते थे। विद्वान साधारणतया मेलुहा तथा हड़प्पा-सभ्यता के समुद्रतटीय नगरों या सिंधु नदी के क्षेत्र को एक ही मानते हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि मगान (Magan) तथा मकरान समुद्रतट एक ही हैं। उर (Ur) शहर के व्यापारियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ अन्य दस्तावेज भी पाए गए हैं।

ये इस बात की ओर संकेत करते हैं कि उर (Ur) के व्यापारी मेलुहा से तांबा, गोमेद, हाथी दांत, सीपी, वैदूर्यमणि, मोती और आबनूस आयात करते थे। ऐसा लगता है कि ये वस्तुएं हड़प्पाकालीन बस्तियों में काफी मात्रा में उपलब्ध थीं। हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली कछ वस्तओं जैसे तांबे के विषय में हमें कोई जानकारी नहीं है। फिर भी हमें यह याद रखना चाहिए कि हड़प्पासभ्यता के लोग मध्य एशिया तक के एक बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र के संसाधनों का उपयोग कर रहे थे।

शायद उन्होंने आरम्भिक हड़प्पा काल में मध्य एशिया और अफगानिस्तान के व्यापार तंत्र पर अधिकार कर लिया था। मेसोपोटामिया के आरम्भिक साहित्य में मेलहा के व्यापार समदाय का जिक्र है जो मेसोपोटामिया में रहता था। मेसोपोटामिया के एक अन्य लिखित दस्तावेज में मेलहा की भाषा के सरकारी दुभाषिए (Interpreter) का जिक्र है। इन सब उदाहरणों से संकेत मिलता है कि हड़प्पा-सभ्यता के लोगों और मेसोपोटामिया के लोगों के बीच सम्बन्ध अप्रत्यक्ष नहीं थे। इन समाजों के बीच भौगोलिक दूरी को देखते हुए इनके बीच नियमित आदान-प्रदान की आशा नहीं की जा सकती। फिर भी इन दोनों सभ्यताओं के बीच बहुत नजदीकी संबंध थे। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि मेसोपोटामिया का राजा यह दावा करता था कि मेलहा के जहाज उसके बंदरगाहों में लंगर डालते हैं।

हड़प्पा में मेसोपोटामिया की वस्तुओं का न पाया जाना इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि परम्परागत रूप से मेसोपोटामिया के लोग कपड़े, ऊन, खुशबूदार तेल और चमड़े के उत्पाद बाहर भेजते थे। ये सभी वस्तुएं जल्दी नष्ट हो जाती हैं इस कारण इनके अवशेष नहीं मिले हैं। शायद चांदी भी निर्यात किया जाता था। हड़प्पा-सभ्यता की बस्तियों में चांदी के स्रोत नहीं थे। लेकिन वहाँ के लोग इसका काफी मात्रा में प्रयोग करते थे। सम्भवतया यह मेसोपोटामिया से आयात किया जाता होगा।

परिवहन के साधन

सम्पर्क और विनिमय के स्वरूप की चर्चा के अंतर्गत परिवहन के साधनों का प्रश्न भी सामने आता है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाई गई मुहरों में जहाज़ों और नावों को चित्रित किया गया है। लोथल में पक्की मिट्टी से बने जहाज का एक नमना पाया गया है जिसमें मस्तूल के लिए एक लकड़ी चिन्हित खोल तथा मस्तूल लगाने के लिए छेद हैं। लोथल में ही 219×37 मीटर लम्बाई का एक हौज मिला है जिसकी 4.5 मीटर ऊंची ईंटों की दीवारें हैं। इसके उत्खनक ने इसको एक जहाजी मालघाट के रूप में पहचाना है। इस स्थान के अलावा अरब सागर के समुद्रतट पर भी अनेक बंदरगाह थे। रंगपुर, सोमनाथ, लाकोट जैसे स्थान हड्प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में प्रयोग में लाए जाते थे। मकरान समुद्रतट जैसे अनुपयोगी क्षेत्रों में भी सुत्काजिन-दोर और सुत्काकोह जैसी हड़प्पाकालीन बस्तियां पाई गई हैं।

ऐसे अनुपयोगी क्षेत्रों में उनके स्थित होने का मख्य कारण था कि वे पश्चिमी भारत और सिंध के समद्रतट पर टकराने वाली लहरों तथा तूफानी हवाओं से सुरक्षित थीं। बारिश के महीनों में वे हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा बाहर जाने के रास्ते के रूप में उपयोग में लाए जाते थे। सत्काजिन-दोर (Sutkagendor) आधुनिक पाकिस्तान और ईरान की सीमा पर स्थित है। यह सम्भव है कि ईरान की तरफ भी कछ हड़प्पाकालीन बस्तियाँ थीं। उनका अभी तक पता नहीं लगा है। इस प्रकार हड़प्पा-सभ्यता के लोगों द्वारा समुद्रतट के पास बस्तियां बसाए जाने के कारण फारस की खाड़ी तक उनके जहाजों को लंगर डालने के स्थान उपलब्ध हो सके।

बैलगाड़ी अंतर्देशीय परिवहन का साधन थी। हड़प्पाकालीन बस्तियों से मिट्टी के बने बैलगाड़ी के अनेक नमुने पाए गए हैं। हड़प्पा में एक कांसे की गाड़ी का नमना पाया गया है जिसमें एक चालक बैठा है तथा छोटी गाड़ियों के नमूने भी पाए गए हैं जो बहत कछ पंजाब के आधुनिक इक्कों से मिलते-जुलते हैं। जंगलों वाले क्षेत्र में लम्बे सफर के लिए भारवाही बैलों के काफिले परिवहन का मख्य साधन रहे होंगे। ऐतिहासिक काल में खानाबदोश चरवाहे सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजते थे। सम्भवतया हड़प्पासभ्यता के लोग भी ऐसा ही करते होंगे। उस समय नौ परिवहन अधिक प्रचलित सुलभ तथा सस्ता था।

सारांश

उपर्युक्त बातों से हमें पता चलता है कि हड़प्पाकालीन सभ्यता में आंतरिक व्यापार काफी तेजी में था। आंतरिक व्यापार का अर्थ है कि विनिमय कार्यकलाप 10 लाख 30 हजार वर्ग किलो मीटर तक के क्षेत्र में होते थे। यह विनिमय कार्यकलाप इस तथ्य से भी स्पष्ट हो जाते हैं कि हड़प्पा-सभ्यता कि छोटी सी बस्ती अल्लादीनों में भी मुहरें, मुद्रांकण, अर्द्धकीमती पत्थरों के मनके और धातु के बर्तन पाए गए हैं।

इनमें से अधिक वस्तुएं आयात की जाती थीं। नौगम्य जल-मार्गों तथा परम्परागत भू-भागों पर हड़प्पाकालीन बस्तियों का स्थित होना उस बात की ओर संकेत करता है कि हड़प्पा-सभ्यता के लोग व्यापार विनिमय गतिविधियों में संलग्न थे। समकालीन पश्चिमी एशियाई संस्कृतियों के साथ उनके संबन्धों की पुष्टि की जा चुकी है। इसीलिए हम उन्हें नगर केन्द्रित समुदाय कहते हैं।

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