भारत में निवेश चालित संवृद्धि के लिए PPP मॉडल

प्रश्न: भारत की निवेश चालित संवृद्धि के लिए PPP मॉडल का पुनर्विलोकन महत्वपूर्ण है। विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • PPP मॉडल को परिभाषित करते हुए भारत में इसकी स्थिति के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • भारत में निवेश चालित संवृद्धि के लिए PPP मॉडल के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • भारत में PPP मॉडल के समक्ष बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इनकी संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर संक्षिप्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर:

निजी सार्वजनिक भागीदारी (Private Public Partnership: PPP) सार्वजनिक संपत्ति के निर्माण या सेवा प्रदान करने हेतु निजी पक्षकार (पार्टी) एवं सरकारी इकाई के मध्य एक दीर्घकालिक अनुबंध होता है, जिसमें निजी पक्षकार द्वारा जोखिम और प्रबंधन संबंधी उत्तरदायित्वों को साझा किया जाता है तथा इसमें पारिश्रमिक का निर्धारण प्रदर्शन के आधार पर होता है।

PPP का महत्व:

  • PPP के कारण सार्वजनिक परियोजनाओं के वितरण और वित्तपोषण दोनों में वृद्धि होती है। अवसंरचना में निवेश के लिए सार्वजनिक संसाधनों की सीमित क्षमता के साथ आवश्यक निवेश की विशाल मात्रा के कारण PPP को भारत में अवसंरचना में निवेश बढ़ाने के लिए सरकार को एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करती है। विगत दशकों के दौरान PPP परियोजनाओं की संख्या में वृद्धि ने भारत को विश्व में PPP का अग्रणी बाजार बना दिया है।
  • भारत में अवसंरचना संबंधी निवेश की कमी को पूरा करने के लिए PPP, अवसंरचना परिसंपत्तियों के निर्माण, प्रबंधकीय दक्षता और सार्वजनिक परिसंपत्तियों के संचालन एवं रखरखाव के लिए सेवा मानकों की बेहतर क्षमता हेतु नई और लागत प्रभावी तकनीक भी प्रदान करता है। इसके परिणामस्वरूप अंतिम उपयोगकर्ताओं को समय पर और उच्च गुणवत्ता वाली अवसंरचना सेवाओं की प्राप्ति होती है।

PPP मॉडल के पुनर्विलोकन एवं आवश्यक सुधारों की आवश्यकता:

भारत द्वारा PPP के लिए विश्व का सबसे वृहत बाजार प्रस्तुत करने के बावजूद, विगत एक दशक में अवसंरचना वितरण तंत्र में इसकी भूमिका सीमित रही है। इसके प्रमुख कारण मौजूदा अनुबंधों से संबंधित विवाद, पूंजी की अनुपलब्धता और भूमि अधिग्रहण संबंधी विनियामकीय बाधाएं, परियोजना विकासकर्ताओं को यथोचित परिश्रम का अभाव जैसे विभिन्न मुद्दे हैं। इस प्रकार PPP मॉडल पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है और इस संबंध में निम्नलिखित कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:

  • अनुकूलतम जोखिम निर्धारण और प्रबंधन: जोखिम का अपर्याप्त और असमान निर्धारण PPP की विफलता हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारक रहा है। इसलिए, जोखिम को प्रबंधित करने के लिए सबसे उपयुक्त इकाई को इसकी जिम्मेदारी सौंप कर सभी हितधारकों के मध्य इष्टतम जोखिम निर्धारण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। एक सामान्य जोखिम निगरानी और मूल्यांकन ढांचा भी विकसित किया जाना चाहिए।
  • नीति और शासन का सुदृढ़ीकरण: राष्ट्रीय PPP नीति के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए एक संस्थान, निर्णयनिर्माण हेतु डेटा अभिग्रहण एवं संग्रहण करने वाला तंत्र और क्षमता निर्माण गतिविधियाँ अवसंरचना में निजी निवेश को प्रोत्साहित करेंगे।
  • संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ बनाना: भारत में सांविधिक प्राधिकरणों के भीतर क्षमता का अभाव और अत्यधिक सरकारी निरीक्षण जैसे कारक भारत में PPP के समक्ष बाधक बने हुए हैं। PPP के तहत संचालित क्षेत्रकों में स्वतंत्र नियामक का गठन किया जाना चाहिए। PPP परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए एक “इंफ्रास्ट्रक्चर PPP प्रोजेक्ट रिव्यू कमिटी” का गठन किया जा सकता है।
  • विधिक ढांचे को सुदृढ़ करना: एक त्वरित, दक्ष और प्रवर्तनीय विवाद निपटान तंत्र परियोजनाओं के क्रियान्वयन के दीर्घकालिक विलंब का समाधान करेगा। PPP अनुबंधों में विवाद समाधान संरचनाओं का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जो परियोजना की वाणिज्यिक और वित्तीय सीमाओं के भीतर पुनर्गठन के लिए लचीलापन भी प्रदान करती हों।
  • अनुबंधों का सुदृढ़ीकरण: चूंकि अवसंरचना संबंधी परियोजनाएं दीर्घकालिक होती हैं, इसलिए आर्थिक या नीतिगत परिवेश में आकस्मिक परिवर्तन के कारण निजी विकासकर्ता की सौदेबाजी की शक्ति में कमी हो सकती है। अतः, निजी क्षेत्र को इस प्रकार की सौदेबाजी की शक्ति की हानि से संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसे पुनःसौदेबाजी की अनुमति प्रदान करने हेतु PPP संबंधी अनुबंध की शर्तों में संशोधन करके सुनिश्चित किया जा सकता है।

सीमित राजकोषीय आधार और अवसंरचना अंतराल को पूरा करने तथा विकास लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त स्तर पर आवश्यक निवेश की आवश्यकता के संदर्भ में भारत के लिए PPP महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में भारत में PPP के समक्ष बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का समाधान करने हेतु विजय केलकर समिति की अनुशंसाओं का समय पर क्रियान्वयन प्रासंगिक हो सकता है। इनमें जोखिम साझाकरण का पुनर्संतुलन; दीर्घकालिक मुद्दों का समाधान करने के लिए बहुअनुशासनात्मक विशेषज्ञ संस्थागत तंत्र; तनावग्रस्त परियोजनाओं के लिए क्षेत्रक विशिष्ट संस्थागत ढांचे और व्यापक दिशानिर्देश विकसित करना; बैंकों की संख्या को सीमित करना; संविदात्मक प्रक्रियाओं का पुनरीक्षण और क्षेत्रकों का पुनरुत्थान करना सम्मिलित हैं।

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