भारत में नदी प्रदूषण : नदी प्रदूषण के स्रोतों से निपटने हेतु कुछ उपाय

प्रश्न: नदी प्रदूषण, जिसके दूरगामी परिणाम होते हैं, भारत में एक प्रमुख पर्यावरणीय समस्या है। नदी प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों को सूचीबद्ध करते हुए चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • भारत में नदी प्रदूषण पर कुछ आँकड़ों को प्रस्तुत करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • नदी प्रदूषण के स्रोतों एवं इनके परिणामों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • नदी प्रदूषण के स्रोतों से निपटने हेतु कुछ उपायों का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तरः

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की नदियों के गंभीर रूप से प्रदूषित खंडों की संख्या 302 (वर्ष 2016 में) से बढ़कर 351 (वर्ष 2018 में) हो गई है। सरकार ने नमामि गंगे, यमुना रिवर एक्शन प्लान जैसी योजनाओं पर अत्यधिक धन व्यय किया है, इसके बावजूद भी नदी प्रदूषण का मानव जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर दुष्प्रभाव बना हुआ है।

नदी प्रदूषण के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित रूप में सूचीबद्ध हैं:

  • घरेलू सीवेज: घरेलू सीवेज में डिटर्जेंट, विषाक्त भारी धातुएं और रोगणुजनक शामिल हैं, जिसके साथ शहरी और ग्रामीणबस्तियों का कचरा भी मिश्रित होता है तथा इसमें नदियों के किनारे पर धुलाई, कचरा डंपिंग से नदियों में निस्सृत पदार्थ आदि भी सम्मिलित होते हैं।
  • औद्योगिक अपशिष्ट और बहिःस्राव: औद्योगिक अपशिष्ट सभी नदी प्रदूषकों में सर्वाधिक हानिकारक होते हैं क्योंकि इसमें विषाक्त धातुएँ (सीसा, पारा, जिंक, तांबा, क्रोमियम और कैडमियम), आर्सेनिक, एसिड आदि शामिल होते हैं।
  • कृषि अपशिष्ट: कृषि के कारण होने वाले नदी प्रदूषण में उर्वरकों, कीटनाशकों और शाकनाशियों के कारण होने वाला प्रदूषण भी शामिल है जो खेतों से नदियों एवं झीलों में प्रवाहित होते हैं।
  • तापीय प्रदूषण: अधिकांशतः वृहत पैमाने की औद्योगिक इकाइयां, तापीय विद्युत् संयंत्र, नाभिकीय विद्युत् संयंत्र, तेल शोधनशालाओं (रिफाइनरियां) आदि में, शीतलन प्रयोजनों के लिए अत्यधिक मात्रा में स्वच्छ जल का उपयोग किया जाता हैं जिसे उच्च तापमान के साथ नदियों में पुनः प्रवाहित कर दिया जाता है।
  • अम्ल वर्षा: वर्षा जल वायु प्रदूषकों {(नाइट्रस ऑक्साइड (NOx), सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2)} के साथ अभिक्रिया करके अम्ल का निर्माण करता है, जिससे अंततः नदियां प्रदूषित होती है।

विभिन्न स्रोतों के कारण नदी प्रदूषण के परिणाम निम्नलिखित रूप में सूचीबद्ध हैं:

  • मानव जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी खतरे: नदी प्रदूषण के परिणामस्वरूप टाइफाइड, हैजा जैसे संक्रामक रोग होते है, साथ ही इससे जल भी उपभोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त, औद्योगिक प्रदूषण से निष्कासित विषाक्त धातुओं का भी मानव जीवन और समुद्री जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, सीसा का संचयन तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
  • वनस्पतिजात एवं प्राणिजात पर प्रभाव: सुपोषण और तापीय प्रदूषण के परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी और शैवाल प्रस्फुटन होता है तथा वर्द्धित अविलता (turbidity) के कारण सूर्य का प्रकाश नदी तल और जल निकायों तक नहीं पहुंच पाता है, इस प्रकार वनस्पतिजात और प्राणिजात प्रभावित होते हैं।
  • आजीविका एवं मत्स्यन को क्षति: प्रदूषित नदियों की मछलियों में पारा, सीसा और कैडमियम का उच्च स्तर हो सकता है तथा मिनामाटा (पारा के उच्च स्तर वाले मछली के सेवन के कारण होने वाला रोग) जैसे विभिन्न रोगों के प्रसार में वृद्धि हो सकती है, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होती है।

यह सुनिश्चित करने के क्रम में कि पारिस्थितिकी संरक्षण और आर्थिक विकास एक साथ संचालित हो, नदी संरक्षण और जल प्रदूषण से प्रभावी तरीके से निपटना चाहिए। इसमें एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETF), सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STF) का उपयोग, जैविक कृषि का अंगीकरण, उचित जल निकासी, धोबी घाटों पर प्रतिबंध, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा प्रदान करना तथा नदी प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके दुष्प्रभावों के संबंध में जागरूकता प्रसार संबंधी पहले आयोजित करने जैसे उपाय शामिल हैं।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.