अफ्रीका और एशिया में विउपनिवेशीकरण

प्रश्न: अफ्रीका और एशिया में विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया की तुलना करते हुए, व्याख्या कीजिए कि स्वतंत्रता प्राप्त करने मे अफ्रीकी देशों को अधिक समय क्यों लगा?

दृष्टिकोण:

  • विउपनिवेशीकरण के संक्षिप्त विवरण के साथ उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • एशिया और अफ्रीका के विउपनिवेशीकरण प्रतिरूपों में अंतर पर चर्चा कीजिए।
  • एशिया की तुलना में अफ्रीका का विउपनिवेशीकरण बाद में घटित क्यों हुआ, कारण स्पष्ट कीजिए।
  • अफ्रीका में समकालीन स्थिति का वर्णन करते हुए निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर:

विउपनिवेशीकरण से आशय उस प्रक्रिया से है जिसके तहत औपनिवेशिक शक्तियाँ अपने क्षेत्रों के संस्थागत और कानूनी नियंत्रण को स्थानीय रूप से अवस्थित, औपचारिक रूप से संप्रभु, राष्ट्र-राज्यों को हस्तांतरित करती हैं। वर्ष 1945 और 1960 के मध्य, एशिया और अफ्रीका में लगभग तीन दर्जन नए देशों ने अपने यूरोपीय औपनिवेशिक शासकों से स्वायत्तता या पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की।

अफ्रीका और एशिया का विउपनिवेशीकरण 

  • वर्ष 1945 में एशिया में विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के समय, वर्ष 1945 में जापान ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस दौरान एशिया के कई राष्ट्रवादी आंदोलन अपनी चरम अवस्था पर पहुंच गए थे। फ्रांसीसी, डच, ब्रिटिश और अमेरिकियों ने अपने पूर्व उपनिवेशों को पुनः उपनिवेश बनाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे राष्ट्रवादियों के दबाव को सहन नहीं कर सके।
  • हालाँकि, एशिया की तुलना में अफ्रीका में विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया अधिक लंबी अवधि वर्ष 1990 तक चली। वर्ष 1950 से 1959 के मध्य, 2,00,000 से अधिक अफ्रीकी लोगों के बलिदान के पश्चात् छह अफ्रीकी देशों को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। 1960 के दशक में व्यापक जन समर्थन के साथ ब्रिटिश, फ्रांसीसी और बेल्जियम के औपनिवेशिक साम्राज्यों का विघटन आरंभ हुआ। 1970 के दशक के मध्य में, अफ्रीका में पुर्तगाली साम्राज्य का पतन हो गया। 1990 के दशक के आरंभ में रोडेशिया और नामीबिया की स्वतंत्रता के साथ ही विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया समाप्त हो गई।

अफ्रीकी विउपनिवेशीकरण में विलम्ब के कारण:

  • एशिया की तुलना में अफ्रीकी महाद्वीप भविष्य में बस्तियां स्थापित करने के लिए कच्चे माल, खनिज संसाधनों, श्रम और स्थलीय क्षेत्र के संबंध में अधिक संपन्न था। परिणामस्वरूप, औपनिवेशिक शक्तियों ने यथासंभव लंबे समय तक अधिकार बनाए रखने का प्रयत्न किया।
  • एशिया में स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी आंदोलनों का आरंभ शीघ्र हो गया था, जबकि कई अफ्रीकी देशों में इस तरह के आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात आरंभ हुए।
  • एशियाई महाद्वीप में आधुनिक शिक्षा का आगमन शीघ्र हआ, जिसने 19वीं शताब्दी के आरम्भ के साथ नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग के लिए बुद्धिजीवियों को प्रेरित किया। परिणामस्वरूप औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीकी महाद्वीप में आधुनिक शिक्षा के आरम्भ में जानबूझकर विलंब किया।
  • यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका के स्थानीय लोगों के पहचान को ध्यान में रखे बिना अफ्रीका का विभाजन किया जिसके परिणामस्वरुप जनजातीय विभाजन और घृणा में वृद्धि हुई। उनमें आपसी विश्वास की कमी थी और एक साझा शत्रुउपनिवेशवाद के प्रति संपूर्ण अफ्रीकी एकता का अभाव था।
  • श्वेत उपनिवेशवादियों द्वारा अफ्रीकी लोगों के सदियों पुराने दास-व्यापार के कारण नस्लवादी दमन (रंगभेद के रूप में) अत्यधिक प्रबल था, जिसे दीर्घकालीन संघर्ष के पश्चात ही समाप्त किया जा सकता था।
  • अफ्रीका में, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकार क्षेत्रों पर सोवियत प्रभाव का भय था, जिसने अफ्रीकी देशों के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न की। पश्चिमी शक्तियों ने अफ्रीकी स्वतंत्रता को शीत युद्ध के परिप्रेक्ष्य में देखा, जिसने अफ्रीकी नेताओं को पश्चिम-समर्थक या पूर्व-समर्थक बना दिया। अतः, वहां स्वीकार्य मध्यम मार्ग की अत्यल्प संभावना थी।
  • जनसंख्या के नृजातीय एवं उप-राष्ट्रीय वितरण को ध्यान में रखे बिना अफ्रीका महाद्वीप का अत्यधिक विभाजन (balcanization) किया गया। जिसके परिणामस्वरूप स्वतंत्रता के पश्चात् भी अफ्रीका में संघर्ष निरंतर बना रहा और इसके परिणाम आज भी नव-उदारवादी संघर्ष के रूप में परिलक्षित होते हैं।

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