हिमालय का संक्षिप्त वर्णन : लाखों वर्षों से हो रहे इसके निर्माण की व्याख्या
प्रश्न: हिमालय का निर्माण करने वाली पर्वत निर्माण की प्रक्रिया की सचित्र व्याख्या करते हुए, सविस्तार वर्णन कीजिए कि प्रायः इन्हें क्यों युवा और अशांत पर्वतों के रूप में संदर्भित किया जाता है। (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- हिमालय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- लाखों वर्षों से हो रहे इसके निर्माण की व्याख्या कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि क्यों इन्हें युवा और अशांत पर्वतों के रूप में संदर्भित किया जाता है।
उत्तर
हिमालय विश्व के सर्वाधिक ऊंचे और विषम पर्वतीय तंत्रों में से एक है। भारत की उत्तरी सीमाओं के साथ, ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक विस्तृत हैं।
225 मिलियन वर्ष पूर्व भारत एक विशाल द्वीप था जो एक अति विस्तृत महासागर में ऑस्ट्रेलियाई तट पर अवस्थित था। टेथिस सागर इसे एशिया से अलग करता था। तत्पश्चात लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व जब वृहद् महाद्वीप पैंजिया में विघटन आरंभ हुआ तो विवर्तनिकी प्लेट संचलन के कारण भारत का विस्थापन उत्तर दिशा में एशिया की ओर होने लगा।
80 मिलियन वर्ष पूर्व भारत एशियाई महाद्वीप से 6,400 किमी दक्षिण में अवस्थित था, किन्तु यह प्रति वर्ष 9-16 से.मी. की दर से इसकी ओर बढ़ रहा था। इसी समय टेथिस सागर के नितल का उत्तर की ओर एशिया महाद्वीप के नीचे क्षेपण आरंभ हो गया और यह प्लेट सीमांत, वर्तमान एंडीज पर्वत श्रृंखला के समान एक महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण सीमान्त बन गया।
कालांतर में महासागर के भारतीय सीमान्त पर जमी अवसादों की मोटी परत का विस्थापन होकर यूरेशियाई महाद्वीप पर निक्षेपण हुआ जिसे एक अभिवृद्धि उभार (accretionary wedge) के रूप में जाना जाता है। इसी निक्षेपित अवसाद पर संपीडनात्मक बलों के प्रभाव से वर्तमान हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है।
लगभग 40-50 मिलियन वर्ष पूर्व भारतीय महाद्वीपीय प्लेट के उत्तर दिशा में विस्थापन की दर प्रति वर्ष 4-6 सेमी तक मंद हो गई। इस मंदता की व्याख्या यूरेशियाई और भारतीय महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य टकराव के आरंभ होने, पूर्व टेथिस सागर के भरने तथा हिमालयी उत्थान के आरंभ के रूप में की गयी है।
यूरेशियाई प्लेट आंशिक रूप से मुड़कर भारतीय प्लेट पर आरोहित हो गयी, लेकिन निम्न घनत्व / उच्च उत्प्लावकता के कारण दोनों में से किसी भी महाद्वीपीय प्लेट का क्षेपण नहीं हो सका। इससे संपीड़नात्मक बलों के कारण वलन और भ्रंशन के परिणामस्वरूप महाद्वीपीय क्रस्ट की मोटाई बढ़ने से हिमालय और तिब्बत के पठार का उत्थान हुआ। महाद्वीपीय क्रस्ट की मोटाई से इस क्षेत्र में ज्वालामुखीय सक्रियता की समाप्ति हो गयी क्योंकि ऊर्ध्वाधर गति करने वाला मैग्मा सतह पर पहुंचने से पूर्व ही ठोस हो जाता है।
हालाँकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिमालय का गठन एकल पर्वत श्रृंखला के रूप में नहीं हुआ है बल्कि यह लगभग समानांतर रूप से विस्तृत तीन पर्वत श्रेणियों के रूप में विकसित हुआ है। माना जाता है कि इनका उत्थान एक-दूसरे के पश्चात तीन अलग-अलग चरणों में हुआ है। महान हिमालय के गठन के पश्चात, द्वितीय चरण में मध्य हिमालय का गठन लगभग 25-30 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ। हिमालय पर्वत निर्माण के अंतिम चरण में शिवालिक का निर्माण हुआ।
वर्तमान में हिमालय का प्रति वर्ष 1 सेमी से अधिक की दर से उत्थान हो रहा है क्योंकि भारतीय प्रायद्वीप निरंतर उत्तर की ओर विस्थापित हो रहा है, जो वर्तमान में इस क्षेत्र में छिछले केंद्र के भूकंप की घटनाओं की व्याख्या करता है। हालांकि, अपक्षय और अपरदन बलों द्वारा हिमालय के निम्नीकरण की प्रक्रिया भी लगभग उसी समान दर पर घटित हो रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिमालय अभी भी निर्माण की प्रक्रिया में हैं। यही कारण है कि हिमालय को युवा और अशांत माना जाता है।
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