खाद्य प्रसंस्करण उद्योग : महत्व और इस उद्योग की स्थिति
प्रश्न: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विकास से समावेशी विकास और खाद्य सुरक्षा के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।चर्चा कीजिए। साथ ही, खाद्य प्रसंकरण क्षेत्रक में भारत को प्राप्त प्रतिस्पर्धात्मक लाभ का भी विवरण दीजिए।
दृष्टिकोण
- भारत में विकसित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के महत्व और इस उद्योग की स्थिति का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- चर्चा कीजिए कि किस प्रकार खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में वृद्धि समावेशी विकास के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के दोहरे-उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करेगी।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत द्वारा प्राप्त प्रतिस्पर्धात्मक लाभों पर प्रकाश डालिए तथा आगे की राह सुझाइए।
उत्तर
एक सुविकसित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार, अपव्यय में कमी, मूल्य संवर्द्धन को सुनिश्चित करने, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने तथा रोजगार के अवसरों के साथ निर्यात आय का सृजन करने में सहायता करता है। भारतीय FPI का विनिर्माण और कृषि क्षेत्र में सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) का लगभग क्रमशः 8.80 और 8.39 प्रतिशत, तथा भारत के निर्यातों में 13 प्रतिशत और कुल औद्योगिक निवेश में 6 प्रतिशत का योगदान रहा है।
यह निम्नलिखित प्रकार से समावेशी विकास तथा खाद्य सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों का भी समाधान करता है: FPI एवं समावेशी विकास
- श्रम गहन: निवेशित पूंजी की प्रत्येक इकाई उत्पादन के उच्च स्तर को बनाए रखते हुए अन्य उद्योगों की तुलना में सर्वाधिक संख्या में व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है।
- न्यून कौशल संबंधी अवरोध: यह अर्द्ध -कुशल और कम कुशल व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं एवं अन्य कमजोर वर्गों के सदस्यों, के लिए रोजगार के अवसरों का सृजन करता है।
- सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम(MSME) की संवृद्धि हेतु महत्वपूर्ण: इस क्षेत्र में संचालित अधिकांश कारखाने सूक्ष्म और लघु उद्यमों से संबंधित हैं। इस क्षेत्रक को अधिक कर्मचारियों के साथ-साथ न्यून पूंजी एवं कम उपकरणों की आवश्यकता होती है।
- स्थानीय किस्मों का संरक्षण: यह स्थानीय और पारंपरिक प्रसंस्कृत खाद्य किस्मों को प्रोत्साहित करता है, जो ई-कॉमर्स की सहायता से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक अपनी पहुंच स्थापित कर सकते हैं।
- उच्च आय: कृषकों की उपज को प्रत्यक्ष रूप से उद्योग द्वारा क्रय किए जाने के कारण यह उनके लिए उच्च आय सुनिश्चित करता है। पूंजी की कम लागत समाज के आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने में सक्षम बनाती है।
- ग्रामीण अवसंरचना का विकास: चूंकि सरकार द्वारा इस क्षेत्रक में स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100% FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) की स्वीकृति प्रदान की गई है, इसलिए यह क्षेत्र एक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित हो गया है। साथ ही इसने ग्रामीण अवसंरचना के विकास में भी वृद्धि की है।
FPI और खाद्य सुरक्षा:
- विशिष्ट भारतीय मांगों की पूर्ति करना: FPI उत्पादक से उपभोक्ता के मध्य प्रथम संगठित संबंध स्थापित करता है, जो भारतीय बाजारों की विशिष्ट मांगों जैसे ‘ताजा’ खाद्य पदार्थों को वरीयता, खाद्य पदार्थों की उच्च स्थानीय उपलब्धता तथा मूल्य-श्रृंखला संगठन के न्यूनतम चरणों की सुनिश्चितता आदि की पूर्ति करता है।
- परिवर्तित होती आहार संबंधी आदतों की पूर्ति करना: जनसांख्यिकी और आय स्तर में परिवर्तन से कुल ऊर्जा उपभोग स्तर में वृद्धि होती है। भारत का खाद्य मिश्रण अनाज एवं दालों से डेयरी फल और सब्जियों, मांस तथा खाद्य तेलों में स्थानांतरित हो गया है। इन परिवर्तित होती आवश्यकताओं की पूर्ति FPI द्वारा की जाती है।
- समग्र एवं पौष्टिक भोजन की सुनिश्चितता: उदाहरणार्थ: फूड फोर्टिफिकेशन का उपयोग सामान्य खाद्य पदार्थों जैसे चावल, दूध, तथा नमक इत्यादि में पोषण की मात्रा में वृद्धि करने हेतु महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों, जैसे कि आयरन, आयोडीन जिंक, विटामिन A एवं D को सम्मिलित करने के लिए किया जा सकता है। ये पोषक तत्व प्रसंस्करण से पूर्व भोजन में मूल रूप से विद्यमान हो भी सकते हैं और नहीं भी।
- अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाएँ: जैसे कि अपशिष्ट में कमी करना, बागवानी उद्योगों की संवृद्धि सुनिश्चित करना, खाद्य बास्केट का विविधीकरण तथा वर्ष-भर भोजन की उपलब्धता को सुनिश्चित करना।
भारत के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ:
- फलों, सब्जियों और मसालों के रूप में कच्चे माल की उपलब्धता,
- कृषक समाज की उपलब्धता और श्रम की कम लागत का होना।
- विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियाँ।
- उपजाऊ मृदा के साथ वृहत कृषि भूमि।
- लंबी तटरेखा और बड़ी संख्या में अंतर्देशीय जलीय निकाय मत्स्य उद्योग एवं उनके निर्यात को बढ़ावा देते हैं।
- पारंपरिक प्रथाएं पशुधन पालन को बढ़ावा देती हैं।
- लोगों की बढ़ती आय के कारण विद्यमान विशाल बाजार।
FPI की क्षमता एवं उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए, सरकार द्वारा कई पहलों जैसे कि मेगा फूड पार्क और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) आदि को प्रारंभ किया गया है, जिनका उद्देश्य फार्म गेट से लेकर रिटेल आउटलेट तक आधुनिक अवसंरचना के निर्माण के साथ कुशल आपूर्ति श्रृंखला का प्रबंधन करना है। सरकार को अपनी पहलों के अतिरिक्त अधिक से अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी का लाभ उठाना चाहिए, विनियामक तंत्र का सरलीकरण करना चाहिए, मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए तथा नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना चाहिए।
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