विश्व के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्रों और देशों का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: विश्व में प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र कौन-से हैं? उदाहरणों के साथ, लौह एवं इस्पात उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • विश्व के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्रों और देशों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • उपयुक्त उदाहरण देते हुए लौह एवं इस्पात उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

लौह एवं इस्पात उद्योग सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूंजीगत वस्तु उद्योगों में से एक है जो अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है

विश्व के प्रमुख लौह अयस्क उत्पादक क्षेत्र:

लौह अयस्क चट्टानों एवं खनिजों के रूप में होते हैं जिनसे धात्विक लौह का आर्थिक रूप से निष्कर्षण किया जा सकता है। चीन विश्व में लौह अयस्क के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता देशों में से एक है जहां मंचूरिया स्थित निक्षेपों का सर्वाधिक सक्रिय रूप में खनन किया जा रहा है।

इसके पश्चात ऑस्ट्रेलिया (माउंट गोल्ड-वर्थ, माउंट व्हेलबैक) ब्राजील (काराजास लौह अयस्क भंडार), भारत (मयूरभंज, बाबा बूदनगिरी), रूस (यूराल पर्वत, तुला क्षेत्र), यूक्रेन (लिपेटस्क, कर्च प्रायद्वीप), दक्षिण अफ्रीका (ट्रांसवाल), संयुक्त राज्य (लेक सुपीरियर ,पेंसिल्वेनिया), कनाडा, ईरान, स्वीडन, कज़ाखस्तान, वेनेजुएला, मेक्सिको और मॉरिटीयेनिया आदि का स्थान है।

लौह एवं इस्पात उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक:

कच्चा माल: अधिकांश बड़े एकीकृत इस्पात संयंत्र कच्चे माल के स्रोत के समीप अवस्थित होते हैं, क्योंकि वे अधिक मात्रा में वजनी तथा भार-ह्रास वाले कच्चे माल का उपयोग करते हैं।

लौह अयस्क आधारित अवस्थिति वाले उद्योगों में लॉरेन (फ्रांस), डुलुथ (USA), विशाखापत्तनम (भारत) एवं ब्रिटेन में कॉर्बी आदि सम्मिलित हैं। कोयला आधारित संयंत्र अधिकांशतः रूर घाटी (जर्मनी), न्यू कैसल (ब्रिटेन), पिट्सबर्ग (USA) और बोकारो (भारत) में अवस्थित हैं।

वास्तव में, लौह अयस्क क्षेत्र और कोयले के उत्पादन क्षेत्र एक द्वि-दिशात्मक संबंध को साझा करते हैं, क्योंकि कोयले को लौह अयस्क क्षेत्रों में ले जाने के पश्चात, रेल के डिब्बों को खाली लौटाने के बजाय उस क्षेत्र से कोयला उत्पादक क्षेत्रों की ओर लौह अयस्क का परिवहन किया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में पिट्सबर्ग-सुपीरियर झील, भारत में बोकारोराउरकेला इत्यादि।

बाजार: भारी और वजनी पदार्थों के कारण आने वाली उच्च परिवहन लागत को कम करने के लिए, संयंत्रों को (विशेष रूप से छोटे इस्पात संयंत्रों को) बाजार के समीप स्थापित किया जाता है जैसा कि महाराष्ट्र में देखा गया है। इसके अतिरिक्त ‘टोक्योयोकोहामा’ और ‘ओसाका-कोबे-हिमेजी’ लौह इस्पात क्षेत्र की अवस्थिति बाजार आधारित है।

पूंजी: लौह एवं इस्पात उद्योग एक पूंजी गहन उद्योग है। पूंजी की आवश्यकता को या तो बड़े निगमों या सरकार तथा अन्य वित्तीय एजेंसियों द्वारा पूरा किया जाता है।

श्रम: सस्ते श्रम की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए भारत के अधिकांश संयंत्र जैसे- ओडिशा में राउरकेला संयंत्र, छत्तीसगढ़ में भिलाई इस्पात संयंत्र छोटा नागपुर क्षेत्र में अवस्थित हैं।

विद्युत्: विद्युत् की उपलब्धता (विशेष रूप से जल विद्युत) तथा शीतलन के लिए जल की उपलब्धता भी एक निर्णायक कारक है। उदाहरण के लिए दामोदर नदी के किनारे बोकारो इस्पात संयंत्र, भद्रावती नदी के समीप विश्वेश्वरैया लौह-इस्पात इस्पात संयंत्र आदि।

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