उत्तर प्रदेश के लोकगीतों ने सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ ऐतिहासिक तथ्यों को भी उकेरा है। सोदाहरण समझाइए?
उत्तर की संरचनाः
भूमिका:
- संक्षेप में ‘लोकगीत’ को स्पष्ट करें और इसमें निहित सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर चर्चा करें।
मुख्य भाग:
- विभिन्न लोक गीतों का उदाहरण देते हुए उसमें निहित सांस्कृतिक परम्पराओं का वर्णन करें।
- लोकगीतों में निहित ऐतिहासिक तथ्यों को उदाहरण सहित बताएँ।
निष्कर्ष:
- लोकगीतों के महत्व को सांस्कृतिक समरसता और अलिखित ऐतिहासिक स्रोत के रूप में रखें।
उत्तर
भूमिकाः
लोक में प्रचलित, लोक (सामान्य) द्वारा रचित और लोक-विषयक गीत, लोकगीत कहलाते हैं। यह शास्त्रीयता बन्धन से मुक्त सामान्य लोगों की सहज संगीतमय अभिव्यक्ति होती है। जिसमें सामान्य सांस्कृतिक तत्वों (पर्व विवाह, संस्कार इत्यादि) के साथ ऐतिहासिक तथ्यों का वर्णन होता है।
मुख्य भागः
लोक गीतों की विषयवस्तु सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक ज्यादा होती हैं जिनको समाज स्वीकार करता है और बार मनोरंजन का साधन बनाता है।
सांस्कृतिक विषयवस्तु
उत्तर प्रदेश में विभिन्न उत्सवों, त्यौहारों, मेलों एवं संस्कारों के समय संबंधित घटनाओं को लोकगतों के माध्यम से संगीतमय रूप से प्रस्तुति किया जाता रहा है। ऐसे गीतों में सांस्कृतिक परम्पराओं के महत्व को उकेरा जाता है, जैसे
- सोहरः जन्मोत्सव के समय होने वाले परम्परागत संस्कारों का वर्णन गीतों के माध्यम से लोकगीतों में होता है।
- कजरी: यह सावन के महीने में गाया जाने वाला महत्वपूर्ण लोकगीत है जो महिलाओं द्वारा प्रस्तुत होता है। इसमें वर्षा ऋतु के सांस्कृतिक महत्व को उकेरा जाता है। \
- फगुआ: यह एक प्रकार का ऋतुगीत है जो फाल्गुन पूर्णिमा से चैत्य पूर्णिमा के बीच गाया जाता है। इन गीतों में प्रेम की अनुभूति को व्यक्त किया जाता है। इसे चैता भी कहा जाता है।
- रसियाः यह ब्रजभूमि का प्रसिद्ध लोकगायन है। इसमें भगवान कृष्ण की उपासना विभिन्न तरीकों से की जाती है। इन गीतों में आध्यात्मिक एवं भौतिक भक्ति भावों को प्रदर्शित किया जाता है।
- पचरा: यह एक देवी गीत है जो माँ दुर्गा की उपासना के लिए लोकभाषा में गाया जाता है। नवरात्रि के पर्व पर इसका विशेष महत्व होता है।
- विवाह गीतः हिन्दू धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है। विवाह के अवसर पर विवाह की प्रत्येक प्रक्रिया पर लोकभाषा में गीत प्रस्तुत किया जाता है।
ऐतिहासिक विषयवस्तु
उत्तर प्रदेश में स्थानीय स्तर पर घटित ऐतिहासिक घटनाओं को लोकभाषा में गीत के रूप में प्रस्तुत किय जाता रहा है। सामान्यतः इसमें श्रृंगार रस एवं वीर रस का समावेश होता है। जैसे मुगलों एवं राजपूतों के बीच हुए युद्धों पर आध रित गीत तथा किसी विशेष स्थानीय घटना पर आधारित गीत जिसका ऐतिहासिक महत्व होता है। इसमें बिरहा तथा आल्हा दो लोकगीत प्रसिद्ध हैं।
- बिरहा: यह पूर्वांचल की प्रसिद्ध लोकगायन परम्परा है। इसमें गायक द्वारा भोजपुरी भाषा में स्थानीय क्षेत्र में घटी किसी घटना का वृतांत गीत रूप में गाया जाता है।
- आल्हा: यह बुन्दलेखंड क्षेत्र की प्रसिद्ध वीर रस कथा ‘आल्हा’ के लयबद्ध गायन की प्रसिद्ध शैली है। इस गायन में महोबा के दो वीर भाईयों आल्हा और ऊदल की वीरता का वर्णन है।
निष्कर्षः
उत्तर प्रदेश में ‘लोक गीतों’ के माध्यम से सांस्कृतिक परम्पराओं तथा ऐतिहासिक तथ्यों का अनुरक्षण, संक्षण एवं संवर्द्धन हुआ है। प्रदेश की विविधपूर्ण संस्कृति के प्रवाह को इन गीतों के माध्यम से सामासिक रूप दिया गया है।