तापमान के ऊर्ध्वाधर और अक्षांशीय (क्षैतिज) वितरण

प्रश्न: महासागरीय जल में तापमान के ऊधिर एवं अक्षांशीय वितरण के साथ ही इसके लिए उत्तरदायी कारकों को उदाहरण सहित समझाइए।

दृष्टिकोण:

  • संक्षिप्त परिचय देते हुए, महासागरीय जल क्षेत्रों में तापमान के ऊर्ध्वाधर और अक्षांशीय (क्षैतिज) वितरण पर चर्चा कीजिए।
  • उपर्युक्त वितरण हेतु उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
  • जहाँ भी आवश्यक हो उपयुक्त उदाहरणों का उपयोग कीजिए।

उत्तरः

महासागरों के तापमान का अध्ययन जल की वृहद मात्रा के संचलन, समुद्री जीवों के वितरण, लवणता जैसे अन्य गुणों का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण है। महासागरीय जल के तापमान की इस वितरण पद्धति का दो प्रकार से अध्ययन किया जा सकता है-

ऊर्ध्वाधर वितरण (पृष्ठ जल से निम्न तल तक):

महासागरीय जल के ताप-गहराई प्रोफ़ाइल से ज्ञात होता है कि बढ़ती हुई गहराई के साथ तापमान किस प्रकार घटता है। मध्य तथा निम्न अक्षांशों पर महासागरों की तापमान संरचना को पृष्ठ से तल तक त्रि-स्तरीय प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

  • प्रथम परत, 20 डिग्री से 25 डिग्री सेल्सियस के मध्य के तापमान के साथ उष्ण महासागरीय जल की शीर्ष परत को प्रदर्शित करती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत, यह परत वर्ष भर विद्यमान रहती है, लेकिन मध्य अक्षांश में, यह केवल ग्रीष्मऋतु के दौरान विकसित होती है।
  • ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) परत नामक द्वितीय परत, प्रथम परत के नीचे स्थित होती है और इसमें तापमान में तीव्र ह्रास की विशेषता पाई जाती है।
  • तृतीय परत अत्यधिक ठंडी होती है और इसका विस्तार गहरे समुद्र तल तक होता है। यहाँ तापमान लगभग स्थिर हो जाता है।

ध्रुवीय क्षेत्रों में पृष्ठीय जल का तापमान 0° डिग्री सेल्सियस के निकट होता है और इसलिए गहराई के साथ तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है।

क्षैतिज वितरण (पृष्ठीय जल का तापमान):

  • महासागरों के पृष्ठीय जल का औसत तापमान लगभग 27 डिग्री सेल्सियस होता है और यह भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर क्रमशः घटता जाता है।
  • अक्षांशों में वृद्धि के साथ तापमान में ह्रास की दर सामान्यतः 0.5 डिग्री सेल्सियस प्रति अक्षांश होती है (चित्र)।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित महासागरों में दक्षिणी गोलार्द्ध की तुलना में अपेक्षाकृत उच्च तापमान दर्ज किया जाता है।
  • क्षैतिज तापमान वितरण को समतापी रेखाओं, अर्थात् एकसमान तापमान के स्थानों को जोड़ने वाली रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। जब तापांतर उच्च होता है तब समताप रेखाओं के मध्य अंतराल कम होता है और इसकी विपरीत स्थिति होने पर अंतराल अधिक होता है।

महासागरीय जल के तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं-

  • अक्षांश: पृष्ठीय जल का तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर घटता है, क्योंकि ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्यातप की मात्रा कम होती जाती है।
  • स्थल और जल का असमान वितरण: उत्तरी गोलार्द्ध के महासागर, दक्षिणी गोलार्द्ध के महासागरों की तुलना में भूमि के साथ अधिक विस्तृत रूप मे संपर्क में होने के कारण अधिक ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
  • प्रचलित पवन: भूमि से महासागरों की ओर प्रवाहित होने वाली पवनें पृष्ठीय जल को तट से दूर ले जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप नीचे से ठंडे जल का उत्प्रवाह होता है। इसके विपरीत, अभितटीय पवनें (महासागरों से तट की ओर प्रवाहित होने वाली पवनें) उष्ण जल को तट के निकट लाती हैं जिससे तापमान बढ़ जाता है।
  • महासागरीय धाराएँ: उष्ण महासागरीय धाराएँ ठंडे क्षेत्रों में तापमान को बढ़ा देती हैं जबकि शीत धाराएँ, उष्ण महासागरीय क्षेत्रों में तापमान को कम कर देती हैं। उदाहरण के लिए: गल्फ स्ट्रीम (उष्ण धारा) उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के निकट तापमान में वृद्धि कर देती है।
  • परिवेष्ठित(Enclosed) समुद्र: निम्न अक्षांशों में परिवेष्ठित समुद्र खुले समुद्रों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक तापमान दर्ज करते हैं; जबकि उच्च अक्षांशों में परिवेष्ठित समुद्रों का तापमान खुले समुद्रों की तुलना में कम होता है।

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