सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का संक्षिप्त परिचय : अधिनियम के अप्रभावी कार्यान्वयन के कारणों सहित चुनौतियां
प्रश्न: पारित होने के एक दशक से भी अधिक समय बाद, RTI अधिनियम के कार्यान्वयन में काफी कुछ वांछित है। टिप्पणी कीजिए। RTI अधिनियम में संशोधन के हालिया प्रस्तावों से जुड़े मुद्दों की भी चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- अधिनियम के अप्रभावी कार्यान्वयन के कारणों सहित चुनौतियों को रेखांकित कीजिए।
- RTI अधिनियम हेतु हालिया प्रस्तावित संशोधन का उल्लेख कीजिए।
- विश्लेषण कीजिए कि इस संशोधन में अधिनियम को कमज़ोर करने की क्षमता है या नहीं।
- अधिनियम के महत्व पर बल देते हुए निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 नागरिकों को ‘सार्वजनिक प्राधिकरणों’ के नियंत्रण में मौजूद सूचनाओं तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है। RTI असेसमेन्ट एंड एनालिसिस ग्रुप (RAAG) की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक वर्ष इस अधिनियम के तहत 4-5 मिलियन आवेदन दर्ज किए जाते हैं।
हालांकि, अधिनियम के समक्ष कुछ चुनौतियां विद्यमान है:
- राष्ट्रीय और राज्य, दोनों स्तरों पर लंबित मामलों की अत्यधिक संख्या।
- अर्थदंड का आरोपण न होना – 20 आयोगों द्वारा प्रदत्त आंकड़ों से पता चलता है कि निपटाए गए मामलों में केवल 2.4% मामलों में जुर्माना आरोपित किया गया था।
- अनुचित कार्यों के प्रकटीकरण की प्रक्रिया में अब तक 40 से अधिक RTI कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
- सूचनाओं के प्रकाशन में सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा की गई लापरवाही।
उपर्युक्त चुनौतियों के लिए उत्तरदायी कारणों में निम्न शामिल हैं:
- नौकरशाही के तहत रिकॉर्ड संरक्षण की निम्नस्तरीय कार्यप्रणाली।
- सूचना आयोग के सुचारु रूप से कार्य करने हेतु आधारभूत संरचना और कर्मचारियों की कमी।
- व्हिसल-ब्लोअर संरक्षण अधिनियम जैसे अनुपूरक कानूनों का कमज़ोर होना।
- सिविल सेवकों को अधिनियम को लागू करने के संबंध में दिया गया अपर्याप्त प्रशिक्षण।
- सूचना आयुक्तों की (ICs) विलंबित नियुक्तियां।
RTI अधिनियम में संशोधन संबंधी प्रस्ताव:
हाल ही में, एक संशोधन विधेयक द्वारा केंद्र और राज्यों, दोनों के मुख्य सूचना आयुक्तों (ICs) के “कार्यकाल सहित भत्ते तथा अन्य नियमों एवं शर्तों को परिवर्तित करने की शक्ति केंद्र सरकार को प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, ICs के वेतन RTI कानून द्वारा स्वयं ही निर्धारित किये गए हैं।
प्रस्तावित संशोधन विधेयक RTI अधिनियम की मूल भावना को जोखिम में डाल सकता है क्योंकि
- यह ICs की निर्णय निर्माण की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- वर्तमान में, राज्य सूचना आयुक्तों (ICs) पर केंद्र सरकार का किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। संशोधन से सरकार सदस्यों को भिन्न-भिन्न वेतनों पर नियुक्त कर सकेगी। यह सहकारी संघवाद की भावना के विरूद्ध है।
- नौकरशाही में, ग्रेड के अतिरिक्त, वेतनमान (pay bracket) का भी महत्व है। वेतन में किए जाने वाले परिवर्तन में इतनी क्षमता है कि यह सूचना आयुक्तों के कार्यालय को ‘मात्र एक कागजी शेर’ के रूप में परिवर्तित कर सकता है।
प्रस्तावित संशोधन के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि ICs को संवैधानिक पद के तुल्य नहीं किया जा सकता है और इस प्रकार उनके कार्यकाल और वेतन को पृथक रूप से निर्धारित किया जाना चाहिए।
तथापि, इस अधिनियम में किसी भी प्रकार का परिवर्तन लाने हेतु संशोधन से पहले पूर्व विधायी परामर्श अधिक प्रभावी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया होगी। RTI संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के आदर्श पर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को विकसित एवं सुनिश्चित करने का एक तंत्र है। इसके सुदृढ़ीकरण के लिए सभी संभव प्रयास किए जाने चाहिए।
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