आधुनिक भारत टेस्ट 6
आधुनिक भारत टेस्ट 6
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इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न एन.सी.ई.आर.टी. पर आधारित है|
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Question 1 of 20
1. Question
1 points1896 में विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका प्रमुख उद्देश्य था-
Correct
व्याख्याः
मानवतावादी राहत-कार्य तथा समाज कल्याण के कार्य को करने के लिये 1896 में विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। देश के विभिन्न भागों में इस मिशन की अनेक शाखाएँ थीं और इसने स्कूल, अस्पताल, दवाखाने, अनाथालय, पुस्तकालय आदि खोलकर सामाज सेवा के कार्य किये। इस तरह इसका ज़ोर व्यक्ति की मुक्ति नहीं बल्कि सामाजिक कल्याण और समाज सेवा पर था।
Incorrect
व्याख्याः
मानवतावादी राहत-कार्य तथा समाज कल्याण के कार्य को करने के लिये 1896 में विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। देश के विभिन्न भागों में इस मिशन की अनेक शाखाएँ थीं और इसने स्कूल, अस्पताल, दवाखाने, अनाथालय, पुस्तकालय आदि खोलकर सामाज सेवा के कार्य किये। इस तरह इसका ज़ोर व्यक्ति की मुक्ति नहीं बल्कि सामाजिक कल्याण और समाज सेवा पर था।
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Question 2 of 20
2. Question
1 pointsविभिन्न संस्था या संगठनों तथा उनके संस्थापकों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं?1. आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती
2. थियोसोफिकल सोसायटी – एनी बेसेंट
3. मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज – सैयद अहमद खान
कूटःCorrect
व्याख्याः
संस्था/संगठन संस्थापक
1. आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती
2. थियोसोफिकल सोसायटी – मैडम एच.पी. ब्लावात्सकी तथा कर्नल एच.एस.ओलकाट
3. मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल – सैयद अहमद खान कॉलेजIncorrect
व्याख्याः
संस्था/संगठन संस्थापक
1. आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती
2. थियोसोफिकल सोसायटी – मैडम एच.पी. ब्लावात्सकी तथा कर्नल एच.एस.ओलकाट
3. मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल – सैयद अहमद खान कॉलेज -
Question 3 of 20
3. Question
1 pointsस्वामी दयानंद सरस्वती के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
व्याख्याः
कथन (a) असत्य है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने उत्तर भारत में हिंदू धर्म के सुधार हेतु 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। उनका मानना था कि तमाम झूठी शिक्षाओं से भरे पुराणों की सहायता से स्वार्थी व अज्ञानी पुरोहितों ने हिंदू धर्म को भ्रष्ट कर रखा था। दयानंद ने वेदों से प्रेरणा प्राप्त की तथा ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने बाद के उन सभी धार्मिक विचारों को रद्द कर दिया जो वेदों से मेल नहीं खाते थे।Incorrect
व्याख्याः
कथन (a) असत्य है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने उत्तर भारत में हिंदू धर्म के सुधार हेतु 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। उनका मानना था कि तमाम झूठी शिक्षाओं से भरे पुराणों की सहायता से स्वार्थी व अज्ञानी पुरोहितों ने हिंदू धर्म को भ्रष्ट कर रखा था। दयानंद ने वेदों से प्रेरणा प्राप्त की तथा ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने बाद के उन सभी धार्मिक विचारों को रद्द कर दिया जो वेदों से मेल नहीं खाते थे। -
Question 4 of 20
4. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. भारत में थियोसोफिकल सोसायटी का मुख्यालय अदियार में था।
2. थियोसोफिस्टों ने हिंदुत्व, जरथुस्त्र मत तथा बौद्ध मत जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्स्थापित तथा मज़बूत करने का प्रयास किया।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं।
- थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका में मैडम एच.पी. ब्लावात्सकी तथा कर्नल एच.एस. ओलकाट द्वारा की गई। बाद में ये भारत आ गए तथा 1886 में मद्रास के करीब, अदियार में उन्होंने सोसायटी का मुख्यालय स्थापित किया।
- थियोसोफिस्ट प्रचार करते थे कि हिंदुत्व, जरथुस्त्र मत (पारसी धर्म) तथा बौद्ध मत जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्स्थापित तथा मज़बूत किया जाए। यह पश्चिमी देशों के ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा एक आंदोलन था जो भारतीय धर्मों तथा दार्शनिक परंपरा का महिमामंडन करते थे।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं।
- थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना संयुक्त राज्य अमेरिका में मैडम एच.पी. ब्लावात्सकी तथा कर्नल एच.एस. ओलकाट द्वारा की गई। बाद में ये भारत आ गए तथा 1886 में मद्रास के करीब, अदियार में उन्होंने सोसायटी का मुख्यालय स्थापित किया।
- थियोसोफिस्ट प्रचार करते थे कि हिंदुत्व, जरथुस्त्र मत (पारसी धर्म) तथा बौद्ध मत जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्स्थापित तथा मज़बूत किया जाए। यह पश्चिमी देशों के ऐसे लोगों द्वारा चलाया जा रहा एक आंदोलन था जो भारतीय धर्मों तथा दार्शनिक परंपरा का महिमामंडन करते थे।
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Question 5 of 20
5. Question
1 pointsबनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना किसके द्वारा की गई?
Correct
व्याख्याः भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था बनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना करना जिसे बाद में मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था बनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना करना जिसे बाद में मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।
Incorrect
व्याख्याः भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था बनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना करना जिसे बाद में मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।भारत में श्रीमती एनी बेसेंट के प्रमुख कार्यों में एक था बनारस में केंद्रीय हिंदू विद्यालय की स्थापना करना जिसे बाद में मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया।
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Question 6 of 20
6. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी ने मुसलमानों में धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक प्रश्नों पर विचार विमर्श को बढ़ावा दिया।
2. सैयद अहमद खान द्वारा मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना इस्लामिक धर्म तथा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने के लिये किया गया।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। मुसलमानों में धार्मिक सुधार आंदोलन का आरंभ कुछ देर से हुआ। उच्च वर्गों के मुसलमानों ने पश्चिमी शिक्षा व संस्कृति के संपर्क से बचने की ही कोशिश की। इस दिशा में आरंभ 1863 में मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी ने किया। इस सोसायटी ने आधुनिक विचारों के प्रकाश में धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया तथा पश्चिमी शिक्षा अपनाने के लिये उच्च एवं मध्य वर्गों के मुसलमानों को प्रेरित किया।
- दूसरा कथन असत्य है। सैयद अहमद खान का विश्वास था कि मुसलमानों का धार्मिक और सामाजिक जीवन, पाश्चात्य, वैज्ञानिक ज्ञान और संस्कृति को अपनाकर ही सुधर सकता है। उन्होंने 1875 में अलीगढ़ में मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना, पाश्चात्य विज्ञान तथा संस्कृति का प्रचार करने वाले एक केंद्र के रूप में की। बाद में इस कॉलेज का विकास अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में हुआ।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। मुसलमानों में धार्मिक सुधार आंदोलन का आरंभ कुछ देर से हुआ। उच्च वर्गों के मुसलमानों ने पश्चिमी शिक्षा व संस्कृति के संपर्क से बचने की ही कोशिश की। इस दिशा में आरंभ 1863 में मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी ने किया। इस सोसायटी ने आधुनिक विचारों के प्रकाश में धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श को बढ़ावा दिया तथा पश्चिमी शिक्षा अपनाने के लिये उच्च एवं मध्य वर्गों के मुसलमानों को प्रेरित किया।
- दूसरा कथन असत्य है। सैयद अहमद खान का विश्वास था कि मुसलमानों का धार्मिक और सामाजिक जीवन, पाश्चात्य, वैज्ञानिक ज्ञान और संस्कृति को अपनाकर ही सुधर सकता है। उन्होंने 1875 में अलीगढ़ में मुहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना, पाश्चात्य विज्ञान तथा संस्कृति का प्रचार करने वाले एक केंद्र के रूप में की। बाद में इस कॉलेज का विकास अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में हुआ।
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Question 7 of 20
7. Question
1 pointsरहमानी मज़्दायासन सभा (रिलीजस रिफॉर्म एसोसिएशन) का संबंध किस धर्म में सुधार से संबंधित है?
Correct
व्याख्याः पारसी लोगों में धार्मिक सुधार की शुरुआत बंबई में 19वीं सदी के आरंभ में हुई। 1851 में रहमानी मज़्दायासन सभा (रिलीजस रिफॉर्म एसोसिएशन) का आरंभ नौरोजी फरदूनजी, दादाभाई नौरोजी, एस.एस. बंगाली तथा अन्य लोगों ने किया। इन सभी ने धर्म के क्षेत्र में हावी रूढ़िवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया और स्त्रियों की शिक्षा तथा विवाह और कुल मिलाकर स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के बारे में पारसी सामाजिक रीति-रिवाजों के आधुनिकीकरण का आरंभ किया।
Incorrect
व्याख्याः पारसी लोगों में धार्मिक सुधार की शुरुआत बंबई में 19वीं सदी के आरंभ में हुई। 1851 में रहमानी मज़्दायासन सभा (रिलीजस रिफॉर्म एसोसिएशन) का आरंभ नौरोजी फरदूनजी, दादाभाई नौरोजी, एस.एस. बंगाली तथा अन्य लोगों ने किया। इन सभी ने धर्म के क्षेत्र में हावी रूढ़िवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया और स्त्रियों की शिक्षा तथा विवाह और कुल मिलाकर स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के बारे में पारसी सामाजिक रीति-रिवाजों के आधुनिकीकरण का आरंभ किया।
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Question 8 of 20
8. Question
1 points1920 में पंजाब में शुरू हुए अकाली आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था-
Correct
व्याख्याः सिख लोगों में धार्मिक सुधार का आरंभ 19वीं सदी के अंत में हुआ जब अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई। लेकिन सुधार के प्रयासों को बल 1920 में मिला जब पंजाब में अकाली आंदोलन आरंभ हुआ। अकालियों का मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों के प्रबंध का शुद्धीकरण करना था। इन गुरुद्वारों को भक्त सिखों की ओर से जमीनें और धन दान स्वरूप मिलते थे, परंतु इनका प्रबंध भ्रष्ट तथा स्वार्थी महंतों द्वारा मनमाने ढंग से किया जाता था। अकालियों के नेतृत्व में 1921 में सिख जनता ने इन महंतों तथा इनकी सहायता करने वाली सरकार के खिलाफ एक शक्तिशाली सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया।
Incorrect
व्याख्याः सिख लोगों में धार्मिक सुधार का आरंभ 19वीं सदी के अंत में हुआ जब अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई। लेकिन सुधार के प्रयासों को बल 1920 में मिला जब पंजाब में अकाली आंदोलन आरंभ हुआ। अकालियों का मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों के प्रबंध का शुद्धीकरण करना था। इन गुरुद्वारों को भक्त सिखों की ओर से जमीनें और धन दान स्वरूप मिलते थे, परंतु इनका प्रबंध भ्रष्ट तथा स्वार्थी महंतों द्वारा मनमाने ढंग से किया जाता था। अकालियों के नेतृत्व में 1921 में सिख जनता ने इन महंतों तथा इनकी सहायता करने वाली सरकार के खिलाफ एक शक्तिशाली सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया।
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Question 9 of 20
9. Question
1 points19वीं तथा 20वीं शताब्दी के धार्मिक आंदोलनों के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः1. ये धार्मिक सुधार आंदोलन बुद्धिवाद तथा मानवतावाद के सिद्धांतों पर आधारित थे।
2. इन आंदोलनों ने उभरते हुए मध्यवर्ग तथा आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया।
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। आधुनिक युग के धार्मिक सुधार आंदोलनों की मुख्य बात यह थी कि ये आंदोलन बुद्धिवाद तथा मानवतावाद के सिद्धांतों पर आधारित थे, हालाँकि लोगों को अपनी ओर खींचने के लिये कभी-कभी आस्था तथा प्राचीन ग्रंथों का सहारा भी लेते थे।
- इन धार्मिक आंदोलनों ने उभरते हुए मध्यवर्ग तथा आधुनिक शिक्षा प्राप्त प्रबुद्ध लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया। इन आंदोलनों ने भारतीय धर्मों के कर्मकांडी, अंधविश्वासी, बुद्धिविरोधी तथा पुराणपंथी पक्षों का विरोध किया।
Incorrect
व्याख्याः
- उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। आधुनिक युग के धार्मिक सुधार आंदोलनों की मुख्य बात यह थी कि ये आंदोलन बुद्धिवाद तथा मानवतावाद के सिद्धांतों पर आधारित थे, हालाँकि लोगों को अपनी ओर खींचने के लिये कभी-कभी आस्था तथा प्राचीन ग्रंथों का सहारा भी लेते थे।
- इन धार्मिक आंदोलनों ने उभरते हुए मध्यवर्ग तथा आधुनिक शिक्षा प्राप्त प्रबुद्ध लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया। इन आंदोलनों ने भारतीय धर्मों के कर्मकांडी, अंधविश्वासी, बुद्धिविरोधी तथा पुराणपंथी पक्षों का विरोध किया।
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Question 10 of 20
10. Question
1 pointsधार्मिक सामाजिक सुधार आंदोलन के नकारात्मक पक्षों के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. इन आंदोलनों की पहुँच किसानों तथा नगरों की गरीब जनता तक नहीं थी।
2. इसने मानव बुद्धि तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की श्रेष्ठता के विचार को धक्का पहुँचाया।
3. धर्म में ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देने पर समाज में फूट की प्रवृत्ति बढ़ी।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं। सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन के कुछ नकारात्मक पक्ष भी थे। ये सभी समाज के बहुत छोटे भाग की यानी नगरीय उच्च और मध्य वर्गों की आवश्यकताएँ पूरी करते थे। इनमें से कोई भी बहुसंख्यक किसानों तथा नगरों की गरीब जनता तक नहीं पहुँचा और ये लोग अधिकांशतः परंपरागत रीति-रिवाजों में ही जकड़े रहे। इसका कारण यह था कि ये आंदोलन मूलतः भारतीय समाज के शिक्षित व नगरीय भागों की आकांक्षाओं को ही प्रतिबिंबित करते थे।
- इन आंदोलनों की दूसरी कमी थी पीछे घूमकर अतीत की महानता का गुणगान करना तथा धर्म ग्रंथों को आधार बनाने की प्रवृत्ति थी। यह बात इन आंदोलनों की अपनी सकारात्मक शिक्षाओं की विरोधी बन गई। इससे मानव बुद्धि तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की श्रेष्ठता के विचार को धक्का पहुँचा। इससे नए-नए रूपों में रहस्यवाद तथा नकली वैज्ञानिक चिंतन को बल मिला। अतीत की महानता के गुणगान ने एक झूठे गर्व तथा दंभ को बढ़ावा दिया।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन आंदोलनों से हिंदू, मुसलमान, सिख और पारसी आपसी फूट के शिकार होने लगे। ऊँची तथा नीची जाति के हिन्दुओं में भी दरार पड़ने लगी। अनेक धर्मों वाले एक देश में धर्म पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देने से फूट की प्रवृत्ति बढ़नी स्वाभाविक थी। इसके अलावा हर एक हिंदू सुधारक ने भारतीय अतीत के गुणगान को प्राचीन काल तक ही सीमित रखा। ये सुधारक भारतीय इतिहास के मध्य काल को मूलतः पतन का काल मानते थे। यह विचार अनैतिहासिक ही नहीं था बल्कि सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से हानिकारक भी था।
Incorrect
व्याख्याः
- उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं। सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन के कुछ नकारात्मक पक्ष भी थे। ये सभी समाज के बहुत छोटे भाग की यानी नगरीय उच्च और मध्य वर्गों की आवश्यकताएँ पूरी करते थे। इनमें से कोई भी बहुसंख्यक किसानों तथा नगरों की गरीब जनता तक नहीं पहुँचा और ये लोग अधिकांशतः परंपरागत रीति-रिवाजों में ही जकड़े रहे। इसका कारण यह था कि ये आंदोलन मूलतः भारतीय समाज के शिक्षित व नगरीय भागों की आकांक्षाओं को ही प्रतिबिंबित करते थे।
- इन आंदोलनों की दूसरी कमी थी पीछे घूमकर अतीत की महानता का गुणगान करना तथा धर्म ग्रंथों को आधार बनाने की प्रवृत्ति थी। यह बात इन आंदोलनों की अपनी सकारात्मक शिक्षाओं की विरोधी बन गई। इससे मानव बुद्धि तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण की श्रेष्ठता के विचार को धक्का पहुँचा। इससे नए-नए रूपों में रहस्यवाद तथा नकली वैज्ञानिक चिंतन को बल मिला। अतीत की महानता के गुणगान ने एक झूठे गर्व तथा दंभ को बढ़ावा दिया।
- सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन आंदोलनों से हिंदू, मुसलमान, सिख और पारसी आपसी फूट के शिकार होने लगे। ऊँची तथा नीची जाति के हिन्दुओं में भी दरार पड़ने लगी। अनेक धर्मों वाले एक देश में धर्म पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देने से फूट की प्रवृत्ति बढ़नी स्वाभाविक थी। इसके अलावा हर एक हिंदू सुधारक ने भारतीय अतीत के गुणगान को प्राचीन काल तक ही सीमित रखा। ये सुधारक भारतीय इतिहास के मध्य काल को मूलतः पतन का काल मानते थे। यह विचार अनैतिहासिक ही नहीं था बल्कि सामाजिक-राजनीतिक दृष्टि से हानिकारक भी था।
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Question 11 of 20
11. Question
1 pointsऔपनिवेशिक काल के दौरान किन कारकों ने जाति-प्रथा को कमज़ोर करने का काम किया?1. रेलवे
2. डाक व्यवस्था
3. आधुनिक व्यापार-उद्योग
4. नई शिक्षा प्रणाली
कूटःCorrect
व्याख्याः
- ब्रिटिश शासन ने ऐसी अनेक शक्तियों को जन्म दिया जिन्होंने धीरे-धीरे जाति की जड़ों को कमज़ोर किया। आधुनिक उद्योगों, रेलों व बसों के आरंभ ने तथा बढ़ते नगरीकरण के कारण खासकर शहरों में विभिन्न जातियों के लोगों के बीच संपर्क को अपरिहार्य बना दिया। आधुनिक व्यापार-उद्योग ने आर्थिक कार्यकलाप के नए क्षेत्र सभी के लिये पैदा किये। एक आधुनिक औद्योगिक समाज में जाति और व्यवसाय का पुराना संबंध चलाना कठिन था।
- प्रशासन के क्षेत्र में, अंग्रेज़ों ने कानून के सामने सबकी समानता का सिद्धांत लागू किया, जातिगत पंचायतों से उनके न्यायिक काम छीन लिये गए और प्रशासकीय सेवाओं के दरवाजे सबके लिये खोल दिये गए। इसके अलावा नई शिक्षा प्रणाली पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष थी इसलिये वह मूलतः जातिगत भेदों तथा जातिगत दृष्टिकोण की विरोधी थी।
Incorrect
व्याख्याः
- ब्रिटिश शासन ने ऐसी अनेक शक्तियों को जन्म दिया जिन्होंने धीरे-धीरे जाति की जड़ों को कमज़ोर किया। आधुनिक उद्योगों, रेलों व बसों के आरंभ ने तथा बढ़ते नगरीकरण के कारण खासकर शहरों में विभिन्न जातियों के लोगों के बीच संपर्क को अपरिहार्य बना दिया। आधुनिक व्यापार-उद्योग ने आर्थिक कार्यकलाप के नए क्षेत्र सभी के लिये पैदा किये। एक आधुनिक औद्योगिक समाज में जाति और व्यवसाय का पुराना संबंध चलाना कठिन था।
- प्रशासन के क्षेत्र में, अंग्रेज़ों ने कानून के सामने सबकी समानता का सिद्धांत लागू किया, जातिगत पंचायतों से उनके न्यायिक काम छीन लिये गए और प्रशासकीय सेवाओं के दरवाजे सबके लिये खोल दिये गए। इसके अलावा नई शिक्षा प्रणाली पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष थी इसलिये वह मूलतः जातिगत भेदों तथा जातिगत दृष्टिकोण की विरोधी थी।
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Question 12 of 20
12. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास ने जाति प्रथा को बढ़ावा दिया।
2. गांधीजी ने छुआछूत के खात्मे के लिये आत्म-सम्मान आंदोलन चलाया।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन असत्य है। राष्ट्रीय आंदोलन के विकास ने जाति प्रथा को कमज़ोर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीय आंदोलन उन तमाम संस्थाओं का विरोध था जो भारतीय जनता को बाँटकर रखती थीं। जन-प्रदर्शनों, विशाल जनसभाओं तथा सत्याग्रह के संघर्षों में सबकी भागीदारी ने भी जातिगत चेतना को कमज़ोर बनाया।
- दूसरा कथन भी असत्य है। गांधीजी अपनी सार्वजनिक गतिविधियों में छुआछूत के खात्मे को जीवन भर एक प्रमुख काम मानते रहे। 1932 में उन्होंने इस उद्देश्य से अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की। उनका तर्क था कि हिंदू शास्त्रों में छुआछूत को कोई मान्यता नहीं दी गई है।
- “आत्मसम्मान आंदोलन” दक्षिण भारत में ब्राह्मणों द्वारा लादी गई निर्योग्यताओं का मुकाबला करने के लिये गैर-ब्राह्मणों द्वारा 1920 के दशक में चलाया गया।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन असत्य है। राष्ट्रीय आंदोलन के विकास ने जाति प्रथा को कमज़ोर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। राष्ट्रीय आंदोलन उन तमाम संस्थाओं का विरोध था जो भारतीय जनता को बाँटकर रखती थीं। जन-प्रदर्शनों, विशाल जनसभाओं तथा सत्याग्रह के संघर्षों में सबकी भागीदारी ने भी जातिगत चेतना को कमज़ोर बनाया।
- दूसरा कथन भी असत्य है। गांधीजी अपनी सार्वजनिक गतिविधियों में छुआछूत के खात्मे को जीवन भर एक प्रमुख काम मानते रहे। 1932 में उन्होंने इस उद्देश्य से अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की। उनका तर्क था कि हिंदू शास्त्रों में छुआछूत को कोई मान्यता नहीं दी गई है।
- “आत्मसम्मान आंदोलन” दक्षिण भारत में ब्राह्मणों द्वारा लादी गई निर्योग्यताओं का मुकाबला करने के लिये गैर-ब्राह्मणों द्वारा 1920 के दशक में चलाया गया।
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Question 13 of 20
13. Question
1 points‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ’ की स्थापना किसके द्वारा की गई थी?
Correct
व्याख्याः डॉ.भीमराव अम्बेडकर जो खुद एक अनुसूचित जाति के थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन जातिगत अत्याचार विरोधी संघर्ष को समर्पित कर दिया। इसके लिये उन्होंने ‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ’ की स्थापना की।
Incorrect
व्याख्याः डॉ.भीमराव अम्बेडकर जो खुद एक अनुसूचित जाति के थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन जातिगत अत्याचार विरोधी संघर्ष को समर्पित कर दिया। इसके लिये उन्होंने ‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ’ की स्थापना की।
-
Question 14 of 20
14. Question
1 pointsश्री नारायण गुरु ने जाति-प्रथा के खिलाफ जीवन भर अपना संघर्ष भारत के किस क्षेत्र में चलाया?
Correct
व्याख्याः केरल में श्री नारायण गुरु ने जाति प्रथा के खिलाफ जीवन भर संघर्ष चलाया। उन्होंने ही ‘मानव जाति के लिये एक धर्म, एक जाति और एक ईश्वर’ का प्रसिद्ध नारा दिया।
Incorrect
व्याख्याः केरल में श्री नारायण गुरु ने जाति प्रथा के खिलाफ जीवन भर संघर्ष चलाया। उन्होंने ही ‘मानव जाति के लिये एक धर्म, एक जाति और एक ईश्वर’ का प्रसिद्ध नारा दिया।
-
Question 15 of 20
15. Question
1 pointsभारत में सर्वप्रथम किसने निचली जातियों की लड़कियों के लिये स्कूल खोले?
Correct
व्याख्याः महाराष्ट्र में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निचली जाति में जन्मे ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणों की धार्मिक सत्ता के खिलाफ जीवन भर आंदोलन चलाया। वे आधुनिक शिक्षा को निचली जातियों की मुक्ति का सबसे शक्तिशाली अस्त्र समझते थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने निचली जातियों की लड़कियों के लिये अनेक स्कूल खोले।
Incorrect
व्याख्याः महाराष्ट्र में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निचली जाति में जन्मे ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणों की धार्मिक सत्ता के खिलाफ जीवन भर आंदोलन चलाया। वे आधुनिक शिक्षा को निचली जातियों की मुक्ति का सबसे शक्तिशाली अस्त्र समझते थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने निचली जातियों की लड़कियों के लिये अनेक स्कूल खोले।
-
Question 16 of 20
16. Question
1 points19वीं सदी में भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास के प्रमुख कारण थे-
1. आर्थिक पिछड़ापन
2. प्रेस तथा साहित्य
3. भारत के अतीत की खोज
4. पश्चिमी विचार और शिक्षा
कूटःCorrect
व्याख्याः
- उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना बहुत तेज़ी से विकसित हुई और भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन आरंभ हुआ।
- राष्ट्रीय आंदोलन की जड़ें भारतीय जनता के हितों तथा भारत में ब्रिटिश हितों के टकराव में थीं। ब्रिटिश शासन भारत के आर्थिक पिछड़ेपन का प्रमुख कारण था और भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का आधार यही तथ्य था। यह भारत के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक विकास में प्रमुख बाधक तत्त्व बन चुका था।
- प्रेस तथा साहित्य वह प्रमुख साधन है, जिनके द्वारा राष्ट्रवादी भारतीयों ने भारत देश के लोगों में देश भक्ति की भावनाओं, आधुनिक आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विचारों का प्रचार किया तथा एक अखिल भारतीय चेतना जगाई।
- अधिकांश ब्रिटिश अधिकारी और लेखक लगातार यह बात दोहराते रहते थे कि भारतीय लोग कभी भी अपना शासन चलाने के योग्य नहीं थे, वे हमेशा भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की निंदा करते रहते थे। इस प्रचार का जवाब देकर अनेक राष्ट्रवादी नेताओं ने जनता में आत्मविश्वास और आत्म सम्मान जगाने का प्रयत्न किया। राष्ट्रवादियों ने बड़े गर्व से भारत की सांस्कृतिक धरोहर की ओर संकेत करते हुए आलोचकों का ध्यान अशोक, अकबर जैसे शासकों की ओर खींचने का प्रयत्न किया।
- उन्नीसवीं सदी में आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा और विचारधारा के प्रसार के फलस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों ने एक आधुनिक, बुद्धिसंगत, धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक तथा राष्ट्रवादी राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाया।
Incorrect
व्याख्याः
- उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना बहुत तेज़ी से विकसित हुई और भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन आरंभ हुआ।
- राष्ट्रीय आंदोलन की जड़ें भारतीय जनता के हितों तथा भारत में ब्रिटिश हितों के टकराव में थीं। ब्रिटिश शासन भारत के आर्थिक पिछड़ेपन का प्रमुख कारण था और भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का आधार यही तथ्य था। यह भारत के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक तथा राजनीतिक विकास में प्रमुख बाधक तत्त्व बन चुका था।
- प्रेस तथा साहित्य वह प्रमुख साधन है, जिनके द्वारा राष्ट्रवादी भारतीयों ने भारत देश के लोगों में देश भक्ति की भावनाओं, आधुनिक आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक विचारों का प्रचार किया तथा एक अखिल भारतीय चेतना जगाई।
- अधिकांश ब्रिटिश अधिकारी और लेखक लगातार यह बात दोहराते रहते थे कि भारतीय लोग कभी भी अपना शासन चलाने के योग्य नहीं थे, वे हमेशा भारतीय परंपरा एवं संस्कृति की निंदा करते रहते थे। इस प्रचार का जवाब देकर अनेक राष्ट्रवादी नेताओं ने जनता में आत्मविश्वास और आत्म सम्मान जगाने का प्रयत्न किया। राष्ट्रवादियों ने बड़े गर्व से भारत की सांस्कृतिक धरोहर की ओर संकेत करते हुए आलोचकों का ध्यान अशोक, अकबर जैसे शासकों की ओर खींचने का प्रयत्न किया।
- उन्नीसवीं सदी में आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा और विचारधारा के प्रसार के फलस्वरूप बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों ने एक आधुनिक, बुद्धिसंगत, धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक तथा राष्ट्रवादी राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाया।
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Question 17 of 20
17. Question
1 pointsउन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में भारत के एकीकरण में किन कारकों का योगदान रहा?
1. रेलवे
2. सेना
3. तार
4. डाक व्यवस्था
कूटःCorrect
व्याख्याः उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में भारत का एकीकरण हो चुका था और वह एक राष्ट्र के रूप में उभर चुका था। इसलिये भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावनाओं का विकास आसानी से हुआ। अंग्रेज़ों ने धीरे-धीरे पूरे देश में सरकार की एकसमान आधुनिक प्रणाली लागू कर दी थी और इस तरह उसका प्रशासकीय एकीकरण हो चुका था। इसके अलावा रेलवे, तार तथा एकीकृत डाक व्यवस्था ने भी देश को एकजुट बना दिया था और जनता, खासकर नेताओं के पारस्परिक संपर्क को बढ़ा दिया था।
Incorrect
व्याख्याः उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में भारत का एकीकरण हो चुका था और वह एक राष्ट्र के रूप में उभर चुका था। इसलिये भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावनाओं का विकास आसानी से हुआ। अंग्रेज़ों ने धीरे-धीरे पूरे देश में सरकार की एकसमान आधुनिक प्रणाली लागू कर दी थी और इस तरह उसका प्रशासकीय एकीकरण हो चुका था। इसके अलावा रेलवे, तार तथा एकीकृत डाक व्यवस्था ने भी देश को एकजुट बना दिया था और जनता, खासकर नेताओं के पारस्परिक संपर्क को बढ़ा दिया था।
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Question 18 of 20
18. Question
1 pointsदादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना कहाँ की थी?
Correct
व्याख्याः 1866 में लंदन में दादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की।
Incorrect
व्याख्याः 1866 में लंदन में दादाभाई नौरोजी ने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की।
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Question 19 of 20
19. Question
1 pointsदादाभाई नौरोजी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
व्याख्याः कथन (c) गलत है। 1825 में जन्मे दादाभाई नौरोजी ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रीय आंदोलन को समर्पित कर दिया। दादाभाई नौरोजी को तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना अध्यक्ष चुनकर उनका सम्मान किया।
Incorrect
व्याख्याः कथन (c) गलत है। 1825 में जन्मे दादाभाई नौरोजी ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रीय आंदोलन को समर्पित कर दिया। दादाभाई नौरोजी को तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना अध्यक्ष चुनकर उनका सम्मान किया।
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Question 20 of 20
20. Question
1 pointsनीचे दी गई सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजियेः
सूची-I
(संस्थापक)सूची-II
(संस्था)A. सुरेन्द्रनाथ बनर्जी 1. मद्रास महाजन सभा B. जस्टिस रानाडे 2. पूना सार्वजनिक सभा C. वीर राघवाचारी 3. इंडियन एसोसिएशन D. फिरोजशाह मेहता 4. बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन कूटः
Correct
व्याख्याः
संस्थापक सभा
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी इंडियन एसोसिएशन
जस्टिस रानाडे पूना सार्वजनिक सभा
वीर राघवाचारी मद्रास महाजन सभा
फिरोजशाह मेहता बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशनIncorrect
व्याख्याः
संस्थापक सभा
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी इंडियन एसोसिएशन
जस्टिस रानाडे पूना सार्वजनिक सभा
वीर राघवाचारी मद्रास महाजन सभा
फिरोजशाह मेहता बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन