भारत भौतिक पर्यावरण टेस्ट 2
भारत भौतिक पर्यावरण टेस्ट 2
Quiz-summary
0 of 20 questions completed
Questions:
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
Information
इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न कक्षा 11 की पुस्तक भारत भौतिक पर्यावरण (एन.सी.ई.आर.टी.) पर आधारित है| यदि आप ‘भारत भौतिक पर्यावरण’ विषय की अधिक जानकारी नहीं रखते है तो इस टेस्ट को देने से पहले आप पुस्तक का रिविजन आवश्य करें|
You have already completed the quiz before. Hence you can not start it again.
Quiz is loading...
You must sign in or sign up to start the quiz.
You have to finish following quiz, to start this quiz:
Results
0 of 20 questions answered correctly
Your time:
Time has elapsed
You have reached 0 of 0 points, (0)
Average score |
|
Your score |
|
Categories
- Not categorized 0%
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- 14
- 15
- 16
- 17
- 18
- 19
- 20
- Answered
- Review
-
Question 1 of 20
1. Question
1 pointsलवण मृदाओं में किन खनिज पदार्थों का अनुपात अधिक होता है?
Correct
व्याख्याः लवण मृदाओं को ऊसर मृदाएँ भी कहते हैं। लवण मृदाओं में सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः ये अनुर्वर होती हैं और इनमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती। मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह के कारण इनमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है।
Incorrect
व्याख्याः लवण मृदाओं को ऊसर मृदाएँ भी कहते हैं। लवण मृदाओं में सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः ये अनुर्वर होती हैं और इनमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती। मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह के कारण इनमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है।
-
Question 2 of 20
2. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
1. लवणीय मृदाएँ शुष्क और अर्धशुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती हैं।
2. डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है।
कूटःCorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। लवणीय मृदाएँ शुष्क और अर्धशुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती हैं। इनमें नाइट्रोजन और चूने की कमी होती है।
लवण मृदाओं का अधिकतर प्रसार पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्रों में है। कच्छ के रण में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ नमक के कण आते हैं जो एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं। डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। लवणीय मृदाएँ शुष्क और अर्धशुष्क तथा जलाक्रांत क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती हैं। इनमें नाइट्रोजन और चूने की कमी होती है।
लवण मृदाओं का अधिकतर प्रसार पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्रों में है। कच्छ के रण में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ नमक के कण आते हैं जो एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं। डेल्टा प्रदेश में समुद्री जल के भर जाने से लवण मृदाओं के विकास को बढ़ावा मिलता है।
-
Question 3 of 20
3. Question
1 pointsभारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि निम्नलिखित में से किस कारण से लवणीय हो रही है-
Correct
व्याख्याः भारत के अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि के क्षेत्रों में, विशेष रूप से हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं। जिसका प्रमुख कारण है, अति सिंचाई। शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई केशिका क्रिया को बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप नमक ऊपर की ओर बढ़ता है और मृदा की सबसे ऊपरी परत में नमक जमा हो जाता है।
Incorrect
व्याख्याः भारत के अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि के क्षेत्रों में, विशेष रूप से हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं। जिसका प्रमुख कारण है, अति सिंचाई। शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई केशिका क्रिया को बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप नमक ऊपर की ओर बढ़ता है और मृदा की सबसे ऊपरी परत में नमक जमा हो जाता है।
-
Question 4 of 20
4. Question
1 pointsकिसका उपयोग करके मृदा की लवणता एवं क्षारीयता की समस्या का समाधान किया जा सकता है?
Correct
व्याख्याः मिट्टी की क्षारीयता एवं लवणता की समस्या से निपटने के लिये ‘जिप्सम’ का प्रयोग किया जाता है। यह समस्या विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में अधिक दिखाई पड़ती है।
Incorrect
व्याख्याः मिट्टी की क्षारीयता एवं लवणता की समस्या से निपटने के लिये ‘जिप्सम’ का प्रयोग किया जाता है। यह समस्या विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा के हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में अधिक दिखाई पड़ती है।
-
Question 5 of 20
5. Question
1 pointsनिम्न में से कौन-से क्षेत्र पीट मृदा के विकास के लिये सर्वाधिक अनुकूल हैं?
Correct
व्याख्याः पीट मृदाएँ भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ वनस्पति की वृद्धि अच्छी हो। अतः इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं, जो मृदा को ह्यूमस और पर्याप्त मात्रा में जैव तत्त्व प्रदान करते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। ये मृदाएँ सामान्यतः गाढ़े और काले रंग की होती हैं।
Incorrect
व्याख्याः पीट मृदाएँ भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ वनस्पति की वृद्धि अच्छी हो। अतः इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं, जो मृदा को ह्यूमस और पर्याप्त मात्रा में जैव तत्त्व प्रदान करते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। ये मृदाएँ सामान्यतः गाढ़े और काले रंग की होती हैं।
-
Question 6 of 20
6. Question
1 points‘मृदा अवकर्षण’ का तात्पर्य है-
Correct
व्याख्याः मृदा अवकर्षण का तात्पर्य मृदा की उर्वरता में ह्रास है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा अपरदन और दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है।
भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारण मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भू-आकृति पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है।
Incorrect
व्याख्याः मृदा अवकर्षण का तात्पर्य मृदा की उर्वरता में ह्रास है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा अपरदन और दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है।
भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारण मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भू-आकृति पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है।
-
Question 7 of 20
7. Question
1 pointsमृदा अपरदन के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं।
2. समतल भूमियों पर मूसलाधार वर्षा के बाद परत अपरदन होता है।
3. अवनालिका अपरदन सामान्यतः तीव्र ढालों पर होता है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः मृदा आवरण का विनाश, मृदा अपरदन कहलाता है।
- मृदा को हटाने और उसका परिवहन कर सकने के गुण के कारण पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं। पवन द्वारा अपरदन शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों में होता है। भारी वर्षा और खड़ी ढालों वाले प्रदेशों में बहते हुए जल द्वारा अपरदन महत्त्वपूर्ण होता है। जल अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गंभीर है और यह भारत के विस्तृत क्षेत्रों में हो रहा है।
- जल अपरदन दो रूपों में होता है- परत अपरदन और अवनालिका अपरदन। परत अपरदन समतल भूमियों पर मूसलाधार वर्षा के बाद होता है। यह अपरदन अधिक हानिकारक है क्योंकि इससे मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उर्वर ऊपरी परत हट जाती है।
- अवनालिका अपरदन सामान्यतः तीव्र ढालों पर होता है। वर्षा से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित कर देती हैं जिससे वे कृषि के लिये अनुपयुक्त हो जाती हैं।
Incorrect
व्याख्याः मृदा आवरण का विनाश, मृदा अपरदन कहलाता है।
- मृदा को हटाने और उसका परिवहन कर सकने के गुण के कारण पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं। पवन द्वारा अपरदन शुष्क और अर्धशुष्क प्रदेशों में होता है। भारी वर्षा और खड़ी ढालों वाले प्रदेशों में बहते हुए जल द्वारा अपरदन महत्त्वपूर्ण होता है। जल अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गंभीर है और यह भारत के विस्तृत क्षेत्रों में हो रहा है।
- जल अपरदन दो रूपों में होता है- परत अपरदन और अवनालिका अपरदन। परत अपरदन समतल भूमियों पर मूसलाधार वर्षा के बाद होता है। यह अपरदन अधिक हानिकारक है क्योंकि इससे मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उर्वर ऊपरी परत हट जाती है।
- अवनालिका अपरदन सामान्यतः तीव्र ढालों पर होता है। वर्षा से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित कर देती हैं जिससे वे कृषि के लिये अनुपयुक्त हो जाती हैं।
-
Question 8 of 20
8. Question
1 points‘उत्खात भूमि’ का विकास किस प्रकार के मृदा अपरदन के परिणामस्वरूप होता है?
Correct
व्याख्याः ‘उत्खात भूमि’ का विकास अवनालिका अपरदन के कारण होता है। इस प्रकार की भूमि को बीहड़ भी कहा जाता है। चंबल नदी के द्रोण में बीहड़ बहुत अधिक विस्तृत है।
Incorrect
व्याख्याः ‘उत्खात भूमि’ का विकास अवनालिका अपरदन के कारण होता है। इस प्रकार की भूमि को बीहड़ भी कहा जाता है। चंबल नदी के द्रोण में बीहड़ बहुत अधिक विस्तृत है।
-
Question 9 of 20
9. Question
1 pointsमृदा अपरदन के दुष्प्रभाव हैं-
1. नदियों के जल प्रवाह क्षमता में कमी।
2. नदी घाटियों के आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ आना।
3. मृदा की उर्वरता में कमी।
कूटःCorrect
व्याख्याः मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव भारतीय कृषि क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई पड़ते हैं। नदी की घाटियों में अपरदित पदार्थों के जमा होने से उनकी जल प्रवाह क्षमता घट जाती है। इससे प्रायः बाढ़ें आती हैं तथा कृषि भूमि को क्षति पहुँचाती हैं।
मृदा अपरदन के कारण मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उर्वर ऊपरी परत हट जाती है जिससे कि मृदा की उर्वरता समाप्त हो जाती है।
Incorrect
व्याख्याः मृदा अपरदन के दुष्प्रभाव भारतीय कृषि क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई पड़ते हैं। नदी की घाटियों में अपरदित पदार्थों के जमा होने से उनकी जल प्रवाह क्षमता घट जाती है। इससे प्रायः बाढ़ें आती हैं तथा कृषि भूमि को क्षति पहुँचाती हैं।
मृदा अपरदन के कारण मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उर्वर ऊपरी परत हट जाती है जिससे कि मृदा की उर्वरता समाप्त हो जाती है।
-
Question 10 of 20
10. Question
1 pointsभारत में मृदा अपरदन की समस्या किससे संबंधित है/हैं?
1. वेदिका कृषि
2. अति सिंचाई
3. वनोन्मूलन
4. उष्ण कटिबंधीय जलवायु
कूटःCorrect
व्याख्याः वनोन्मूलन, मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों में से एक है। पौधों की जड़ें मृदा को बांधकर अपरदन को रोकती हैं। पेड़, पत्तियाँ और टहनियाँ गिराकर मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं।
Incorrect
व्याख्याः वनोन्मूलन, मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों में से एक है। पौधों की जड़ें मृदा को बांधकर अपरदन को रोकती हैं। पेड़, पत्तियाँ और टहनियाँ गिराकर मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं।
-
Question 11 of 20
11. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-से उपाय मृदा संरक्षण में प्रभावी हो सकते हैं?
1. ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना।
2. अति चराई पर पाबंदी लगाकर।
3. स्थानांतरित कृषि को नियंत्रित करके।
कूटःCorrect
व्याख्याः मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा अपरदन मूलरूप से दोषपूर्ण पद्धतियों द्वारा बढ़ता है। किसी भी तर्कसंगत समाधान के अंतर्गत ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिये नहीं होना चाहिये। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना ज़रूरी भी हो जाए तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहियें।
भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और स्थानांतरी कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है जिससे विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। इस कारण से अति चराई और स्थानांतरी कृषि को नियमित और नियंत्रित करना चाहिये।
समोच्च रेखा के अनुसार मेढ़बंदी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, आवरण फसलें, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन आदि उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिये प्रायः किया जाता है।
Incorrect
व्याख्याः मृदा संरक्षण एक विधि है, जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा अपरदन मूलरूप से दोषपूर्ण पद्धतियों द्वारा बढ़ता है। किसी भी तर्कसंगत समाधान के अंतर्गत ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिये नहीं होना चाहिये। यदि ऐसी भूमि पर खेती करना ज़रूरी भी हो जाए तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहियें।
भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और स्थानांतरी कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है जिससे विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। इस कारण से अति चराई और स्थानांतरी कृषि को नियमित और नियंत्रित करना चाहिये।
समोच्च रेखा के अनुसार मेढ़बंदी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, आवरण फसलें, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन आदि उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिये प्रायः किया जाता है।
-
Question 12 of 20
12. Question
1 pointsउष्णकटिबंधीय सदाबहार वन भारत के किन-किन क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
1. पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल पर
2. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में
3. अरावली पर्वत शृंखला पर
4. उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों पर
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।Correct
व्याख्याः भारत में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल पर पाए जाते हैं न कि पूर्वी ढाल पर ये वन उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी पाए जाते हैं। अतः केवल कथन 2 और 4 सही हैं।
Incorrect
व्याख्याः भारत में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल पर पाए जाते हैं न कि पूर्वी ढाल पर ये वन उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों, लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी पाए जाते हैं। अतः केवल कथन 2 और 4 सही हैं।
-
Question 13 of 20
13. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों के संदर्भ में सही है/हैं?
1. ये वन शीत और शुष्क प्रदेशों में पाए जाते हैं।
2. इन वन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है।
3. ये वन विरल होते हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः केवल दूसरा कथन सही है। उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन उष्ण और आर्द्र प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22º सेल्सियस से अधिक रहता है। उष्णकटिबंधीय वन सघन और पर्तों वाले होते हैं, जहाँ भूमि में झाड़ियाँ और बेलें होती हैं। चूँकि इन पेड़ों के पत्ते झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग है, इसलिये ये वर्ष भर हरे-भरे दिखाई देते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ- रोजवुड, महोगनी, ऐनी तथा एबनी आदि हैं।
Incorrect
व्याख्याः केवल दूसरा कथन सही है। उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन उष्ण और आर्द्र प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22º सेल्सियस से अधिक रहता है। उष्णकटिबंधीय वन सघन और पर्तों वाले होते हैं, जहाँ भूमि में झाड़ियाँ और बेलें होती हैं। चूँकि इन पेड़ों के पत्ते झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग है, इसलिये ये वर्ष भर हरे-भरे दिखाई देते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ- रोजवुड, महोगनी, ऐनी तथा एबनी आदि हैं।
-
Question 14 of 20
14. Question
1 pointsभारत में सर्वाधिक क्षेत्र पर किस प्रकार के वनों का विस्तार है?
Correct
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल में फैले हुए हैं।
Incorrect
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल में फैले हुए हैं।
-
Question 15 of 20
15. Question
1 pointsउष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनों के संदर्भ में विचार कीजियेः
1. इन वनों को मानसूनी वन भी कहा जाता है।
2. ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 सेंटीमीटर से कम होती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन भारत में सर्वाधिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं। इन वनों को मानसूनी वन भी कहा जाता है। ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर होती है। इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिये अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
Incorrect
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन भारत में सर्वाधिक क्षेत्रों में फैले हुए हैं। इन वनों को मानसूनी वन भी कहा जाता है। ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर होती है। इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिये अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
-
Question 16 of 20
16. Question
1 pointsउष्णकटिबंधीय काँटेदार वनों के संबंध में कौन-से कथन सत्य हैं?
1. ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है।
2. इस प्रकार के वन देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाए जाते हैं।
3. इन वनों के पौधे लगभग पूरे वर्ष पर्णरहित रहते हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय काँटेदार वन उन भागों में पाए जाते हैं, जहाँ वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं।
इन वनों में पौधे लगभग पूरे वर्ष पर्णरहित रहते हैं और झाड़ियों जैसे लगते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ – बबूल, बेर, खजूर, खैर आदि हैं।
Incorrect
व्याख्याः उष्णकटिबंधीय काँटेदार वन उन भागों में पाए जाते हैं, जहाँ वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं।
इन वनों में पौधे लगभग पूरे वर्ष पर्णरहित रहते हैं और झाड़ियों जैसे लगते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ – बबूल, बेर, खजूर, खैर आदि हैं।
-
Question 17 of 20
17. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
1. पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई बढ़ने के साथ प्राकृतिक वनस्पति में बदलाव आता है।
2. हिमालयी पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर टुण्ड्रा प्रदेश में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति मिलती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई में वृद्धि तथा तापमान में कमी के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में अंतर दिखाई देता है। इन वनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- उत्तरी पर्वतीय वन और दक्षिणी पर्वतीय वन। ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर टुण्ड्रा प्रदेश में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति मिलती है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई में वृद्धि तथा तापमान में कमी के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में अंतर दिखाई देता है। इन वनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है- उत्तरी पर्वतीय वन और दक्षिणी पर्वतीय वन। ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर टुण्ड्रा प्रदेश में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति मिलती है।
-
Question 18 of 20
18. Question
1 pointsहिमालयी पर्वतीय क्षेत्र में नीचे से ऊपर की ओर जाने पर पाई जाने वाली वनस्पति का सही क्रम कौन-सा है?
Correct
व्याख्याः वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्णकटिबंधीय प्रदेशों से टुण्ड्रा प्रदेशों की ओर देखते हैं, उसी प्रकार ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय वनों से टुण्ड्रा प्रदेश तक में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है।
हिमालय के गिरिपद पर पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसके बाद 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय प्रकार के वन पाए जाते हैं। 2225 से 3048 मीटर की ऊँचाई पर इस क्षेत्र में कई स्थानों पर शीतोष्ण कटिबंधीय घास भी उगती है। इससे अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन और चारागाह पाए जाते हैं। हिमालय के सबसे अधिक ऊँचाई वाले भागों में टुण्ड्रा वनस्पतियाँ, जैसे- मास व लाइकेन आदि पाई जाती है।
Incorrect
व्याख्याः वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्णकटिबंधीय प्रदेशों से टुण्ड्रा प्रदेशों की ओर देखते हैं, उसी प्रकार ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्णकटिबंधीय वनों से टुण्ड्रा प्रदेश तक में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है।
हिमालय के गिरिपद पर पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसके बाद 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय प्रकार के वन पाए जाते हैं। 2225 से 3048 मीटर की ऊँचाई पर इस क्षेत्र में कई स्थानों पर शीतोष्ण कटिबंधीय घास भी उगती है। इससे अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन और चारागाह पाए जाते हैं। हिमालय के सबसे अधिक ऊँचाई वाले भागों में टुण्ड्रा वनस्पतियाँ, जैसे- मास व लाइकेन आदि पाई जाती है।
-
Question 19 of 20
19. Question
1 pointsबहुमूल्य वृक्ष प्रजाति ‘देवदार के वन’ पाए जाते हैं –
Correct
व्याख्याः हिमालय के पश्चिमी भाग में बहुमूल्य वृक्ष प्रजाति देवदार के वन पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी अधिक मज़बूत होती है और निर्माण कार्य में प्रयुक्त होती है। इसी तरह चिनार और वालन जिसकी लकड़ी कश्मीर हस्तशिल्प के लिये इस्तेमाल होती है, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
Incorrect
व्याख्याः हिमालय के पश्चिमी भाग में बहुमूल्य वृक्ष प्रजाति देवदार के वन पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी अधिक मज़बूत होती है और निर्माण कार्य में प्रयुक्त होती है। इसी तरह चिनार और वालन जिसकी लकड़ी कश्मीर हस्तशिल्प के लिये इस्तेमाल होती है, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
-
Question 20 of 20
20. Question
1 pointsकथनः हिमालय पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी ढाल की तुलना में उत्तरी ढाल में अधिक वनस्पति पाई जाती है।
कारणः हिमालय पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी ढाल पर अधिक वर्षा होती है।
कूटःCorrect
व्याख्याः कथन गलत है एवं कारण सही है। हिमालय पर्वत श्रृंखला के उत्तरी ढालों की तुलना में दक्षिणी ढालों पर अधिक वनस्पति पाई जाती है, क्योंकि दक्षिणी ढालों पर अधिक वर्षा होती है एवं उत्तरी ढाल शुष्क हैं।
Incorrect
व्याख्याः कथन गलत है एवं कारण सही है। हिमालय पर्वत श्रृंखला के उत्तरी ढालों की तुलना में दक्षिणी ढालों पर अधिक वनस्पति पाई जाती है, क्योंकि दक्षिणी ढालों पर अधिक वर्षा होती है एवं उत्तरी ढाल शुष्क हैं।
भारत भौतिक पर्यावरण डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें|