भारत भौतिक पर्यावरण टेस्ट 1
भारत भौतिक पर्यावरण टेस्ट 1
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Information
इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न कक्षा 11 की पुस्तक भारत भौतिक पर्यावरण (एन.सी.ई.आर.टी.) पर आधारित है| यदि आप ‘भारत भौतिक पर्यावरण’ विषय की अधिक जानकारी नहीं रखते है तो इस टेस्ट को देने से पहले आप पुस्तक का रिविजन आवश्य करें|
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Question 1 of 20
1. Question
1 pointsयोकोहामा रणनीति संबंधित है-
Correct
व्याख्याः 1994 में जापान के योकोहामा नगर में आपदा प्रबंधन के संबंध में विश्व कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस में विश्व में आने वाली विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिये कुछ ठोस कदम उठाए गए। बाद में इसे ही ‘योकोहामा रणनीति तथा अधिक सुरक्षित संसार के लिये कार्य योजना’ कहा गया।
Incorrect
व्याख्याः 1994 में जापान के योकोहामा नगर में आपदा प्रबंधन के संबंध में विश्व कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस में विश्व में आने वाली विभिन्न आपदाओं से निपटने के लिये कुछ ठोस कदम उठाए गए। बाद में इसे ही ‘योकोहामा रणनीति तथा अधिक सुरक्षित संसार के लिये कार्य योजना’ कहा गया।
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Question 2 of 20
2. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से भारत के कौन-से क्षेत्र अति अधिक क्षति जोखिम भूकंपीय क्षेत्रों (Zones) के अंतर्गत आते हैं?
1. उत्तर-पूर्वी क्षेत्र
2. पश्चिमी हिमाचल
3. कश्मीर घाटी
4. कच्छ (गुजरात)
कूटःCorrect
व्याख्याः भारत को पाँच भूकंपीय क्षेत्रों (Zones) में बाँटा गया है। भारत में अति अधिक क्षति जोखिम भूकंपीय क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, दरभंगा से उत्तर में स्थित क्षेत्र तथा अररिया (बिहार में भारत-नेपाल सीमा के साथ), उत्तराखंड, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश (धर्मशाला के चारों ओर), कश्मीर घाटी और कच्छ (गुजरात) शामिल हैं।
Incorrect
व्याख्याः भारत को पाँच भूकंपीय क्षेत्रों (Zones) में बाँटा गया है। भारत में अति अधिक क्षति जोखिम भूकंपीय क्षेत्रों में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, दरभंगा से उत्तर में स्थित क्षेत्र तथा अररिया (बिहार में भारत-नेपाल सीमा के साथ), उत्तराखंड, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश (धर्मशाला के चारों ओर), कश्मीर घाटी और कच्छ (गुजरात) शामिल हैं।
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Question 3 of 20
3. Question
1 pointsबर्फानी तूफान किस प्रकार की आपदा है?
Correct
व्याख्याः
- प्राकृतिक आपदाओं को चार प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है- वायुमंडलीय, भौमिक, जलीय और जैविक।
- वायुमंडलीय प्राकृतिक आपदाओं के अंतर्गत बर्फानी तूफान, तड़ितझंझा, टॉरनेडो, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, सूखा, करकापात, पाला, लू और शीतलहर को शामिल किया जाता है।
Incorrect
व्याख्याः
- प्राकृतिक आपदाओं को चार प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है- वायुमंडलीय, भौमिक, जलीय और जैविक।
- वायुमंडलीय प्राकृतिक आपदाओं के अंतर्गत बर्फानी तूफान, तड़ितझंझा, टॉरनेडो, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, सूखा, करकापात, पाला, लू और शीतलहर को शामिल किया जाता है।
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Question 4 of 20
4. Question
1 pointsहिमालय और भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अधिक भूकंप आने का मुख्य कारण है-
Correct
व्याख्याः इंडियन प्लेट प्रति वर्ष उत्तर व उत्तर-पूर्व दिशा में एक सेंटीमीटर खिसक रही है, परंतु उत्तर में
स्थित यूरेशियन प्लेट इसके लिये अवरोध पैदा करती है। परिणामस्वरूप इन प्लेटों के किनारे लॉक हो जाते हैं और कई स्थानों पर लगातार ऊर्जा संग्रह होता रहता है। अधिक मात्रा में ऊर्जा संग्रह से तनाव बढ़ता रहता है और दोनों प्लेटों के बीच लॉक टूट जाता है और एकाएक ऊर्जा मोचन से हिमालय के चाप के साथ भूकंप आ जाता है। इससे प्रभावित मुख्य राज्यों में जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग उपमंडल तथा उत्तर-पूर्व के सात राज्य शामिल हैं।
Incorrect
व्याख्याः इंडियन प्लेट प्रति वर्ष उत्तर व उत्तर-पूर्व दिशा में एक सेंटीमीटर खिसक रही है, परंतु उत्तर में
स्थित यूरेशियन प्लेट इसके लिये अवरोध पैदा करती है। परिणामस्वरूप इन प्लेटों के किनारे लॉक हो जाते हैं और कई स्थानों पर लगातार ऊर्जा संग्रह होता रहता है। अधिक मात्रा में ऊर्जा संग्रह से तनाव बढ़ता रहता है और दोनों प्लेटों के बीच लॉक टूट जाता है और एकाएक ऊर्जा मोचन से हिमालय के चाप के साथ भूकंप आ जाता है। इससे प्रभावित मुख्य राज्यों में जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग उपमंडल तथा उत्तर-पूर्व के सात राज्य शामिल हैं।
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Question 5 of 20
5. Question
1 pointsसुनामी के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
1. महासागरीय धरातल में भूकंप और ज्वालामुखी के विस्फोट के कारण सुनामी उत्पन्न होती है।
2. समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में सुनामी तरंगें महसूस नहीं होती हैं।
3. उथले समुद्र में सुनामी तरंगों की लंबाई अधिक व ऊँचाई कम होती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। भूकंप और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल पैदा होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं, जिन्हें सुनामी (बंदरगाह लहरें) या भूकंपीय समुद्री लहरें कहा जाता है।
- दूसरा कथन भी सत्य है। महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज़्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। परिणामस्वरूप महासागरों के अंदरूनी भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। तटीय क्षेत्रों में ये तरंगे ज़्यादा प्रभावी होती हैं और व्यापक नुकसान पहुँचाती हैं इसलिये समुद्र में जलपोत पर, सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि गहरे समुद्र में सुनामी की लहरों की लंबाई अधिक होती है और ऊँचाई कम होती है।
- तीसरा कथन असत्य है। जब सुनामी उथले समुद्र में प्रवेश करती है, तब सुनामी तरंगों की लंबाई कम होती चली जाती है और तरंग की ऊँचाई बढ़ती जाती है। कई बार तो इसकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है जिससे तटीय क्षेत्रों में भीषण विध्वंस होता है। इसलिये इन्हें उथले जल की तरंगें भी कहते हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। भूकंप और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में अचानक हलचल पैदा होती है और महासागरीय जल का अचानक विस्थापन होता है। परिणामस्वरूप ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें पैदा होती हैं, जिन्हें सुनामी (बंदरगाह लहरें) या भूकंपीय समुद्री लहरें कहा जाता है।
- दूसरा कथन भी सत्य है। महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज़्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। परिणामस्वरूप महासागरों के अंदरूनी भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। तटीय क्षेत्रों में ये तरंगे ज़्यादा प्रभावी होती हैं और व्यापक नुकसान पहुँचाती हैं इसलिये समुद्र में जलपोत पर, सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। समुद्र के आंतरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि गहरे समुद्र में सुनामी की लहरों की लंबाई अधिक होती है और ऊँचाई कम होती है।
- तीसरा कथन असत्य है। जब सुनामी उथले समुद्र में प्रवेश करती है, तब सुनामी तरंगों की लंबाई कम होती चली जाती है और तरंग की ऊँचाई बढ़ती जाती है। कई बार तो इसकी ऊँचाई 15 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है जिससे तटीय क्षेत्रों में भीषण विध्वंस होता है। इसलिये इन्हें उथले जल की तरंगें भी कहते हैं।
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Question 6 of 20
6. Question
1 pointsकथनः भूमध्य रेखा के आस-पास उष्णकटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न नहीं होते हैं।
कारणः भूमध्य रेखा पर गुरुत्वाकर्षण का मान सबसे कम होता है।
कूटःCorrect
व्याख्याः कथन सही है, लेकिन कारण गलत है। भूमध्य रेखा के आस-पास 0º से 5º अक्षांशों के बीच कोरियोलिस बल का मान कम होता है, जिस कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निम्न वायुदाब के केंद्र को उच्च वायुदाब भर देता है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में चक्रवात उत्पन्न नहीं होते।
Incorrect
व्याख्याः कथन सही है, लेकिन कारण गलत है। भूमध्य रेखा के आस-पास 0º से 5º अक्षांशों के बीच कोरियोलिस बल का मान कम होता है, जिस कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निम्न वायुदाब के केंद्र को उच्च वायुदाब भर देता है, परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में चक्रवात उत्पन्न नहीं होते।
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Question 7 of 20
7. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. उष्णकटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं।
2. उष्णकटिबंधीय चक्रवात 30º दक्षिण से 60º दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं।
3. उष्णकटिबंधीय चक्रवात को, समुद्री सतह पर जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया द्वारा छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा से ऊर्जा प्राप्त होती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं ।
- दूसरा कथन असत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात विषुवत् वृत्त से 30º उत्तर से 30º दक्षिणी अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं। यह आमतौर पर 500 से 1000 किलोमीटर क्षेत्र में फैला होता है और इसकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12 से 14 किलोमीटर हो सकती है।
- तीसरा कथन सत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात या प्रभंजन एक ऊष्मा इंजन की तरह होते हैं, जिन्हें समुद्री सतह पर जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया में छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं ।
- दूसरा कथन असत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात विषुवत् वृत्त से 30º उत्तर से 30º दक्षिणी अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं। यह आमतौर पर 500 से 1000 किलोमीटर क्षेत्र में फैला होता है और इसकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12 से 14 किलोमीटर हो सकती है।
- तीसरा कथन सत्य है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात या प्रभंजन एक ऊष्मा इंजन की तरह होते हैं, जिन्हें समुद्री सतह पर जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया में छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
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Question 8 of 20
8. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सी बीमारियाँ किसी क्षेत्र में बाढ़ आने से उत्पन्न होती हैं?
1. खसरा
2. हैजा
3. आंत्रशोथ
4. हेपेटाइटिस
कूटःCorrect
व्याख्याः
- बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की जल-जनित बीमारियाँ फैल जाती हैं, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाईटिस आदि।
- खसरा रोग बच्चों को होने वाला एक विषाणु जनित रोग है।
Incorrect
व्याख्याः
- बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की जल-जनित बीमारियाँ फैल जाती हैं, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाईटिस आदि।
- खसरा रोग बच्चों को होने वाला एक विषाणु जनित रोग है।
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Question 9 of 20
9. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-से कारक मृदा निर्माण को प्रभावित करते हैं?
1. उच्चावच
2. वनस्पति
3. जलवायु
4. समय
कूटःCorrect
व्याख्याः मृदा शैल, मलबा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है, जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होती है। मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
- उच्चावच
- जनक सामग्री
- जलवायु
- वनस्पति तथा अन्य जीव रूप
- समय
इनके अतिरिक्त मानवीय क्रियाएँ भी एक पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं।
Incorrect
व्याख्याः मृदा शैल, मलबा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है, जो पृथ्वी की सतह पर विकसित होती है। मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक हैं-
- उच्चावच
- जनक सामग्री
- जलवायु
- वनस्पति तथा अन्य जीव रूप
- समय
इनके अतिरिक्त मानवीय क्रियाएँ भी एक पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं।
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Question 10 of 20
10. Question
1 pointsनिम्न में से कौन-से मृदा के घटक हैं?
1. खनिज
2. ह्यूमस
3. जल
4. वायु
कूटःCorrect
व्याख्याः मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस, जल तथा वायु होते हैं। इनमें से प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। मृदाओं में ये घटक कम या ज़्यादा मात्रा में हो सकते हैं जबकि कुछ मृदाओं में इन घटकों का संयोजन भिन्न प्रकार का पाया जाता है।
Incorrect
व्याख्याः मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस, जल तथा वायु होते हैं। इनमें से प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। मृदाओं में ये घटक कम या ज़्यादा मात्रा में हो सकते हैं जबकि कुछ मृदाओं में इन घटकों का संयोजन भिन्न प्रकार का पाया जाता है।
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Question 11 of 20
11. Question
1 pointsमृदा की विभिन्न परतों (संस्तरों) के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्त्व तथा जल से संयोग सबसे ऊपरी परत ‘क’ संस्तर में होता है।
2. मृदा निर्माण की प्रक्रिया में सबसे नीचे की परत सबसे पहले बनती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सत्य हैं। यदि हम भूमि पर गड्ढा खोदें और मृदा को देखें तो वहाँ हमें मृदा की तीन परतें दिखाई देती हैं, जिन्हें संस्तर कहा जाता है। ‘क’ संस्तर सबसे ऊपरी खंड होता है, जहाँ पौधों की वृद्धि के लिये अनिवार्य जैव पदार्थ का खनिज पदार्थ, पोषक तत्त्वों तथा जल से संयोग होता है।
‘ख’ संस्तर ‘क’ संस्तर तथा ‘ग’ संस्तर के बीच संक्रमण खंड होता है जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं।
‘ग’ संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होता है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था में होती है अर्थात् इस परत का निर्माण पहले होता है और अंततः ऊपर की दो परतें इसी से बनती हैं।
परतों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। इन तीन संस्तरों के नीचे एक चट्टान होती है जिसे जनक चट्टान अथवा आधारी चट्टान कहा जाता है।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सत्य हैं। यदि हम भूमि पर गड्ढा खोदें और मृदा को देखें तो वहाँ हमें मृदा की तीन परतें दिखाई देती हैं, जिन्हें संस्तर कहा जाता है। ‘क’ संस्तर सबसे ऊपरी खंड होता है, जहाँ पौधों की वृद्धि के लिये अनिवार्य जैव पदार्थ का खनिज पदार्थ, पोषक तत्त्वों तथा जल से संयोग होता है।
‘ख’ संस्तर ‘क’ संस्तर तथा ‘ग’ संस्तर के बीच संक्रमण खंड होता है जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं।
‘ग’ संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होता है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था में होती है अर्थात् इस परत का निर्माण पहले होता है और अंततः ऊपर की दो परतें इसी से बनती हैं।
परतों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। इन तीन संस्तरों के नीचे एक चट्टान होती है जिसे जनक चट्टान अथवा आधारी चट्टान कहा जाता है।
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Question 12 of 20
12. Question
1 pointsभारत में मृदा का सबसे व्यापक और सर्वाधिक उपजाऊ प्रकार कौन-सा है?
Correct
व्याख्याः जलोढ़ मृदा भारत में सर्वाधिक क्षेत्रफल में पाई जाती है तथा यह सबसे उपजाऊ मृदा है। जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को ढँके हुए हैं। जलोढ़ मृदाओं पर गहन कृषि की जाती है।
Incorrect
व्याख्याः जलोढ़ मृदा भारत में सर्वाधिक क्षेत्रफल में पाई जाती है तथा यह सबसे उपजाऊ मृदा है। जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को ढँके हुए हैं। जलोढ़ मृदाओं पर गहन कृषि की जाती है।
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Question 13 of 20
13. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों में से कौन- सा/से कथन सत्य है/हैं?
1. जलोढ़ मृदा प्रायद्वीपीय प्रदेश में पूर्वी तट की नदी डेल्टाओं और नदियों की घाटियों में पाई जाती है।
2. जलोढ़ मृदा में पोटाश की मात्रा अधिक पाई जाती है।
3. प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाली नई जलोढ़ मृदा को ‘खादर’ कहते हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं। जलोढ़ मृदा प्रायद्वीपीय प्रदेश में पूर्वी तट की नदियों के डेल्टाओं और नदियों की घाटियों में पाई जाती है। राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई ये मृदाएँ गुजरात के मैदान तक फैली हुई हैं।
- जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती हैं। सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है।
- गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में ‘खादर’ और ‘बांगर’ नाम की दो भिन्न मृदाएँ विकसित हुई हैं। प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाली नई जलोढ़क मृदा को ‘खादर’ कहते हैं, जो महीन गाद होने के कारण मृदा की उर्वरता बढ़ा देती है। ‘बांगर’ पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है। खादर और बांगर मृदाओं में कंकड़ होते हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं। जलोढ़ मृदा प्रायद्वीपीय प्रदेश में पूर्वी तट की नदियों के डेल्टाओं और नदियों की घाटियों में पाई जाती है। राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई ये मृदाएँ गुजरात के मैदान तक फैली हुई हैं।
- जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती हैं। सामान्यतः इनमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है।
- गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में ‘खादर’ और ‘बांगर’ नाम की दो भिन्न मृदाएँ विकसित हुई हैं। प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाली नई जलोढ़क मृदा को ‘खादर’ कहते हैं, जो महीन गाद होने के कारण मृदा की उर्वरता बढ़ा देती है। ‘बांगर’ पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है। खादर और बांगर मृदाओं में कंकड़ होते हैं।
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Question 14 of 20
14. Question
1 pointsनिम्न में से किस मृदा को ‘रेगुर’ कहते हैं?
Correct
व्याख्याः काली मृदा को ‘रेगुर’ तथा ‘कपास वाली काली मिट्टी’ (Black Cotton Soil) भी कहा जाता है। आमतौर पर काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीली होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। इस प्रकार शुष्क ऋतु में इन मृदाओं में चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं। इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इनमें ‘स्वतः जुताई’ हो गई है।
Incorrect
व्याख्याः काली मृदा को ‘रेगुर’ तथा ‘कपास वाली काली मिट्टी’ (Black Cotton Soil) भी कहा जाता है। आमतौर पर काली मृदाएँ मृण्मय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीली होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। इस प्रकार शुष्क ऋतु में इन मृदाओं में चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं। इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इनमें ‘स्वतः जुताई’ हो गई है।
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Question 15 of 20
15. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किन-किन राज्यों में काली मृदा पाई जाती है?
1. गुजरात
2. महाराष्ट्र
3. आंध्र प्रदेश
4. पंजाब
कूटःCorrect
व्याख्याः
- काली मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकतर भाग में पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ हिस्से, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं।
- गोदावरी और कृष्णा नदी के ऊपरी भागों और दक्कन के पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में गहरी काली मृदा पाई जाती है।
Incorrect
व्याख्याः
- काली मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकतर भाग में पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ हिस्से, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं।
- गोदावरी और कृष्णा नदी के ऊपरी भागों और दक्कन के पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में गहरी काली मृदा पाई जाती है।
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Question 16 of 20
16. Question
1 pointsनिम्न में से कौन-सी विशेषताएँ काली मृदा से संबंधित हैं?
1. काली मृदा लम्बे समय तक नमी को बनाए रखती है।
2. काली मृदा में फास्फोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की अधिकता होती है।
कूटःCorrect
व्याख्याः
- केवल पहला कथन सत्य है। काली मृदा में नमी के धीमे अवशोषण और नमी के धीमे क्षय की विशेषता होती है। इस विशेषता के कारण काली मृदा में लम्बे समय तक नमी बनी रहती है। इसके कारण फसलों को (विशेष रूप से वर्षाधीन फसलों को) शुष्क ऋतु में भी नमी मिलती रहती है और वे फलती फूलती रहती हैं।
- रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूना, लौह, मैग्नीशिया तथा ऐलुमिना के तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इनमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की कमी होती है।
Incorrect
व्याख्याः
- केवल पहला कथन सत्य है। काली मृदा में नमी के धीमे अवशोषण और नमी के धीमे क्षय की विशेषता होती है। इस विशेषता के कारण काली मृदा में लम्बे समय तक नमी बनी रहती है। इसके कारण फसलों को (विशेष रूप से वर्षाधीन फसलों को) शुष्क ऋतु में भी नमी मिलती रहती है और वे फलती फूलती रहती हैं।
- रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूना, लौह, मैग्नीशिया तथा ऐलुमिना के तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इनमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और जैव पदार्थों की कमी होती है।
-
Question 17 of 20
17. Question
1 pointsलाल मृदा का रंग लाल होने का कारण हैः
Correct
व्याख्याः लाल मृदा का लाल रंग लौह पदार्थों (फेरिक ऑक्साइड) की उपस्थिति के कारण है।
Incorrect
व्याख्याः लाल मृदा का लाल रंग लौह पदार्थों (फेरिक ऑक्साइड) की उपस्थिति के कारण है।
-
Question 18 of 20
18. Question
1 pointsलाल मृदा के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. लाल मृदा का विकास उन क्षेत्रों में हुआ जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं।
2. लाल मृदा जलयोजित होने पर पीली दिखाई देने लगती है।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। लाल मृदा का विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं। पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लंबी पट्टी में लाल दोमट मृदा पाई जाती है। पीली और लाल मृदाएँ उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों और मध्य गंगा के मैदानों के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।
जलयोजित होने के कारण लाल मृदा पीली दिखाई पड़ती है। महीन कण वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। इसके विपरीत मोटे कण वाली उच्च भूमियों की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। लाल मृदा का विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में हुआ है, जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं। पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लंबी पट्टी में लाल दोमट मृदा पाई जाती है। पीली और लाल मृदाएँ उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों और मध्य गंगा के मैदानों के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।
जलयोजित होने के कारण लाल मृदा पीली दिखाई पड़ती है। महीन कण वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वर होती हैं। इसके विपरीत मोटे कण वाली उच्च भूमियों की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं।
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Question 19 of 20
19. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा कथन लैटेराइट मृदा के संबंध में सही नहीं है?
Correct
व्याख्याः
- लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।
- उष्णकटिबंधीय भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन क्रिया के परिणामस्वरूप लैटेराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है। ये आर्द्र प्रदेशों की अपक्षालित मिट्टियाँ हैं।
- लैटेराइट मृदा में वर्षा के साथ चूना और सिलिका तो निक्षालित हो जाते हैं तथा लोहे के ऑक्साइड और एल्युमीनियम के भरपूर यौगिक शेष रह जाते हैं। उच्च तापमान में आसानी से पनपने वाले जीवाणु ह्यूमस की मात्रा को तेज़ी से नष्ट कर देते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फास्फेट और कैल्शियम की कमी होती है तथा लौह-ऑक्साइड और पोटाश की अधिकता होती है। परिणामस्वरूप लैटेराइट मृदाएँ कृषि के लिये पर्याप्त उपजाऊ नहीं हैं। फसलों के लिये उपजाऊ बनाने के लिये इन मृदाओं में खाद्य और उर्वरकों की भारी मात्रा डालनी पड़ती है।
- इन मृदाओं का विकास मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय पठार के ऊँचे क्षेत्रों में हुआ है। ये मृदाएँ सामान्यतः कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- लैटेराइट एक लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।
- उष्णकटिबंधीय भारी वर्षा के कारण होने वाली तीव्र निक्षालन क्रिया के परिणामस्वरूप लैटेराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है। ये आर्द्र प्रदेशों की अपक्षालित मिट्टियाँ हैं।
- लैटेराइट मृदा में वर्षा के साथ चूना और सिलिका तो निक्षालित हो जाते हैं तथा लोहे के ऑक्साइड और एल्युमीनियम के भरपूर यौगिक शेष रह जाते हैं। उच्च तापमान में आसानी से पनपने वाले जीवाणु ह्यूमस की मात्रा को तेज़ी से नष्ट कर देते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फास्फेट और कैल्शियम की कमी होती है तथा लौह-ऑक्साइड और पोटाश की अधिकता होती है। परिणामस्वरूप लैटेराइट मृदाएँ कृषि के लिये पर्याप्त उपजाऊ नहीं हैं। फसलों के लिये उपजाऊ बनाने के लिये इन मृदाओं में खाद्य और उर्वरकों की भारी मात्रा डालनी पड़ती है।
- इन मृदाओं का विकास मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय पठार के ऊँचे क्षेत्रों में हुआ है। ये मृदाएँ सामान्यतः कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
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Question 20 of 20
20. Question
1 pointsकाजू की कृषि के लिये कौन-सी मृदा सर्वाधिक उपयुक्त है?
Correct
व्याख्याः तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में काजू की खेती के लिये लाल लैटेराइट मृदाएँ अधिक उपयुक्त हैं।
Incorrect
व्याख्याः तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में काजू की खेती के लिये लाल लैटेराइट मृदाएँ अधिक उपयुक्त हैं।
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