भारतीय अर्थव्यवस्था टेस्ट 4
भारतीय अर्थव्यवस्था टेस्ट 4
Quiz-summary
0 of 13 questions completed
Questions:
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
Information
इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न एन.सी.ई.आर.टी. पर आधारित है|
You have already completed the quiz before. Hence you can not start it again.
Quiz is loading...
You must sign in or sign up to start the quiz.
You have to finish following quiz, to start this quiz:
Results
0 of 13 questions answered correctly
Your time:
Time has elapsed
You have reached 0 of 0 points, (0)
Average score |
|
Your score |
|
Categories
- Indian Economy 0%
- 1
- 2
- 3
- 4
- 5
- 6
- 7
- 8
- 9
- 10
- 11
- 12
- 13
- Answered
- Review
-
Question 1 of 13
1. Question
1 pointsहमारे देश में स्वतंत्रता के बाद लागू किये गए भू-सुधार कार्यक्रम को किन राज्यों में सर्वाधिक सफलता मिली?
Correct
व्याख्याः स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का वर्चस्व था। कृषि में समानता लाने के लिये भू-सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था। स्वतंत्रता के एक वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन व वास्तविक कृषकों को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए। भू-सुधार कानून में अनेक कमियाँ होने के कारण अधिकतर ज़मींदारों ने अपनी भूमि पर अधिकार बनाए रखा, किंतु केरल व पश्चिम बंगाल की सरकारें वास्तविक किसान को भूमि देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध थीं, इसी कारण इन प्रांतों में भू-सुधार कार्यक्रमों को विशेष सफलता मिली।
Incorrect
व्याख्याः स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का वर्चस्व था। कृषि में समानता लाने के लिये भू-सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था। स्वतंत्रता के एक वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन व वास्तविक कृषकों को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए। भू-सुधार कानून में अनेक कमियाँ होने के कारण अधिकतर ज़मींदारों ने अपनी भूमि पर अधिकार बनाए रखा, किंतु केरल व पश्चिम बंगाल की सरकारें वास्तविक किसान को भूमि देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध थीं, इसी कारण इन प्रांतों में भू-सुधार कार्यक्रमों को विशेष सफलता मिली।
-
Question 2 of 13
2. Question
1 pointsहरित क्रांति के पहले चरण में उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) का प्रयोग किन राज्यों तक सीमित रहा?
Correct
व्याख्याः औपनिवेशिक काल का कृषि गतिरोध हरित क्रांति के आरंभ होने से स्थायी रूप से समाप्त हो गया। हरित क्रांति के पहले चरण में (लगभग 1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक) HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों तक ही सीमित रहा।
Incorrect
व्याख्याः औपनिवेशिक काल का कृषि गतिरोध हरित क्रांति के आरंभ होने से स्थायी रूप से समाप्त हो गया। हरित क्रांति के पहले चरण में (लगभग 1960 के दशक के मध्य से 1970 के दशक के मध्य तक) HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे अधिक समृद्ध राज्यों तक ही सीमित रहा।
-
Question 3 of 13
3. Question
1 pointsहरित क्रांति के परिणामों के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
- आरंभ में केवल गेहूँ एवं चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई।
- उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ा।
- खाद्यान्न की वस्तुओं की कीमतों में अपेक्षाकृत कमी आई।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
Correct
व्याख्याः उपरोक्त तीनों कथन सत्य हैं।
- हरित क्रांति का तात्पर्य, कृषि क्षेत्र में उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) के प्रयोग से है। आरंभ में HYV बीजों के प्रयोग से केवल गेहूँ व चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई।
- कृषि में HYV बीजों के प्रयोग के लिये पर्याप्त मात्र में उर्वरकों, कीटनाशकों तथा निश्चित जल पूर्ति की आवश्यकता होती थी। इन आगतों का सही अनुपात में प्रयोग होना भी महत्त्वपूर्ण है।
- हरित क्रांति काल में किसान अपने गेहूँ और चावल के अतिरिक्त उत्पादन का अच्छा खासा भाग बाज़ार में बेच रहे थे। इसके फलस्वरूप खाद्यान्न की कीमतों में उपभोग की अन्य वस्तुओं की अपेक्षा कमी आई।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त तीनों कथन सत्य हैं।
- हरित क्रांति का तात्पर्य, कृषि क्षेत्र में उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) के प्रयोग से है। आरंभ में HYV बीजों के प्रयोग से केवल गेहूँ व चावल के उत्पादन में वृद्धि हुई।
- कृषि में HYV बीजों के प्रयोग के लिये पर्याप्त मात्र में उर्वरकों, कीटनाशकों तथा निश्चित जल पूर्ति की आवश्यकता होती थी। इन आगतों का सही अनुपात में प्रयोग होना भी महत्त्वपूर्ण है।
- हरित क्रांति काल में किसान अपने गेहूँ और चावल के अतिरिक्त उत्पादन का अच्छा खासा भाग बाज़ार में बेच रहे थे। इसके फलस्वरूप खाद्यान्न की कीमतों में उपभोग की अन्य वस्तुओं की अपेक्षा कमी आई।
-
Question 4 of 13
4. Question
1 pointsभारत में निम्नलिखित में से किस पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के समाजवादी स्वरूप को अपनाया गया?
Correct
व्याख्याः द्वितीय पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के समाजवादी स्वरूप का आधार तैयार करने का प्रयास किया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिये यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखेगी। इसका अर्थ यह था कि राज्य उन उद्योगों पर पूरा नियंत्रण रखेगा, जो अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण थे। निजी क्षेत्रक की नीतियाँ सार्वजनिक क्षेत्रक की नीतियों की अनुपूरक होंगी और सार्वजनिक क्षेत्रक अर्थव्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।
Incorrect
व्याख्याः द्वितीय पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के समाजवादी स्वरूप का आधार तैयार करने का प्रयास किया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवाद के पथ पर अग्रसर करने के लिये यह निर्णय लिया गया कि सरकार अर्थव्यवस्था में बड़े तथा भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखेगी। इसका अर्थ यह था कि राज्य उन उद्योगों पर पूरा नियंत्रण रखेगा, जो अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण थे। निजी क्षेत्रक की नीतियाँ सार्वजनिक क्षेत्रक की नीतियों की अनुपूरक होंगी और सार्वजनिक क्षेत्रक अर्थव्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।
-
Question 5 of 13
5. Question
1 pointsऔद्योगिक नीति प्रस्ताव, 1956 के अंतर्गत निजी क्षेत्र के उद्योगों के लिये ‘लाइसेंस पद्धति’ लागू की गई। इसका प्रमुख उद्देश्य था-
- निर्यात को बढ़ाना।
- पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को बढ़ावा देना।
- अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की मात्रा को नियंत्रित करना।
- जी.डी.पी. में कृषि क्षेत्र की जगह सेवा क्षेत्र के योगदान को बढ़ावा देना।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनियेः
Correct
व्याख्याः भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 को अंगीकार किया गया। इस प्रस्ताव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार उद्योगों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया। प्रथम वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिन पर राज्य का स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिनके लिये निजी क्षेत्रक, सरकारी क्षेत्रक के साथ मिल कर प्रयास कर सकते थे, परंतु जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती। तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते थे। यद्यपि निजी क्षेत्रक में आने वाले उद्योगों का भी एक वर्ग था, लेकिन इस क्षेत्रक को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया। नए उद्योगों को तब तक अनुमति नहीं दी जाती थी, जब तक सरकार से लाइसेंस नहीं प्राप्त कर लिया जाता था। इस नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये किया गया। यदि उद्योग आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लगाए गए, तो लाइसेंस प्राप्त करना आसान था। इसके अतिरिक्त, उन इकाइयों को कुछ रियायतें जैसे, कर लाभ तथा कम प्रशुल्क पर बिजली दी गई। इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देना था। वर्तमान उद्योग को भी उत्पादन बढ़ाने या विविध प्रकार की वस्तुओं की नई किस्मों का उत्पादन करने के लिये लाइसेंस प्राप्त करना होता था। इसका अर्थ यह सुनिश्चित करना था कि उत्पादित वस्तुओं की मात्रा अर्थव्यवस्था में अपेक्षित मात्रा से अधिक न हो।
Incorrect
व्याख्याः भारी उद्योगों पर नियंत्रण रखने के राज्य के लक्ष्य के अनुसार औद्योगिक नीति प्रस्ताव 1956 को अंगीकार किया गया। इस प्रस्ताव को द्वितीय पंचवर्षीय योजना का आधार बनाया गया। इस प्रस्ताव के अनुसार उद्योगों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया। प्रथम वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिन पर राज्य का स्वामित्व था। दूसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जिनके लिये निजी क्षेत्रक, सरकारी क्षेत्रक के साथ मिल कर प्रयास कर सकते थे, परंतु जिनमें नई इकाइयों को शुरू करने की एकमात्र जिम्मेदारी राज्य की होती। तीसरे वर्ग में वे उद्योग शामिल थे, जो निजी क्षेत्रक के अंतर्गत आते थे। यद्यपि निजी क्षेत्रक में आने वाले उद्योगों का भी एक वर्ग था, लेकिन इस क्षेत्रक को लाइसेंस पद्धति के माध्यम से राज्य के नियंत्रण में रखा गया। नए उद्योगों को तब तक अनुमति नहीं दी जाती थी, जब तक सरकार से लाइसेंस नहीं प्राप्त कर लिया जाता था। इस नीति का प्रयोग पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिये किया गया। यदि उद्योग आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में लगाए गए, तो लाइसेंस प्राप्त करना आसान था। इसके अतिरिक्त, उन इकाइयों को कुछ रियायतें जैसे, कर लाभ तथा कम प्रशुल्क पर बिजली दी गई। इस नीति का उद्देश्य क्षेत्रीय समानता को बढ़ावा देना था। वर्तमान उद्योग को भी उत्पादन बढ़ाने या विविध प्रकार की वस्तुओं की नई किस्मों का उत्पादन करने के लिये लाइसेंस प्राप्त करना होता था। इसका अर्थ यह सुनिश्चित करना था कि उत्पादित वस्तुओं की मात्रा अर्थव्यवस्था में अपेक्षित मात्रा से अधिक न हो।
-
Question 6 of 13
6. Question
1 pointsडी.के. कर्वे समिति का संबंध है-
Correct
व्याख्याः 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति का गठन किया गया, जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता था। इस समिति ने इस बात की संभावना पर विचार किया कि ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने के लिये लघु उद्योगों का प्रयोग किया जाए। लघु उद्योग की परिभाषा किसी इकाई की परिसंपत्तियों के लिये दिये जाने वाले अधिकतम निवेश के संदर्भ में दी जाती है। समय के साथ-साथ निवेश की सीमा भी बदलती रही है। 1950 में लघु औद्योगिक इकाई उसे कहा जाता था, जो पाँच लाख रु. का अधिकतम निवेश करती थीं। इस समय, वह उद्योग जहाँ प्लाण्ट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से कम होता है।
Incorrect
व्याख्याः 1955 में ग्राम तथा लघु उद्योग समिति का गठन किया गया, जिसे कर्वे समिति भी कहा जाता था। इस समिति ने इस बात की संभावना पर विचार किया कि ग्राम विकास को प्रोत्साहित करने के लिये लघु उद्योगों का प्रयोग किया जाए। लघु उद्योग की परिभाषा किसी इकाई की परिसंपत्तियों के लिये दिये जाने वाले अधिकतम निवेश के संदर्भ में दी जाती है। समय के साथ-साथ निवेश की सीमा भी बदलती रही है। 1950 में लघु औद्योगिक इकाई उसे कहा जाता था, जो पाँच लाख रु. का अधिकतम निवेश करती थीं। इस समय, वह उद्योग जहाँ प्लाण्ट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रूपए से अधिक लेकिन 5 करोड़ रूपए से कम होता है।
-
Question 7 of 13
7. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-
- आज़ादी के बाद सरकार द्वारा व्यापारिक नीति के तहत आयात-प्रतिस्थापन की नीति को अपनाया गया।
- आयात-प्रतिस्थापन की नीति के तहत आयात को प्रोत्साहित किया जाता है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
Correct
व्याख्याः पहला कथन सत्य है। स्वतंत्रता के बाद अपनाई गई औद्योगिक नीति, व्यापारिक नीति से घनिष्ट रूप से संबंद्ध थी। प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इस नीति को आयात-प्रतिस्थापन कहा जाता है।
आयात-प्रतिस्थापन नीति का उद्देश्य आयात को हतोत्साहित कर ज़रूरत के सामान की आपूर्ति घरेलू उत्पादन द्वारा करना।Incorrect
व्याख्याः पहला कथन सत्य है। स्वतंत्रता के बाद अपनाई गई औद्योगिक नीति, व्यापारिक नीति से घनिष्ट रूप से संबंद्ध थी। प्रथम सात पंचवर्षीय योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इस नीति को आयात-प्रतिस्थापन कहा जाता है।
आयात-प्रतिस्थापन नीति का उद्देश्य आयात को हतोत्साहित कर ज़रूरत के सामान की आपूर्ति घरेलू उत्पादन द्वारा करना। -
Question 8 of 13
8. Question
1 pointsऔपनिवेशिक शासन के अंतर्गत आर्थिक विकास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारत की अपनी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी।
2. औपनिवेशिक शासकों की आर्थिक नीतियाँ शासित देश और वहाँ के लोगों के आर्थिक हितों के संरक्षण और संवर्धन से प्रेरित थीं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः
- अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारत की अपनी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी, परंतु औपनिवेशिक शासन द्वारा अपनाई गई नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था के मूल रूप को बदल कर रख दिया। अतः कथन 1 सही है।
- औपनिवेशिक शासकों की आर्थिक नीतियाँ शासित देश और वहाँ के लोगों के आर्थिक विकास से नहीं बल्कि इंग्लैण्ड के आर्थिक हितों के संरक्षण और संवर्धन से प्रेरित थीं। उदाहरण स्वरूप बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम जबकि प्रतिव्यक्ति उत्पादन वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही थी। अतः कथन 2 गलत है।
Incorrect
व्याख्याः
- अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारत की अपनी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी, परंतु औपनिवेशिक शासन द्वारा अपनाई गई नीतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था के मूल रूप को बदल कर रख दिया। अतः कथन 1 सही है।
- औपनिवेशिक शासकों की आर्थिक नीतियाँ शासित देश और वहाँ के लोगों के आर्थिक विकास से नहीं बल्कि इंग्लैण्ड के आर्थिक हितों के संरक्षण और संवर्धन से प्रेरित थीं। उदाहरण स्वरूप बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम जबकि प्रतिव्यक्ति उत्पादन वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही थी। अतः कथन 2 गलत है।
-
Question 9 of 13
9. Question
1 pointsऔपनिवेशिक शासन के अंतर्गत कृषि के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत बढ़ते उद्योगों के कारण भारत मूलतः एक कृषि अर्थव्यवस्था से एक औद्योगिक अर्थव्यवस्था में बदल गया।
2. इस काल में एक बड़ी जनसंख्या का व्यवसाय होने के बाद भी कृषि क्षेत्र में गतिहीन विकास की प्रक्रिया चलती रही।
3. इस काल में कृषि क्षेत्र में वृद्धि के कारण कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत भारत मूलतः एक कृषि अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसी थी और प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से आजीविका के लिये कृषि पर ही निर्भर थी। अतः कथन 1 गलत है।
- इस काल में एक बड़ी जनसंख्या का व्यवसाय होने के बाद भी कृषि क्षेत्र में गतिहीन विकास की प्रक्रिया चलती रही। इसके साथ ही अनेक अवसरों पर उसमें अप्रत्याशित गिरावट भी आई। हालाँकि इस काल में कृषि क्षेत्र में वृद्धि के कारण कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, परंतु कृषि उत्पादकता में कमी आती रही। कृषि क्षेत्रक की गतिहीनता का मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-राजस्व प्रणालियों को ही माना जा सकता है। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत भारत मूलतः एक कृषि अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसी थी और प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से आजीविका के लिये कृषि पर ही निर्भर थी। अतः कथन 1 गलत है।
- इस काल में एक बड़ी जनसंख्या का व्यवसाय होने के बाद भी कृषि क्षेत्र में गतिहीन विकास की प्रक्रिया चलती रही। इसके साथ ही अनेक अवसरों पर उसमें अप्रत्याशित गिरावट भी आई। हालाँकि इस काल में कृषि क्षेत्र में वृद्धि के कारण कुल कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, परंतु कृषि उत्पादकता में कमी आती रही। कृषि क्षेत्रक की गतिहीनता का मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-राजस्व प्रणालियों को ही माना जा सकता है। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।
-
Question 10 of 13
10. Question
1 pointsऔपनिवेशिक काल में हो रहे वि-औद्योगीकरण के पीछे औपनिवेशिक शासकों के उद्देश्यों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिये कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे।
2. वे इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के उत्पादन के लिये भारत को ही एक विशाल बाज़ार बनाना चाहते थे।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- भारत में हो रहे वि-औद्योगीकरण के पीछे विदेशी अथवा औपनिवेशिक शासकों का दोहरा उद्देश्य था। एक तो वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिये कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे। दूसरे वे इंग्लैंड में विकसित हो रहे उन्हीं आधुनिक उद्योगों के उत्पादन के लिये भारत को ही एक विशाल बाज़ार भी बनाना चाहते थे। इस प्रकार, उन उद्योगों के प्रसार के सहारे वे अपने देश के लिये अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना चाहते थे।
- उल्लेखनीय है कि भारत के औद्योगिक क्षेत्रक में यद्यपि उन्नीसवीं शताब्दी के उतरार्द्ध और बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना हुई परंतु भारत में भावी औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु पूंजीगत उद्योगों का प्रायः अभाव ही बना रहा। पूंजीगत उद्योग वो होते हैं जो तात्कालिक उपभोग में कम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन के लिये मशीनों तथा कलपुर्जों का निर्माण करते हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- भारत में हो रहे वि-औद्योगीकरण के पीछे विदेशी अथवा औपनिवेशिक शासकों का दोहरा उद्देश्य था। एक तो वे भारत को इंग्लैंड में विकसित हो रहे आधुनिक उद्योगों के लिये कच्चे माल का निर्यातक बनाना चाहते थे। दूसरे वे इंग्लैंड में विकसित हो रहे उन्हीं आधुनिक उद्योगों के उत्पादन के लिये भारत को ही एक विशाल बाज़ार भी बनाना चाहते थे। इस प्रकार, उन उद्योगों के प्रसार के सहारे वे अपने देश के लिये अधिकतम लाभ सुनिश्चित करना चाहते थे।
- उल्लेखनीय है कि भारत के औद्योगिक क्षेत्रक में यद्यपि उन्नीसवीं शताब्दी के उतरार्द्ध और बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना हुई परंतु भारत में भावी औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करने हेतु पूंजीगत उद्योगों का प्रायः अभाव ही बना रहा। पूंजीगत उद्योग वो होते हैं जो तात्कालिक उपभोग में कम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन के लिये मशीनों तथा कलपुर्जों का निर्माण करते हैं।
-
Question 11 of 13
11. Question
1 pointsऔपनिवेशिक शासनकाल में विदेशी व्यापार के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा सीमा शुल्क की प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप और आकार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
2. इस काल में भारतीय आयत-निर्यात में निर्यात का आकर आयत के आकार से बड़ा बना रहा।
3. इस काल में निर्यात अधिशेष का देश में सोने और चांदी के प्रवाह पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा सीमा शुल्क की प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप और आकार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जिसके कारण भारत कच्चे उत्पाद जैसे रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया और यह सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्रों जैसी अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं और इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों आदि का आयातक भी बन गया।
- इस काल में भारतीय आयत-निर्यात में निर्यात का आकर आयत के आकार से बड़ा बना रहा अर्थात् निर्यात अधिशेष की स्थिति बनी रही, परंतु इस अधिशेष से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी हानि हुई। इससे देश में सोने और चांदी के प्रवाह पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। असल में इसका प्रयोग तो अंग्रेज़ों की भारत पर शासन करने के लिये गाढ़ी गई व्यवस्था का खर्च उठाने में ही हो जाता था।
- अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि विदेशी व्यापार तो केवल इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति को पोषित कर रहा था।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन, व्यापार तथा सीमा शुल्क की प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना, स्वरूप और आकार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। जिसके कारण भारत कच्चे उत्पाद जैसे रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया और यह सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्रों जैसी अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं और इंग्लैंड के कारखानों में बनी हल्की मशीनों आदि का आयातक भी बन गया।
- इस काल में भारतीय आयत-निर्यात में निर्यात का आकर आयत के आकार से बड़ा बना रहा अर्थात् निर्यात अधिशेष की स्थिति बनी रही, परंतु इस अधिशेष से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी हानि हुई। इससे देश में सोने और चांदी के प्रवाह पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। असल में इसका प्रयोग तो अंग्रेज़ों की भारत पर शासन करने के लिये गाढ़ी गई व्यवस्था का खर्च उठाने में ही हो जाता था।
- अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि विदेशी व्यापार तो केवल इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति को पोषित कर रहा था।
-
Question 12 of 13
12. Question
1 pointsऔपनिवेशिक शासनकाल में भारत में जनांकिकीय परिस्थिति के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
Correct
व्याख्याः
- औपनिवेशिक शासनकाल में भारत की जनसंख्या का विस्तृत ब्योरा सबसे पहले 1881 की जनगणना से एकत्र किया गया। वर्ष 1921 के पूर्व का भारत जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम सोपान में था। द्वितीय सोपान का आरंभ 1921 के बाद से माना जाता है। इस समय तक भारत की जनसंख्या न तो बहुत विशाल थी न ही उसकी संवृद्धि दर बहुत अधिक थी। अतः कथन (a) सही परंतु (b) गलत है।
- सामाजिक विकास के विभिन्न सूचक भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं थे। साक्षरता दर 16 प्रतिशत से कम जबकि महिला साक्षरता दर नगण्य केवल 7 प्रतिशत थी। इस काल में जीवन प्रत्याशा स्तर केवल 32 वर्ष ही कम था। अतः कथन (c) सही है।
- इस काल में सकल मृत्यु दर बहुत ऊँची थी, विशेष रूप से शिशु मृत्यु दर तो चौंकाने वाली थी। पर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, बार-बार प्राकृतिक आपदाओं और अकाल ने जनसामान्य को बहुत ही निर्धन बना दिया और इसके कारण उच्च मृत्यु दर का सामना करना पड़ा। अतः कथन (d) भी सही है।
Incorrect
व्याख्याः
- औपनिवेशिक शासनकाल में भारत की जनसंख्या का विस्तृत ब्योरा सबसे पहले 1881 की जनगणना से एकत्र किया गया। वर्ष 1921 के पूर्व का भारत जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम सोपान में था। द्वितीय सोपान का आरंभ 1921 के बाद से माना जाता है। इस समय तक भारत की जनसंख्या न तो बहुत विशाल थी न ही उसकी संवृद्धि दर बहुत अधिक थी। अतः कथन (a) सही परंतु (b) गलत है।
- सामाजिक विकास के विभिन्न सूचक भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं थे। साक्षरता दर 16 प्रतिशत से कम जबकि महिला साक्षरता दर नगण्य केवल 7 प्रतिशत थी। इस काल में जीवन प्रत्याशा स्तर केवल 32 वर्ष ही कम था। अतः कथन (c) सही है।
- इस काल में सकल मृत्यु दर बहुत ऊँची थी, विशेष रूप से शिशु मृत्यु दर तो चौंकाने वाली थी। पर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव, बार-बार प्राकृतिक आपदाओं और अकाल ने जनसामान्य को बहुत ही निर्धन बना दिया और इसके कारण उच्च मृत्यु दर का सामना करना पड़ा। अतः कथन (d) भी सही है।
-
Question 13 of 13
13. Question
1 pointsऔपनिवेशिक शासनकाल में व्यावसायिक और आधारिक संरचना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. इस काल में सेवा क्षेत्रक विनिर्माण क्षेत्रक की तुलना में अधिक रोज़गार उपलब्ध करता था।
2. औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन और डाक-तार जैसी सेवाओं का विकास जन-सामान्य को अधिक सुविधाएँ देने के उद्देश्य से किया गया।
3. भारत में रेल की शुरुआत ने लोगों को भूक्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक व्यवधानों को कम कर आसानी से लंबी यात्राएँ करने के अवसर दिये।
4. भारत में रेल की शुरुआत से भारतीय कृषि के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?Correct
व्याख्याः
- कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था जो 70 से 75 प्रतिशत जनसंख्या को रोज़गार देता था, जबकि विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रकों में क्रमशः 10 प्रतिशत और 15 से 20 प्रतिशत जन-समुदाय को रोज़गार मिल पा रहा था। अतः कथन 1 सही है।
- औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन और डाक-तार जैसी सेवाओं का विकास हुआ परंतु इसका उद्देश्य जन-सामान्य को अधिक सुविधाएँ देना नहीं बल्कि औपनिवेशिक हितों को साधना था। सड़कों तथा रेलों, आतंरिक व्यापार और समुद्री जलमार्गों का विकास सेनाओं के आवागमन एवं कच्चे माल को बंदरगाह तक पहुँचाने के लिये किया गया जबकि तार व्यवस्था का विकास कानून व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने के लिये किया गया। अतः कथन 2 गलत है।
- रेलों की शुरुआत भले ही जनमानस को सविधा देने के लिये नहीं की गई थी परंतु फिर भी इसने भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना को दो महत्त्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया। एक तो इसने लोगों को भूक्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक व्यवधानों को कम कर आसानी से लंबी यात्राएँ करने के अवसर दिये। दूसरे इससे भारतीय कृषि के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला। किंतु व्यावसायीकरण का भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर विपरीत प्रभाव पड़ा। भारत में निर्यात का स्तर तो बढ़ा परंतु इसका लाभ भारतवासियों को नहीं मिला। अतः सांस्कृतिक लाभ व्यापक होते हुए भी ये देश की आर्थिक हानि की भरपाई में सक्षम नहीं थे। अतः कथन 3 और 4 सही हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था जो 70 से 75 प्रतिशत जनसंख्या को रोज़गार देता था, जबकि विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्रकों में क्रमशः 10 प्रतिशत और 15 से 20 प्रतिशत जन-समुदाय को रोज़गार मिल पा रहा था। अतः कथन 1 सही है।
- औपनिवेशिक शासनकाल के अंतर्गत देश में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन और डाक-तार जैसी सेवाओं का विकास हुआ परंतु इसका उद्देश्य जन-सामान्य को अधिक सुविधाएँ देना नहीं बल्कि औपनिवेशिक हितों को साधना था। सड़कों तथा रेलों, आतंरिक व्यापार और समुद्री जलमार्गों का विकास सेनाओं के आवागमन एवं कच्चे माल को बंदरगाह तक पहुँचाने के लिये किया गया जबकि तार व्यवस्था का विकास कानून व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने के लिये किया गया। अतः कथन 2 गलत है।
- रेलों की शुरुआत भले ही जनमानस को सविधा देने के लिये नहीं की गई थी परंतु फिर भी इसने भारत की अर्थव्यवस्था की संरचना को दो महत्त्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया। एक तो इसने लोगों को भूक्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक व्यवधानों को कम कर आसानी से लंबी यात्राएँ करने के अवसर दिये। दूसरे इससे भारतीय कृषि के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला। किंतु व्यावसायीकरण का भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्वरूप पर विपरीत प्रभाव पड़ा। भारत में निर्यात का स्तर तो बढ़ा परंतु इसका लाभ भारतवासियों को नहीं मिला। अतः सांस्कृतिक लाभ व्यापक होते हुए भी ये देश की आर्थिक हानि की भरपाई में सक्षम नहीं थे। अतः कथन 3 और 4 सही हैं।