सामान्य विज्ञान टेस्ट 8
सामान्य विज्ञान टेस्ट 8
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इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न एन.सी.ई.आर.टी. पर आधारित है|
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Question 1 of 20
1. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन पौधों में जल एवं खनिजों के परिवहन का कार्य करते हैं?
साइटोप्लाजमिक
जाइलम
फ्लोएम
एक्वापोरिन
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनियेःCorrect
व्याख्याः पौधों में जल, खनिज पोषक व कार्बनिक पोषक तत्त्वों का परिवहन साइटोप्लाजमिक धारा, जाइलम एवं फ्लोएम के द्वारा होता है।
Incorrect
व्याख्याः पौधों में जल, खनिज पोषक व कार्बनिक पोषक तत्त्वों का परिवहन साइटोप्लाजमिक धारा, जाइलम एवं फ्लोएम के द्वारा होता है।
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Question 2 of 20
2. Question
1 pointsजीवों की सममिति अवधारणा के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार की
1. असममिति: कोई अक्ष अथवा सतह जो किसी जीव के केंद्र से गुजरती है, तो उसके शरीर को दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती।
2. अरीय सममिति: एक ही अक्ष अथवा सतह से गुजरने वाली रेखा द्वारा प्राणी के शरीर को दो समरूप दाएँ और बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है।
3. द्विपार्श्व सममिति: कोई अक्ष अथवा सतह किसी जीव की केन्द्रीय अक्ष से गुजरती है, तो उसके शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है।
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?Correct
व्याख्याः
प्राणियों को सममिति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये स्पंज प्रायः असममिति होते हैं। असममिति का अर्थ है कोई अक्ष अथवा सतह जो इनके केंद्र से गुजरती है, इनके शरीर को दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती। अतः युग्म 1 सही सुमेलित है।
सीलेंटरेट, टीनोफोर और एकाइनोडर्म में अरीय सममिति होती है। अरीय सममिति अर्थात् कोई अक्ष अथवा सतह किसी जीव की केन्द्रीय अक्ष से गुजरती है, तो उसके शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है। अतः कथन 2 गलत सुमेलित है।
यदि एक ही अक्ष अथवा सतह से गुजरने वाली रेखा द्वारा प्राणी के शरीर को दो समरूप दाएँ और बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है तो ऐसी सममिति द्विपार्श्व सममिति कहलाती है। एनेलिडा और आर्थोपोडा में ऐसी ही सममिति पायी जाती है। अतः कथन 3 भी गलत सुमेलित है।Incorrect
व्याख्याः
प्राणियों को सममिति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये स्पंज प्रायः असममिति होते हैं। असममिति का अर्थ है कोई अक्ष अथवा सतह जो इनके केंद्र से गुजरती है, इनके शरीर को दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती। अतः युग्म 1 सही सुमेलित है।
सीलेंटरेट, टीनोफोर और एकाइनोडर्म में अरीय सममिति होती है। अरीय सममिति अर्थात् कोई अक्ष अथवा सतह किसी जीव की केन्द्रीय अक्ष से गुजरती है, तो उसके शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है। अतः कथन 2 गलत सुमेलित है।
यदि एक ही अक्ष अथवा सतह से गुजरने वाली रेखा द्वारा प्राणी के शरीर को दो समरूप दाएँ और बाएँ भाग में बाँटा जा सकता है तो ऐसी सममिति द्विपार्श्व सममिति कहलाती है। एनेलिडा और आर्थोपोडा में ऐसी ही सममिति पायी जाती है। अतः कथन 3 भी गलत सुमेलित है। -
Question 3 of 20
3. Question
1 pointsसूची-I को सूची-II से सही सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
सूची-I
(विशेषता) सूची-II
(उदाहरण)
A. द्विकोरिक (Diploblastic) 1. सिलेंटरेटा
B. त्रिकोरिक (Triploblastic) 2. एनेलिडा
C. अगुहीय (Acoelomates) 3. प्लेटीहेल्मिंथीज
D. विखण्डावस्था (Metamerism) 4. रज्जुकी
कूटःCorrect
व्याख्याः विकल्प (b) सही उत्तर है।
जिन प्राणियों में कोशिकाएँ दो भ्रूणीय स्तरों बाह्य एक्टोडर्म (बाह्य त्वचा) और आतंरिक एंडोडर्म (अंतः त्वचा) में व्यवस्थित होती हैं, उन्हें द्विकोरिक कहते हैं। सिलेंटरेटा द्विकोरिक प्राणी का उदाहरण है।
जिन प्राणियों में कोशिकाएँ तीन भ्रूणीय स्तरों बाह्य एक्टोडर्म, आतंरिक एंडोडर्म और मीजोडर्म (Mesoderm) में व्यवस्थित होती हैं, उन्हें त्रिकोरिक कहते हैं। प्लेटीहेल्मिंथीज से रज्जुकी (Chordates) तक के प्राणी इसके उदाहरण हैं।
जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती है वे अगुहीय कहलाते हैं। प्लेटीहेल्मिंथीज इसके उदाहरण हैं।
कुछ प्राणियों के शरीर बाह्य और आतंरिक दोनों ओर श्रेणीबद्ध खण्डों में विभाजित होता है, जिसमें कुछ अंगों की पुनरावृत्ति भी होती है। यह प्रक्रिया खंडीभवन (सैगमेंटेशन) कहलाती है। केंचुए जो ऐनेलिडा संघ का प्राणी है, का शरीर ऐसा ही होता है अर्थात् उसके शरीर का विखंडी खंडीभवन (Metameric Segmentation) होता है और यह विखंडावस्था कहलाती है।Incorrect
व्याख्याः विकल्प (b) सही उत्तर है।
जिन प्राणियों में कोशिकाएँ दो भ्रूणीय स्तरों बाह्य एक्टोडर्म (बाह्य त्वचा) और आतंरिक एंडोडर्म (अंतः त्वचा) में व्यवस्थित होती हैं, उन्हें द्विकोरिक कहते हैं। सिलेंटरेटा द्विकोरिक प्राणी का उदाहरण है।
जिन प्राणियों में कोशिकाएँ तीन भ्रूणीय स्तरों बाह्य एक्टोडर्म, आतंरिक एंडोडर्म और मीजोडर्म (Mesoderm) में व्यवस्थित होती हैं, उन्हें त्रिकोरिक कहते हैं। प्लेटीहेल्मिंथीज से रज्जुकी (Chordates) तक के प्राणी इसके उदाहरण हैं।
जिन प्राणियों में शरीर गुहा नहीं पाई जाती है वे अगुहीय कहलाते हैं। प्लेटीहेल्मिंथीज इसके उदाहरण हैं।
कुछ प्राणियों के शरीर बाह्य और आतंरिक दोनों ओर श्रेणीबद्ध खण्डों में विभाजित होता है, जिसमें कुछ अंगों की पुनरावृत्ति भी होती है। यह प्रक्रिया खंडीभवन (सैगमेंटेशन) कहलाती है। केंचुए जो ऐनेलिडा संघ का प्राणी है, का शरीर ऐसा ही होता है अर्थात् उसके शरीर का विखंडी खंडीभवन (Metameric Segmentation) होता है और यह विखंडावस्था कहलाती है। -
Question 4 of 20
4. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. इनके अंतर्गत सामान्यतः स्पंज आते हैं।
2. ये सामान्यतः लवणीय और असममित होते हैं।
3. इनमें जल परिवहन और नाल-तंत्र पाया जाता है।
4. ये उभयलिंगी होते हैं।
उपर्युक्त विशेषताएँ किस संघ को संदर्भित करती हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी विशेषताएँ पोरिफेरा संघ की हैं।
इनके अंतर्गत सामान्यतः स्पंज आते हैं। ये सामान्यतः लवणीय और असममित होते हैं। इनमें जल परिवहन और नाल-तंत्र पाया जाता है। स्पंज में नर और मादा अलग अलग नहीं होते हैं अर्थात् ये उभयलिंगी होते हैं। इनमें संगठन का स्तर कोशिकीय होता है।
एनेलिडा, टीनोफोरा, पोरिफेरा और एस्केल्मिंथीज सभी प्राणी जगत के अंतर्गत आते हैं। प्राणी जगत को विभिन्न संघों में विभाजित किया गया है जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी विशेषताएँ पोरिफेरा संघ की हैं।
इनके अंतर्गत सामान्यतः स्पंज आते हैं। ये सामान्यतः लवणीय और असममित होते हैं। इनमें जल परिवहन और नाल-तंत्र पाया जाता है। स्पंज में नर और मादा अलग अलग नहीं होते हैं अर्थात् ये उभयलिंगी होते हैं। इनमें संगठन का स्तर कोशिकीय होता है।
एनेलिडा, टीनोफोरा, पोरिफेरा और एस्केल्मिंथीज सभी प्राणी जगत के अंतर्गत आते हैं। प्राणी जगत को विभिन्न संघों में विभाजित किया गया है जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है- -
Question 5 of 20
5. Question
1 pointsप्राणियों के वर्गीकरण के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. सिलेंट्रेटा जलीय होते हैं।
2. टीनोफोरा को कंकाल जैली (कॉम्ब जैली) कहते हैं।
3. प्लेटीहेल्मिंथीज के अंतर्गत आने वाले प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे शरीर (Dorso-ventrally flattened body) वाले होते हैं।
4. एस्केल्मिंथीज प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
सिलेंट्रेटा जलीय होते हैं तथा अधिकांशतः समुद्री स्थावर या मुक्त रूप से तैरने वाले सममिति प्राणी हैं। इन्हें नाइडेरिया नाम से भी जाना जाता है। इनमें ऊतक स्तरीय संगठन होता है तथा ये द्विकोश्की (Diploblastic) होते हैं। इनमें पाचन अंतःकोशिक तथा अंतराकोशिकीय दोनों होता है। हाइड्रा, ओरेलिया, ओबेलिया, फाइसेलिया आदि इस संघ के उदाहरण हैं।
टीनोफोरा को सामान्यतः समुद्री अखरोट (सी वालनट) अथवा कंकाल जैली (कॉम्ब जैली) कहते हैं। या सभी समुद्रवासी अरीय सममिति, द्विकोरिक जीव होते हैं तथा इनमें भी ऊतक श्रेणी का संगठन होता है। इनमें पाचन अंतःकोशिक तथा अंतराकोशिकीय दोनों होता है। प्राणियों के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन अर्थात् जीवसंदीप्ती टीनोफोरा की मुख्य विशेषता है। इनमें नर और मादा अलग नहीं होते हैं तथा जनन केवल लैंगिक होता है।
प्लेटीहेल्मिंथीज के अंतर्गत आने वाले प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे शरीर (Dorso-ventrally flattened body) वाले होते हैं। अतः इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है। इस समूह के अधिकांश प्राणी मनुष्य और अन्य प्राणियों में अंतः परजीवी के रूप में पाए जाते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक और अप्रगुही होते हैं। इनमें भी नर और मादा अलग नहीं होते हैं। टीनिया (फीताकृमि), फेसियोला (पर्णकृमि) इसके उदाहरण हैं।
एस्केल्मिंथीज प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है। अतः इन्हें गोलकृमि भी कहते हैं। ये मुक्तजीवी, जलीय अथवा स्थलीय और पौधों तथा प्राणियों में परजीवी भी होते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक और कूटप्रगुही होते हैं। इनका शरीर संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। एस्केरिस (गोलकृमि), वुचेरिया (फाइलेरियाकृमि) आदि इसके उदाहरण हैं।Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
सिलेंट्रेटा जलीय होते हैं तथा अधिकांशतः समुद्री स्थावर या मुक्त रूप से तैरने वाले सममिति प्राणी हैं। इन्हें नाइडेरिया नाम से भी जाना जाता है। इनमें ऊतक स्तरीय संगठन होता है तथा ये द्विकोश्की (Diploblastic) होते हैं। इनमें पाचन अंतःकोशिक तथा अंतराकोशिकीय दोनों होता है। हाइड्रा, ओरेलिया, ओबेलिया, फाइसेलिया आदि इस संघ के उदाहरण हैं।
टीनोफोरा को सामान्यतः समुद्री अखरोट (सी वालनट) अथवा कंकाल जैली (कॉम्ब जैली) कहते हैं। या सभी समुद्रवासी अरीय सममिति, द्विकोरिक जीव होते हैं तथा इनमें भी ऊतक श्रेणी का संगठन होता है। इनमें पाचन अंतःकोशिक तथा अंतराकोशिकीय दोनों होता है। प्राणियों के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन अर्थात् जीवसंदीप्ती टीनोफोरा की मुख्य विशेषता है। इनमें नर और मादा अलग नहीं होते हैं तथा जनन केवल लैंगिक होता है।
प्लेटीहेल्मिंथीज के अंतर्गत आने वाले प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे शरीर (Dorso-ventrally flattened body) वाले होते हैं। अतः इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है। इस समूह के अधिकांश प्राणी मनुष्य और अन्य प्राणियों में अंतः परजीवी के रूप में पाए जाते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक और अप्रगुही होते हैं। इनमें भी नर और मादा अलग नहीं होते हैं। टीनिया (फीताकृमि), फेसियोला (पर्णकृमि) इसके उदाहरण हैं।
एस्केल्मिंथीज प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है। अतः इन्हें गोलकृमि भी कहते हैं। ये मुक्तजीवी, जलीय अथवा स्थलीय और पौधों तथा प्राणियों में परजीवी भी होते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिक और कूटप्रगुही होते हैं। इनका शरीर संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। एस्केरिस (गोलकृमि), वुचेरिया (फाइलेरियाकृमि) आदि इसके उदाहरण हैं। -
Question 6 of 20
6. Question
1 pointsप्राणी जगत के विभिन्न वर्गों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. केंचुआ और जोंक दोनों उभयलिंगाश्रयी हैं।
2. आर्थोपोडा प्राणी जगत का सबसे छोटा संघ है।
3. मोलस्का प्राणी जगत का दूसरा सबसे बड़ा समूह है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः
केंचुआ और जोंक एनेलिडा संघ के अंतर्गत आते हैं। एनेलिडा के प्राणी जलीय (लवणीय और अलवणीय जल) या स्थलीय स्वतंत्र जीव हैं। इनमें कुछ परजीवी भी आते हैं। ये अंगतंत्र स्तर के संगठन को प्रदर्शित करते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति (Bilateral Symmetry), त्रिकोरिकी (Triploblastic) , विखंडित खंडित (Metamerically Segmented) और गुहीय (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनकी शरीर की सतह स्पष्टतः खंड या विखंडों में बँटी होती है। नेरिस, फेरेटिमा (केंचुआ) और हीरुडिनेरिया (रक्तचूषक जोंक) एनेलिडा के उदाहरण हैं। नेरिस में नर तथा मादा अलग-अलग (एकलिंगाश्रयी) होते हैं लेकिन केंचुआ और जोंक में नर तथा मादा अलग नहीं (उभयलिंगाश्रयी) होते हैं। अतः कथन 1 सही है।
कथन 2 गलत है क्योंकि आर्थोपोडा प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। इसमें कीट भी सम्मिलित हैं। पृथ्वी पर लगभग दो तिहाई जातियाँ आर्थोपोडा ही हैं। ये द्विपार्श्व सममिति (Bilaterally Symmetrical), त्रिकोरिकी, विखंडित (Segmented) और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनका शरीर काईटीनी वहिकंकाल का बना होता है। इसमें नर और मादा पृथक होते हैं और अधिकांशतः अंडप्रजक होते हैं।
मोलस्का प्राणी जगत का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। अतः कथन 3 सही है। मोलस्का संघ के प्राणी जलीय (लवणीय और अलवणीय जल) या स्थलीय जीव होते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनका शरीर कोमल लेकिन कठोर कैल्शियम के कवच से ढका होता है। इसमें नर और मादा पृथक होते हैं। इनका शरीर अखंडित, पेशीय पाद और एक अंतरंग ककुद होता है। भोजन के लिये रेतीजिह्वा (रेडुला अर्थात् रेती के समान घिसने का अंग) होती है। सामान्यतः इनमें नर और मादा अलग-अलग होते हैं।Incorrect
व्याख्याः
केंचुआ और जोंक एनेलिडा संघ के अंतर्गत आते हैं। एनेलिडा के प्राणी जलीय (लवणीय और अलवणीय जल) या स्थलीय स्वतंत्र जीव हैं। इनमें कुछ परजीवी भी आते हैं। ये अंगतंत्र स्तर के संगठन को प्रदर्शित करते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति (Bilateral Symmetry), त्रिकोरिकी (Triploblastic) , विखंडित खंडित (Metamerically Segmented) और गुहीय (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनकी शरीर की सतह स्पष्टतः खंड या विखंडों में बँटी होती है। नेरिस, फेरेटिमा (केंचुआ) और हीरुडिनेरिया (रक्तचूषक जोंक) एनेलिडा के उदाहरण हैं। नेरिस में नर तथा मादा अलग-अलग (एकलिंगाश्रयी) होते हैं लेकिन केंचुआ और जोंक में नर तथा मादा अलग नहीं (उभयलिंगाश्रयी) होते हैं। अतः कथन 1 सही है।
कथन 2 गलत है क्योंकि आर्थोपोडा प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। इसमें कीट भी सम्मिलित हैं। पृथ्वी पर लगभग दो तिहाई जातियाँ आर्थोपोडा ही हैं। ये द्विपार्श्व सममिति (Bilaterally Symmetrical), त्रिकोरिकी, विखंडित (Segmented) और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनका शरीर काईटीनी वहिकंकाल का बना होता है। इसमें नर और मादा पृथक होते हैं और अधिकांशतः अंडप्रजक होते हैं।
मोलस्का प्राणी जगत का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। अतः कथन 3 सही है। मोलस्का संघ के प्राणी जलीय (लवणीय और अलवणीय जल) या स्थलीय जीव होते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनका शरीर कोमल लेकिन कठोर कैल्शियम के कवच से ढका होता है। इसमें नर और मादा पृथक होते हैं। इनका शरीर अखंडित, पेशीय पाद और एक अंतरंग ककुद होता है। भोजन के लिये रेतीजिह्वा (रेडुला अर्थात् रेती के समान घिसने का अंग) होती है। सामान्यतः इनमें नर और मादा अलग-अलग होते हैं। -
Question 7 of 20
7. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. यूरोकॉर्डेटा या ट्यूनिकेटा 2. सेफैलोकॉर्डेटा 3. वर्टीब्रेटा
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कॉर्डेटा संघ के अंतर्गत आता/आते है/हैं?Correct
व्याख्याः कॉर्डेटा संघ को तीन उपसघों में विभाजित किया गया है- यूरोकॉर्डेटा या ट्यूनिकेटा, सेफैलोकॉर्डेटा और वर्टीब्रेटा (कशेरुकी)। उपसंघ यूरोकॉर्डेटा और सेफैलोकॉर्डेटा को सामान्यतः प्रोटोकॉर्डेटा कहते हैं। ये सभी समुद्री प्राणी हैं। यूरोकॉर्डेटा में पृष्ठ रज्जु केवल लारवा की पूँछ में पाई जाती है जबकि सेफैलोकॉर्डेटा में पृष्ठ रज्जु सर से पूँछ तक फैली रहती है जो कि जीवन के अंत तक बनी रहती है। वर्टीब्रेटा के प्राणियों में पृष्ठरज्जु भ्रूणीय अवस्था में पाई जाती है। व्यस्क में पृष्ठ रज्जु अस्थिल अथवा उपास्थिल मेरुदंड में परिवर्तित हो जाती है। कशेरुकी रज्जुकी भी हैं परंतु सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं होते। रज्जुकी के मुख्य लक्षण के अतिरिक्त कशेरुकी में दो, तीन अथवा चार प्रकोष्ठ वाला पेशीय अधर हृदय होता है। वृक्क उत्सर्जन और जल संतुलन का कार्य करते हैं। वर्टीब्रेटा को पुनः निम्न उपवर्गों में विभाजित किया गया है-
Incorrect
व्याख्याः कॉर्डेटा संघ को तीन उपसघों में विभाजित किया गया है- यूरोकॉर्डेटा या ट्यूनिकेटा, सेफैलोकॉर्डेटा और वर्टीब्रेटा (कशेरुकी)। उपसंघ यूरोकॉर्डेटा और सेफैलोकॉर्डेटा को सामान्यतः प्रोटोकॉर्डेटा कहते हैं। ये सभी समुद्री प्राणी हैं। यूरोकॉर्डेटा में पृष्ठ रज्जु केवल लारवा की पूँछ में पाई जाती है जबकि सेफैलोकॉर्डेटा में पृष्ठ रज्जु सर से पूँछ तक फैली रहती है जो कि जीवन के अंत तक बनी रहती है। वर्टीब्रेटा के प्राणियों में पृष्ठरज्जु भ्रूणीय अवस्था में पाई जाती है। व्यस्क में पृष्ठ रज्जु अस्थिल अथवा उपास्थिल मेरुदंड में परिवर्तित हो जाती है। कशेरुकी रज्जुकी भी हैं परंतु सभी रज्जुकी कशेरुकी नहीं होते। रज्जुकी के मुख्य लक्षण के अतिरिक्त कशेरुकी में दो, तीन अथवा चार प्रकोष्ठ वाला पेशीय अधर हृदय होता है। वृक्क उत्सर्जन और जल संतुलन का कार्य करते हैं। वर्टीब्रेटा को पुनः निम्न उपवर्गों में विभाजित किया गया है-
-
Question 8 of 20
8. Question
1 pointsरज्जुकी तथा अरज्जुकी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. रज्जुकी में पृष्ठ रज्जु उपस्थित जबकि अरज्जुकी में अनुपस्थित होती है।
2. रज्जुकी में हृदय अधर भाग में जबकि अरज्जुकी में पृष्ठ भाग में होता है।
3. रज्जुकी में एक गुदा-पश्च पुच्छ उपस्थित जबकि अरज्जुकी में अनुपस्थित होती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं। रज्जुकी और अरज्जुकी के लक्षणों और उनमें अंतर को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-
क्र.सं. रज्जुकी अरज्जुकी 1. पृष्ठ रज्जु उपस्थित पृष्ठ रज्जु अनुपस्थित 2. हृदय अधर भाग में हृदय पृष्ठ भाग में 3. एक गुदा-पश्च पुच्छ उपस्थित एक गुदा-पश्च पुच्छ अनुपस्थित 4. केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र, पृष्ठीय एवं खोखला और एकल केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र अधरतल में, ठोस एवं दोहरा होता है। 5. ग्रसनी में क्लोम छिद्र उपस्थित क्लोम छिद्र अनुपस्थित Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं। रज्जुकी और अरज्जुकी के लक्षणों और उनमें अंतर को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-
क्र.सं. रज्जुकी अरज्जुकी 1. पृष्ठ रज्जु उपस्थित पृष्ठ रज्जु अनुपस्थित 2. हृदय अधर भाग में हृदय पृष्ठ भाग में 3. एक गुदा-पश्च पुच्छ उपस्थित एक गुदा-पश्च पुच्छ अनुपस्थित 4. केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र, पृष्ठीय एवं खोखला और एकल केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र अधरतल में, ठोस एवं दोहरा होता है। 5. ग्रसनी में क्लोम छिद्र उपस्थित क्लोम छिद्र अनुपस्थित -
Question 9 of 20
9. Question
1 pointsवर्टीब्रेटा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. अनैथोस्टोमाटा (Agnatha) में जबड़ों का अभाव होता है।
2. पीसीज (Pisces) में पख (Bear Fins)उपस्थित होते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- वर्टीब्रेटा को अनैथोस्टोमाटा और नैथोस्टोमेटा में वर्गीकृत किया जाता है। अनैथोस्टोमाटा (Agnatha) में जबड़ों का अभाव होता है। अनैथोस्टोमाटा के अंतर्गत साइक्लोस्टोमेटा आते हैं। साइक्लोस्टोमेटा वर्ग के सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं। इनका शरीर लंबा होता है जिसमें श्वसन के लिये क्लोम होते हैं। इनमें बिना जबड़ों के चूसक और वृत्ताकार मुख होता है। इनमें परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है। ये समुद्री होते हैं परंतु जनन के लिये अलवणीय जल में प्रवास करते हैं। पेट्रोमाइजॉन (लैम्प्रे) तथा मिक्सीन (हैग फिश) इनके उदाहरण हैं।
- पीसीज के अंतर्गत दो वर्ग केंड्रीक्थीज और ओस्टिकथीज आते हैं। इनमें पख उपस्थित होते हैं।
♦ केंड्रीक्थीज ये धारारेखीय शरीर के समुद्री प्राणी हैं। इनमें दो प्रकोष्ठ वाला हृदय होता है। इनमें से कुछ में विद्युत अंग होते हैं (टारपीडो) तथा कुछ में विष दंश (ट्रायगोन) होते हैं। इनमें अंतःकंकाल उपास्थिल होता है। ये सब असमतापी (पोइकिलोथर्मिक) हैं अर्थात् इनमें शरीर का ताप नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है। स्कॉलियोडोन (कुत्ता मछली), प्रीस्टिस (आरा मछली), कारकेरोडोन (विशाल सफेद शार्क), ट्राइगोन (व्हेल शार्क) इसके उदाहरण हैं।
♦ ओस्टिकथीज वर्ग की मछलियाँ लवणीय तथा अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाई जाती हैं। इनमें अंतः कंकाल अस्थिल तथा शरीर धारारेखीय होता है। ये सभी असमतापी होते हैं। ये अधिकांशतः अंडज होते हैं। समुद्री-एक्सोसिटस (उड़न मछली), हिपोकेम्पस (समुद्री घोड़ा), अलवणीयलेबिओ (रोहु), कलेरियस (मांगुर), एक्वोरियम बेटा (फाइटिंग फिश), पेट्रोप्इसम (एंगज मछली) इसके उदाहरण हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- वर्टीब्रेटा को अनैथोस्टोमाटा और नैथोस्टोमेटा में वर्गीकृत किया जाता है। अनैथोस्टोमाटा (Agnatha) में जबड़ों का अभाव होता है। अनैथोस्टोमाटा के अंतर्गत साइक्लोस्टोमेटा आते हैं। साइक्लोस्टोमेटा वर्ग के सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं। इनका शरीर लंबा होता है जिसमें श्वसन के लिये क्लोम होते हैं। इनमें बिना जबड़ों के चूसक और वृत्ताकार मुख होता है। इनमें परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है। ये समुद्री होते हैं परंतु जनन के लिये अलवणीय जल में प्रवास करते हैं। पेट्रोमाइजॉन (लैम्प्रे) तथा मिक्सीन (हैग फिश) इनके उदाहरण हैं।
- पीसीज के अंतर्गत दो वर्ग केंड्रीक्थीज और ओस्टिकथीज आते हैं। इनमें पख उपस्थित होते हैं।
♦ केंड्रीक्थीज ये धारारेखीय शरीर के समुद्री प्राणी हैं। इनमें दो प्रकोष्ठ वाला हृदय होता है। इनमें से कुछ में विद्युत अंग होते हैं (टारपीडो) तथा कुछ में विष दंश (ट्रायगोन) होते हैं। इनमें अंतःकंकाल उपास्थिल होता है। ये सब असमतापी (पोइकिलोथर्मिक) हैं अर्थात् इनमें शरीर का ताप नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है। स्कॉलियोडोन (कुत्ता मछली), प्रीस्टिस (आरा मछली), कारकेरोडोन (विशाल सफेद शार्क), ट्राइगोन (व्हेल शार्क) इसके उदाहरण हैं।
♦ ओस्टिकथीज वर्ग की मछलियाँ लवणीय तथा अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाई जाती हैं। इनमें अंतः कंकाल अस्थिल तथा शरीर धारारेखीय होता है। ये सभी असमतापी होते हैं। ये अधिकांशतः अंडज होते हैं। समुद्री-एक्सोसिटस (उड़न मछली), हिपोकेम्पस (समुद्री घोड़ा), अलवणीयलेबिओ (रोहु), कलेरियस (मांगुर), एक्वोरियम बेटा (फाइटिंग फिश), पेट्रोप्इसम (एंगज मछली) इसके उदाहरण हैं।
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Question 10 of 20
10. Question
1 pointsसूची-I को सूची-II से सही सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:सूची-I
(वर्ग)सूची-II
(प्राणी)A. एंफीबियन 1. कंगारू B. सरीसृप 2. मेंढक C. एवीज 3. कछुआ D. स्तनधारी 4. शुतुरमुर्ग कूटः
Correct
व्याख्याः विकल्प (a) सही उत्तर है।- एंफीबियन अथवा उभयचर दोनों में रह सकते हैं। इनमें अधिकांश में दो जोड़ी पैर और कुछ में पूँछ उपस्थित होती है। शरीर सिर तथा धड़ में विभाजित होता है। त्वचा नम (शल्क रहित) होती है और नेत्र पलक वाले होते हैं। बाह्य कर्ण की जगह कर्णपटल पाया जाता है। हृदय तीन प्रकोष्ठ का बना होता है। ये असमतापी प्राणी हैं। इनमें नर और मादा अलग-अलग होते हैं। निषेचन बाह्य होता है तथा इनमें अंडोत्सर्जन होता है। बूफो (टोड), राना टिग्रीना (मेंढक), हायला (वृक्ष मेंढक), सैलेमेंड्रा (सैलामेंडर), इक्थियोफिस (पाद रहित उभयचर) इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- सरीसृप के अंतर्गत रेंगने या सरकने वाले प्राणी आते हैं। ये अधिकांशतः स्थलीय हैं। इनकी त्वचा शल्क युक्त होती है और इनमें किरेटिन द्वारा निर्मित बाह्य त्वचीय शल्क या प्रशल्क पाए जाते हैं। इनमें बाह्य कर्ण छिद्र नहीं पाए जाते हैं। कर्णपटल बाह्य कान का प्रतिनिधित्व करता है। दो जोड़ी पाद उपस्थित हो सकते हैं और हृदय सामान्यतः तीन प्रकोष्ठ का होता है (किंतु मगरमच्छ में चार प्रकोष्ठ का होता है)। सरीसृप असमतापी होते हैं। सर्प और छिपकली अपने अपनी शल्क को त्वचीय केंचुल के रूप में छोड़ते हैं। टर्टल, टोरटॉइज, छिपकली, घड़ियाल, कोबरा सर्प आदि इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- एवीज अथवा पक्षी वर्ग में शरीर के ऊपर पंखों की उपस्थिति तथा उड़ने की क्षमता (कुछ न उड़ पाने वाले पक्षियों जैसे शुतुरमुर्ग को छोड़कर), इस वर्ग के मुख्य लक्षण हैं। इनमें अग्र पाद रूपांतरित होकर पंख बनाते हैं। इनकी पूंछ में तेल ग्रंथि को छोड़कर कोई भी त्वचा ग्रंथि नहीं होती है। अंतःकंकाल की लंबी अस्थियाँ खोखली और वायु प्रकोष्ठ युक्त होती हैं। हृदय पूर्ण चार प्रकोष्ठ का होता है। ये समतापी होते हैं अर्थात् इनके शरीर का ताप नियत बना रहता है चील, शुतुरमुर्ग, तोता, मोर, पेंग्विन, गिद्ध आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
- स्तनधारी सभी प्रकार के वातावरण में पाए जाते हैं। इनका सबसे मुख्य लक्षण स्तन ग्रंथियाँ हैं। इनकी त्वचा पर रोम पाए जाते हैं। इनमें बाह्य कर्णपल्लव तथा हृदय चार प्रकोष्ठ का होता है। इनमें लिंग अलग और निषेचन आतंरिक होता है। कुछ को छोड़कर सभी स्तनधारी बच्चों को जन्म देते हैं। डकबिल, कंगारू, चमगादड़, ब्लूव्हेल, फ्लाइंग फौक्स, ऊँट, बंदर, चूहा, कुत्ता, बिल्ली, हाथी, घोड़ा, सामान्य डोल्फिन, बाघ, शेर आदि इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
Incorrect
व्याख्याः विकल्प (a) सही उत्तर है।- एंफीबियन अथवा उभयचर दोनों में रह सकते हैं। इनमें अधिकांश में दो जोड़ी पैर और कुछ में पूँछ उपस्थित होती है। शरीर सिर तथा धड़ में विभाजित होता है। त्वचा नम (शल्क रहित) होती है और नेत्र पलक वाले होते हैं। बाह्य कर्ण की जगह कर्णपटल पाया जाता है। हृदय तीन प्रकोष्ठ का बना होता है। ये असमतापी प्राणी हैं। इनमें नर और मादा अलग-अलग होते हैं। निषेचन बाह्य होता है तथा इनमें अंडोत्सर्जन होता है। बूफो (टोड), राना टिग्रीना (मेंढक), हायला (वृक्ष मेंढक), सैलेमेंड्रा (सैलामेंडर), इक्थियोफिस (पाद रहित उभयचर) इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- सरीसृप के अंतर्गत रेंगने या सरकने वाले प्राणी आते हैं। ये अधिकांशतः स्थलीय हैं। इनकी त्वचा शल्क युक्त होती है और इनमें किरेटिन द्वारा निर्मित बाह्य त्वचीय शल्क या प्रशल्क पाए जाते हैं। इनमें बाह्य कर्ण छिद्र नहीं पाए जाते हैं। कर्णपटल बाह्य कान का प्रतिनिधित्व करता है। दो जोड़ी पाद उपस्थित हो सकते हैं और हृदय सामान्यतः तीन प्रकोष्ठ का होता है (किंतु मगरमच्छ में चार प्रकोष्ठ का होता है)। सरीसृप असमतापी होते हैं। सर्प और छिपकली अपने अपनी शल्क को त्वचीय केंचुल के रूप में छोड़ते हैं। टर्टल, टोरटॉइज, छिपकली, घड़ियाल, कोबरा सर्प आदि इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- एवीज अथवा पक्षी वर्ग में शरीर के ऊपर पंखों की उपस्थिति तथा उड़ने की क्षमता (कुछ न उड़ पाने वाले पक्षियों जैसे शुतुरमुर्ग को छोड़कर), इस वर्ग के मुख्य लक्षण हैं। इनमें अग्र पाद रूपांतरित होकर पंख बनाते हैं। इनकी पूंछ में तेल ग्रंथि को छोड़कर कोई भी त्वचा ग्रंथि नहीं होती है। अंतःकंकाल की लंबी अस्थियाँ खोखली और वायु प्रकोष्ठ युक्त होती हैं। हृदय पूर्ण चार प्रकोष्ठ का होता है। ये समतापी होते हैं अर्थात् इनके शरीर का ताप नियत बना रहता है चील, शुतुरमुर्ग, तोता, मोर, पेंग्विन, गिद्ध आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
- स्तनधारी सभी प्रकार के वातावरण में पाए जाते हैं। इनका सबसे मुख्य लक्षण स्तन ग्रंथियाँ हैं। इनकी त्वचा पर रोम पाए जाते हैं। इनमें बाह्य कर्णपल्लव तथा हृदय चार प्रकोष्ठ का होता है। इनमें लिंग अलग और निषेचन आतंरिक होता है। कुछ को छोड़कर सभी स्तनधारी बच्चों को जन्म देते हैं। डकबिल, कंगारू, चमगादड़, ब्लूव्हेल, फ्लाइंग फौक्स, ऊँट, बंदर, चूहा, कुत्ता, बिल्ली, हाथी, घोड़ा, सामान्य डोल्फिन, बाघ, शेर आदि इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
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Question 11 of 20
11. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. इस संघ के प्राणियों में कैल्शियम युक्त अंतःकंकाल पाया जाता है।
2. इनमें वयस्क अरीय रूप से सममिति (Radially Symmetrical) होते हैं, जबकि लार्वा द्विपार्श्व रूप से सममिति (Bilaterally Symmetrical) होते हैं।
3. ये सभी समुद्रवासी हैं तथा जल संवहन-तंत्र इस संघ की विशिष्टता है।
4. इनमें पूर्ण पाचन तंत्र पाया जाता है तथा स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है।
उपर्युक्त विशेषताएँ किस संघ को संदर्भित करती हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी विशेषताएँ एकाइनोडर्मेटा संघ की हैं।
- एकाइनोडर्मेटा के प्राणियों में कैल्शियम युक्त अंतःकंकाल पाया जाता है। अतः इन्हें शूलयुक्त प्राणी भी कहते हैं। ये सभी समुद्रवासी हैं तथा इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन है। इनमें वयस्क अरीय रूप से सममिति (Radially Symmetrical) होते हैं, जबकि लार्वा द्विपार्श्व रूप से सममिति (Bilaterally Symmetrical) होते हैं। ये त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। जल संवहन-तंत्र इस संघ की विशिष्टता है। इनमें पूर्ण पाचन तंत्र पाया जाता है तथा स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है।
- हेमीकार्डेटा को अरज्जुकियों में एक अलग संघ के रूप में रखा गया है। इस संघ के प्राणी कृमि के समान और समुद्री जीव हैं जिनका संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। ये सब द्विपार्श्व रूप से सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनमें परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है।
- कार्डेटा (रज्जुकी) संघ के प्राणियों में तीन मूलभूत लक्षण पृष्ठ रज्जु (Notochord), एक पृष्ठ खोखली तंत्रिका-रज्जु (A Dorsal Hollow Nerve Cord) तथा युग्मित ग्रसनी क्लोम छिद्र (Paired Pharyngeal Gill Slits) पाए जाते हैं। ये सब द्विपार्श्व रूप से सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन होता है। इनमें गुदा-पश्च पुच्छ (A Post Anal Tail) और बंद परिसंचरण तंत्र होता है।
- पोरीफेरा के अंतर्गत सामान्यतः स्पंज आते हैं। ये सामान्यतः लवणीय और असममित होते हैं। इनमें जल परिवहन और नाल-तंत्र पाया जाता है। स्पंज में नर और मादा अलग अलग नहीं होते हैं अर्थात् ये उभयलिंगी होते हैं। इनमें संगठन का स्तर कोशिकीय होता है।
- प्राणी जगत के विभिन्न संघों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी विशेषताएँ एकाइनोडर्मेटा संघ की हैं।
- एकाइनोडर्मेटा के प्राणियों में कैल्शियम युक्त अंतःकंकाल पाया जाता है। अतः इन्हें शूलयुक्त प्राणी भी कहते हैं। ये सभी समुद्रवासी हैं तथा इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन है। इनमें वयस्क अरीय रूप से सममिति (Radially Symmetrical) होते हैं, जबकि लार्वा द्विपार्श्व रूप से सममिति (Bilaterally Symmetrical) होते हैं। ये त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। जल संवहन-तंत्र इस संघ की विशिष्टता है। इनमें पूर्ण पाचन तंत्र पाया जाता है तथा स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है।
- हेमीकार्डेटा को अरज्जुकियों में एक अलग संघ के रूप में रखा गया है। इस संघ के प्राणी कृमि के समान और समुद्री जीव हैं जिनका संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। ये सब द्विपार्श्व रूप से सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनमें परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है।
- कार्डेटा (रज्जुकी) संघ के प्राणियों में तीन मूलभूत लक्षण पृष्ठ रज्जु (Notochord), एक पृष्ठ खोखली तंत्रिका-रज्जु (A Dorsal Hollow Nerve Cord) तथा युग्मित ग्रसनी क्लोम छिद्र (Paired Pharyngeal Gill Slits) पाए जाते हैं। ये सब द्विपार्श्व रूप से सममिति, त्रिकोरिकी और प्रगुही (Coelomate) प्राणी होते हैं। इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन होता है। इनमें गुदा-पश्च पुच्छ (A Post Anal Tail) और बंद परिसंचरण तंत्र होता है।
- पोरीफेरा के अंतर्गत सामान्यतः स्पंज आते हैं। ये सामान्यतः लवणीय और असममित होते हैं। इनमें जल परिवहन और नाल-तंत्र पाया जाता है। स्पंज में नर और मादा अलग अलग नहीं होते हैं अर्थात् ये उभयलिंगी होते हैं। इनमें संगठन का स्तर कोशिकीय होता है।
- प्राणी जगत के विभिन्न संघों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
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Question 12 of 20
12. Question
1 pointsनिम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियेः1.हरे शैवाल : क्लोरोफाइसी
2.लाल शैवाल : फियोफाइसी
3.भूरे शैवाल : रोडोफाइसी
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?Correct
व्याख्याः शैवाल को मुख्यतः 3 भागों क्लोरोफाइसी , रोडोफाइसी और फियोफाइसी में विभक्त किया जाता है।
- क्लोरोफाइसी के अंतर्गत आने वाले सदस्यों को प्रायः हरे शैवाल कहते हैं।
- रोडोफाइसी लाल शैवाल होते हैं। इनका लाल रंग आर-फाइकोएरिथ्रिन नामक लाल वर्णक के कारण होता है। इनकी बहुलता समुद्र के गर्म क्षेत्र में अधिक होती है।
- फियोफाइसी भूरे शैवाल हैं जो मुख्यतः समुद्री आवास में पाए जाते हैं।
Incorrect
व्याख्याः शैवाल को मुख्यतः 3 भागों क्लोरोफाइसी , रोडोफाइसी और फियोफाइसी में विभक्त किया जाता है।
- क्लोरोफाइसी के अंतर्गत आने वाले सदस्यों को प्रायः हरे शैवाल कहते हैं।
- रोडोफाइसी लाल शैवाल होते हैं। इनका लाल रंग आर-फाइकोएरिथ्रिन नामक लाल वर्णक के कारण होता है। इनकी बहुलता समुद्र के गर्म क्षेत्र में अधिक होती है।
- फियोफाइसी भूरे शैवाल हैं जो मुख्यतः समुद्री आवास में पाए जाते हैं।
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Question 13 of 20
13. Question
1 pointsब्रायोफाइट के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1.ये भूमि पर जीवित रह सकते हैं परंतु लैंगिक जनन के लिये जल पर निर्भर करते हैं।
2.इनमें वास्तविक मूल, तना अथवा पत्तियाँ नहीं होती।
3.इन्हें युग्मकोद्भिद् (Gametophyte) नाम से भी जाना जाता है।
4.इनका उपयोग सजीव पदार्थों के स्थानांतरण के समय उनकी पैकिंग में किया जाता है क्योंकि इनमें पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- ब्रायोफाइट के अंतर्गत विभिन्न मॉस और लिवरवर्ट आते हैं। ये भूमि पर जीवित रह सकते हैं परंतु लैंगिक जनन के लिये जल पर निर्भर करते हैं, इसलिये इन्हें पादप जगत का जलचर भी कहा जाता है।
- इनमें वास्तविक मूल, तना अथवा पत्तियों का अभाव होता है।
- इनकी मुख्यकाय (Main Plant body) अगुणित (Haploid) होती है और ये युग्मक (Gamete) उत्पन्न करते हैं, इसलिये इन्हें युग्म्कोद्भिद् (Gametophyte) भी कहा जाता है।
- इनका उपयोग सजीव पदार्थों के स्थानांतरण के समय उनकी पैकिंग में किया जाता है क्योंकि इनमें पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है।
- उल्लेखनीय है कि ब्रायोफाइट का आर्थिक महत्त्व बहुत कम है। इनमें स्फेगनम की कुछ स्पीशीज से पीट प्राप्त होता है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
- मॉस मृदा अपक्षरण को रोकते हैं। ये मिट्टी पर एक सघन परत बना देते हैं जिस कारण वर्षा की बौछारें मृदा को हानि नहीं पहुँचा पाती। लाइकेन के साथ मॉस भी सर्वप्रथम चट्टानों पर उगने वाले सजीवों में सम्मिलित हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- ब्रायोफाइट के अंतर्गत विभिन्न मॉस और लिवरवर्ट आते हैं। ये भूमि पर जीवित रह सकते हैं परंतु लैंगिक जनन के लिये जल पर निर्भर करते हैं, इसलिये इन्हें पादप जगत का जलचर भी कहा जाता है।
- इनमें वास्तविक मूल, तना अथवा पत्तियों का अभाव होता है।
- इनकी मुख्यकाय (Main Plant body) अगुणित (Haploid) होती है और ये युग्मक (Gamete) उत्पन्न करते हैं, इसलिये इन्हें युग्म्कोद्भिद् (Gametophyte) भी कहा जाता है।
- इनका उपयोग सजीव पदार्थों के स्थानांतरण के समय उनकी पैकिंग में किया जाता है क्योंकि इनमें पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है।
- उल्लेखनीय है कि ब्रायोफाइट का आर्थिक महत्त्व बहुत कम है। इनमें स्फेगनम की कुछ स्पीशीज से पीट प्राप्त होता है जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
- मॉस मृदा अपक्षरण को रोकते हैं। ये मिट्टी पर एक सघन परत बना देते हैं जिस कारण वर्षा की बौछारें मृदा को हानि नहीं पहुँचा पाती। लाइकेन के साथ मॉस भी सर्वप्रथम चट्टानों पर उगने वाले सजीवों में सम्मिलित हैं।
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Question 14 of 20
14. Question
1 pointsटैरिडोफाइट के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.विकास की दृष्टि से ये सर्वप्रथम स्थल पर उगने वाले संवहन ऊतक युक्त पौधे हैं।
2.इसमें मुख्य पदापकाय (Plant Body) स्पोरोफाइट होते हैं, जिनमें वास्तविक मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं।
3.इनका सजावट में बहुत अधिक आर्थिक महत्त्व है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- टैरिडोफाइट के अंतर्गत हॉर्सटेल और फर्न आते हैं। सामान्यतः ये ठंडे, गीले और छायादार स्थानों एवं कुछ रेतीली मिट्टी में पाए जाते हैं। विकास की दृष्टि से ये सर्वप्रथम स्थल पर उगने वाले संवहन ऊतक (जाइलम और फ्लोएम) युक्त पौधे हैं।
- इसमें मुख्य पदापकाय (Plant Body) स्पोरोफाइट होते हैं, जिनमें वास्तविक मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं।
- इनका सजावट में बहुत अधिक आर्थिक महत्त्व है। फूल वाले अधिकांश फर्न का उपयोग सजाने में करते हैं तथा सजावटी पौधों के रूप में उगाते हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- टैरिडोफाइट के अंतर्गत हॉर्सटेल और फर्न आते हैं। सामान्यतः ये ठंडे, गीले और छायादार स्थानों एवं कुछ रेतीली मिट्टी में पाए जाते हैं। विकास की दृष्टि से ये सर्वप्रथम स्थल पर उगने वाले संवहन ऊतक (जाइलम और फ्लोएम) युक्त पौधे हैं।
- इसमें मुख्य पदापकाय (Plant Body) स्पोरोफाइट होते हैं, जिनमें वास्तविक मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं।
- इनका सजावट में बहुत अधिक आर्थिक महत्त्व है। फूल वाले अधिकांश फर्न का उपयोग सजाने में करते हैं तथा सजावटी पौधों के रूप में उगाते हैं।
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Question 15 of 20
15. Question
1 pointsजिम्नोस्पर्म के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1.इनमें बीजांड (Ovules) निषेचन से पूर्व अनावृत होते हैं जो निषेचन के बाद आवृत हो जाते हैं।
2.इनकी मूल प्रायः मूसला होती है।
3.इनमें पत्तियाँ अधिक ताप, नमी और वायु को सहन कर सकती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?Correct
व्याख्याः
- जिम्नोस्पर्म के अंतर्गत ऐसे पौधे आते हैं जिनमें बीजांड (Ovules) अंडाशय भित्ति से ढके हुए नहीं होते हैं और ये निषेचन से पूर्व और निषेचन के बाद भी अनावृत ही रहते हैं। अतः कथन 1 गलत है। उल्लेखनीय है कि जिम्नोस्पर्म में दोनों नर और मादा युग्मकोद्भिद् ब्रायोफाइट और टैरिडोफाइट की तरह स्वतंत्र नहीं होते।
- इनकी मूल प्रायः मूसला होती है तथा इनकी पत्तियाँ अधिक ताप, नमी और वायु को सहन कर सकती हैं। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- जिम्नोस्पर्म के अंतर्गत ऐसे पौधे आते हैं जिनमें बीजांड (Ovules) अंडाशय भित्ति से ढके हुए नहीं होते हैं और ये निषेचन से पूर्व और निषेचन के बाद भी अनावृत ही रहते हैं। अतः कथन 1 गलत है। उल्लेखनीय है कि जिम्नोस्पर्म में दोनों नर और मादा युग्मकोद्भिद् ब्रायोफाइट और टैरिडोफाइट की तरह स्वतंत्र नहीं होते।
- इनकी मूल प्रायः मूसला होती है तथा इनकी पत्तियाँ अधिक ताप, नमी और वायु को सहन कर सकती हैं। अतः कथन 2 और 3 सही हैं।
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Question 16 of 20
16. Question
1 pointsजिम्नोस्पर्म की जड़ों के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियेः
1.कवक के साथ सहयोग करने वाली जड़ें : प्रवाल मूल
2.नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले साइनो बैक्टीरिया के साथ सहयोग करने वाली जड़ें : कवक मूल
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों ही युग्म सही सुमेलित नहीं हैं। जिम्नोस्पर्म के कुछ जीनस (वंश) की जड़ें कवक के साथ सहयोग कर लेती हैं जो कवक मूल कहलाती हैं। जैसे- पाइनस। कुछ अन्य छोटी विशिष्ट जड़ें नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले साइनो बैक्टीरिया के साथ सहयोग कर लेती हैं जो प्रवाल मूल कहलाती हैं। जैसे- साइकैस।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों ही युग्म सही सुमेलित नहीं हैं। जिम्नोस्पर्म के कुछ जीनस (वंश) की जड़ें कवक के साथ सहयोग कर लेती हैं जो कवक मूल कहलाती हैं। जैसे- पाइनस। कुछ अन्य छोटी विशिष्ट जड़ें नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले साइनो बैक्टीरिया के साथ सहयोग कर लेती हैं जो प्रवाल मूल कहलाती हैं। जैसे- साइकैस।
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Question 17 of 20
17. Question
1 pointsएंजियोस्पर्म के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1.इन्हें पुष्पी पादप कहते हैं।
2.इनमें बीज फलों के भीतर होते हैं।
3.ये पादपों में सबसे बड़ा वर्ग है।
4.द्विनिषेचन (Double Fertilisation) इनका अद्वितीय गुण है।
उपर्युक्त विशेषताएँ वनस्पति वर्ग के किस उपवर्ग को संदर्भित करती हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त विशेषताएँ वनस्पति वर्ग के एंजियोस्पर्म उपवर्ग को संदर्भित करती हैं । अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। जिम्नोस्पर्म में बीजांड अनावृत होते हैं परंतु एंजियोस्पर्म में परागकण और बीजांड विशिष्ट रचना के भीतर विकसित होते हैं, जिन्हें पुष्प कहते हैं। एंजियोस्पर्म को पुष्पी पादप भी कहते हैं। इनमें बीज फलों के भीतर होते हैं। साथ ही ये पादपों में सबसे बड़ा वर्ग है। एंजियोस्पर्म में द्विनिषेचन होता है। द्विनिषेचन इस वर्ग का अद्वितीय गुण है।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त विशेषताएँ वनस्पति वर्ग के एंजियोस्पर्म उपवर्ग को संदर्भित करती हैं । अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। जिम्नोस्पर्म में बीजांड अनावृत होते हैं परंतु एंजियोस्पर्म में परागकण और बीजांड विशिष्ट रचना के भीतर विकसित होते हैं, जिन्हें पुष्प कहते हैं। एंजियोस्पर्म को पुष्पी पादप भी कहते हैं। इनमें बीज फलों के भीतर होते हैं। साथ ही ये पादपों में सबसे बड़ा वर्ग है। एंजियोस्पर्म में द्विनिषेचन होता है। द्विनिषेचन इस वर्ग का अद्वितीय गुण है।
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Question 18 of 20
18. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1.पादपों में अगुणित (Haploid) तथा द्विगुणित (Diploid) कोशिकाएँ माइटोसिस (Mitosis) द्वारा विभाजित होती हैं।
2.किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पौधों के जीवन चक्र के अगुणित युग्मकोद्भिद् (Gametophyte) बनाने वाले युग्मकों (Gametes) और द्विगुणित स्पोरोफाइट (Diploid Sporophyte) बनाने वाले बीजाणु (Spore) के बीच संतति या पीढ़ी एकांतर होता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- पादपों में अगुणित तथा द्विगुणित कोशिकाएँ माइटोसिस द्वारा विभाजित होती हैं। इसके कारण विभिन्न काय अगुणित और द्विगुणित बनते हैं। अगुणित पादपकाय (Plant Body) माइटोसिस द्वारा युग्मक बनाते हैं। इनमें पादपकाय युग्मकोद्भिद् होता है। निषेचन के बाद युग्मनज भी माइटोसिस के द्वारा विभक्त होता है, जिसके कारण द्विगुणित स्पोरोफाइट पादपकाय बनाता है। इस पादपकाय में मिओसिस (Meiosis) द्वारा अगुणित बीजाणु बनते हैं। ये अगुणित बीजाणु माइटोसिस विभाजन द्वारा पुनः अगुणित पादपकाय बनाते हैं। इस प्रकार किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पौधों के जीवन चक्र के अगुणित युग्मकोद्भिद् बनाने वाले युग्मकों और द्विगुणित स्पोरोफाइट बनाने वाले बीजाणु के बीच संतति या पीढ़ी एकांतर होता है।
- उल्लेखनीय है कि माइटोसिस का अर्थ केन्द्रक के विभाजन से है। यह समसूत्रीय विभाजन कहलाता है। मिओसिस केवल जनन कोशिका में होता है। इस प्रकार के विभाजन द्वारा पादपों में नर और मादा युग्मक और जंतुओं में शुक्राणु तथा अंडाणु बनते हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, जिसे अर्द्धसूत्रीय विभाजन कहते हैं।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सही हैं।
- पादपों में अगुणित तथा द्विगुणित कोशिकाएँ माइटोसिस द्वारा विभाजित होती हैं। इसके कारण विभिन्न काय अगुणित और द्विगुणित बनते हैं। अगुणित पादपकाय (Plant Body) माइटोसिस द्वारा युग्मक बनाते हैं। इनमें पादपकाय युग्मकोद्भिद् होता है। निषेचन के बाद युग्मनज भी माइटोसिस के द्वारा विभक्त होता है, जिसके कारण द्विगुणित स्पोरोफाइट पादपकाय बनाता है। इस पादपकाय में मिओसिस (Meiosis) द्वारा अगुणित बीजाणु बनते हैं। ये अगुणित बीजाणु माइटोसिस विभाजन द्वारा पुनः अगुणित पादपकाय बनाते हैं। इस प्रकार किसी भी लैंगिक जनन करने वाले पौधों के जीवन चक्र के अगुणित युग्मकोद्भिद् बनाने वाले युग्मकों और द्विगुणित स्पोरोफाइट बनाने वाले बीजाणु के बीच संतति या पीढ़ी एकांतर होता है।
- उल्लेखनीय है कि माइटोसिस का अर्थ केन्द्रक के विभाजन से है। यह समसूत्रीय विभाजन कहलाता है। मिओसिस केवल जनन कोशिका में होता है। इस प्रकार के विभाजन द्वारा पादपों में नर और मादा युग्मक और जंतुओं में शुक्राणु तथा अंडाणु बनते हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, जिसे अर्द्धसूत्रीय विभाजन कहते हैं।
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Question 19 of 20
19. Question
1 pointsशैवाल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1.इनमें क्लोरोफिल अनुपस्थित होता है, परंतु ये प्रकाशसंश्लेषण में सक्षम होते हैं।
2.पृथ्वी पर प्रकाशसंश्लेषण के दौरान कुल स्थिरीकृत कार्बन-डाइऑक्साइड का लगभग आधा भाग शैवालों द्वारा स्थिर किया जाता है।
3.इनकी कुछ प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?Correct
व्याख्याः
- शैवाल क्लोरोफिलयुक्त, थैलॉयड, स्वपोषी तथा मुख्यतः जलीय (अलवणीय और समुद्री जल दोनों) जीव हैं। ये प्रकाशसंश्लेषण में सक्षम होते हैं। अतः कथन 1 गलत है। आकार में ये सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने वाले एक कोशिक क्लैमाइडोमोनॉस से लेकर विशालकाय कल्प तक होते हैं। ये कायिक, अलैंगिक और लैंगिक जनन करते हैं।
- पृथ्वी पर प्रकाशसंश्लेषण के दौरान कुल स्थिरीकृत कार्बन-डाइऑक्साइड का लगभग आधा भाग शैवाल स्थिर करते हैं। ये ऊर्जा के प्राथमिक उत्पादक हैं। अतः कथन 2 सही है।
- कथन 3 भी सही है, क्योंकि शैवालों की कुछ प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। पोरफायरा, लैमिनेरिया और सरगासम की बहुत सी प्रजातियाँ इसका उदाहरण हैं। जिलेडियम और ग्रेसिलेरिआ से एगार (Agar) प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग सूक्ष्म जीवों के संवर्धन में तथा आईसक्रीम एवं जेली बनाने में किया जाता है। क्लोरैला (Chlorella) और स्प्रिरुलाइना (Spirullina) एक कोशिक हैं। इनमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इनका उपयोग भोजन के रूप में अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा भी किया जाता है।
Incorrect
व्याख्याः
- शैवाल क्लोरोफिलयुक्त, थैलॉयड, स्वपोषी तथा मुख्यतः जलीय (अलवणीय और समुद्री जल दोनों) जीव हैं। ये प्रकाशसंश्लेषण में सक्षम होते हैं। अतः कथन 1 गलत है। आकार में ये सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने वाले एक कोशिक क्लैमाइडोमोनॉस से लेकर विशालकाय कल्प तक होते हैं। ये कायिक, अलैंगिक और लैंगिक जनन करते हैं।
- पृथ्वी पर प्रकाशसंश्लेषण के दौरान कुल स्थिरीकृत कार्बन-डाइऑक्साइड का लगभग आधा भाग शैवाल स्थिर करते हैं। ये ऊर्जा के प्राथमिक उत्पादक हैं। अतः कथन 2 सही है।
- कथन 3 भी सही है, क्योंकि शैवालों की कुछ प्रजातियों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है। पोरफायरा, लैमिनेरिया और सरगासम की बहुत सी प्रजातियाँ इसका उदाहरण हैं। जिलेडियम और ग्रेसिलेरिआ से एगार (Agar) प्राप्त किया जाता है, जिसका उपयोग सूक्ष्म जीवों के संवर्धन में तथा आईसक्रीम एवं जेली बनाने में किया जाता है। क्लोरैला (Chlorella) और स्प्रिरुलाइना (Spirullina) एक कोशिक हैं। इनमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इनका उपयोग भोजन के रूप में अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा भी किया जाता है।
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Question 20 of 20
20. Question
1 pointsपाँच जगत वर्गीकरण पद्धति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
1. यह पद्धति आर.एच. व्हिकेटर द्वारा प्रस्तावित की गई।
2. इसमें कवकों जैसे परपोषी का, हरित पादपों जैसे स्वपोषी के बीच विभेद नहीं किया गया।
3. इसमें प्रोकैरियोटिक बैक्टीरिया तथा नील हरित शैवाल को एक ही समूह में रखा गया।
4. इस पद्धति के अनुसार एक कोशिक जीवों को बहुकोशिक जीवों के साथ वर्गीकृत किया गया।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- पूर्व की द्विजगत पद्धति में यूकैरियोटिक एवं प्रोकैरियोटिक, एक कोशिक और बहुकोशिक तथा प्रकाश संश्लेषी (हरित शैवाल) और अप्रकाश संश्लेषी (कवक) के बीच विभेद स्थापित करना संभव नहीं था। इन्हीं समस्याओं के निवारण हेतु आर.एच. व्हिकेटर द्वारा पाँच जगत वर्गीकरण पद्धति प्रस्तावित की गई।
- इसमें कवकों जैसे परपोषी का, हरित पादपों जैसे स्वपोषी के बीच विभेद नहीं किया गया।
- इसमें प्रोकैरियोटिक बैक्टीरिया तथा नील हरित शैवाल को एक ही समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया।
- इस पद्धति के अनुसार एक कोशिक जीवों को बहुकोशिक जीवों के साथ वर्गीकृत किया गया।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सही हैं।
- पूर्व की द्विजगत पद्धति में यूकैरियोटिक एवं प्रोकैरियोटिक, एक कोशिक और बहुकोशिक तथा प्रकाश संश्लेषी (हरित शैवाल) और अप्रकाश संश्लेषी (कवक) के बीच विभेद स्थापित करना संभव नहीं था। इन्हीं समस्याओं के निवारण हेतु आर.एच. व्हिकेटर द्वारा पाँच जगत वर्गीकरण पद्धति प्रस्तावित की गई।
- इसमें कवकों जैसे परपोषी का, हरित पादपों जैसे स्वपोषी के बीच विभेद नहीं किया गया।
- इसमें प्रोकैरियोटिक बैक्टीरिया तथा नील हरित शैवाल को एक ही समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया।
- इस पद्धति के अनुसार एक कोशिक जीवों को बहुकोशिक जीवों के साथ वर्गीकृत किया गया।