भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत टेस्ट 10
भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत टेस्ट 10
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Information
इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न कक्षा 11 की पुस्तक भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत (एन.सी.ई.आर.टी.) पर आधारित है| यदि आप ‘भौतिक भूगोल’ विषय की अधिक जानकारी नहीं रखते है तो इस टेस्ट को देने से पहले आप पुस्तक का रिविजन अवश्य करें|
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Question 1 of 21
1. Question
1 pointsभूकंपीय तरंगों के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. प्राकृतिक भूकंप स्थलमंडल तथा दुर्बलमंडल में आते हैं।
2. भूगर्भिक तरंगें (Body Wave) उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं।
3. भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण धरातलीय तरंगें उत्पन्न होती हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन असत्य है। सभी प्राकृतिक भूकंप केवल स्थलमंडल (Lithosphere) में आते हैं। स्थलमंडल पृथ्वी के धरातल से 200 किमी. तक की गहराई वाले भाग को कहते हैं। भूकंपमापी यंत्र (Seiesmograph) सतह पर पहुँचने वाली भूकंपीय तरंगों को अभिलेखित करता है।
- दूसरा एवं तीसरा कथन सत्य है। बुनियादी तौर पर भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की हैं- भूगर्भिक तरंगें (Body Wave) व धरातलीय तरंगें (Surface Wave)। भूगर्भिक तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसलिये इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है।
- भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा जाता है। ये तरंगें धरातल के साथ-साथ चलती हैं। तरंगों का वेग अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुज़रने पर परिवर्तित हो जाता है। अधिक घनत्व वाले पदार्थों में तरंगों का वेग अधिक होता है।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन असत्य है। सभी प्राकृतिक भूकंप केवल स्थलमंडल (Lithosphere) में आते हैं। स्थलमंडल पृथ्वी के धरातल से 200 किमी. तक की गहराई वाले भाग को कहते हैं। भूकंपमापी यंत्र (Seiesmograph) सतह पर पहुँचने वाली भूकंपीय तरंगों को अभिलेखित करता है।
- दूसरा एवं तीसरा कथन सत्य है। बुनियादी तौर पर भूकंपीय तरंगें दो प्रकार की हैं- भूगर्भिक तरंगें (Body Wave) व धरातलीय तरंगें (Surface Wave)। भूगर्भिक तरंगें उद्गम केंद्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अंदरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसलिये इन्हें भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है।
- भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगें कहा जाता है। ये तरंगें धरातल के साथ-साथ चलती हैं। तरंगों का वेग अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुज़रने पर परिवर्तित हो जाता है। अधिक घनत्व वाले पदार्थों में तरंगों का वेग अधिक होता है।
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Question 2 of 21
2. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
व्याख्याः
- भूगर्भीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है।
- P तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
- P तरंगों को प्राथमिक तरंग भी कहा जाता है।
- P तरंगें ध्वनि तरंगों जैसी होती हैं। अतः दूसरा कथन असत्य है।
- ये तरंगें ठोस, तरल व गैस- तीनों प्रकार के पदार्थों से गुज़र सकती हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- भूगर्भीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं। इन्हें ‘P’ तरंगें व ‘S’ तरंगें कहा जाता है।
- P तरंगें तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं और धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं।
- P तरंगों को प्राथमिक तरंग भी कहा जाता है।
- P तरंगें ध्वनि तरंगों जैसी होती हैं। अतः दूसरा कथन असत्य है।
- ये तरंगें ठोस, तरल व गैस- तीनों प्रकार के पदार्थों से गुज़र सकती हैं।
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Question 3 of 21
3. Question
1 pointsभूगर्भीय ‘S’ तरंगों के संबंध में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन असत्य है/हैं?
1. ‘S’ तरंगें धरातल पर ‘P’ तरंगों के बाद पहुँचती हैं।
2. ये तरंगें केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में चलती हैं।
3. ‘S’ तरंगें सबसे ज़्यादा विनाशकारी होती हैं क्योंकि इनसे शैलों का विस्थापन होता है।
कूटःCorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। ‘S’ तरंगें धरातल पर ‘P’ तरंगों के कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं। ये ‘द्वितीयक तरंगें’ कहलाती हैं।
- दूसरा कथन सत्य है। ‘S’ तरंगें केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में ही चलती हैं। ‘S’ तरंगों की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भीय संरचना को समझने में मदद की।
- तीसरा कथन गलत है। धरातलीय तरंगें ज़्यादा विनाशकारी होती हैं। इन तरंगों से शैलें विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं। धरातलीय तरंगें भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर अंत में अभिलेखित होती हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। ‘S’ तरंगें धरातल पर ‘P’ तरंगों के कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं। ये ‘द्वितीयक तरंगें’ कहलाती हैं।
- दूसरा कथन सत्य है। ‘S’ तरंगें केवल ठोस पदार्थों के माध्यम में ही चलती हैं। ‘S’ तरंगों की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसी विशेषता ने वैज्ञानिकों को भूगर्भीय संरचना को समझने में मदद की।
- तीसरा कथन गलत है। धरातलीय तरंगें ज़्यादा विनाशकारी होती हैं। इन तरंगों से शैलें विस्थापित होती हैं और इमारतें गिर जाती हैं। धरातलीय तरंगें भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर अंत में अभिलेखित होती हैं।
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Question 4 of 21
4. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. ‘P’ तरंगों में कंपन की दिशा तरंग के संचरण की दिशा के समानांतर होती है।
2. ‘S’ तरंग जिस पदार्थ से गुज़रती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती है। P तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों के संचरण की दिशा के समानांतर होती है। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। इसके (दबाव) फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया होती है।
- ‘S’ तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुज़रती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती है। P तरंगों से कंपन की दिशा तरंगों के संचरण की दिशा के समानांतर होती है। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। इसके (दबाव) फलस्वरूप पदार्थ के घनत्व में भिन्नता आती है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया होती है।
- ‘S’ तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुज़रती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी समझी जाती हैं।
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Question 5 of 21
5. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. जिन क्षेत्रों में भूकंपीय तरंगें अभिलेखित हो जाती हैं उन क्षेत्रों को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है।
2. ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘S’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकंपीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है।
- 105º से परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचती। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105º से 145º तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकंपीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है।
- 105º से परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचती। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105º से 145º तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
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Question 6 of 21
6. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. जिन क्षेत्रों में भूकंपीय तरंगें अभिलेखित हो जाती हैं उन क्षेत्रों को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है।
2. ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘S’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकंपीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है।
- 105º से परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचती। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105º से 145º तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- भूकंपलेखी यंत्र (Seismograph) पर दूरस्थ स्थानों से आने वाली भूकंपीय तरंगें अभिलेखित होती हैं। यद्यपि कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती। ऐसे क्षेत्र को भूकंपीय छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है। विभिन्न भूकंपीय घटनाओं के अध्ययन से पता चलता है कि एक भूकंप का छाया क्षेत्र दूसरे भूकंप के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है।
- 105º से परे पूरे क्षेत्र में ‘S’ तरंगें नहीं पहुँचती। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र ‘P’ तरंगों के छाया क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। भूकंप अधिकेंद्र के 105º से 145º तक ‘P’ तरंगों का छाया क्षेत्र एक पट्टी (Band) के रूप में पृथ्वी के चारों तरफ प्रतीत होता है। ‘S’ तरंगों का छाया क्षेत्र न केवल विस्तार में बड़ा है, वरन् यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत भाग से भी अधिक है।
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Question 7 of 21
7. Question
1 pointsविभिन्न प्रकार के भूकंप तथा उनके उत्पन्न होने के कारण के संबंध में नीचे दिये गए युग्मों पर विचार कीजियेः
1. भ्रंशतल के किनारे चट्टानों के खिसकने से – विवर्तनिक भूकंप
2. खनन क्षेत्रों में अत्यधिक खनन से – विस्फोट भूकंप
3. परमाणु व रासायनिक विस्फोट – नियात भूकंप
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?Correct
व्याख्याः भूकंप के प्रकार
1. भ्रंशतल के किनारे चट्टानों के खिसक जाने के कारण विवर्तनिक (Tectonic) भूकंप आते हैं। सामान्यतः इसी प्रकार के भूकंप आते हैं।
2. एक विशिष्ट वर्ग के विवर्तनिक भूकंप को ही ज्वालामुखी (Volcanic) जन्य भूकंप समझा जाता है। ये भूकंप अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों तक सीमित रहते हैं।
3. खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किये जाते हैं। इन्हें नियात (Collapse) भूकंप कहा जाता है।
4. कभी-कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कंपन होता है। इस तरह के झटकों को विस्फोट (Explosion) भूकंप कहते हैं।
5. बड़े बांधों के निर्माण के कारण आने वाले भूकंप को बांध जनित (Reservoir Induced) भूकंप कहा जाता है।Incorrect
व्याख्याः भूकंप के प्रकार
1. भ्रंशतल के किनारे चट्टानों के खिसक जाने के कारण विवर्तनिक (Tectonic) भूकंप आते हैं। सामान्यतः इसी प्रकार के भूकंप आते हैं।
2. एक विशिष्ट वर्ग के विवर्तनिक भूकंप को ही ज्वालामुखी (Volcanic) जन्य भूकंप समझा जाता है। ये भूकंप अधिकांशतः सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों तक सीमित रहते हैं।
3. खनन क्षेत्रों में कभी-कभी अत्यधिक खनन कार्य से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है, जिससे हल्के झटके महसूस किये जाते हैं। इन्हें नियात (Collapse) भूकंप कहा जाता है।
4. कभी-कभी परमाणु व रासायनिक विस्फोट से भी भूमि में कंपन होता है। इस तरह के झटकों को विस्फोट (Explosion) भूकंप कहते हैं।
5. बड़े बांधों के निर्माण के कारण आने वाले भूकंप को बांध जनित (Reservoir Induced) भूकंप कहा जाता है। -
Question 8 of 21
8. Question
1 pointsभूकंपीय तीव्रता को मापा जाता है-
Correct
व्याख्याः भूकंपीय घटनाओं का मापन भूकंपीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकंपीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल’ (Richter Scale) द्वारा की जाती है।
Incorrect
व्याख्याः भूकंपीय घटनाओं का मापन भूकंपीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकंपीय तीव्रता की मापनी ‘रिक्टर स्केल’ (Richter Scale) द्वारा की जाती है।
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Question 9 of 21
9. Question
1 pointsपृथ्वी की संरचना के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. महाद्वीपों में भूपर्पटी की मोटाई महासागरों की तुलना में कम है।
2. मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में भूपर्पटी की मोटाई सबसे कम पाई जाती है।
3. महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट से निर्मित हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला एवं दूसरा कथन गलत है। भूपर्पटी पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है। महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किमी. है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किमी. तक है। मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है। हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 किमी. तक है।
- महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट निर्मित हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला एवं दूसरा कथन गलत है। भूपर्पटी पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है जिसमें जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है। महासागरों में भूपर्पटी की मोटाई महाद्वीपों की तुलना में कम है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किमी. है, जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किमी. तक है। मुख्य पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटाई और भी अधिक है। हिमालय पर्वत श्रेणियों के नीचे भूपर्पटी की मोटाई लगभग 70 किमी. तक है।
- महासागरों के नीचे भूपर्पटी की चट्टानें बेसाल्ट निर्मित हैं।
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Question 10 of 21
10. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलतामंडल कहा जाता है।
2. ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है उसका स्रोत क्रोड (The Core) है।
3. भूपर्पटी एवं मैंटल मिलकर स्थलमंडल का निर्माण करते हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य से प्रारंभ होकर 2900 किमी. की गहराई तक पाया जाता है। मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है। इसका विस्तार 400 किमी. तक आँका गया है।
- कथन (2) गलत है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्रोत मैंटल है। इसका घनत्व भूपर्पटी की चट्टानों से अधिक है।
- कथन (3) गलत है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) कहलाता है
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य से प्रारंभ होकर 2900 किमी. की गहराई तक पाया जाता है। मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलतामंडल (Asthenosphere) कहा जाता है। इसका विस्तार 400 किमी. तक आँका गया है।
- कथन (2) गलत है। ज्वालामुखी उद्गार के दौरान जो लावा धरातल पर पहुँचता है उसका मुख्य स्रोत मैंटल है। इसका घनत्व भूपर्पटी की चट्टानों से अधिक है।
- कथन (3) गलत है। भूपर्पटी एवं मैंटल का ऊपरी भाग मिलकर स्थलमंडल (Lithosphere) कहलाता है
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Question 11 of 21
11. Question
1 pointsपृथ्वी के क्रोड के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. पृथ्वी का बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है तथा आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में है।
2. पृथ्वी का क्रोड निकिल एवं लोहे से बना है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। भूकंपीय तरंगों के वेग ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है। पृथ्वी का बाह्य क्रोड (Outer Core) तरल अवस्था में है। मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन सेमी. तथा केंद्र में 63,00 किमी. की गहराई तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी. तक हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि क्रोड भारी पदार्थों, मुख्यतः निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है। इसे ‘निफे’ (Nife) परत के नाम से जाना जाता है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। भूकंपीय तरंगों के वेग ने पृथ्वी के क्रोड को समझने में सहायता की है। पृथ्वी का बाह्य क्रोड (Outer Core) तरल अवस्था में है। मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन सेमी. तथा केंद्र में 63,00 किमी. की गहराई तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेमी. तक हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि क्रोड भारी पदार्थों, मुख्यतः निकिल (Nickle) व लोहे (Ferrum) का बना है। इसे ‘निफे’ (Nife) परत के नाम से जाना जाता है।
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Question 12 of 21
12. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
1. ज्वालामुखी प्रक्रिया के दौरान तरल चट्टानी पदार्थ दुर्बलमंडल से निकलकर धरातल पर पहुँचता है।
2. तरल चट्टानी पदार्थ जब मैंटल के ऊपरी भाग में होता है तो इसे मैग्मा कहते हैं।
3. ज्वालामुखी प्रक्रिया के दौरान नाइट्रोजन व सल्फर के यौगिक बाहर निकलते हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः
- उपरोक्त सभी कथन सही हैं। ज्वालामुखी वह स्थान है जहाँ से निकलकर गैसें, राख और तरल चट्टानी पदार्थ लावा पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है। यदि यह पदार्थ कुछ समय पहले ही बाहर आया हो या अभी निकल रहा हो तो वह ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी कहलाता है।
- तरल चट्टानी पदार्थ जब मैंटल के ऊपरी भाग में रहता है, मैग्मा कहलाता है। जब यह भू-पटल के ऊपर या धरातल पर पहुँचता है तो लावा कहा जाता है।
- जो ज्वालामुखी पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, उसमें लावा प्रवाह, लावा के जमे हुए टुकड़ों का मलबा (ज्वलखंडाश्मि) (Pyroclastic debris) ज्वालामुखी बम राख, धूलकण व गैसें जैसे- नाइट्रोजन यौगिक, सल्फर यौगिक और कुछ मात्रा में क्लोरीन, हाइड्रोजन व ऑर्गन शामिल होते हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- उपरोक्त सभी कथन सही हैं। ज्वालामुखी वह स्थान है जहाँ से निकलकर गैसें, राख और तरल चट्टानी पदार्थ लावा पृथ्वी के धरातल पर पहुँचता है। यदि यह पदार्थ कुछ समय पहले ही बाहर आया हो या अभी निकल रहा हो तो वह ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी कहलाता है।
- तरल चट्टानी पदार्थ जब मैंटल के ऊपरी भाग में रहता है, मैग्मा कहलाता है। जब यह भू-पटल के ऊपर या धरातल पर पहुँचता है तो लावा कहा जाता है।
- जो ज्वालामुखी पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, उसमें लावा प्रवाह, लावा के जमे हुए टुकड़ों का मलबा (ज्वलखंडाश्मि) (Pyroclastic debris) ज्वालामुखी बम राख, धूलकण व गैसें जैसे- नाइट्रोजन यौगिक, सल्फर यौगिक और कुछ मात्रा में क्लोरीन, हाइड्रोजन व ऑर्गन शामिल होते हैं।
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Question 13 of 21
13. Question
1 pointsशील्ड के ज्वालामुखी के संबंध में कौन-सा कथन असत्य हैं?
Correct
व्याख्याः
- बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी ज्वालामुखियों में शील्ड ज्वालामुखी सबसे विशाल हैं।
- हवाई द्वीप के ज्वालामुखी, शील्ड ज्वालामुखी के सबसे अच्छे उदाहरण हैं।
- शील्ड ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठंडे होने से बनते हैं। यह लावा उद्गार के समय बहुत तरल होता है।
- चौथा कथन गलत है। कम विस्फोटक होना इन ज्वालामुखियों की विशेषता है। किंतु यदि किसी तरह निकास नलिका (Vent) से पानी भीतर चला जाए तो ये ज्वालामुखी विस्फोटक भी हो जाते हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी ज्वालामुखियों में शील्ड ज्वालामुखी सबसे विशाल हैं।
- हवाई द्वीप के ज्वालामुखी, शील्ड ज्वालामुखी के सबसे अच्छे उदाहरण हैं।
- शील्ड ज्वालामुखी मुख्यतः बेसाल्ट से निर्मित होते हैं जो तरल लावा के ठंडे होने से बनते हैं। यह लावा उद्गार के समय बहुत तरल होता है।
- चौथा कथन गलत है। कम विस्फोटक होना इन ज्वालामुखियों की विशेषता है। किंतु यदि किसी तरह निकास नलिका (Vent) से पानी भीतर चला जाए तो ये ज्वालामुखी विस्फोटक भी हो जाते हैं।
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Question 14 of 21
14. Question
1 pointsज्वालामुखी कुंड (Caldera) के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजियेः
1. ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं।
2. ज्वालामुखियों में विस्फोट के दौरान विध्वंसक गर्त का निर्माण होता है।
3. इन ज्वालामुखियों को लावा प्रदान करने वाले मैग्मा के भंडार विशाल तथा इनके पास ही स्थित होते हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः ज्वालामुखी कुंड (Caldera) के संबंध में सभी कथन सत्य हैं। ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। आमतौर पर ये इतने विस्फोटक होते हैं कि जब इनमें विस्फोट होता है तब वे ऊँचा ढाँचा बनाने की बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं। धँसे हुए विध्वंसक गर्त (लावा गिरने से जो गड्डे बनते हैं) ही ज्वालामुखी कुंड (Caldera) कहलाते हैं। इनका यह विस्फोटक रूप बताता है कि इन्हें लावा प्रदान करने वाले मैग्मा के भंडार न केवल विशाल हैं वरन् इनके बहुत पास स्थित हैं।
Incorrect
व्याख्याः ज्वालामुखी कुंड (Caldera) के संबंध में सभी कथन सत्य हैं। ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी हैं। आमतौर पर ये इतने विस्फोटक होते हैं कि जब इनमें विस्फोट होता है तब वे ऊँचा ढाँचा बनाने की बजाय स्वयं नीचे धँस जाते हैं। धँसे हुए विध्वंसक गर्त (लावा गिरने से जो गड्डे बनते हैं) ही ज्वालामुखी कुंड (Caldera) कहलाते हैं। इनका यह विस्फोटक रूप बताता है कि इन्हें लावा प्रदान करने वाले मैग्मा के भंडार न केवल विशाल हैं वरन् इनके बहुत पास स्थित हैं।
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Question 15 of 21
15. Question
1 pointsदक्कन ट्रैप का शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है?
Correct
व्याख्याः बेसाल्ट प्रवाह ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हज़ारों वर्ग किमी. घने लावा प्रवाह से ढके हैं। भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का ज़्यादातर भाग पाया जाता है, वृहत् बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।
Incorrect
व्याख्याः बेसाल्ट प्रवाह ज्वालामुखी अत्यधिक तरल लावा उगलते हैं जो बहुत दूर तक बह निकलता है। संसार के कुछ भाग हज़ारों वर्ग किमी. घने लावा प्रवाह से ढके हैं। भारत का दक्कन ट्रैप, जिस पर वर्तमान महाराष्ट्र पठार का ज़्यादातर भाग पाया जाता है, वृहत् बेसाल्ट लावा प्रवाह क्षेत्र है।
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Question 16 of 21
16. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. ज्वालामुखी उद्गार के दौरान निकलने वाले लावा के ठंडे होने से आग्नेय शैल बनती हैं।
2. ज्वालामुखी लावा जब धरातल के नीचे ठंडा हो जाता है, तब इस दौरान बनने वाले आग्नेय शैल को पातालीय शैल कहते हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती है। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुँचकर होता है या धरातल तक पहुँचने से पहले ही भू-पटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है। लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है-
1. ज्वालामुखी शैलें- जब लावा धरातल पर पहुँचकर ठंडा होता है।
2. पातालीय (Plutonic) शैल- जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है।Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त दोनों कथन सत्य हैं। ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है उसके ठंडा होने से आग्नेय शैल बनती है। लावा का यह जमाव या तो धरातल पर पहुँचकर होता है या धरातल तक पहुँचने से पहले ही भू-पटल के नीचे शैल परतों में ही हो जाता है। लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलों का वर्गीकरण किया जाता है-
1. ज्वालामुखी शैलें- जब लावा धरातल पर पहुँचकर ठंडा होता है।
2. पातालीय (Plutonic) शैल- जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है। -
Question 17 of 21
17. Question
1 pointsलैकोलिथ और बैथोलिथ के निर्माण का संबंध किससे है?
Correct
व्याख्याः
- जब ज्वालामुखी लावा भू-पटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियों का निर्माण होता है, जैसे- बैथोलिथ, लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल व डाइक।
- बैथोलिथ (Batholiths): यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही ये धरातल पर प्रकट होते हैं। ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
- लैकोलिथ (Lacolitghs): ये गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मिलती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है।
Incorrect
व्याख्याः
- जब ज्वालामुखी लावा भू-पटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो कई आकृतियों का निर्माण होता है, जैसे- बैथोलिथ, लैकोलिथ, लैपोलिथ, फैकोलिथ, सिल व डाइक।
- बैथोलिथ (Batholiths): यदि मैग्मा का बड़ा पिंड भूपर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुंबद के आकार में विकसित हो जाता है। अनाच्छादन प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही ये धरातल पर प्रकट होते हैं। ये ग्रेनाइट के बने पिंड हैं। इन्हें बैथोलिथ कहा जाता है जो मैग्मा भंडारों के जमे हुए भाग हैं।
- लैकोलिथ (Lacolitghs): ये गुंबदनुमा विशाल अंतर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुंबद से मिलती है। अंतर केवल यह होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाया जाता है।
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Question 18 of 21
18. Question
1 pointsज्वालामुखी अंतर्भेदी (Intresive Forms) आकृतियों के संबंध में नीचे दिये गए युग्मों पर विचार कीजियेः
1. लावा का क्षैतिज दिशा में तस्तरी के रूप में जमाव – फैकोलिथ
2. अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना – सिल
3. लावा का दरारों में धरातल के लगभग समकोण अवस्था में ठंडा होकर दीवार की भाँति संरचना – डाइक
उपरोक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला युग्म सही सुमेलित नहीं है। ऊपर उठते हुए लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमज़ोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तस्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता है।
- अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है- कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घनी मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।
- जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों से बनी ऐसी ही गुंबदनुमा पहाड़ियाँ हैं।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला युग्म सही सुमेलित नहीं है। ऊपर उठते हुए लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमज़ोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तस्तरी (Saucer) के आकार में जम जाए तो यह लैपोलिथ कहलाता है।
- अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार पर इन्हें विभाजित किया जाता है- कम मोटाई वाले जमाव को शीट व घनी मोटाई वाले जमाव सिल कहलाते हैं।
- जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और अगर यह इसी अवस्था में ठंडा हो जाए तो एक दीवार की भाँति संरचना बनाता है। यही संरचना डाइक कहलाती है। पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में यह आकृति बहुतायत में पाई जाती है। कर्नाटक के पठार में ग्रेनाइट चट्टानों से बनी ऐसी ही गुंबदनुमा पहाड़ियाँ हैं।
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Question 19 of 21
19. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. नीहारिका (Nebula) को सौरमंडल का जनक माना जाता है।
2. सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच स्थित ग्रहों को भीतरी ग्रह (Inner Planets) कहा जाता है।
3. हमारे सौरमंडल में छुद्र ग्रह पट्टी के बाहर अवस्थित ग्रहों को बाहरी ग्रह (Outer Planets) कहा जाता है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपरोक्त सभी कथन सही हैं।
हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन को नीहारिका (Nebula) कहा जाता है। नीहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है।
सूर्य तथा छुद्र ग्रह पट्टी के बीच अवस्थित बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल ग्रह को भीतरी ग्रह (Inner Planets) कहा जाता है।
छुद्र ग्रह पट्टी के बाहर स्थित ग्रहों, जैसे- बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून को बाहरी ग्रह (Outer Planets) कहा जाता है।
Incorrect
व्याख्याः उपरोक्त सभी कथन सही हैं।
हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन को नीहारिका (Nebula) कहा जाता है। नीहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है।
सूर्य तथा छुद्र ग्रह पट्टी के बीच अवस्थित बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल ग्रह को भीतरी ग्रह (Inner Planets) कहा जाता है।
छुद्र ग्रह पट्टी के बाहर स्थित ग्रहों, जैसे- बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून को बाहरी ग्रह (Outer Planets) कहा जाता है।
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Question 20 of 21
20. Question
1 pointsकथनः बुध, शुक्र व मंगल ग्रह को पार्थिव (Terrestrial) ग्रह कहा जाता है।
कारणः बुध, शुक्र व मंगल ग्रह गैसों से बने हैं।
कूटःCorrect
व्याख्याः
कथन सत्य है। सूर्य और छुद्र ग्रह पट्टी के बीच अवस्थित बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल ग्रह को पार्थिव (Terrestrail) ग्रह कहा जाता है।बुध, शुक्र व मंगल ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। इसी कारण इनको पार्थिव ग्रह कहा जाता है। अतः कारण गलत है।
अन्य चार ग्रह (बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून) गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन (Jovian) ग्रह कहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति (Jupiter) की तरह इनमें से अधिकतर पार्थिव ग्रहों से विशाल हैं और हाइड्रोजन व हीलियम से बना सघन वायुमंडल है।
Incorrect
व्याख्याः
कथन सत्य है। सूर्य और छुद्र ग्रह पट्टी के बीच अवस्थित बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल ग्रह को पार्थिव (Terrestrail) ग्रह कहा जाता है।बुध, शुक्र व मंगल ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। इसी कारण इनको पार्थिव ग्रह कहा जाता है। अतः कारण गलत है।
अन्य चार ग्रह (बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून) गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन (Jovian) ग्रह कहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति (Jupiter) की तरह इनमें से अधिकतर पार्थिव ग्रहों से विशाल हैं और हाइड्रोजन व हीलियम से बना सघन वायुमंडल है।
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Question 21 of 21
21. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. कैम्ब्रियन काल में स्थल पर कोई जीवन नहीं था।
2. रीढ़ की हड्डी वाले जीव तथा रेंगने वाले जंतुओं का विकास क्रीटेशियस युग में हुआ।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। पृथ्वी के विकास के इतिहास काल के कैम्ब्रियन युग में स्थल पर कोई जीवन नहीं था, बल्कि जल में बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीव पाए जाते थे।
- दूसरा कथन असत्य है। क्रीटेशियस युग में नहीं बल्कि कार्बोनिफेरस युग में पहले रेंगने वाले जंतु तथा उसके बाद रीढ़ की हड्डी वाले जीव का विकास हुआ।
Incorrect
व्याख्याः
- पहला कथन सत्य है। पृथ्वी के विकास के इतिहास काल के कैम्ब्रियन युग में स्थल पर कोई जीवन नहीं था, बल्कि जल में बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीव पाए जाते थे।
- दूसरा कथन असत्य है। क्रीटेशियस युग में नहीं बल्कि कार्बोनिफेरस युग में पहले रेंगने वाले जंतु तथा उसके बाद रीढ़ की हड्डी वाले जीव का विकास हुआ।
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