प्राचीन-भारत टेस्ट 1
प्राचीन-भारत टेस्ट 1
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इस टेस्ट में सम्मिलित प्रश्न एन.सी.ई.आर.टी. पर आधारित है|
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Question 1 of 20
1. Question
1 pointsदर्शन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. भारतीय दर्शन का विषय आत्मा और परमात्मा के संबंधों का चिंतन है।
2. दार्शनिक शोपेनहावर ने अपनी दार्शनिक विचारधारा में वेदों और उपनिषदों को स्थान दिया है।
3. भारत में जगत के विषय में केवल आध्यात्मिक विचारधारा का विकास हुआ है।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
भारतीय दार्शनिकों ने संसार को माया समझा तथा आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंधों की गंभीर विवेचना की। वास्तव में इस विषय पर जितना गहन चिंतन भारतीय दार्शनिकों ने किया है , उतना किसी अन्य देश के दार्शनिकों ने नहीं। अतः कथन (1) सत्य है।
प्रख्तात जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर ने अपनी दार्शनिक विचारधारा में वेदों और उपनिषदों को भी स्थान दिया है। वह कहा करते थे कि उपनिषदों ने उन्हें इस जन्म में दिलासा दी है और मृत्यु के बाद भी देती रहेगी| अतः कथन (2) सत्य है।
प्राचीन भारत दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में अपने योगदान के लिये प्रसिद्ध माना जाता है, परन्तु भारत में जगत के विषय में आध्यात्मिकता के साथ भौतिकवादी विचारधारा भी विकसित हुई है। भारत में उदित छः दार्शनिक पद्धतियों के बीच भौतिकवादी दर्शन के तत्त्व सांख्य में मिलते हैं। भौतिकवादी दर्शन को ठोस बनाने का श्रेय चार्वाकों को है। अतः कथन (3) असत्य है।Incorrect
व्याख्याः
भारतीय दार्शनिकों ने संसार को माया समझा तथा आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंधों की गंभीर विवेचना की। वास्तव में इस विषय पर जितना गहन चिंतन भारतीय दार्शनिकों ने किया है , उतना किसी अन्य देश के दार्शनिकों ने नहीं। अतः कथन (1) सत्य है।
प्रख्तात जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर ने अपनी दार्शनिक विचारधारा में वेदों और उपनिषदों को भी स्थान दिया है। वह कहा करते थे कि उपनिषदों ने उन्हें इस जन्म में दिलासा दी है और मृत्यु के बाद भी देती रहेगी| अतः कथन (2) सत्य है।
प्राचीन भारत दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में अपने योगदान के लिये प्रसिद्ध माना जाता है, परन्तु भारत में जगत के विषय में आध्यात्मिकता के साथ भौतिकवादी विचारधारा भी विकसित हुई है। भारत में उदित छः दार्शनिक पद्धतियों के बीच भौतिकवादी दर्शन के तत्त्व सांख्य में मिलते हैं। भौतिकवादी दर्शन को ठोस बनाने का श्रेय चार्वाकों को है। अतः कथन (3) असत्य है। -
Question 2 of 20
2. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किस देश में इस्पात बनाने की कला का विकास हुआ?
Correct
व्याख्याः इस्पात बनाने की कला पहले भारत में विकसित हुई। प्राचीन काल में भारत से इस्पात अन्य देशों को भी निर्यात किया जाता था और बाद में यह उत्स (Wootz) कहलाने लगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय शिल्पियों द्वारा निर्मित इस्पात की तलवार विश्व प्रसिद्ध थी, इसकी एशिया से लेकर पूर्वी यूरोप तक भारी मांग थी।
Incorrect
व्याख्याः इस्पात बनाने की कला पहले भारत में विकसित हुई। प्राचीन काल में भारत से इस्पात अन्य देशों को भी निर्यात किया जाता था और बाद में यह उत्स (Wootz) कहलाने लगा। उल्लेखनीय है कि भारतीय शिल्पियों द्वारा निर्मित इस्पात की तलवार विश्व प्रसिद्ध थी, इसकी एशिया से लेकर पूर्वी यूरोप तक भारी मांग थी।
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Question 3 of 20
3. Question
1 pointsप्राचीन काल में गणित के विकास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?1. भारत में सबसे पहले अंकन और दाशमिक पद्धति का प्रयोग हुआ।
2. पश्चिमी देशों ने दाशमिक पद्धति चीनियों से सीखी।
3. दाशमिक पद्धति का आविष्कार आर्यभट्ट ने किया।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।Correct
व्याख्याः
- गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों ने तीन विशिष्ट योगदान दिये- अंकन पद्धति, दाशमिक पद्धति और शून्य का प्रयोग। अतः कथन (1) सत्य है।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय अंकन पद्धति को अरबों ने अपनाया और पश्चिमी दुनिया में फैलाया। अंग्रेज़ी में भारतीय अंकमाला को अरबी अंक (अरेबिक न्यूमरल्स) कहते हैं, परन्तु अरबों ने अपनी अंकमाला को हिंदसा कहा।
- पश्चिमी देशों ने दाशमिक (दशमलव) प्रणाली अरबों से सीखी, जबकि चीनियों ने यह पद्धति बौद्ध धर्मप्रचारकों से सीखी। अतः कथन (2) असत्य है।
- प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट ने दाशमिक पद्धति का आविष्कार किया था। अतः कथन (3) सत्य है।
Incorrect
व्याख्याः
- गणित के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों ने तीन विशिष्ट योगदान दिये- अंकन पद्धति, दाशमिक पद्धति और शून्य का प्रयोग। अतः कथन (1) सत्य है।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय अंकन पद्धति को अरबों ने अपनाया और पश्चिमी दुनिया में फैलाया। अंग्रेज़ी में भारतीय अंकमाला को अरबी अंक (अरेबिक न्यूमरल्स) कहते हैं, परन्तु अरबों ने अपनी अंकमाला को हिंदसा कहा।
- पश्चिमी देशों ने दाशमिक (दशमलव) प्रणाली अरबों से सीखी, जबकि चीनियों ने यह पद्धति बौद्ध धर्मप्रचारकों से सीखी। अतः कथन (2) असत्य है।
- प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट ने दाशमिक पद्धति का आविष्कार किया था। अतः कथन (3) सत्य है।
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Question 4 of 20
4. Question
1 points‘सुर्यसिद्धांत’ नामक पुस्तक की रचना निम्नलिखित में से किसन की?
Correct
व्याख्याः
- ‘सुर्यसिद्धांत’ नामक पुस्तक की रचना आर्यभट्ट ने की है।
Incorrect
व्याख्याः
- ‘सुर्यसिद्धांत’ नामक पुस्तक की रचना आर्यभट्ट ने की है।
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Question 5 of 20
5. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. आर्यभट्ट ने यज्ञवेदी बनाने के लिये व्यावहारिक ज्यामिति की रचना की।
2. त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम आपस्तम्ब ने निकाला।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- ईसा पूर्व दूसरी सदी में राजाओं के लिये उपयुक्त यज्ञवेदी बनाने के लिये आपस्तम्ब ने व्यावहारिक ज्यामिति की रचना की। इसमें न्यूनकोण, अधिककोण और समकोण का वर्णन किया गया है।
- आर्यभट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला जिसके फलस्वरूप त्रिकोणमिति का जन्म हुआ। आर्यभट्ट पाँचवीं सदी के महान विद्वान थे।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन असत्य हैं।
- ईसा पूर्व दूसरी सदी में राजाओं के लिये उपयुक्त यज्ञवेदी बनाने के लिये आपस्तम्ब ने व्यावहारिक ज्यामिति की रचना की। इसमें न्यूनकोण, अधिककोण और समकोण का वर्णन किया गया है।
- आर्यभट ने त्रिभुज का क्षेत्रफल जानने का नियम निकाला जिसके फलस्वरूप त्रिकोणमिति का जन्म हुआ। आर्यभट्ट पाँचवीं सदी के महान विद्वान थे।
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Question 6 of 20
6. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किसने सूर्य और चन्द्रग्रहण के कारणों का पता लगाया?
Correct
व्याख्याः
- आर्यभट ने बेबिलोनियाई विधि से ग्रह-स्थिति की गणना की और उसने चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के कारणों का पता लगाया। उन्होंने अनुमान के आधार पर पृथ्वी की परिधि का मान निकाला, जो आज भी शुद्ध माना जाता है। उसने बताया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है।
Incorrect
व्याख्याः
- आर्यभट ने बेबिलोनियाई विधि से ग्रह-स्थिति की गणना की और उसने चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के कारणों का पता लगाया। उन्होंने अनुमान के आधार पर पृथ्वी की परिधि का मान निकाला, जो आज भी शुद्ध माना जाता है। उसने बताया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी घूमती है।
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Question 7 of 20
7. Question
1 pointsप्राचीन भारत में आयुर्विज्ञान (चिकित्सा विज्ञान) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा असत्य है?
Correct
व्याख्याः
- औषधियों का उल्लेख सबसे पहले अथर्ववेद मे मिलता है। सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का पिता कहा जाता है। अतः कथन (c) असत्य है, जबकि अन्य कथन सत्य हैं। उल्लेखनीय है कि सुश्रुत ने शल्य क्रिया के 121 उपकरणों का उल्लेख किया है।
- सुश्रुत संहिता में सुश्रुत ने मोतियाबिंद, पथरी तथा अन्य बहुत से रोगों का उपचार शल्य-क्रियाविधि से बताया है।
- चरक की चरक संहिता भारतीय चिकित्सा शास्त्र का विश्वकोश है, इसमें ज्वर, कुष्ठ, मिरगी और यक्ष्मा के अनेक प्रकार बताए गए हैं। इस पुस्तक में बड़ी संख्या में उन पेड़-पौधों का वर्णन है जिनका प्रयोग दवा के रूप में होता है।
Incorrect
व्याख्याः
- औषधियों का उल्लेख सबसे पहले अथर्ववेद मे मिलता है। सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का पिता कहा जाता है। अतः कथन (c) असत्य है, जबकि अन्य कथन सत्य हैं। उल्लेखनीय है कि सुश्रुत ने शल्य क्रिया के 121 उपकरणों का उल्लेख किया है।
- सुश्रुत संहिता में सुश्रुत ने मोतियाबिंद, पथरी तथा अन्य बहुत से रोगों का उपचार शल्य-क्रियाविधि से बताया है।
- चरक की चरक संहिता भारतीय चिकित्सा शास्त्र का विश्वकोश है, इसमें ज्वर, कुष्ठ, मिरगी और यक्ष्मा के अनेक प्रकार बताए गए हैं। इस पुस्तक में बड़ी संख्या में उन पेड़-पौधों का वर्णन है जिनका प्रयोग दवा के रूप में होता है।
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Question 8 of 20
8. Question
1 pointsविद्वानों द्वारा रचित पुस्तकों के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियें:(विद्वान) (पुस्तक) A. आर्यभट्ट 1. पंचसिद्धान्तिका B. वराहमिहिर 2.बृहत संहिता C. कालिदास 3. अभिज्ञानशाकुंतलम् उपर्युक्त युग्मों में कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
Correct
व्याख्याः युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
आर्यभट्ट – आर्यभटीय
वराहमिहिर – बृहत संहिता
कालिदास – अभिज्ञानशाकुंतलम्Incorrect
व्याख्याः युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
आर्यभट्ट – आर्यभटीय
वराहमिहिर – बृहत संहिता
कालिदास – अभिज्ञानशाकुंतलम् -
Question 9 of 20
9. Question
1 pointsप्राचीन भारत की कला के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः
1. मौर्यकालीन सिंह की मूर्ति वाले स्तंभशीर्ष को भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया है।
2. भारतीय और यूनानी शैली के मिश्रण से गांधार शैली का जन्म हुआ।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सत्य हैं।
- मौर्यकालीन पालिशदार सिंह की मूर्ति वाले स्तंभशीर्ष को भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया है।
- भारतीय कला और यूनानी कला दोनों के तत्त्वों के सम्मिश्रण से एक नई कला शैली का जन्म हुआ जो गांधार शैली के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्ध की पहली प्रतिमा इसी शैली में है।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त दोनों कथन सत्य हैं।
- मौर्यकालीन पालिशदार सिंह की मूर्ति वाले स्तंभशीर्ष को भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया है।
- भारतीय कला और यूनानी कला दोनों के तत्त्वों के सम्मिश्रण से एक नई कला शैली का जन्म हुआ जो गांधार शैली के नाम से प्रसिद्ध है। बुद्ध की पहली प्रतिमा इसी शैली में है।
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Question 10 of 20
10. Question
1 pointsपाषाण काल से लेकर वैदिक काल तक हुए सामाजिक परिवर्तनों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
Correct
व्याख्याः
- हड़प्पा काल का समाज नगरीय समाज था, न कि अश्वारोही। वैदिक काल में समाज अश्वारोही और पशुपालक दोनों था। अतः कथन (c) असत्य है, जबकि अन्य तीनों कथन सत्य हैं।
- पहले पुरापाषाण युग का समाज खाद्य-संग्राहक था। जानवरों का शिकार करना ही उनके जीवन निर्वाह का मुख्य साधन था।
- नवपाषाण युग और ताम्रपाषाण युग में खाद्य-उत्पादक समाज बने। ये लोग ज़मीन के ऊँचाई वाले भाग पर रहते थे, जो पहाड़ियों और नदियों से अधिक दूर नहीं थे।
- उत्तर-वैदिक काल में वर्ण विभाजन स्पष्ट रूप से समाज में व्याप्त हो गया था। समाज चार वर्णों में विभाजित हो गया था।
Incorrect
व्याख्याः
- हड़प्पा काल का समाज नगरीय समाज था, न कि अश्वारोही। वैदिक काल में समाज अश्वारोही और पशुपालक दोनों था। अतः कथन (c) असत्य है, जबकि अन्य तीनों कथन सत्य हैं।
- पहले पुरापाषाण युग का समाज खाद्य-संग्राहक था। जानवरों का शिकार करना ही उनके जीवन निर्वाह का मुख्य साधन था।
- नवपाषाण युग और ताम्रपाषाण युग में खाद्य-उत्पादक समाज बने। ये लोग ज़मीन के ऊँचाई वाले भाग पर रहते थे, जो पहाड़ियों और नदियों से अधिक दूर नहीं थे।
- उत्तर-वैदिक काल में वर्ण विभाजन स्पष्ट रूप से समाज में व्याप्त हो गया था। समाज चार वर्णों में विभाजित हो गया था।
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Question 11 of 20
11. Question
1 pointsनिम्नलिखित में कौन-सा/से वैदिक काल में राजा की आय का मुख्य साधन था/थे?
1. युद्ध में की गई लूट
2. कर
3. नज़राना
कूटःCorrect
व्याख्याः
- वैदिक काल में राजा की आय का मुख्य साधन युद्ध में की गई लूट था। वे शत्रुओं से सम्पत्ति छीनते और विरोधी जनजातियों से नज़राना लेते थे। राजा को दिया जाने वाला यह नजराना बलि (चढ़वा) कहलाता था।
Incorrect
व्याख्याः
- वैदिक काल में राजा की आय का मुख्य साधन युद्ध में की गई लूट था। वे शत्रुओं से सम्पत्ति छीनते और विरोधी जनजातियों से नज़राना लेते थे। राजा को दिया जाने वाला यह नजराना बलि (चढ़वा) कहलाता था।
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Question 12 of 20
12. Question
1 pointsवैदिक काल के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियेः(शब्द) (संबंधित अर्थ)
1. गोमत् : धनवान
2. गोप : ग्वाला
3. गोवाल : बैल
उपरोक्त युग्मों में कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?Correct
व्याख्याः निम्नलिखित युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
(शब्द) (संबंधित अर्थ)
1.गोमत् : धनवान
2.गोप : राजा
3.गोवाला : भैंस- उल्लेखनीय है कि वैदिक काल में गाय, बैल और धन समानार्थक माने जाते थे। गाय और बैल युद्ध का कारण होते थे। गायों की रक्षा करना राजा का मुख्य धर्म होता था। आर्यों में गाय का इतना अधिक महत्त्व था कि जब उन्होंने भारत में पहली बार भैंस को देखा तो वे उसे गोवाल अर्थात् गाय जैसी दिखने वाली कहने लगे।
Incorrect
व्याख्याः निम्नलिखित युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
(शब्द) (संबंधित अर्थ)
1.गोमत् : धनवान
2.गोप : राजा
3.गोवाला : भैंस- उल्लेखनीय है कि वैदिक काल में गाय, बैल और धन समानार्थक माने जाते थे। गाय और बैल युद्ध का कारण होते थे। गायों की रक्षा करना राजा का मुख्य धर्म होता था। आर्यों में गाय का इतना अधिक महत्त्व था कि जब उन्होंने भारत में पहली बार भैंस को देखा तो वे उसे गोवाल अर्थात् गाय जैसी दिखने वाली कहने लगे।
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Question 13 of 20
13. Question
1 pointsवैदिक काल में ‘दुहितृ’ निम्नलिखित में से किसके लिये प्रयुक्त हुआ है?
Correct
व्याख्याः
- वैदिक काल के परिवार में गाय को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था, इसलिये इस काल में बेटी को ‘दुहितृ’ अर्थात् दुहने वाली कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्याः
- वैदिक काल के परिवार में गाय को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था, इसलिये इस काल में बेटी को ‘दुहितृ’ अर्थात् दुहने वाली कहा जाता था।
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Question 14 of 20
14. Question
1 pointsवैदिककालीन समाज व्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. इस काल में नियमित कर प्रणाली थी।
2. कृषक वर्ग ही सेना का कार्य करते थे।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- वैदिक काल में न तो कर प्रणाली स्थापित हुई थी और न ही वैतनिक सैन्य व्यवस्था थी। राजा के संबंधियों के अलावा कोई कर अधिकारी नहीं होता था। राजा को जो नज़राना दिया जाता था, वह वैसे ही था जैसे देवताओं को यज्ञादि में चढ़ावा दिया जाता था। अतः कथन (1) असत्य है।
- पशुचारक समाज की जन-सेना के बदले बाद में कृषक समाज की किसान सेना स्थापित हुई। विश् अर्थात् जनजातीय किसान वर्ग ही सेना या सशस्त्र दल का कार्य करते थे। अतः कथन (2) सत्य है।
Incorrect
व्याख्याः
- वैदिक काल में न तो कर प्रणाली स्थापित हुई थी और न ही वैतनिक सैन्य व्यवस्था थी। राजा के संबंधियों के अलावा कोई कर अधिकारी नहीं होता था। राजा को जो नज़राना दिया जाता था, वह वैसे ही था जैसे देवताओं को यज्ञादि में चढ़ावा दिया जाता था। अतः कथन (1) असत्य है।
- पशुचारक समाज की जन-सेना के बदले बाद में कृषक समाज की किसान सेना स्थापित हुई। विश् अर्थात् जनजातीय किसान वर्ग ही सेना या सशस्त्र दल का कार्य करते थे। अतः कथन (2) सत्य है।
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Question 15 of 20
15. Question
1 pointsनिम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. पूर्व मध्यकाल में सती प्रथा का प्रचलन बड़े पैमाने पर था।
2. वैदिक साहित्य में मज़दूर (वेज अर्नर) का वर्णन किया गया है।
3. प्राचीन काल में ऋण पर ब्याज भी वर्ण के अनुसार लगाया जाता था।
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सत्य हैं?Correct
व्याख्याः
- पूर्व मध्यकाल में राजस्थान में सती प्रथा ज़ोर से चल पड़ी। अतः कथन (1) सत्य है।
- उल्लेखनीय है कि सामंतवादी ढाँचे में भूस्वामियों और योद्धाओं के वर्ग की स्त्रियों की दशा निम्न स्तर पर पहुँची परंतु निम्न वर्ण की स्त्रियों को आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेने और पुनर्विवाह करने की छूट थी।
- वैदिक साहित्य में मज़दूर (वेज अर्नर) के लिये कोई शब्द नहीं आया है, अतः कथन (2) असत्य है। उल्लेखनीय है कि बुद्ध के काल में खेती का कार्य दासों और मज़दूरों से कराना आम बात हो गई थी।
- प्राचीन काल में ऋण पर ब्याज भी वर्ण के अनुसार निर्धारित होता था। उदाहरणार्थ ब्राह्मण को ऋण पर ब्याज दो प्रतिशत, क्षत्रिय को ऋण पर तीन प्रतिशत, वैश्य को चार प्रतिशत और शूद्र की पाँच प्रतिशत ब्याज लगता था। अतः कथन (3) सत्य है।
Incorrect
व्याख्याः
- पूर्व मध्यकाल में राजस्थान में सती प्रथा ज़ोर से चल पड़ी। अतः कथन (1) सत्य है।
- उल्लेखनीय है कि सामंतवादी ढाँचे में भूस्वामियों और योद्धाओं के वर्ग की स्त्रियों की दशा निम्न स्तर पर पहुँची परंतु निम्न वर्ण की स्त्रियों को आर्थिक क्रियाकलाप में भाग लेने और पुनर्विवाह करने की छूट थी।
- वैदिक साहित्य में मज़दूर (वेज अर्नर) के लिये कोई शब्द नहीं आया है, अतः कथन (2) असत्य है। उल्लेखनीय है कि बुद्ध के काल में खेती का कार्य दासों और मज़दूरों से कराना आम बात हो गई थी।
- प्राचीन काल में ऋण पर ब्याज भी वर्ण के अनुसार निर्धारित होता था। उदाहरणार्थ ब्राह्मण को ऋण पर ब्याज दो प्रतिशत, क्षत्रिय को ऋण पर तीन प्रतिशत, वैश्य को चार प्रतिशत और शूद्र की पाँच प्रतिशत ब्याज लगता था। अतः कथन (3) सत्य है।
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Question 16 of 20
16. Question
1 pointsगुप्तोत्तर काल में धार्मिक परिवर्तन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. ‘पंचदेवता’ में इन्द्र को प्रमुख स्थान प्राप्त था।
2. इस काल में विष्णु, शिव और दुर्गा ये तीनों प्रमुख देवता बन गए।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- गुप्तोत्तर काल में ब्रह्मा, गणपति, विष्णु, शक्ति और शिव इन पाँच देवताओं की पूजा प्रचलित पाते हैं, जो सम्मिलित रूप से ‘पंचदेवता’ कहलाते हैं। इस काल में वैदिककालीन देव इन्द्र, वरुण और यम का स्थान कम होकर लोकपाल की श्रेणी में आ गए अतः कथन (1) असत्य है।
- विष्णु, शिव और दुर्गा ये तीनों मुख्य देवता के रूप में स्थापित हुए। अतः कथन (2) सत्य है।
Incorrect
व्याख्याः
- गुप्तोत्तर काल में ब्रह्मा, गणपति, विष्णु, शक्ति और शिव इन पाँच देवताओं की पूजा प्रचलित पाते हैं, जो सम्मिलित रूप से ‘पंचदेवता’ कहलाते हैं। इस काल में वैदिककालीन देव इन्द्र, वरुण और यम का स्थान कम होकर लोकपाल की श्रेणी में आ गए अतः कथन (1) असत्य है।
- विष्णु, शिव और दुर्गा ये तीनों मुख्य देवता के रूप में स्थापित हुए। अतः कथन (2) सत्य है।
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Question 17 of 20
17. Question
1 pointsनिम्नलिखित में से किसे ‘पंचायतन’ कहा जाता है?
Correct
व्याख्याः पंचायतन मंदिर निर्माण शैली है, जिसमें मुख्य देवता शिव या किसी अन्य देव या देवी को मुख्य मंदिर में स्थापित किया जाता था और उसके चारों बने चार गौण मंदिरों में चार अन्य देवता रखे जाते थे। ऐसे मंदिर को ‘पंचायतन’ कहा जाता था।
Incorrect
व्याख्याः पंचायतन मंदिर निर्माण शैली है, जिसमें मुख्य देवता शिव या किसी अन्य देव या देवी को मुख्य मंदिर में स्थापित किया जाता था और उसके चारों बने चार गौण मंदिरों में चार अन्य देवता रखे जाते थे। ऐसे मंदिर को ‘पंचायतन’ कहा जाता था।
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Question 18 of 20
18. Question
1 pointsप्राचीन भारतीय समाज के मध्यकालीन समाज में बदलने के कारणों के संदर्भ में निम्नलिखित में कौन-सा/से सत्य है/हैं?
1. इसका मूल कारण भूमि अनुदान की प्रथा थी।
2. दानग्राही ब्राह्मण अपने क्षेत्रों से करों की वसूली और शांति व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करने लगे थे।
3. भूमि अनुदान से भू-स्वामियों का उदय होना इसका एक कारण था।
नीचे दिये गए कूट की सहायता से सही उत्तर चुनिये।Correct
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सत्य है।
- प्राचीन भारतीय समाज के मध्यकालीन समाज में बदलने के कारण निम्नलिखित हैं:
- प्राचीन भारतीय समाज जो धीरे-धीरे मध्यकालीन समाज मे बदला, उसका मूल कारण भूमि अनुदान की प्रथा थी। भूमि अनुदान के शासन-पत्र (सनद) बताते हैं कि दाताओं को विशेषकर राजाओं को पुण्य-प्राप्ति की कामना रहती थी, और दान पाने वालों को मुख्यतः पुरोहितों को धार्मिक अनुष्ठानों के लिये संसाधन की आवश्यकता रही थी। अतः भूमि अनुदान प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।
- पाँचवीं सदी तक राजा ने न्याय और शासन को अपने अधिकार में रखा, बाद में यह अधिकार दानग्राही ब्राह्मणों को दे दिया। ब्राह्मणों को दिया गया यह दान शाश्वत् अर्थात् स्थायी होता था और वे अपने क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार थे।
- भूमि अनुदान की स्थायी प्रथा से गुप्त काल के बाद से राजा की शक्ति कम होने लगी और भू-स्वामियों का उदय हुआ।
- उल्लेखनीय है कि भूमि अनुदान की प्रथा ईसा की पाँचवी सदी से तेज़ी पकड़ती गई।
Incorrect
व्याख्याः उपर्युक्त सभी कथन सत्य है।
- प्राचीन भारतीय समाज के मध्यकालीन समाज में बदलने के कारण निम्नलिखित हैं:
- प्राचीन भारतीय समाज जो धीरे-धीरे मध्यकालीन समाज मे बदला, उसका मूल कारण भूमि अनुदान की प्रथा थी। भूमि अनुदान के शासन-पत्र (सनद) बताते हैं कि दाताओं को विशेषकर राजाओं को पुण्य-प्राप्ति की कामना रहती थी, और दान पाने वालों को मुख्यतः पुरोहितों को धार्मिक अनुष्ठानों के लिये संसाधन की आवश्यकता रही थी। अतः भूमि अनुदान प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ।
- पाँचवीं सदी तक राजा ने न्याय और शासन को अपने अधिकार में रखा, बाद में यह अधिकार दानग्राही ब्राह्मणों को दे दिया। ब्राह्मणों को दिया गया यह दान शाश्वत् अर्थात् स्थायी होता था और वे अपने क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिये ज़िम्मेदार थे।
- भूमि अनुदान की स्थायी प्रथा से गुप्त काल के बाद से राजा की शक्ति कम होने लगी और भू-स्वामियों का उदय हुआ।
- उल्लेखनीय है कि भूमि अनुदान की प्रथा ईसा की पाँचवी सदी से तेज़ी पकड़ती गई।
-
Question 19 of 20
19. Question
1 pointsसातवीं सदी में नई कृषि अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः1. फसल उपज का कर वसूल करने का कार्य बँटाइदार करने लगे।
2. जो ग्राम अनुदान में दिया जाता था, उसके किसान अन्य स्थानों पर चले जाते थे।
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सत्य है/हैं?Correct
व्याख्याः
- इस काल में कृषि अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब भूस्वामी न तो स्वयं अपनी ज़मीन आबाद करते और न ही कर की वसूली, यह कार्य उन किसानों या बँटाइदारों को सौंपा जाता था, जो ज़मीन से तो जुड़े थे परंतु कानून उसके हकदार नहीं थे। अतः कथन (1) सत्य है
- सातवीं सदी में गया और नालंदा के अभिलेख में शिल्पियों और किसानों से कहा गया कि वे दान किये गए गाँवों को नहीं छोड़ें, अतः वे एक गाँव में रहकर वहाँ की सभी आवश्यकताओं को यथासाध्य पूरा किया करते थे। अतः कथन (2) असत्य है।
Incorrect
व्याख्याः
- इस काल में कृषि अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब भूस्वामी न तो स्वयं अपनी ज़मीन आबाद करते और न ही कर की वसूली, यह कार्य उन किसानों या बँटाइदारों को सौंपा जाता था, जो ज़मीन से तो जुड़े थे परंतु कानून उसके हकदार नहीं थे। अतः कथन (1) सत्य है
- सातवीं सदी में गया और नालंदा के अभिलेख में शिल्पियों और किसानों से कहा गया कि वे दान किये गए गाँवों को नहीं छोड़ें, अतः वे एक गाँव में रहकर वहाँ की सभी आवश्यकताओं को यथासाध्य पूरा किया करते थे। अतः कथन (2) असत्य है।
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Question 20 of 20
20. Question
1 pointsप्रसिद्ध विद्वानों के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजियेः
(विद्वान) (विषय)
1. वराहमिहिर दार्शनिक
2. विशाखदत्त नाटककार
3. शंकर गणितज्ञ
उपरोक्त युग्मों में कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?Correct
व्याख्याः युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
(विद्वान) (विषय)
1.वराहमिहिर :खगोलज्ञ
2.विशाखदत्त :नाटककार
3.शंकर :दार्शनिकIncorrect
व्याख्याः युग्मों का सही सुमेलन इस प्रकार हैः
(विद्वान) (विषय)
1.वराहमिहिर :खगोलज्ञ
2.विशाखदत्त :नाटककार
3.शंकर :दार्शनिक